शनिवार, 8 मई 2021

कम्युनिस्ट नेता स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ सरकार


जगन्नाथ सरकार का जन्म 25 सितम्बर 1919 को उड़ीसा के पुरी में हुआ था। वहां उनके पिता डा अखिलनाथ सरकार असिस्टेंट सर्जन के पद पर थे। उनकी माता का नाम बीनापाणि था। कहा जाता है कि वहां के मंदिर का रथ का कार्य उनकी मां पवित्र कार्य के रूप में करती थी  जब जगन्नाथ सरकार पेट में थे।
इसीलिए उनका नाम ‘जगन्नाथ’ पड़ गया। सुप्रसिद्ध इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार उनके चाचा थे।
पटना का पी एम सी एच टेम्पल मेडिकल स्कूल के रूप में स्थापित किया गया था  उसे 1925 में ‘प्रिंस ऑफ
वेल्स मेडिकल कॉलेज’ का रूप दिया गया।  डा. ए एन सरकार को बिहार और उड़ीसा का असिस्टेंट सर्जन बनाया
गया था और वे 1924 में पटना आ गए। वे जदुनाथ सरकार के घर आ गए।
1931 में जगन्नाथ की पढ़ाई पटना के राममोहन राय  ;स्कूल में हुई। 1935 में जगन्नाथ ‘डिस्टिन्क्शन’ के साथ मैट्रिक पास हुए। वे लगातार फर्स्ट रहे। फिर आईएससी के लिए पटना साइन्स कॉलेज में उन्हें भर्ती कर दिया गया। जगन्नाथ ;रोल नं. 13  के नाम से प्रसिद्ध हो गए। वे पटना कालेज में पढ़ा करते।
उनके साथ सुनील मुखर्जी, अली अशरफ तथा अन्य साथी भी थे। उन दिनों पटना और बिहार में ए आई एस एफ
का उभार हो रहा था। उपर्युक्त दोनों नेताओं तथा चन्द्रशेखर सिंह एवं अन्य विद्यार्थी नेताओं के रूप में उभर रहे
थे।
जगन्नाथ सरकार ए आई  एस एफ में सक्रियता से जुड़ गए। जल्द ही वे पार्टी के सम्पर्क में आ गए। कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल पहले तो भकपा की ओर से पी सी जोशी तथा सी एस पी ;कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की ओर से जयप्रकाश नारायण में परस्पर समझौता किया था कि बिहार में भाकपा का गठन नहीं किया जाएगा। लेकिन जल्द ही मतभेद उभर आए और 1939 में बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी की कमिटी का गठन कर लिया गया। अभी जगन्नाथ  दा औपचारिक रूप से पार्टी से जुड़े नहीं थे। फिर भी ने लगातार विभिन्न नेताओं के सम्पर्क में बने हुए थे। उन्होंने जगन्नाथ दा को पार्टी में शामिल होने का अनुरोध किया लेकिन जगन्नाथ दा ने कहा कि  एम ए की परीक्षा के बाद शामिल होंगे।
जल्द ही जगन्नाथ सरकार बिना परीक्षा में बैठे पार्टी में शामिल हो गए हालांकि अभी होलटाइमर नहीं बने थे।
यह 1940 की बात है। पटना के कदमकुआं के एक अंधेरे-से कमरे में तीन सभी इकट्ठा हुआ। जगन्नाथ
सरकार, सुरेन्द्र शर्मा जो विद्यार्थी में और अजीत मित्र जो ‘राष्ट्रीय क्रांतिकारी’ थे और मिदनापुर से थे।
अंतिम दोनों पहले ही सदस्य बन चुके थे। तीनों को मिलाकर पटना शहर में पहली बार भाकपा का ‘सेल’ स्थापित
किया गया। मीटिंग में  अली अशरफ उपस्थित थे। इस समिति का गठन मुंगेर में किया गया था।
उस वक्त पार्टी गैर-कानूनी थी। जगन्नाथ सरकार को ‘अंडरग्राउंड टेक’ की जिम्मेदारी दी गई। वे ‘गुप्त पता’ का जिम्मा निभा रहे थे। बम्बई हेडक्वार्टर तथा अन्य जगहों से सारा पत्र-पत्राचार तथा अन्य जगहों से सारा पत्र-पत्राचार, सूचना का अदान-प्रदान उन्हें के जरिए होने लगा। कूरियर का काम करने वालों में बेगूसराय के देवकी नंदन सिंह, हिलसा के फुलवंत प्रसाद और मुंगेर के हरि सिन्हा थे।
26 जनवरी 1940 को पटना, छपरा, दरभंगा, भागलपुर, मुंगेर तथा अन्य जगहों में विद्यार्थियों की व्यापक
हड़ताल हो गई। डालमियानगर के मजदूरों ने भी हड़ताल कर दी। अनुभव की कमी के कारण कई साथी पकड़ लिए गए, जैसे सुनील मुखर्जी, राहुल सांकृत्यायन, विश्वनाथ माथुर, बी बी मुखर्जी, रतन राय, आदि।
नई प्रादेशिक संगठन समितियांगठित 
1940 में बम्बई से पी सी जोशी ने एक ‘कूरियर’ भेजा जिसने जगन्नाथ दा को सूचित किया कि वे सदस्यों की लिस्ट भेजें। एक अन्य कूरियर के जरिए जोशी ने जगन्नाथ सरकार को आदेश दिया कि वे तुरन्त अंडरग्राउंड होकर कलकत्ता पहुंच जाएं-जहां उनकी पार्टी संगठनकर्ता के रूप में ट्रेनिंग होनी थी। जगन्नाथ सरकार एमए की परीक्षा छोड़कर चुपचाप घर से निकलकर कलकत्ता पहुंच गए।
वे वहां भवानी सेन उन्हें हर दिन सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास पर लेक्चर देने लगे। उसके बाद उन्हें
प्रश्न दिए जाते थे जिनका लिखित जवाब देना होता था। बाद में उनके साथ नृपेन चक्रवर्ती और पांचू गोपाल
भादुरी भी आ गए। भवानी सेन द्वारा पढ़ाई पूरी होने के बाद सोमनाथ लाहिरी के लेक्चर गुरू हुए। उन्होंने संगठन और अंडरग्राउंड कार्य पर विस्तृत लेक्चर दिए। इस बीच पार्टी ने ‘जनयुद्ध’  "पीपुल्स वार "सोमनाथ लाहिरी ने कहा कि अब इस विषय पर क्लासें लेना संभव नहीं है, समय नहीं है, इसलिए उन्होंने एक मोटा सा दस्तावेज थमा दिया।
लाहिरी ने पॉलिट ब्यूरो सदस्य की हैसियत से बिहार की एक नई प्रदेशिक समिति गठित कर दी जिसके सदस्य
थे 5 मंजर रिजवी, श्यामल किशोर झा, योगिन्द्र शर्मा और जगन्नाा सरकार।
सभी की सहमति से 1941में जगन्नाथ सरकार को सचिव बनाया गया । इस बीच वे गिरिडीह से आए और वहां गुप्त रूप से मीटिंग कीं। वे इस पद पर 1942 तक रहे।
केन्द्रीय समिति  के  प्रतिनिधि के रूप में सरदेसाई अक्सर ही बिहार जाया करते। एस जी सरदेसाई
से जगन्नाथ दा की मुलाकात पार्टी में भर्ती होने से पहले से ही थी। जगन्नाथ दा ने उन्हें पहली बार कलकत्ता के
एआईसीसी की मीटिंग में देखा जहां जगन्नाथ  सामान्य दर्शक के रूप में गए थे। सरदेसाई के चाचा इतिहासकार
जी एस सरदेसाई जगन्नाथ के चाचा सर जदुनाथ सरकार थे गहरे दोस्त थे। 1946 में उन्होंने सी सी की रिपोर्टिंग की जिसका बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सी सी के ‘मार भगाओ’ प्रस्ताव से साथियों
को अवगत कराया। उसका जगन्नाथ दा पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसे वे बाद में भी याद करते रहे। इसके बाद
जगन्नाथ दा मजदूरों में काम करने गिरिडीह चले गए। वहां उन्होंने मुख्यतःखदान मजदूरों में  काम शुरू किया।
वहां उन्होंने कोयला खदान मजदूर यूनियन में काम किया। वहां चतुरानन मिश्र, शरत पटनायक, कृपा सिंधु
खुंतिया बगैर काम कर रहे थे।
कोयला खदान मजदूरों को भयावह गरीबी से ऊपर उठाना और संगठित अपने-आप में एक अतयंत ही दुरूह
कार्य था। जगन्नाथ सरकार ने चपलेन्दु भट्टाचार्य तथा अन्य सक्रिय नेताओं के साथ काम किया। वहां कई हड़तालों में भाग लेने का मौका मिला।
गिरीडीह में जगन्नाथ दा झरिया कोयला खदान क्षेत्र में काम करने गए।
‘बीटीआर लाइन’ का दौर
15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली जिसका भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने पुरजोर स्वागत किया। पी सी जोशी के नेतृत्व में पार्टी ने सारे देश में रैलियां, मीटिंगें और जुलूसों के जरिए आजादी की स्वागत किया।
लेकिन 1947 के अंत और 1948 के आरम्भ में पार्टी पर ‘बीटीआर लाइन’ हावी हो गई जिसने पार्टी को बर्बाद कर दिया। पार्टी ने ‘यह आजादी झूठी है’ का नारा अपनाते हुए भारत में ‘सशस्त्र समाजवादी क्रांति’ का आह्वान कर दिया। तीन वर्षों के भीतर भाकपा की सदसयता 90 हजार से घटकर 9 हजार पर आ गई।
1949 में जगन्नाथ सरकार तथा बिहार के कुछ अनय साथियों को कलकत्ता तथा बिहार के कुछ अन्य साथियों को कलकत्ता आने का आदेश दिया गया। उस वक्त पार्टी हेडक्वार्टर बम्बई से कलकत्ता ले जाया गया था।
जगन्नाथ सरकार, इद्रदीप सिन्हा और योगींद्र शर्मा छिपकर कलकत्ता पहुंचे। वहां जाने के लिए उन्होंने
अजीबो गरीब तरीके अपनाए जैसे अपने नाम पर टिक नहीं लेना, बीच में ही इधर-उधर कहीं उतर जाना,आदि । वे
आरंभ में कलकत्ता के बाग बाजार में जगन्नाथ दा के चाचा के घर में ठहरे। फिर कुछ अन्य जगहों से घूमते-घामते, ठहरते आखिरकार उन्हें एक टूटी-फूटी मस्जिद ले जाया गया। वहां स्वयं बीटी रणदिवे  उनसे मिले। उन्होंने नई पार्टी लाइन विस्तार से समझाते हुए 9 मार्च 1949 को होने वाली रेलवे हड़ताल का महत्व बताया। बी टी आर ने कहाः
‘‘रेलवे हड़ताल का आरमभ देश में क्रांति का आरंभ होगा।’ फिर उन्होंने उन्हें वापस जाने के लिए कहा।
लेकिन रेलवे हड़ताल बुरी तरह विफल रही और ‘समाजवादी क्रांति’ दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आई।
जगन्नाथ दा अपने साथियों के साथ रेलवे लाइनें देखते रहे और पाया कि सारी ट्रेनें दौड़ रही हैं! ‘बीटीआर’ बड़े नाराज हुए और जगन्नाथ सरकार तथा अन्य साथियों से रेलवे हड़ताल की विफलता का कारण पूछा और यह भी पूछा कि उसके लिए कौन-कौन से साथी जिम्मेदार हैं। ऐसा उन्होंने सारे देश किया। जगन्नाा दा तथा अन्य साथियों ने केन्द्र को अपनी रिपोर्ट भेज दी।
इस बीच जगन्नाथ सरकार मुजफ्फरपुर गए और कृष्ण कुमार खन्ना नामक विद्यार्थी नेता के ‘डेन’ में
जाने को हुए। लेकिन वहां चन्द्रशेखर सिंह गिरफ्तार हो चुके थे। जब जगन्नाथ दा वहां पहुंचे तो चारों ओर
पुलिस का पहरा पाया। जगन्नाथ दा भुट्टे के खेत में छिपकर बैठ गए लेकिन पकड़े गए। उन्हें कलकत्ता जेल भेज
दिया गया। वे रांची जेल में भी रखे गए थे।
जेल में राजनैतिक क्लासें लेने में वे आगे रहा करते। उस वक्त बिहार पार्टी के सचिव विनोद मुखर्जी थे। उनके
आदेश पर जेल से निकल भागने का फैसला किया गया। जगन्नाथ दा सहमत नहीं थे फिर भी उन्हें मानना पड़ा।
तैयारियां हो गई, सीढी, सिपाहियों का बेहोश करने की दवा का इंतजाम, खिड़की काटने की आदि .। लेकिन
इसे मुल्तवी करना पडा। इस बीच कॉमिन्फार्म’ ;मास्को से प्रकाशित पत्रिका ‘फॉर ए लास्टिंग पीस, फॉर पीपुल्स डेमोक्रेसी’ का सुप्रसिद्ध सम्पादकीय आया। वह ‘बीटीआर’ की समझ से मेल नहीं खाता था। इसके अलावा पार्टी के अंदर भारी नुकसान उठाने के बाद विरोध के स्वर तेज हो गए। नेतृत्व परिवर्तन की मांग की जाने लगी। बीटीआर की जगह पहले तो सी राजेश्वर राव और फिर अजय घोष ;1951 में  महासचिव बनाए गए।
इस बीच जगन्नाथ दा जेल से रिहा कर दिए गए। पार्टी लाइन अब बदल चुकी थी। जगन्नाथ सरकार ने बिहार
की पार्टी को पुनः खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। बिहार में पार्टी ने चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला किया।
1952 जगन्नाथ सरकार 1952-56 के दौरान फिर बिहार पार्टी सचिव बनाए गए। उनके कार्यकाल में बिहार में पार्टी द्वारा बहुत सारी गतिविधियां की गईं। 1955 में पटना के बी एन कॉलेज के सामने पुलिस फायरिंग में दीनानाथ पांडे मारे गए। इसके विरोध में सारे बिहार में प्रतिरोध-आंदोलन फूट पड़ा। भाकपा की पहल पर सर्व-दलीय समिति का गठन किया गया जिसके नेतृत्व में सारे बिहार में व्यापक आंदोलन छिड़ गया।
1950 के दशक में पटना तथा बिहार में एआईएसएफ ने कई राजनैतिक क्लासें लगाईं जिनमें जगन्नाथ सरकार ने प्रभावशाली लेक्चर दिए। जगन्नाथ सरकार फिर 1967 से 1978 तक बिहार पार्टी सचिव रहे।
1967 के आम चुनावों के बाद बिहार में ‘संविद’ सरकार बनी जिसके मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद थे। यह एक मजत्वपूर्ण और जटिल दौर था जिसमें जगन्नाथ सरकार ने सूझ-बूझ का परिचय दिया। सरकार में भाकपा की ओर से तीन मंत्री शामिल किए गए थेः इंद्रदीप सिन्हा, चन्द्रशेखर सिंह और तेजनारायण झा। लगभग हर दिन नई घटनाएं होती थीं और शक्ति संतुलन बदलता रहता। इस दौर और अगले दौर में जगन्नाथ दा के नेतृत्व का सारे बिहार पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका  सम्मान बढ़ा ।
जगन्नाथ दा का रूप  शांत, काफी लचीला और संतुलित हुआ करता। वे जनसभाओं में इतने प्रभावशाली वक्ता नहीं थे लेकिन पार्टी मीटिंगों में उन्हें बड़े ही ध्यान से सुना जाता। उनकी देखरेख में बिहार की पार्टी एक प्रभावशाली और शक्तिशाली ताकत बन गई।
1974-75 का बिहार में ‘जे पी आंदोलन’ तथा उसकी ‘सम्पूर्ण क्रांति’ बिहार और समूचे भारत में बड़ी चुनौती थी। जयप्रकाश नारायण सी एस पी के जमाने में कम्युनिस्टों के नजदीकी मित्र थे हालांकि जल्द ही उन्होंने कम्युनिस्ट-विरोध अपना लिया। वे जगन्नाथ दा को बहुत अच्छी तरह जानते थे। 1974 आते-आते जे पी ने आरएसएस से हाथ मिला लिया और ‘पार्टी-विहीन जनतंत्र’ का नारा दे दिया। उनकी संयोजन समिति के संयोजक आरएसएस के नानाजी देशमुख थे।
इस तुफानी दौर से जगन्नाथ सरकार ने बड़ी खूबी से पार्टी को आगे बढ़ाया और दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी शक्तियों को बिहार में रोक दिया और पीछे धकेल दिया।
जगन्नाथ दा की देखरेख में और उनकी पहल पर बिहार पार्टी ने ‘दैनिक जनशक्ति’ का प्रकाशन आरंभ किया। उन्होंने डी ए राजिमवाले जीवनी  लेखक के पिता से कहाः ‘‘हम जनशक्ति अखबार चलाने के लिए एक ईमानदार, समर्पित और कड़ी मेहनत करने वाला कामरेड चाहिए। इसलिए आप अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दीजिए और होलटाइमर के रूप में अखबार का चार्ज ले लीजिए ।’’ उन्होंने नौकरी से तुरन्त इस्तीफा दे दिया।
जगन्नाथ सरकार के समय में बड़ी संख्या में शिक्षक और बुधिजीवी पार्टी में आए। पार्टी  में डा. ए के सेन उनके गहरे सहयोगी थे। डा. सेन पार्टी  और बिहार में पार्टी के जाने-माने डाक्टर और बुधिजीवी थे। पार्टी ने उन्हें 1969 के
मध्यावधि चुनावों में पटना पश्चिम से असेम्बली के लिए खड़ा किया। उनके समर्थन में जनता उमड़ पड़ी। वे भारी बहुमत से जीत गए। वे चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन जगन्नाथ दा की लगातार कोशिशों के फलस्वरूप उन्हें मानना ही पड़ा। पटना में ‘नागरिक मंच’ की गतिविधियों को भी उनका बड़ा समर्थन रहता। 1968 में पटना में भाकपा का महाधिवेशन आयोजित किया गया। यह बड़ा आयोजन था। उसकी तैयारी में जगन्नाथ सरकार ने अथक परिश्रम किया।
केन्द्रीय सचिव मंडल ;सेक्रटेरिएट में
बाद में जगन्नाथ सरकार भाकपा के केन्द्रीय सचिव मंडल में शामिल किए गए। वे बिहार छोड़कर आना नहीं चाहते थे लेकिन उन पर काफी दबाव डाला गया। वे केन्द्र में इस पद पर कभी भी सहज नहीं रह पाए। एक वक्त उनका नाम महासचिव पद के लिए भी लिया जा रहा था।
सोवियत संघ का पतन और जगन्नाथ दा
इस बीच सोवियत संघ तथा पूर्वी योरप के देशों में समाजवादी सत्ताओं का पतन हो गया। इन घटनाओं ने जगन्नाथ दा को पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया। वे उन कुछ नेताओं में थे जो खुले  दिमाग से सोवियत संघ और समाजवाद पर विचार और बहस करने को तैयार थे। उन्होंने समाजवाद और पार्टी संबंधी कई स्थापित प्रस्थापनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाया। उन्होंने स्तालिनवाद की आलोचना की। वे पार्टी में इन प्रश्नों पर खुली बहस चाहते थे।
जगन्नाथ सरकार ने कई सारे लेख और पुस्तकें लिखीं। उनकी पत्नी नीलिमादी निरंतर उनके काम में उनके साथ रहीं। उनकी मृत्यु 8 अप्रैल 2011 को पटना में हो गई। वे उससे कुछ वर्ष पहले आंशिक मस्तिष्क-घात के कारण बीच-बीच में बीमार रहा करते।
-अनिल राजिम वाले

कोई टिप्पणी नहीं:

Share |