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शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

मोदी सरकार-मजदूर विरोधी सरकार

 आज देश के लगभग 18 करोड़ मजदूरों ने अपनी 12 सूत्री मांगो को लेकर एक दिवसीय हड़ताल की और उनकी प्रमुख मांग यह है कि एक मजदूर को न्यूनतम वेतन 18000 रुपये दिए जाने चाहिए. मोदी सरकार 350 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 26 दिन काम के मानने पर 9100 रुपये देने के लिए कह रही है. वहीँ उत्तर प्रदेश में एक विधायक का वेतन 75000 रुपये है और भत्तों को मिला कर 1 लाख 25 हजार रुपये प्रतिमाह नगद विधायक को मिलेगा. एक विधायक या सांसद का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है. उसके वेतन और भत्तों को जब भी बढाने की बात आती है पक्ष और विपक्ष चुपचाप बगैर किसी बहस के बढ़ा लेते हैं. मजदूरों को अपना वेतन व भत्ते बढाने के लिए हड़ताल के अतिरिक्त कोई विकल्प नही होता है. वहीँ, मजदूरों की यह भी मांग है कि सेवानिवृत्ति के बाद असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को लगभग 3000 रुपये प्रतिमाह पेंशन दिया जाए. वहीँ, पेंशन में दस हजार से 25 हजार रुपये प्रतिमाह तक बढ़ोत्तरी की गई है।
वहीँ, श्रमिक यह भी मांग कर रहे हैं कि सरकारी कारखानों, संगठनो, प्रतिष्ठानों का निजीकरण न किया जाए तथा ठेकेदारी प्रथा को समाप्त किया जाए.
 बैंकों, इनकम टैक्स ऑफिस, बीएसएनएल, पोस्ट ऑफिस, रेलवे मेल सर्विस के दफ्फ्तरों समेत कई कारखानों में काम काज ठप रहा। इस वजह से अरेरा हिल्स स्थित डाक भवन, इनकम टैकस ऑफिस, बैंकों और बीएएसएनएल दफ्तर में काम- काज नहीं हुआ। यहां तक पहुंचे लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ा। न तो टेलीफोन के बिल जमा हुए, न ही मोबाइल के। बैंकों में पैसों का लेन- देन भी नहीं हुआ। इनकम टैक्स में पूरा काम प्रभावित रहा।
 मजदूरों की प्रमुख मांगे इस प्रकार हैं कि सातवें वेतनमान की विसंगतियों को सरकार तय समय सीमा में दूर कर, न्यूनतम वेतन 26 हजार रुपए दिया जाए, फिटमेंट फार्मूला में बदलाव किया जाए, न्यू पेंशन स्कीम को खत्म किया जाए,  निजीकरण, आउटसोर्सिंग, ठेकेदारी प्रथा रोकी जाए,  रेलवे और रक्षा में एफडीआई पर रोक लगे, खाली पदों पर भर्ती की जाए, पाबंदी हटाई जाए,  ग्रामीण डाक सेवकों को विभागीय कर्मचारी माना जाए,
महंगाई रोकने के लिए पीडीएस का सबके लिए उपलब्ध कराया जाए।
भारतीय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने एक बयान में कहा है कि हम सेंट्रल और स्‍टेट ट्रेड यूनियनों की ओर से बुलाई गई हड़ताल का पूरी तरह तरह से समर्थन करते है। वर्कर्स की मांगें पूरी तरह से जायज हैं। सरकार का रवैया पूरी तरह से नकारात्‍मक है।  
मोदी सरकार अगर रिलायंस के अम्बानियों, अडानी, टाटा, बिरला जैसे कॉर्पोरेट सेक्टर को नियंत्रित करने वाले इजारेदार पूंजीपतियों को छूट देने की बात आती है तो अब तक लाखों-लाख करोड़ रुपये की छूट देकर अपने नारे हिन्दू, हिंदी, हिन्दुस्तान के नारे को साकार कर चुके होते, लेकिन मजदूरों, किसानो बहुसंख्यक आबादी को मोदी और उसकी सरकार कुछ मिलना नहीं है क्यूंकि इनका चरित्र कार्पोरेट सेक्टर के बंधुआ एजेंट जैसी है इसीलिए चाहे रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर की नियुक्ति हो या अन्य नियुक्तियां वह कार्पोरेट सेक्टर नौकरशाहों की होती है जिससे यह लोग ज्यादा से ज्यादा फायदा कोर्पोरेट सेक्टर को पहुंचा सकें. यह सरकार मजदूर विरोधी सरकार है. 

सुमन 

सोमवार, 5 सितंबर 2011

प्रधानमंत्री का सन्देश लोकतंत्र में विश्वास नहीं पैदा करता है अंतिम भाग

लोकतंत्र पर खतरा लोगों से नहीं है, बल्कि खतरा पूँजी की दानवी करतूत से हैलोकतंत्र और पूँजीवाद एक साथ नहीं चलते हैंदानवी पूँजी लोकतंत्र का निषेध है। निरंकुश पूँजीवाद ने समाज के सारे ताने-बाने बिगाड़ दिए हैंपूँजी के उन्मुक्त बाजारवाद ने गलाकाट अनैतिक न्रशंस प्रतियोगिता को जन्म दिया हैइसने उद्धम उपभोक्तावाद की बेलगाम संस्कृति विकसित की हैइसने तमाम मानवीय मूल्यों और आदर्शों की बलि चढ़ा दी है तथा लोकतान्त्रिक संस्थानों संसद एवं विधान सभाओं की कार्यप्रणाली को भी भ्रष्ट बना दिया हैलोगों ने अनुभव से देखा है कि सरकार बदलने से नीतियाँ नहीं बदलती हैंकांग्रेस और भाजपा सरकारों की नीतियाँ एक जैसी हैंयही हाल अमेरिका, ब्रिटेन और पाश्चात्य देशों का भी हैसत्ता के दावेदार पार्टियों की नीतियों में कोई बुनियादी भेद नहीं है
भारतीय लोकतान्त्रिक प्रणाली का दोष यह है कि इसके अंतर्गत अल्पमत की सरकारें राज करती हैंजनता जिसकी जमानत जब्त करा देती है, चुनाव आयोग उसे प्रमाण पत्र जारी करता है, क्यूंकि प्राप्त मतों में उसे ही सर्वाधिक मत मिला होता है1977 की जनता पार्टी सरकार को छोड़कर आजाद भारत में किसी भी केन्द्रीय सरकार को देश के बहुमत मतदाताओं का विश्वास हासिल नहीं हुआ हैसत्ताधारियों को इस हकीकत का एहसास होना चाहिए कि वे देश की बहुमत जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैंइसलिए वक्त का तकाजा है कि चुनाव प्रणाली में तुरंत संशोधन किया जाये
देश के सामने मूल प्रश्न यह नहीं है कि संसदीय सर्वोच्चता कायम कैसे रखी जाए, बल्कि मूल प्रश्न संसद और सांसदों के चारित्रिक पतन रोकने का हैवैश्वीकरण की नव उदारवादी आर्थिक नीति लागू होने के साथ नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में संसदीय बहुमत हासिल करने के लिये जो पैसों का खेल प्रारंभ हुआ, उसे डॉ मनमोहन सिंह ने शिखर तक पहुंचा दियाहर्षद मेहता कांड से लेकर 2 जी स्पेक्ट्रम तक भ्रष्टाचार की भयावह यात्रा जनता का दिल दहला रही हैपूरे मामले में संसद की आश्चर्यजनक निष्क्रियता ने कार्यपालिका की काली करतूतों पर पर्दा डाला हैइससे संसदीय गरिमा का तीव्र क्षरण हुआ हैयद्यपि नगरपालिका समाये से पीछे चलनेवाली मानी जाती है, फिर भी उसने आगे बढ़कर हस्तक्षेप नहीं किया होता तो ये कुकांड कभी प्रकाश में नहीं आतेइसलिए जिस तीव्रता से संसदीय गरिमा का क्षरण रोका जायेगा, उसी क्रम से जनमानस में संसदीय सर्वोच्चता स्वीकार्य होगी
2009 के सितम्बर महीने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केन्द्रीय ट्रेड यूनियन की पांच सूत्री मांगों पर वार्ता करने का आश्वासन दिया था, वह आश्वासन आज तक पूरा नहीं किया जा सका, जबकि इसी बीच पूंजीपतियों के साथ अनेक दरवाजा बंद बैठकें की गयीइससे अगर औद्योगिक अशांति फैलती है तो इसका जिम्मेदार सरकार ही है
महंगाई पर काबू नहीं पाया गया, बेरोजगारी बढती जा रही है, लोगों की आमदनी काम होती जा रही है, उनका जीना दूभर है, किन्तु दूसरी और पूंजीपति मोटे हो रहे हैं, उनकी आमदनी आकाश चूम रही हैइस आर्थिक विषमता के चलते सामाजिक तनाव पैदा हुआ है और देश में हिंसक घटनाएं बढ़ी हैंऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा सदाचार और लोकतंत्र का पथ पढाया जाना अनाचार ही होगाइसलिए स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री के लालकिला के प्राचीर से दिया गया सन्देश लोगों में विश्वास पैदा नहीं करता है
मजदूर वर्ग समाज का अगुआ दस्ता है7 सितम्बर 2011 को ट्रेड यूनियनों का फिर राष्ट्रीय कनवेंशन हो रहा हैनिश्चय ही यह कनवेंशन देश के मेहनतकश अवाम में नया विश्वास और जोश भरेगा

सत्य नारायण ठाकुर
समाप्त
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