धीरेन्द्र दत्ता का जन्म 1910 मेंएक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था।उनका परिवार ढाका में विक्रमपुर में रहा करता था। पिता शरत दत्ता बादमें आसाम के शिवसागर जिला केगोलाघाट सबडिविजन में एकचाय-बागान में डॉक्टर का काम करनेलगे। डॉ. शरत दत्ता राष्ट्रवादी विचारोंके थे। उन्होंने गांधीजी के आवाहन पर1921 में चाय-बागान की अपनीनौकरी छोड़ दी और वे इस सबडिविजनमें बरूआ वामुनगांव नामक स्थान परआ गए। वहां उन्होंने प्राइवेट प्रैक्टिसआरंभ कर दी। लेकिन उनकी मत्यु1922 में हो गई। वे अपने पीछे अपनी पत्नी, दो लड़के और पांच लड़कियां छोड़ गए। धीरेन सबसे बड़े थे। धीरेनने अपनी प्राइमरी शिक्षा पूरी करके दो मील दूर डेरगांव में माध्यमिक स्कूलमें दाखिला लिया। लेकिन जल्द हीउन्हें पढ़ाई छोड़ काम की खोज मेंनिकलना पड़ा।कांग्रेस में शामिलइसी समय एक छोटी-सी घटना नेउनके जीवन की दिशा बदल दी। उन्होंनेकम्पाउन्डर का काम सीखा और इस काम के लिए वे चाय बागान के मैनेजरके पास गए जो अंग्रेज था। लेकिनउसने कई घंटे इंतजार करवाया। नाराज होकर धीरेन वहां से चले गए। उन्हें महसूस हुआ कि अंग्रेज किस तरह भारतीयों का अपमान करते हैं।धीरेन घर जाने के बजाय सीधेगोलाघाट चले गए और कांग्रेस में भर्तीहो गए। वे उस वक्त मात्र 18 वर्ष केथे। वह 1928 का साल था औरसारे देश में आंदोलन चल रहे थे।थोड़े समय बाद कांग्रेस ने लाहौरअधिवेशन में पूर्ण आजादी का उद्देश्यस्वीकार कर लिया। साथ हीजवाहरलाल नेहरू रूस से लौटकरसमाजवाद का प्रचार कर रहे थे। इससबसे आजादी के संघर्ष में नए आयामजुड़ रहे थे।धीरेन दत्ता ने स्वयं को पूरी तरहजन-कार्य में लगा दिया। वे ग्रामीणजनता में काम करने लगे और व्यापकपैमाने पर गांवों में घूमने लगे। उन्होंनेआम सभाएं कीं, हैंड बिल बांटे, फंडइकट््ठा किया और लोगों को संगठितकिया।जल्द ही वे सबडिविजन केजानेमाने नेता बन गए। उन्होंने गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहते हुए भी उन्होंने काफीसंघर्ष किया। अधिकारियों ने बदले कीभावना से उन्हें डंडा-बेड़ी में अकेले आसाम में कम्युनिस्ट आंदोलन के संस्थापक सेल में रखा।इस दौरान धीरेन ने कई कविताएंलिखीं जो उत्पीड़ित जनता को समर्पितथीं। वे पुस्तक रूप में प्रकाशित हुई।कम्युनिज्म की ओरउन्होंने मेरठ षड्यंत्र केस कीघटनाओं पर गहरी नजर रखी। साथही अन्य घटनाओं पर भी। उन्होंनेरविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रूस से लिखेगए पत्र ध्यान से पढ़े।इस बीच वे ढाका गए। वहां एककम्युनिस्ट कार्यकर्ता से लंबी बातचीतहुई। उन्हांने भविष्य का अपना रास्तातय कर लिया। वे मार्क्सवाद-लेनिनवादकी ओर झुकने लगे। इस बीच उन्हींकी पहल पर आसाम कांग्रेस की एक‘लेबर सबकमिटि’’ का गठन किया गयाजिसके वे सहायक सचिव बने।धीरेन ने कम्युनिस्ट साहित्य बांटना शुरू किया। गोलाघाट में उनकी मुलाकात बिनोय चक्रवर्ती से हुई जो पार्टी के अग्रणी नेता थे। उनकी मुलाकात नीलमणि बरठाकुर से भी हुई जो डिब्रूगढ़ में लाल झंडे के तले ट्रेडयूनियनें संगठित कर रहे थे।विद्यार्थी आंदोलन में वामपंथीविद्यार्थी आगे आ रहे थे। आसाम छात्रसन्मिलन आसाम का सबसे पुराना विद्यार्थी संगठन था जो 1916 मेंस्थापित किया गया था। इस बीच धीरेन दत्ता की मुलाकात जदु साइकिया से हुई। जदु अभी-अभी बनारस से पढ़ाई समाप्त कर लौटे थे।उन दोनों ने मिलकर गोलाघाट मेंप्रगतिशील साहित्य की लाइब्रेरी खड़ीकी। साथ ही अध्ययन मंडलियां भीबनाईं। इससे युवा क्रांतिकारियों कोतैयार करने में सहायता मिली। वेविद्यार्थी आंदोलन में अग्रणी भूमिकाअदा कर रहे थे। इन विद्यार्थियों कीमदद और कम्युनिस्ट विचारों का प्रभाव था कि 1939 में आसाम छात्र सन्मिलन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से सम्बध हो गया। आसाम का यह सबसे पुराना विद्यार्थी संगठन वहां के सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पुनर्जागरण का नेता बन गया।1939 में ही दिगबोई तेल शोधक कारखाने के मजदूरों ने हड़ताल करदी। हड़तालियों पर पुलिस ने गोलियोंचलाई जिससे तीन मजदूर मरे गए।सारे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन हुए। इसकाबड़ा ही गहरा असर पड़ा। यह महसूसकिया जाने लगा कि कांग्रेस के अंदरवामपंथी शक्तियों को मजबूत कियाजाना चाहिए।धीरेन दत्ता ने जदु साइकिया औरखगेश्वर तामुली के साथ मिलकरकांग्रेस के अंदर समाजवादी शक्तियोंको एक किया और कांग्रेस सोशलिस्टग्रुप बनाया। जनवरी 1940 मेंगोलाघाट के नजदीक मिशामारा में एकअखिल आसाम कन्वेंशन आयोजितकिया गया। इसी में औपचारिक रूप सेप्रफुल्ल गोस्वामी सचिव बनाए गए तथाजदु साइकिया और पवित्र राय सहायकसचिव। सोमनाथ लाहिरी और विश्वनाथमुखर्जी ने सम्मेलन का दिशा-निर्देशनकिया। इस सम्मेलन के प्रमुख कर्ताधर्ताधीरेन दत्ता थे हालांकि उन्होंने कोईपद स्वीकार नहीं किया।कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ज्यादा दिनोंतक अस्तित्व में नहीं रही। धीरेन दत्तातथा कई अन्य अबमार्क्सवाद-लेनिनवाद के आधार परएक नई पार्टी गठित करने की सोच रहेथे।इस उद्देश्य से कम्युनिस्ट विचारोंवाले युवाओं का एक कैम्प धीरेन औरजदु साइकिया ने गोलाघाट में आयोजितकिया। इसमें जगन्नाथ भट्टाचार्य भीशामिल हो गए जो बनारस में ही पार्टीके सदस्य बन चुके थे। वे लंबे समयतक जेल में गुजार चुके थे। उन सभीने स्वयं को कम्युनिस्ट घोषित किया।प्रगतिशील लेखक आंदोलनआसाम प्रगतिशील लेखक एवंकलाकार संघ बड़ा प्रभावशाली था। कईयुवा प्रगतिशील लेखकों ने गोलाघाट,जोरहाट, गुवाहाटी, इ. जगहों में लेखकसंघ सगठित किए। इसमें धीरेन दत्ता,जदु साइकिया, प्रफुल्ल दत्त गोस्वामी,इ. ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने के बादइन लेखकों ने समाजवादी औरकम्युनिस्ट दृष्टि से रचनाएं रचित कीं।भारतीय गणनाट्य संघ की स्थापना1938 में की गई। एक ‘प्रगतिशीलसमिति’का गठन भी किया गया।7 नवंबर 1937 को गोलाघाटमें रूसी क्रांति दिवस मनाया गया।जुलाई 7अगस्त1942 में गोलाघाटऔर जोरहाट में दो कैम्प लगाए गए।1942 के आंदोलन में धीरेन दत्ताके गीत बड़े ही प्रचलित हुए।पी.सी.जोशी ने 1942 में पार्टीमहासचिव के रूप में जारी किए गए एक सर्कुलर में धीरेन दत्ता के बारे मेंलिखा कि उन्हें नवंबर 1942 में धारा 129 के तहत गिरफ्तार कर लियागया है। वे पार्टी के आसाम में सबसे अच्छे प्रचारक थे, किसानों के लोकप्रिय थे। उन्होंने किसान समितियों का गठन किया।कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापनाउपर्युक्त कैम्प के तुरंत बाद ही आसाम में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की घोषणा की गई और जदु साइकियाइस के प्रथम सचिव बनाए गए। 1943तक यह कमिटि बंगाल की पार्टी केतहत एक जिला कमिटि बंगाल कीपार्टी के तहत एक जिला कमिटि केरूप में काम करती रही। दो महीनोंबाद धीरेन डिफेंस ऑफ इंडिया एक्टके तहत गिरफ्तार हो गए। वे 1943में रिहा किए गए।जिला कमिटि के रूप में पार्टी काहेडर्क्वाटर गोलाघाट में था। भारतीयकम्युनिस्ट पार्टी की प्रथम कांग्रेस;1943द्ध प्रादेशिक संगठन कमिटि काकेंद्र भी गोलाघाट ही रहा। प्रादेशिक पार्टी का प्रथम सम्मेलनभी गोलाघाट में ही हुआ। इन सारीघटनाओं के दौरान धीरेन दत्ता नेअनथक कार्य किए।धीरेन्द्र को 1946 में शिवसागरजिले के नजीरा में भेजा गया जहांउन्होंने चाय बागान मजदूरों के बीचकाम किया। वे गरीबों और किसानों मेंभी काफी लोकप्रिय थे।आजादी के बाद1948 में पार्टी पर ‘बी.टी.आर.’संकीर्णतावादी लाइन हावी हो गई।जनता से पार्टी का संपर्क टूट गया।पार्टी बिखर गई। 1949 में धीरेनदत्ता गिरफ्तार कर लिए गए और तीसरीबार जेल भेज दिए गए। अन्य साथियोंके साथ कैदियों से गलत व्यवहार केखिलाफ 63 दिनों तक भूख-हड़तालकी।1949 में भा.क.पा. की पॉलिटब्यूरो ने पी.सी.जोशी का समर्थन करनेके आरोप में पार्टी की आसाम प्रादेशिकसंगठन समिति को भंग कर दिया।धीरेन दत्ता ने पार्टी मे बी.टी.आर.’के संकीर्णतावादी का जमकर विरोधकिया। उन्होंने पार्टी द्वारा नई और सहीलाइन की खोज तथा उसे लागू करनेमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।धीरेन अत्यंत कठिन दौर से गुजररहे थे। उन्होंने 1952 में शैला सेविवाह किया। शैला भी पार्टी मेम्बर थीं।उन दोनों को रहने की उचित जगहनहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने पार्टीका काम नहीं छोड़ा। उनके तीन बच्चेहुए। उन्होंने जमीन के एक छोटे-सेटुकड़े पर छोटा-सा घर बनाया औरउसी में अत्यंत ही कठिन परिस्थितियोंमें रहने लगे। पार्टी उन्हें ‘वेज’ नहीं देपा रही थी। लेकिन पार्टी के साथियोंऔर मित्रों की सहायता से वे किसीतरह जीवन-बसर करने लगे।पार्टी के विकास में भूमिका1957 आते-आते भा.क.पा.आसाम में सबसे बड़ी वामपंथी पार्टीबन चुकी थी।1962 में चीनी आक्रमण केकारण कम्युनिस्ट आंदोलन की स्थितिगंभीर हो गई। पार्टी के अंदर फूट कीस्थिति पैदा हो गई। 1964 मेंफूटवादियों ने पार्टी तोड़ ही दी। धीरेनदत्ता ने कठिन परिश्रम करके अधिकसे अधिक पार्टी बचा ली। फूटवादी ज्यादासफल नहीं रहे।1964 में धीरेन दत्ता को हत्याका झूठा आरोप लगाकर गिरफ्तार करलिया गया। धीरेन पार्टी और किसानसभा के नेता के रूप में गोलाघाट मेंनाओजान गए। वहां के सबसे बड़ेभूस्वामी से संघर्ष किया। उससे लड़नेके लिए उन्होंने काश्तकारों को संगठितकिया। गुंडों के दल से संघर्ष किया।उनमें से एक मारा गया। भूस्वामी नेपुलिस से मिलकर धीरेन और जदु कोगिरफ्तार करवाया। मुकदमा चार वर्षोंतक चलता रहा और फिर वे छोड़ दिएगए।धीरेन दत्ता पार्टी के विभिन्न पदोंपर रहे। उनमें एक बड़ा गुण था जोउन्हें अन्य से अलग करता था। वेकभी भी पार्टी या संगठन में पद केपीछे न भागते थे और न ही उसकीकभी चाह पाली। उनका सम्मान करतेहुए पार्टी ने उन्हें 1971 में राज्यपार्टी कंट्रोल कमिशन का अध्यक्षबनाया।1972 में आसाम में बंगालीबनाम आसामी झगड़े शुरू हो गए।अलगावादियों और प्रतिक्रियावादियों तत्वों ने सारे राज्य में दंगे भड़काए।उन्होंने इसी का बहाना बनाकर पार्टी को भी अपना निशाना बनाया। पार्टी मजबूती से इस आक्रमण का सामना करती रही।इसी दौर में धीरेन दत्ता एकाएक बीमार पड़ गए। उन्हें तत्काल जोरहाट सिविल अस्पताल में भर्ती किया गया लेकिन उन्हें बचाने की सारी कोशिशें नाकाम रहीं। उनकी मृत्यु 22 अक्टूबर1972 को हो गई।धीरेन दत्ता बहुत ही मधुर, सरल और नर्म स्वभाव के थे। लेकिन साथही उसके अंदर दृढ़ संकल्प छिपा हुआ था। मदद के लिए कोई भी किसी भी समय उनके पास जा सकता था। पद की उन्हें कोई लालसा नहीं थी। उनकी याद में ‘‘स्मृति समिति’ बनाई गई और‘‘स्मृति ग्रंथ’ प्रकाशित किया गया .
शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020
धीरेन्द्र दत्ता असम कम्युनिस्ट पार्टी के जनक-अनिल राजिमवाले
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें