मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

सैयां भये कोतवाल तो अब डर कहे का

उत्तर प्रदेश में अपराध को नियंत्रित करने के लिए सरकार का अरबों रुपये खर्च होता हैपुलिस विभाग के बड़े-बड़े उच्च अधिकारी सरकार से तरह-तरह के अनुदान आधुनिकरण के लिए बजट की मांग करते रहते हैंवहीँ पर अपराधियों के खिलाफ उनकी विवेचना का स्तर काफी हद तक अपराधियों की मदद करने वाला होता है। अभी हाल में दिन-दहाड़े डकैती का मुकदमा अंतर्गत धारा 395, 397 आई.पी.सी थाना कोतवाली बाराबंकी में दर्ज हुआविवेचना अधिकारी ने पुलिस विभाग के उच्च अधिकारीयों के दिशा निर्देश पर वाद को धारा 147, 148, 323, 504, 506, 307 आई.पी.सी में तरमीम कर दिया किन्तु अभियुक्तों की जमानत प्रार्थना पत्र गुण दोष के आधार पर सत्र न्यायधीश ने ख़ारिज कर दिएपुलिस विभाग अचंभित होकर उसकी टिपण्णी आई की अभियुक्तों की मदद तो की ही जाएगीअभियुक्तों का प्रार्थना पत्र जब माननीय उच्च न्यायलय इलाहाबाद खंडपीठ लखनऊ में सुनवाई हेतु नीयत हुआ तो विवेचना अधिकारी ने धारा 307 आई.पी.सी को भी हटा दियान्यायलय को सूचना दी गयी की इस वाद में आरोप पत्र बाराबंकी के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के यहाँ दाखिल कर दी गयी हैआरोप पत्र में प्रथम सूचना रिपोर्ट में दर्ज गवाहों का नाम साक्षी गणों की सूची में नहीं हैसाक्षी गणों में अभियुक्त जन के मेली मददगारों के नाम दर्ज कर दिए हेंशर्मनाक बात यह है कि उत्तर प्रदेश पुलिस अपराधियों के हितों की रक्षा के लिए उनकी मदद कर सकती है उसका उत्कृष्ट नमूना यह वाद है
गंभीर अपराधों के मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस की विवेचना अपराधियों के घर से ही शुरू होती है और तरह-तरह की वसूली के बाद उनकी मदद की जाती हैअपराधी जब पैसा नहीं देते हें तो उनके नातेदारों, रिश्तेदारों तक की पिटाई की जाती हैरात में तलाशी के नाम पर रुपया, पैसा, जेवर गहना लूट लेना यह आम सी बात हैयदि अपराधी ने उनकी मांगें पूरी कर दी तो कंधे पर बैठा कर एक किलोमीटर के रास्ते को पूरा करने में पांच जगह रोक कर मिठाइयाँ खिलाते हुए न्यायलय के सामने पेश करेंगे अन्यथा अपराधी की हड्डी पसली एक करते हुए अदालत के समक्ष ले जायेंगेपुलिस विभाग के उच्च अधिकारी चाहे जैसे भी दावे करें उनके दावों में दम नहीं हैहमारे समाज की एक मशहूर कहावत है कि सैयां भये कोतवाल तो अब डर कहे का

सुमन
लो क सं घ र्ष !

2 टिप्‍पणियां:

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

सुमन जी ,
ये तो हमारी पुलिस की विशेषता है लेकिन इससे सभी पुलिस वाले बदनाम होते हैं. इसमें उनपर हमारी राजनेताओं का दबाव भी तो होता है की वे मजबूर होते हैं और जो हिम्मत करते हैं वे रह नहीं पाते हैं. रातों रात तबादला. सिर्फ पुलिस की इसमें भागीदारी नहीं है. अन्दर झांकिए तो पैबंद ही पैबंद लगे हैं. खासतौर पर सत्ताधारी लोगों के.

हास्यफुहार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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