शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

स्वतंत्रता की महानायिका विमला डांग




 सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट और

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तथा महिला आंदोलन के संगठनकर्ताओं में एकविमला डांग का जन्म 26दिसंबर 1926 को लाहौर में हुआ था। वे उन बहुत-ही थोडे़ कम्युनिस्टों में थीं जिन्हें भारत सरकार से ‘पद्मश्री’ 1992 पाने का सम्मान मिला था।

विमला के पिता का नाम औतार लाल बकाया था जो बी.बी.सी. रेडियो में ब्रॉडकास्टर थे। वे लंदन में रहा करते थे और उदार राष्ट्रवादी विचारों के थे। विमला की मां कमला और उनकी छोटी बहन 1931 में रोम गईं। जहां उन्होंने मैडम मारिया मांटेसरी की देखरेख में मांटेसरी डिप्लोमा कोर्स

किया। कमला उन प्रथम चार भारतीय महिलाओं में थीं जो मांटेसरी टीचर बनीं। वापस लौटकर कमला ने लाहौर

में सर गंगाराम गर्ल्स हाईस्कूल में नौकरी

कर ली। आगे उन्होंने ही समूचा परिवार संभाला, खासकर विमला के पिता की

लदंन में 1943 में मत्यु के बाद। आरंभिक पढ़ाई

लाहौर का सर गंगाराम गर्ल्स हाई स्कूल शानदार संस्था थी। उसकी देखरेख सरोजिनी नायडू की छोटी बहन मृणालिनी चट्टोपाध्याय करती थीं। वहां न सिर्फ उच्च कोटि की पढ़ाई होती थी बल्कि देशभक्ति की भावना भी विद्यार्थियों में भरी जाती थी। विमला पढ़ाई में बहुत

तेज थीं और खेलकूद में भी। जल्द ही वह स्पोर्ट्स कैप्टन बन गई। तीर-धनुष

चलाना सीखा, गाना गाना भी सीखा,जिसमें वह प्रथम आई।

मृणालिनी चट्टोपाध्याय के प्रिंसिपल बनने के बाद स्कूल में काफी परिवर्तन आए। विमला स्कूल के वॉल-पेपर

दीवार पर लगाया जाने वाला अखबार  ‘फॉरवर्ड’ के संपादकीय मंडल में शामिल हो गई। महात्मा गांधी का

जन्मदिन और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाने लगा। विमला ने गांधीजी की प्रशंसा में गीत भी लिखे।

मृणालिनी की बहन सुहासिनी ने लाल झंडे की प्रशंसा में और ‘इन्टरनेशनल’ उठ जागों भूखे बंदी’ गाए। विमला

इन गतिविधियों से गहरे रूप में प्रभावित हुई। उसने सुहासिनी से रूसी क्रांति के

बारे में भी काफी कुछ सुना। सुहासिनी बंबई में रहा करती थी लेकिन अपनी बहन मृणालिनी से मिलने लाहौर जाया करतीं। गंगाराम स्कूल में उनकी मुलाकात विमला के माता-पिता से हुई। 1944 में विमला और उनके भाई

रवि बकाया आगे पढ़ाई के लिए बंबई चले गए। विमला को विल्सन कॉलेज

में दिखला मिला। उसने अर्थशास्त्र में ऑनर्स कोर्स किया। उसे जल्द ही स्कॉलरशिप मिल गई।

ए.आई.एस.एफ. से संपर्क

जल्द ही विमला का संपर्क बॉम्बे स्टूडेंट्स यूनियन के साथ हुआ। उसने कॉलेज में स्टूडेंट्स फेडरेशन बनाना शुरू किया किया। वहां

स्टूडेंट्स कांग्रेस भी सक्रिय थी। एस.एफ. के सदस्य पार्टी अखबार ‘पीपुल्स वार’ बेचा करते और पार्टी साहित्य भी।

एस.एफ. ने बंगाल अकाल के लिए ‘बंगाल बचाओ’ काउंटर भी बनाए।

उन्होंने राहत समिति का गठन भी किया।

विमला बी.एस.यू. ऑफिस रोज जाया करती। साथ ही रवि बकाया और सत्यपाल डांग मिलकर फ्रेंड्स ऑफ सोवियत यूनियन के ऑफिस भी जाया करते।

इस बीच सत्यपाल भी पढ़ाई के लिए बंबई आ गए थे। जल्द ही सत्यपाल

डांग बॉम्बे स्टूडेंट्स यूनियन के महासचिव बन गए।

विमला का परिवार बंबई आ गया था सुहासिनी से इस परिवार के संबंध अधिक गहरे हो गए। इससे बेहतर

कम्युनिस्ट और क्रांतिकारी बनने में सहायता मिली।

कॉलेज में रूसो के सुप्रसिद्ध वक्तव्यः ‘‘मनुष्य आजाद जन्म लेता है लेकिन वह सभी जगह गुलामी की जंजीरों में

बंधा है’’ पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। विमला ने भी

उसमें हिस्सा लिया। इसमें ‘द स्टूडेंट’ के संपादक सुब्रत सेनगुप्ता से उन्हें बड़ी मदद मिली।

बंबई में जन-उभार, 1946


जनवरी 1946 में सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन के अवसर पर बंबई में विशाल प्रदर्शन फूट पड़े। पूरे शहर में

हड़ताल रही और दुकानें बंद रहीं। ग्रांट रोड स्टेशन से विल्सन कॉलेज जाते

समय चारों ओर आंसू गैस और फायरिंग के निशान थे। विल्सन कॉलेज में

हड़ताल हो गई। अंग्रेजी राज के खिलाफ नारे लग रहे थे। स्टूडेंट्स फेडरेशन और स्टूडेंट्स कांग्रेस का संयुक्त जुलूस निकला। स्टूडेंट्स कांग्रेस के विद्यार्थियों

ने कहा कि वे मिलकर संघर्ष करेंगे।

विद्यार्थी एकता के नारे लगने लगे।

एक बड़ी आम सभा हुई। ‘प्रार्थना समाज’

के पास फायरिंग में दो व्यक्ति घायल हो गए थे।

उसी रात भा.क.पा. केंद्रीय कार्यालय पर गुंडों द्वारा आक्रमण किया गया।

रवि बकाया भी वहीं थे। आग लगाने का प्रयत्न विफल कर दिया गया। पूरा स्टॉफ जमकर लड़ा। बलराज साहनी

घायल हो गए। दूसरे दिन अखबारों में इस तोड़फोड़ की खबर प्रकाशित हुई।

सत्यपाल डांग भी वहां थे।

जनवरी से मार्च 1946 तक

जनआंदोलन चलता रहा। विमला ने परीक्षा के लिए छुट्टी ले ली। वह अब एम.ए.अर्थशास्त्र में पढ़ रही थी।

फरवरी ;1946 के अंतिम

सप्ताह में बंबई में ब्रिटिश रायल इंडियन नेवी ;आर.आई.एन. विद्रोह हुआ जिसमें विद्रोही नाविकों ने लाल झंडा फहराया

था। इसके समर्थन में ए.आई.एस.एफ.

और बी.एस.यू. ने सक्रिय आंदोलन चलाया जिसमें विमला ने भी हिस्सा

लिया। उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आंदोलन में कूद पड़ी। विल्सन कॉलेज

तथा अन्य जगहों के विद्यार्थियों ने भूख-हड़ताल करके अपना खाना

जहाजों पर पहुंचाया। अंग्रेज सरकार ने नौसैनिकों के लिए खाना-पानी और

ईधन की सप्लाई बंद कर दी थी।

25 फरवरी को विमला को लोकल ट्रेन बीच में ही छोड़नी पड़ी और वह परेल स्थित पार्टी ऑफिस चली गई।

सभी महिला साथियों को अपने-अपने घर जाने का निर्देश दिया गया।

विद्यार्थियां ने के.ई.एम. अस्पताल में रात-दिन घायलों की सेवा की। बी.

एस.यू ने कैसल बैरक्स में प्रदर्शन किया।

नरगिस बाटलीवाला ने विमला से बातचीत की और विमला को ‘पार्टी फ्रैक्शन’’ में ले लिया गया। इसमें सत्यपाल डांग और रवि सिन्हा भी

शामिल थे। इस बीच विमला के बड़े भाई शशि बकाया की बंबई में ही मृत्यु हो गई। वे भी पार्टी से संबंधित थे।

शशि ने कई क्रांतिकारी गीत लिखे जो आगे चलकर विद्यार्थी तथा अन्य

आंदोलनों में गाए गए। बंबई के विद्यार्थी ‘स्क्वाड’ ने ये गाने विभिन्न अवसरों पर खूब गाए।

एम.ए. की पढ़ाई विमला बकाया ने स्कूल ऑफ

इकोनोमिक्स में एम.ए. में दाखिला ले लिया। उन्होंने कपड़ा उद्योग पर शोध

कार्य किया। सत्यपाल और रवि सिन्हा भी उसी इंस्टीच्यूट में भर्ती हो गए।

विमला नियमित रूप से लाइब्रेरी में काम करती थीं। वहां ए.आई.एस.एफ.

गठित किया गया और यूनियन के चुनावों में भी साथियों ने काम किया।

विमला तथा अन्य साथियों ने मालाबार हिल्स इलाके से काफी फंड इकट्ठा किया।

भा.क.पा. की प्रथम कांग्रेस में

1943 विमला बकाया ने भा.क.पा. की प्रथम कांग्रेस ;बंबई,1943 में पंजाब

से सांस्कृतिक ग्रुप के सदस्य के रूप में भाग लिया। बाबा सोहन सिंह भखना,

सोहन सिंह जोश, तेजा सिंह स्वतंत्र तथा अन्य कई सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट साथ थे।

यह बंबई जाने का विमला के लिए पहला मौका थाः ऊंची बिल्डिंगें, चौड़ी

सड़कें, लोकल ट्रेनें, समुन्दर का किनार। भा.क.पा. के शीर्षस्थ नेताओं को देखने-सुनने का अवसर मिला।

पी.सी. जोशी, डॉ. अधिकारी, बी.टी.आर. रणदिवे, सज्जाद जहीद, अमीर हैदर खान, वगैरह। सत्यपाल डांग भी

गए थे। बिनोय रॉय का बंगाल इप्टा ग्रुप बड़ा प्रभावशाली था। मखदूम मोहिउद्दीन के गीत बड़े प्रचलित हुए।

लाहौर लौटने पर विमला को पार्टी में शामिल कर लिया गया। पार्टी केंद्र से अरूण बोस को कॉलेज में बोलने

के लिए आमंत्रित किया गया। उनके स्वागत में राष्ट्रगीत गाए गए।

इसके बाद अरूण बोस ने

विद्यार्थियों के लिए पार्टी स्कूल में लेक्चर दिया। विमला एकमात्र छात्रा थी।

बंगाल का अकाल ;1943

1943 में बंगाल में महा-अकाल पड़ा। ए.आई.एस.एफ. ने राहत-कार्य के लिए अपना दल भेजा। पंजाब से

चार विद्यार्थी गए जिनमें विमला और सत्यपाल भी शामिल थे। वे सूखा पीड़ितों

के लिए कपड़े ले गए। विमला का ग्रुप रंगपुर जिला गया जो बिनोय रॉय का घर था। उनकी बहन रेवा रॉय भी साथ

आईं। विमला ने डायरी लिखी। वे सभी कई-कई घंटे अपना सामान ढोते हुए

चला करते। चारों ओर सूखी हड्डियों वाले लोग भूखे-नंगे, यहां तक लाशें

और हड्डियां बिखरी मिलतीं। ‘राहत

कैम्पों’ में स्थिति भयानक थी। विमला

बकामा ने कई जगह ‘‘सुनो हिन्द के

रहने वालों, सुनो, सुनो.....’’।

दो सप्ताह बाद ग्रुप कलकत्ता वापस

आ गया। पंजाब स्टूडेंट्स फेडरेशन ने

‘बंगाल सहायता’ अभियान चलाया।

विमला ने अनीता और सावित्री के साथ

मिलकर काफी काम किया। जल्द ही

विमला प्रादेशिक ए.एफ. की समिति में

शामिल कर ली गई।

अंतर्राष्ट्रीय यूथ कमिशन

1946 में ए.आई.एस.एफ. के

निमंत्रण पर अंतर्राष्ट्रीय यूथ कमिशन

भारत आया जिसमें सोवियत, यूगोस्लाव,

फ्रेंच और डैनिश प्रतिनिधि शामिल थे।

उन्हें बंबई घुमाया गया और विमला

तथा सत्यपाल उन्हें डी.आर.डी. वाडिया

के घर ले गए।

यूथ कमिशन के भारत से प्रस्थान

के बाद आई.यू.एस. ;इंटरनेशनल

यूनियन ऑफ स्टूडेंट्सद्ध के अंतर्राष्ट्रीय

कार्यालय में ए.आई.एस.एफ.का

प्रतिनिधि भेजने का सवाल आया। विश्व

युवा महोत्सव में भी शामिल होना था।

विमला बकाया का नाम प्रस्तावित हुआ।

जल्द ही विमला विदेश जाने की

तैयारियां करने लगी। उसे अंतर्राष्ट्रीय

कार्य की ट्रेनिंग दी जाने लगी। सत्यपाल

डांग की देखरेख में अंतर्राष्ट्रीय कार्य

के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श

हुआ। उस व डब्ल्यू.एफ.डी.वाई. में ए.

आई.एस.एफ. की प्रतिनिधि विद्या कानूगा

के साथ हुए पुराने पत्राचार का अध्ययन

किया गया।

विमला बकाया जून 1947 में

‘एस.एस.समारिया’ नामक जहाज से

विदेश के लिए निकल पड़ी। जहाज

कैरो होते हुए 21 दिनों बाद लिवरपूल

पहुंचा। वे अपने साथ शहीदे-आजम

भगत सिंह की पेंटिंग्स तथा अन्य

महत्वपूर्ण चीजें ले जा रही थीं जिन्हें

संवेदनहीन कस्टम अफसरों ने नुकसान

पहुंचाया। कुमुद मेहता उनसे मिलने

आई थीं। वे लंदन पहुंचे। वहां विमला

की मुलाकात किट्टी बूमला, अरविंद

मेहता, डॉ. के.एम. अशरफ, शराफ अथर

अली और अन्य साथियों से हुई। उन्हें

ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर

ले जाया गया जहां उनकी मुलाकात

रजनी पामदत्त से हुई।

अगले दिन विमला प्राग के लिए

चल पड़ी। वह महोत्सव कार्यालय गई।

उनकी मुलाकात किट्टी हुकम, विद्या

कानूगा तथा अन्य से हुई। ऑस्ट्रेलिया

के बर्ट विलियम्य डब्ल्यू.एफ.डी.वाई. के

सचिव थे। 14 जुलाई 1947 को

फ्रांसीसी क्रांति दिवस मनाया गया।

सत्यपाल डांग भी प्राग पहुंच गए।

युवा महोत्सव के उद्घाटन समारोह

में विमला भारतीय प्रतिनिधिमंडल में

आगे-आगे चल रही थी। इसके कुछ

समय बाद आई.यू.एस. के परिषद की

बैठक में विमला ने हिस्सा लिया। यह

उसी जगह हुआ जहां महोत्सव

आयोजित किया गया था। मदन बकाया

और गुल झवेरी भी बंबई से आ गए।

महोत्सव के अंतिम दिन चेकोस्लोवाकिया

के राष्ट्रपति भी आए। इस प्रकार प्रथम

विश्व युवा महोत्सव संपन्न हुआ।

आई.यू.एस. के कार्यालय में एशिया

से केवल दो प्रतिनिधि थे-विमला

बकाया भारत से और इंडोनेशिया से

सुगियोनो। विमला ने अपने संस्मरणों

में लिखा है कि आरंभ में आई.यू.एस.

की कार्यप्रणाली काफी नौकरशाहीपूर्ण

थी। उनमें औपनिवेशिक देशों की

.अनिल राजिमवाले

समस्याओं की समझा की कमी थी।

इसलिए आई.यू.एस. ने एक

‘औपनिवेशिक ब्यूरो’ की स्थापना की

जिसमें विमला भी थीं।

विमला बकाया अथक परिश्रम से

अपना काम किया करतीं। वे सुबह 7

बजे ही ऑफिस चली जाया करतीं और

शाम 6 बजे अपने होस्टल लौटतीं।

आरंभ में उन्हें स्टूडेंट्स रिलीफ कमिटि

का इन्चार्ज बनाया गया। उन्हें

चेकोस्लोवाक कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर

जाने का भी मौका मिला।

प्राग में विमला को सुप्रसि(

क्रांतिकारी लेखक जूलियस फ्यूचिक

की पत्नी गुस्तावा फ्यूचिकोवा से मिलने

का अवसर मिला। जूलियस फ्यूचिक

प्रसि( पुस्तक ‘फांसी के तख्ते से’ के

लेखक थे। उनकी जर्मनों ने यातनाएं

देकर हत्या कर दी थी।

चेकोस्लोवाकिया एक तरह से

विमला का अस्थाई घर बन चुका था।

उसने कई जगहों पर भारत में शिक्षा

की स्थिति के बारे में भाषण दिए। उसके

साथ कई मौकों पर अंग्रेज विद्यार्थी टॉम

मैडन और आई.यू.एस.अध्यक्ष जोसफ

ग्रोहमान हुआ करते। विमला के भाषणों

में तथ्य और आंकड़ें भरे होते थे।

इस बीच उसकी जान-पहचान

कारमेल ब्रिकमान और बेन फील्ड से

हुई जो औपनिवेशिक समस्या को

अधिक समझते थे। कारमेल यहूदी थी।

अंग्रेजी बोलनेवालों से जान-पहचान

बढ़ी। इसके अलावा, अई.यू.एस. में चेक

भाषा पढ़ाई जाने लगी।

जल्द ही जाम्भेकर, रेड्डी और रंगा

राव भी प्राग आ गए। आसपास का

वातावरण यु( के बाद कठोर था। जब

विमला डांगः पद्मश्री विभूषित

कभी विमला पत्र डालने जाती तो

पासपोर्ट दिखाना पड़ता था और पोस्ट

मास्टर को पत्र दिखाना पड़ता। सभी

को खाने के कूपन मिला करते। बाद

में आई.यू.एस. का अपना कैन्टीन चलने

लगा।

रूसी क्रांति दिवस धूमधाम से

मनाया गया जिसमें चेकोस्लोवाक नेता

भी शामिल हुए। विमला ने भी नृत्य

-संगीत में भाग लिया। उसे

स्विट्जरलैंड जाने का भी मौका मिला।

उसे प्राग में ओरिएन्टल इंस्टीच्यूट जाने

का अवसर भी मिला जहां प्रो. लेस्नी से

मुलाकात हुई। प्रो. लेस्नी कई बार शांति

निकेतन आ चुके थे।

भारत वापसी

विमला बकाया 1951 में भारत

लौटी। वह बंबई गई और वहां एक

विज्ञापन एजेंसी में उन्हें काम मिला।

उस वक्त पार्टी की स्थिति बहुत खराब

थी। ’बी.टी.आर. लाइन’ के चलते पार्टी

तहस-नहस हो चुकी थी। विमला को

अपना परिवार भी चलाना था।

10 अप्रैल 1952 को विमला

और सत्यपाल डांग का सरल तरीके से

रजिस्ट्री विवाह हुआ। यह तय हुआ कि

परिवार के लिए विमला नौकरी करती

रहेगी। 1954 में विमला के भाई रवि

बकाया के सोवियत रूस से लौटने के

बाद वे परिवार की सहायता करने लगे।

अब विमला डांग 1954 में छहरटा,

अमृतसर में सत्यपाल के पास चली

गई।

छहरटा में विमला और सत्यपाल

डांग लेबर कालोनी में आम मजदूरों

के ही समान एक कमरे वाले घर में

रहने लगे जिसमें सिर्फ एक छोटा-सा

आंगन था जहां पानी के लिए एक हैंड

पम्प लगा हुआ था। आंगन में ही खाना

बनाना और कपड़ा धोना हुआ करता।

यहां तक कि घर में शौचालय भी नहीं

था। अन्य कइयों के समान सुबह-सुबह

खेतों में जाना पड़ता था। दूसरे मजदूरों

के ही समान उन्हें भी पंजाब की

चिलचिलाती गर्मी बिना पंखे के गुजारनी

पड़ती थी। आम मजदूर उन दोनों से

बड़ा ही प्रेम करते। सारी कठिनाइयों के

बावजूद वे दोनों खुश थे। समय के

साथ अन्य मजदूरों के सामन उनकी

स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ।

शुरू में विमला डांग ने कॉलेज में

लेक्चरर काम ले लिया लेकिन 1958

में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और पार्टी

की पूरावक्ती कार्यकर्ता बन गईं। छहरटा

डांग-द्वय के लिए आधी सदी से भी

अधिक अपना घर बना रहा।

जल्द ही विमला डांग छहरटा

म्युनिसिपल कमिटि की अध्यक्ष बन

गई। उनकी देखरेख में रोड तथा अन्य

निर्माण के कई कार्य सम्पन्न हुए जैसे

रोडों पर लाइटें, अस्पताल, पानी,

इत्यादि। छहरटा पंजाब में वह पहला

शहर बना जहां महिलाओं के लिए ‘क्रैच’

बनाए गए। श्रमिक महिलाएं काम पर

जाने से पहले अपने बच्चे वहां देखभाल

के लिए रख जाया करतीं। बच्चों को

मुफ्त भोजन मिलता और उनकी बड़ी

अच्छी देखभाल होती। छहरटा भ्रष्टाचार

से पूरी तरह मुक्त था।

विधानसभा में

1947 में सत्यपाल डांग 

अमृतसर से विधान सभा के लिए जीते और 1980 तक एमएलए रहे।

1980 में वे हार गए। इसके बाद 1992 में विमला डांग को पार्टी की ओर से खड़ा किया गया और वे जीत

गईं। विमला डांग विधान सभा में कम्युनिस्ट ग्रुप की नेता रहीं।

विमला डांग गैर-पंजाबी कश्मीरी पंडितों के परिवार से थीं। वे बड़ा अच्छा

पंजाबी बोलना और लिखना सीख गई।

वे पंजाबी, हिन्दी और अंग्रेजी में बहुत अच्छा भाषण देती थीं।

भारत-पाक युद्ध के दौरान

1965 में भारत-पाक युद्ध के

दौरान छहरटा पर पाकिस्तानी एयर फोर्स ने बमबारी की थी। विमला और सत्यपाल डांग ने नागरिक सुरक्षा व्यवस्था संगठित की। बमबारी के दौरान घायलों की चिकित्सा का इंतजाम किया

गया। विमला और उनकी टीम ने एक कैंटीन का इंतजाम किया जिसे एकता यूनियन ने आर्थिक मदद दी। वाघा

सीमा पर जाने वाले और वहां से लौटने वाले जवानों के लिए यह कैंटीन खोली गई थी। आसपास के गांवों के लोगों ने

दूध और अन्य सामग्री इकट्ठा की।

एकता यूनियन का ऑफिस नागरिक सुरक्षा का मुख्य केंद्र था जिसकी देखरेख स्व. जयकरण सिंह पठानिया कर रहे थे।

पंजाब स्त्री सभा का काम

विमला डांग की देखरेख में पंजाब स्त्री सभा एक मजबूत संगठन बन गया।

वे इसके संस्थापकों में थीं। सभा ने जनता खासकर महिलाओं ओर बच्चों

के लिए बड़े काम किए। अनाथ बच्चों की बड़ी मदद की। स्त्री सभा ने फंड

इकट्ठा किए और उन बच्चों को स्टाइपेंड का इंतजाम किया जिनकी देखभाल कारने वाला कोई नहीं था।

यह काम आतंकवाद के दौर में विशेष तौर पर किया गया। पंजाब स्त्री सभा ट्रस्ट रजिस्टर किया गया।

अखिल भारतीय महिला फेडरे में भी विमला डांग

की सक्रिय भूमिका रही। वे इसके संस्थापना सम्मेलन में उपस्थित थीं और उसकी कार्यकारिणी में चुनी गईं।

आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष

पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद के दौर में विमला और सत्यपाल डांग उनके निशाने पर थे। उन दोनों ने न

सिर्फ आतंकवाद का विरोध किया बल्कि उसके खिलाफ संघर्ष संगठित किया।

सैंकड़ों कम्युनिस्ट इस संघर्ष में अपनी जान गंवा बैठे। विमला-डांग की जान

खतरे में रही और उनकी सुरक्षा का इंतजाम किया गया।

विमला डांग और सत्यपाल डांग भा.क.पा. की राष्ट्रीय परिषद में शामिल

कर लिए गए। 1990 के दशक में दोनों ने ही राष्ट्रीय परिषद से अपना

नाम वापस ले लिया और पार्टी के किसी भी पद पर रहने से इंकार कर दिया।

ऐसा अपनी उम्र के कारण किया। उन्होंने चुनाव लड़ने से भी इंकार कर दिया।

1992 में विमला डांग को

‘पद्मश्री’ से नवाजा गया। 2005 में विमला गंभीर रूप से बीमार पड़ीं। उनकी 10 मई 2009 को चंडीगढ़ में मृत्यु हो गई।

1 टिप्पणी:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

नमन और श्रद्धांजलि।

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