रविवार, 23 जून 2019

संकट में किसान : वादा खिलाफ सरकारें

  देश का किसान आन्दोलन गुलाम भारत में शुरू हुआ था और अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में 1936 में उसके गठन के बाद से ही देश व्यापी समस्याओं हेतु विभिन्न रूपो में किसान संघर्ष करता चला आ रहा है।
देश के प्रख्यात साहित्यकार एवं सामाजिक चिन्तन मुंशी प्रेम चन्द ने आजादी के पूर्व किसानों की दुर्दशा का वर्णन करते हुए कहा था कि किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में जिन्दा रहता है, और कर्ज में ही मर जाता है ’बहत्तर साल की आजादी के बाद आज लाखों की संख्या में किसान मजबूर होकर कृषि संकट के चलते’ कर्ज में पैदा होता है, कर्ज में जिन्दा रहता है और कर्ज की अदायगी न कर पाने के कारण आत्महत्या कर लेता है सरकारें वोट के लिए किसानों से विभिन्न प्रकार के वादे करती हैं किन्तु उन्हें न तो पूरा करती हैं और न ही उनकी ऐसी इच्छा शक्ति ही प्रतीत होती है कि वे किसानों के हित में ईमानदारी से कुछ करना चाहती है।
ज्ञातव्य है कि आजादी के पूर्व कृषक अभाव में तो रहता था किन्तु कृषि की उपज पर बाजार का कोई नियंत्रण नहीं था। खेती के बीज किसान स्वयं रखता था, खाद गोबर व कम्पोस्ट द्वारा तैयार की जाती थी श्रम शक्ति भी फसल की पैदावर से ही जुड़ी रहती थी और पैदावार का एक हिस्सा ही मजदूरी के रूप में जाता था। जुताई हल बैल से होती थी, सिंचाई भी नदी, तालाब, कुएँ, नहर आदि से की जाती थी। फसल पर किसान के श्रम के अलावा अन्य कोई खर्चा नहीं था। उत्पादन अवश्य कम होता था किन्तु कृषि पर लागत न के बराबर थी। आज कृषि पूर्णतः बाजार पर आधारित हो गई है किसान जुताई, बोआई, बीज, खाद, दवा और बिक्री सभी कार्यों के लिए पूर्णतः बाजार पर आधारित है इसी के साथ प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि आदि भी किसान के लिए बहुत ही संकट की स्थित पैदा करती है और पूर्णतः बाजार पर निर्भर होने के नाते एक तरफ किसान अपनी उपज को बेंचते समय लुटता है और दूसरी तरफ खाद, बीज, कीटनाशक आदि खरीदते समय भी उसका शेषण होता है नकली खाद, नकली बीज की भी भरमार है।
हमारा देश कृषि प्रधान देश है देश की 70 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है और कृषि पर निर्भर है खेती किसानों के घाटे में रहने के कारण ग्रामीण जनता का जीवन स्तर दिन प्रतिदिन बदतर होता जा रहा है। सरकार की तमाम घोषणाओं के बावजूद कृषि की लागत  घटने के बजाए दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। किसान सरकारी, सहकारी व साहूकारी कर्जे में दबा हुआ है। फसल पर अधिक लागत लगाने के बाद लाभकारी मूल्य न मिलने की स्थिति में वह घोर संकट में पड़ जाता है और आत्म हत्या करने की स्थिति तक पहुँच जाता है।
आपको मालूम है कि मिल कारखानों से बने हुए माल अधिकतम खुदरा मूल्य (एम0आर0पी0) पर बिकते हैं और किसानों को अपनी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम0एस0पी0) पर बेचना पड़ता है। सरकार और व्यापारियां की मिलीभगत से प्रत्येक वर्ष फसल तैयार होने की स्थिति में सरकार द्वारा घोषित मूल्य पर अधिसंख्य किसानों की उपज की बिक्री नहीं हो पाती है और करोड़ों रुपये का घोटाला निजी व्यापारियों/गन्ना व्यवसाइयों व सरकारी खरीद एजेन्सी के माध्यम से हो रहा है। प्रदेश का गन्ना व आलू का किसान बदहाल है। चीनी मिलों पर कई साल से करोड़ों रुपये किसानो का बकाया चल रहा है अखबारी खबरों के अलावा जमीन पर किसानां का गन्ना मूल्य भुगतान होते दिखाई नहीं पड़ रहा है।
किसानों की दशा सुधारने के लिए आजाद देश में पहली बार कृषि वैज्ञानिक डॉ0 स्वामीनाथन की अध्यक्षता में कृषि आयोग का गठन किया गया जिसके माध्यम से कृषि संकट को दूर करने, कृषि व ग्रामीण जगत की समस्याओं का समाधान ढूढ़ने व किसान तथा ग्रामीण मजदूरों दस्तकारों की दशा में सुधारने के लिए बहुत सारी सिफारिशें आयोग ने सरकार से कीं तब से लेकर आज तक लगातार किसान कृषि पर लागत घटाने, फसलों का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कराने, सस्ते, कर्जे उपलब्ध कराने कृषि पैदावार की शत प्रतिशत बिक्री सुनिश्चित कराने आदि के लिए लगातार माँग व आंदोलन करते चले आ रहे हैं।
देश का सम्पूर्ण कृषि जगत जाति-पॉति में बटा हुआ है उनके अन्दर कमेरे और लुटेरे की पहचान करने की क्षमता पैदा नहीं हो रही है कृषि अर्थनीति को भी किसान सही तरह से नहीं जान पा रहा है। अपने दुश्मन की पहचान किए बिना और अपने राजनैतिक सहयोगियों का साथ लिए बिना किसानों की समस्याओं का समाधान होना असम्भव प्रतीत होता है।
वैसे ही देश के अन्दर एक तिहाई कृषि योग्य भूमि ही सिंचित है उस भूमि को बड़े पैमाने पर उद्योगां एवं सार्वजनिक हित का हवाला देकर अधिग्रहण हो रहा है। घाटे की कृषि को किसान छोड़ने की स्थिति में बढ़ा है बाजार की शक्तियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, बड़े औधोगिक घराने कृषि व कम्पनी करण करने के चक्कर में हैं। पहले से ही देश के अन्दर करोड़ो पढ़े-लिखे, शिक्षित व कुशल नौजवान बेरोजगार हैं। यदि कृषि का भी कम्पनीकरण होता है कृषि सम्पूर्ण तरीके से कुछ लोगों के हाथो में सिमट कर रह जाएगी जिसके चलते बड़े पैमाने पर किसान विस्थापित होंगे और बेरोजगारी की समस्या की भयावह स्थिति पैदा होगी। अफसोस यह है कि लाखां किसानों की आत्महत्या के बावजूद किसान संगठनों द्वारा विशेष सत्र आहूत करने विधान सभाओं व संसद के किसानों की समस्याओं पर चर्चा करने हेतु माँग की जा रही हैं किन्तु सरकार उस पर ध्यान देना नहीं चाहती है।
किसानों की समस्याओं का समाधान करने हेतु ऐसी नीतियाँ बनाया जाना तत्काल आवश्यक है। जिसमें कृषि की लागत घटाने कृषकां की फसल का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने, किसानों को बिना ब्याज के कृषि ऋण उपलब्ध कराने, पानी बिजली, खाद कीटनाशक आदि सस्ते व गुणवत्ता परक दिलाए जाने, किसानां की फसल तैयार होने पर उनकी उपज की लूट को रोकने हेतु कारगर उपाय सुनिश्चित करने, औद्योगिक उत्पादां और कृषि उत्पादों के मूल्य में सामन्जस्य स्थापित करना सुनिश्चित किया जाना, सम्पूर्ण ग्रामीण आबादी की निश्चित आय सुनिश्चित किया जाना, फसलां की सुरक्षा हेतु आवारा पशुओं और जंगली जानवरों पर नियंत्रण कि जाना आवश्यक है।
अन्त में मुझे जन कवि पूजा राम यादव की कुछ पंक्तियाँ जो गीत के रूप में सुनाते हैं वे याद आ रही हैं। जागो सर्वहारा, यह है भारत देश तुम्हारा, जागो जागो भारत के किसान।      

-सुरेश त्रिपाठी
मोबाइल : 9415534386

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