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बुधवार, 7 अक्टूबर 2015

भगवा बांझ विचारधारा है

लोकसभा संसदीय चुनाव के पहले भी विचारक व साहित्यकार क्या नही जानते थे कि भगवा विचारधारा  देश विभाजन से लेकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद की मुखबिरी करने का काम करती रही है. हिटलर और मुसोलिनी से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना हुई थी और पूर्ण बहुमत आने पर देश के अन्दर फ़ासिस्ट विचारधारा को बढाया जायेगा और देश के बहुधर्मीय स्वरूप को नष्ट करके एक विशेष फ़ासिस्ट वादी विचारधारा हिन्दुवत्व की स्थापना की जाएगी. चुनाव से पूर्व प्रगतिशील ताकतों ने अगर अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से अपनाया होता तो आज यह दिन देखने न पड़ते लेकिन जब आँख खुली तभी सवेरा है के मुहावरे को अगर मान लिया जाए तो आज विभिन्न भाषाओँ के साहित्यकारों ने केंद्र सरकार फ़ासिस्ट वादी रवैये के खिलाफ अपने पुरस्कार वापस करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और अगर इनकी लेखनी ने अपना जादू दिखाना शुरू किया तो निश्चित रूप से फ़ासिस्ट सरकार व नागपुरी विचारधारा पराजित होगी और इस देश की गरिमामय स्वरूप को नयी दिशा मिलेगी.
जानमाने साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने भी  को साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया।  दादरी में बीफ खाने की अफवाह के बाद एक शख्स के मर्डर और कुछ साहित्यकारों की हत्या होने के विरोध में यह पुरस्कार लौटाया है। वाजपेयी ने भास्कर  .कॉम से बात करते हुए    कहा  कि देश में भगवा विचारधारा को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा, 'यह बांझ विचारधारा  है .इस विचार को मानने वालों की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इन्हें साहित्य, इतिहास और संस्कृति की कोई समझ नहीं होती है।' 
श्री वाजपेयी ने कहा कि एक व्यक्ति की सिर्फ इस अफवाह पर हत्या कर दी गई कि उसने गोमांस खाया था? प्रधानमंत्री को ऐसा अपराध करने वालों को रोकना होगा। जिन लोगों को कुचला जा रहा है, रौंदा जा रहा है, उन्हें बचाने के लिए हम जैसे लोगों को आगे आना होगा।
श्री वाजपेयी ने कहा कि मौजूदा सरकार ने नेशनल बुक ट्रस्ट के प्रमुख (बलदेव शर्मा) पर जिसे बैठाया है, उनका किताबों से क्या लेना-देना है? ऐसे ही पुणे के एफटीआईआई जैसे संस्थान के प्रमुख के तौर पर अनजाने से एक्टर (गजेंद्र चौहान) को बैठा दिया. प्रधानमंत्री को न सिर्फ बयान देना चाहिए और बोलना चाहिए बल्कि यह भी देखना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं में तुरंत न्यायिक प्रक्रिया चले और ऐसे लोगों को रोका जाए। भारत बहुधार्मिक देश है। बहुभाषिक देश है। इसकी बहुलता पुरानी और सभी का स्वागत करने वाली है। ऐसे भारत में अफवाहों के आधार पर, धर्म के आधार और धार्मिक रिवाज को लेकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी जाए कि उसने गोमांस खाया है? जबकि उसका कोई प्रमाण नहीं है? मीडिया की खबरों से पता चल रहा है कि अफवाहें उड़ाने वालों का घनिष्ठ संबंध एक राजनीतिक दल विशेष से है। जिन लोगों को कुचला जा रहा है, रौंदा जा रहा है, उन्हें बचाया जाए। भारत बहुवचन है और रहेगा।  भगवा विचारधारा की समस्या यह है कि इसके पास पर्याप्त लेखक, कलाकार नहीं हैं।  'असहिष्णुता, सांप्रदायिकता और जातिवाद के खिलाफ मैं लिखता रहा हूं। इस देश में हर तरह के अल्पसंख्यक संदिग्ध हो गए हैं। चाहे वे धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक हों या विचार के नजरिए से। संविधान हमें जीवन की और अभिव्यक्ति की आजादी देता है। लेकिन मौजूदा माहौल में यह खतरे में दिखती है।' 
 इसके अतिरिक्त अंग्रेजी साहित्यकार नयनतारा सहगल व हिंदी के साहित्य कार उदय प्रकाश ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर दिया है अभी कई क्रांतिकारी हिंदी साहित्यकार की पुरुस्कार वापसी का इंतजार है वही  कन्नड़  भाषा के वीरान्ना माडीवलार,टी सतीश जावरे गौड़ा,संगामेश मेनासिखानी,हनुमंत हालीगेरी,श्रीदेवी वी अलूर,चिदानंदआदि साहित्यकारों ने अपने पुरुस्कार वापस कर दिए है.

सुमन 

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

हिंदी के लेखक ने दम दिखाया


फोटो-नवभारत टाइम्स से साभार
सरकार बदलने के बाद तमाम हिंदी के साहित्यकार की लेखनी कहानियां और कविता लिखने में व्यस्त हैं लेकिन हिंदुवत्व वादियों द्वारा किये जा रहे लेखन का जवाब नहीं दिया जा रहा है. बड़े-बड़े लेखक सत्ता के प्रतिष्ठानों में अपने को जोड़ने के लिए तरह-तरह के उपाय व टोटके कर रहे हैं किसी को राम चरित मानस याद आ रही है तो किसी को वैदिक व्यवस्था में साम्यवाद की परिकल्पनाएं नजर आ रही हैं.कुल मिलाकर शुद्ध फ़ासिस्ट सरकार में सुख प्राप्त करने के लिए जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं. इसी वजह से हिंदी के साहित्यकार डींगे तो बहुत ऊँची-ऊँची मारते हैं लेकिन अन्दर खाने से वह सड़ी-गली व्यवस्था से जुड़े रहते हैं. व्यवस्था विरोध न करने के कारण उनको कोई मारने-पीटने की बात जाने दीजिये, नाम आने पर हंस कर लोग टाल जाते हैं. एम् एम् कलबुर्गी की हत्या के बाद बहुत सारे प्रगतिशील वैज्ञानिक सोच वाले साहित्यकारों की लंगोट नहीं बंध पा रही है, ऐसे समय में हिंदी के साहित्यकार उदय प्रकाश ने प्रफेसर एमएम कलबुर्गी की हत्या पर विरोध जताते हुए अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का निर्णय लिया है। प्रगतिशील प्रोफेसर कलबुर्गी की कर्नाटक के धारवाड़ में उनके घर में घुसकर हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या  कट्टर हिंदूवादी संगठनों ने की है।
 उदय प्रकाश की फेसबुक वाल से पिछले समय से हमारे देश में लेखकों, कलाकारों, चिंतकों और बौद्धिकों के प्रति जिस तरह का हिंसक, अपमानजनक, अवमानना पूर्ण व्यवहार लगातार हो रहा है, जिसकी ताज़ा कड़ी प्रख्यात लेखक और विचारक तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कन्नड़ साहित्यकार श्री कलबुर्गी की मतांध हिंदुत्ववादी अपराधियों द्वारा की गई कायराना और दहशतनाक हत्या है, उसने मेरे जैसे अकेले लेखक को भीतर से हिला दिया है। अब यह चुप रहने का और मुँह सिल कर सुरक्षित कहीं छुप जाने का पल नहीं है। वर्ना ये ख़तरे बढ़ते जायेंगे। मैं साहित्यकार कुलबर्गी जी की हत्या के विरोध में 'मोहन दास' नामक कृति पर २०१०-११ में प्रदान किये गये साहित्य अकादमी पुरस्कार को विनम्रता लेकिन सुचिंतित दृढ़ता के साथ लौटाता हूँ। अभी गॉंव में हूँ। ७-८ सितंबर तक दिल्ली पहुँचते ही इस संदर्भ में औपचारिक पत्र और राशि भेज दूँगा। मैं उस निर्णायक मंडल के सदस्य, जिनके कारण 'मोहन दास' को यह पुरस्कार मिला, अशोक वाजपेयी और चित्रा मुद्गल के प्रति आभार व्यक्त करते हुए, यह पुरस्कार वापस करता हूँ। आप सभी दोस्तों से अपेक्षा है कि आप मेरे इस निर्णय में मेरे साथ बने रहेंगे, पहले की ही तरह। आपका उदय प्रकाश।
  प्रोफेसर कलबुर्गी खुद भी साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे जा चुके थे।
 वहीँ, हिंदी के सरकारी साहित्यकार भ्रष्टाचार भी खूब करेंगे, घूस भी खायेंगे और इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए सब कुछ करेंगे लेकिन हिंदी के साहित्यकार कभी भी जनता के साथ मोर्चे में आने से परहेज करते हैं. इस कदम के बाद अब लग रहा है की हिंदी का साहित्यकार चेत रहा है और समाज को नयी दिशा देने के लिए आगे बढ़ रहा है. इस कदम को उठाने के लिए उदय प्रकाश जी को ढेर सारी बधाइयाँ क्यूंकि हिंदी के लेखक ने अब दम दिखाया है.

सुमन
लो क सं घ र्ष !
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