सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

न्याय पालिका की सांप्रदायिकता

अधिवक्ता शाहिद आजमी की की शहादत की तीसरी बरसी पररिहाई मंच द्वारा आयोजित सम्मेलन न्याय पालिका की सांप्रदायिकता और लोकतंत्र में आतंकवाद के मामलों में आरोपित मुस्लिम युवकों के प्रति न्याय पालिका द्वारा सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव किए जाने की अलोचना करते वक्ताओं इससे देश के सामने एक न्यायिक फासीवाद का खतरा उत्पन्न हो गया है जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
सम्मेलन की शुरुआत में इस सम्मेलन के प्रमुख वक्ता पत्रकार इफ्तिखार गिलानी जिन्हें आज सुबह सम्मेलन में आते वक्त बीच रास्ते से जबरन दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा रोक दिया गया की निंदा करते हुए इसे कांग्रेस
सरकार की शर्मनाक करतूत बताया गया।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकता हिमांशु कुमार ने कहा कि विधायिका और कार्यपालिका की तरह ही न्यायपालिका भी अब मजबूत तबकों के पक्ष में गरीबों के खिलाफ खुल कर खड़ी हो गई है। इसलिए जरुरी है कि
न्यायपालिका की भूमिका पर समाज मुखर होकर आंदोलित हो।

वरिष्ठ पत्रकार प्रशान्त टंडन ने सांप्रदायिक मीडिया द्वारा मुस्लिम युवकों के खिलाफ किए जा रहे मीडिया ट्रायल का न्याय पालिका पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभाव पर बात करते हुए कहा कि न्यायिक फासीवाद के खतरे को राज्य
मीडीया के साथ मिलकर बढ़ा रहा है। इस तरह जनता के एक ऐसे सामूहिक चेतना का विकास हो रहा है जो अपने ही देश के नागरिकों के फर्जी एनकाउंटरों और बिना निष्पक्ष जांच के ही फांसी पर लटका देने से संतुष्ट होने लगा है,
अफजल गुरु की फांसी जिसकी नजीर है। यह भारत के एक फासिस्ट राज्य में तब्दील होने का उदाहरण है।

शाहिद आजमी के भाई खालिद आजमी ने कहा कि उनके भाई की कुर्बानी जाया नहीं जाएगी क्योंकि उनकी लड़ाइ्र न्याय की लड़ाई थी जिसके लिए आज पूरे देश में लड़ने के लिए खड़े हो रहे हैं।

गुलबर्गा कर्नाटक से आए अयाज अल शेख ने कहा कि अगर यह व्यवस्था अपने नागरिकों से जीने का अधिकार छीनती है तो उसे वजूद में रहने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने आतंकवाद के आरोप में कैद निर्दोषों की रिहाई के लिए एक मजबूत राजनीतिक आंदोलन के साथ-साथ न्यायपालिका को धर्मनिरपेक्ष बनाने के
लिए आंदोलन की मांग। जिससे सच्चे लोकतंत्र की स्थापना हो सके।

एपीसीआर के नेता अखलाक अहमद ने न्याय पालिका की सांप्रदायिकता के लिए इस समाज मे व्याप्त अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि इसके पीछे संघ परिवार द्वारा फैलाए गई सांप्रदायिक मानसिकता हैं। न्यायपालिका में ऐसे जजों की भरमार काफी है जो अंबेडकर के संविधान के बजाय मनु के मानवता विरोधी संविधान के प्रति जवाबदेह हैं।

सूरत, गुजरात से आए अधिवक्ता और मानवाधिकार नेता बिलाल कागजी जिन्हें आतंकवाद के फर्जी आरोप में महीनों जेल में रखा गया ने कहा कि आतंकवाद के मामलों में अधिकतर देखा जाता है कि अभियोजन पक्ष के बजाय जज ही आरापियों से जिरह करने लगता है, यह अलोतांत्रिक प्रवृत्ति तो है ही न्याय के सिद्धान्तों की भी हत्या है।

सम्मेलन के पहले सत्र की अध्यक्षता इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मो0 सुलेमान, दूसरे का पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी और तीसरे सत्र की अध्यक्षता रुपरेखा वर्मा और अधिवक्ता मुहम्मद शुएब ने की।

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्नानित सामाजिक कार्यकता संदीप पांडे ने आतंकवाद के आरोप में फर्जी तरीके से फंसाए गए शाहबाज की पत्नी सदफ को लखनऊ लोकसभा सीट से प्रत्यासी बनाने का प्रस्ताव रखा।
सम्मेलन को असद हयात, सदफ, रणधीर सिंह सुमन, मसीहुदृदीन संजरी, आफाक, खालिद शाबिर, इलियास आजमी, प्रो अनिल सिंह, जैद फारुकी, केके वत्स ने संबोधित किया।

सम्मेलन में अनिल आजमी, आरिफ, अंकित चैधरी, अभिनव, सुब्रत, मो समी, सि़द्धार्थ कलहंस इत्यिादि उपस्थित थे।

1 टिप्पणी:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

पक्ष में फैसला आये तो न्यापालिका पर पूरा भरोसा अन्यथा साम्प्रदायिक !
NICE !

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