लोकसभा संसदीय चुनाव के पहले भी विचारक व साहित्यकार क्या नही जानते थे कि भगवा विचारधारा देश विभाजन से लेकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद की मुखबिरी करने का काम करती रही है. हिटलर और मुसोलिनी से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना हुई थी और पूर्ण बहुमत आने पर देश के अन्दर फ़ासिस्ट विचारधारा को बढाया जायेगा और देश के बहुधर्मीय स्वरूप को नष्ट करके एक विशेष फ़ासिस्ट वादी विचारधारा हिन्दुवत्व की स्थापना की जाएगी. चुनाव से पूर्व प्रगतिशील ताकतों ने अगर अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से अपनाया होता तो आज यह दिन देखने न पड़ते लेकिन जब आँख खुली तभी सवेरा है के मुहावरे को अगर मान लिया जाए तो आज विभिन्न भाषाओँ के साहित्यकारों ने केंद्र सरकार फ़ासिस्ट वादी रवैये के खिलाफ अपने पुरस्कार वापस करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और अगर इनकी लेखनी ने अपना जादू दिखाना शुरू किया तो निश्चित रूप से फ़ासिस्ट सरकार व नागपुरी विचारधारा पराजित होगी और इस देश की गरिमामय स्वरूप को नयी दिशा मिलेगी.
जानमाने साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने भी को साहित्य अकादमी पुरस्कार
लौटा दिया। दादरी में बीफ खाने की अफवाह के बाद एक शख्स के मर्डर
और कुछ साहित्यकारों की हत्या होने के विरोध में यह पुरस्कार लौटाया है।
वाजपेयी ने भास्कर .कॉम से बात करते हुए कहा कि देश में भगवा विचारधारा को
निशाने पर लिया। उन्होंने कहा, 'यह बांझ विचारधारा है .इस विचार को मानने
वालों की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इन्हें साहित्य, इतिहास और संस्कृति
की कोई समझ नहीं होती है।'
श्री वाजपेयी ने कहा कि एक व्यक्ति की सिर्फ इस अफवाह पर हत्या कर दी गई कि उसने गोमांस खाया था?
प्रधानमंत्री को ऐसा अपराध करने वालों को रोकना होगा। जिन लोगों को कुचला
जा रहा है, रौंदा जा रहा है, उन्हें बचाने के लिए हम जैसे लोगों को आगे आना
होगा।
श्री वाजपेयी ने कहा कि मौजूदा सरकार ने नेशनल बुक ट्रस्ट के प्रमुख (बलदेव शर्मा) पर जिसे
बैठाया है, उनका किताबों से क्या लेना-देना है? ऐसे ही पुणे के एफटीआईआई
जैसे संस्थान के प्रमुख के तौर पर अनजाने से एक्टर (गजेंद्र चौहान) को बैठा
दिया. प्रधानमंत्री को न सिर्फ बयान देना चाहिए और बोलना चाहिए बल्कि यह भी देखना
चाहिए कि इस तरह की घटनाओं में तुरंत न्यायिक प्रक्रिया चले और ऐसे लोगों
को रोका जाए। भारत बहुधार्मिक देश है। बहुभाषिक देश है। इसकी बहुलता पुरानी
और सभी का स्वागत करने वाली है। ऐसे भारत में अफवाहों के आधार पर, धर्म के
आधार और धार्मिक रिवाज को लेकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी जाए कि उसने
गोमांस खाया है? जबकि उसका कोई प्रमाण नहीं है? मीडिया की खबरों से पता चल
रहा है कि अफवाहें उड़ाने वालों का घनिष्ठ संबंध एक राजनीतिक दल विशेष से
है। जिन लोगों को कुचला जा रहा है, रौंदा जा रहा है, उन्हें बचाया जाए।
भारत बहुवचन है और रहेगा। भगवा विचारधारा की समस्या यह है कि इसके पास पर्याप्त लेखक,
कलाकार नहीं हैं। 'असहिष्णुता, सांप्रदायिकता और जातिवाद के खिलाफ मैं लिखता रहा हूं।
इस देश में हर तरह के अल्पसंख्यक संदिग्ध हो गए हैं। चाहे वे धर्म के आधार
पर अल्पसंख्यक हों या विचार के नजरिए से। संविधान हमें जीवन की और
अभिव्यक्ति की आजादी देता है। लेकिन मौजूदा माहौल में यह खतरे में दिखती
है।'
इसके अतिरिक्त अंग्रेजी साहित्यकार नयनतारा सहगल व हिंदी के साहित्य कार उदय प्रकाश ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर दिया है अभी कई क्रांतिकारी हिंदी साहित्यकार की पुरुस्कार वापसी का इंतजार है वही कन्नड़ भाषा के वीरान्ना माडीवलार,टी सतीश जावरे गौड़ा,संगामेश मेनासिखानी,हनुमंत हालीगेरी,श्रीदेवी वी अलूर,चिदानंदआदि साहित्यकारों ने अपने पुरुस्कार वापस कर दिए है.
सुमन
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