शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

सोहन सिंह जोश - अनिल राजिमवाले


 

कॉ. सोहन सिंह जोश का जन्म 18 नवंबर 1898 को अमृतसर जिले के अजनाला तहसील केचेतनपुर गांव में हुआ था। उनका परिवार जाट किसानों के निम्न मध्यम तबके का था। उनके पिता लाल सिंह और माता दयाल कौर थीं।
सिखों में गुरू सिंह सभा का आंदोलन चल पड़ा जिससे धार्मिक जागृति पैदा हुई और साथ ही पढ़ने-लिखने का उत्साह भी। चेतनपुर के जाटों ने गांव में उर्दू और पंजाबी का प्राइमरी स्कूल खोल दिया। सोहन सिंह स्कूल में भर्ती हो गया। गुरूवाणी भी खूब सीखी। 1911-15 में सोहन सिंह ने मजीठा मिशन मिड्ल से स्कूल में पढ़ाई की जो ईसाई मिशन स्कूल था। पढ़ाई और खेलकूद में वह काफी आगे था। मैट्रिक पास 1916 में करने के बाद वह खालसा कॉलेज, अमृतसर में भर्ती हो गया। मैट्रिक की पढ़ाई उसने कम समय में बिना टीचरों के ही पास कर ली। ऐसा उसने घर का पैसा बचाने के लिए किया। घर में आर्थिक समस्या बढ़ रही थी। उसे अपनी पढ़ाई कुछ ही महीनों बाद छोड़नी पड़ी।
बंबई में वह प्रथम विश्वयुद्ध 1914-18 का वक्त था। सोहन ने नौकरियों के लिए दरख्वास्तें भेजना शुरू कर दिया क्योंकि आर्थिक संकट बढ़ रहा था। गांव से एक अंग्रेज कंपनी का फोरमैन बंबई में रहा करता था।
उसके सहारे सोहन सिंह बंबई चले गए। वहां से हुबली ;कर्नाटक चले  गए । वह दिन में बिजली का तार लगाने का काम किया करता था, शाम को क्लर्क का काम। वह रोजाना दिहाड़ी ;डेढ़ रु. रोज पर काम करने लगे ।
हुबली में लोग ‘सिख’ नहीं समझते थे वहां सोहन एकमात्र सिख थे लोग उसे ‘‘शेख’ कहकर बुलाया करते। उसने अपना पहला लेख वहां लिखाः ‘पंथ सेवक’, पंजाबी में । उसमें मांग की गई कि सिखों के उपदेशक वहां भेजे जाएं।

हुबली से बंबई लौटने पर सोहन सिंह को ‘सिंह सभा’ का सहायक मंत्री चुना गया। वे बंबई में फिर से दिहाड़ी
मजदूर की तरह काम करने लगे। इस बीच चाचा और पिता की मृत्यु हो गई। घर की जिम्मेदारियां बढ़ गई।
उन्हें सरकार के सेंसर विभाग में 100 रु. माह के वेतन पर काम मिल गया, जो उस समय के लिए अच्छी रकम थी। उन्हें पंजाबी विभाग में काम मिला। इस काम के जरिये उन्हें विभिन्न नेताओं एवं संगठनों के दस्तावेज देखने का मौका मिलता था। उन्हें क्रांतिकारियों और गदर पार्टी के बारे में जानकारी मिलती थी। उनका काम था दस्तावेजों, पत्रों-किताबों इ. को पढ़कर उन्हें नोट करना और लिस्ट बनाना। सेंसर के काम का उन पर उल्टा असर पड़ा और उनकी राजनैतिक शिक्षा आगे बढ़ने लगी। लड़ाई के बाद एकाएक यह विभाग बंद कर दिया गया और सोहन सिंह
घर चले गए। पहले कराची में क्लर्की की, फिर मजीठा में 48/रु. माहवार पर शिक्षक का काम मिला। उन्होंने शिक्षकों को तनख्वाह बढ़ाने की मांग पर संगठित किया।
अकाली आंदोलन में पंजाब में अकाली आंदोलन की नई लहर आ गई। सोहन सिंह ने कई लेख और कविताएं लिखना आरंभ किया। जल्द ही वे अकाली आंदोलन में कूद पड़े।
अकालियों में ‘चाबियों का
आंदोलन’ शुरू हो गयाः अमृतसर के
दरबार साहब की चाबियां सरकारी
आदमी के हाथों में हुआ करती थी।
अमृतसर के डिप्यूटी कमिश्नर मि. डनेट ने चाबियां अपने कब्जे में कर
ली थीं। सिख चाहते थे कि चाबियां
पंथ के प्रतिनिधियों के हाथों में रहे।
सोहन सिंह ने कई आम सभाएं कीं
और प्रभावशाली भाषण दिए। जिले
के लगभग सभी गांवों में उनकी सभाएं
हुई और उनके जोशीले भाषण खूब
प्रसिद्ध हुए। लोग उनके भाषणों को
‘जोशीला’ मानने लगे। इसलिए सोहन
सिंह ने अपना नाम ‘‘जोश’ रख लिया।
कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए।
आखिरकार सरकार को चाबियां
शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी को सौंपनी पड़ी। जोश के खिलाफ जारी वारंट हटा लिया गया। जोश गुरूद्वारा
प्रबंधक कमेटी  और शिरोमणि अकाली दल के सदस्य थे। वे एस. जी.पी.सी. के संस्थापकों में थे। मई1920 में मास्टर सुंदर सिंह लायलपुरी द्वारा प्रकाशित अखबार ‘अकाली’ में जोश ने काम किया। 1922 में जोश पर राजद्रोह के मुकदमे चलाए गए और उन्हें दो बार जेल मिली। जेल से छूटने पर सोहन सिंह जोश ‘शिरोमणि अकाली दल’ नामक सिख स्वयंसेवक दल में शामिल हो गए। फिर वे इसके
महासचिव भी बनाए गए। 1923 से
1926 तक महाराजा नाभा के
मामले में जोश समेत 60 नेताओं
पर मुकदमा चलाया गया। नाभा के महाराजा को गद्दी से उतार दिया गया
था।
इस बीच जोश का झुकाव कांग्रेस
की ओर होने लगा। अकाली आंदोलन
मेंआ रही विचारों की काफी गड़बड़ी और
अस्पष्टता थी।
1926 में मुकदमा वापस ले
लिया गया। जोश ने अमृतसर में
कांग्रेस का काम शुरू कर दिया। वहां
से पंजाबी में कीर्ति ;मजदूर मासिक
नामक अखबार प्रकाशित होता था।
1937 के आम चुनावों में सोहन
सिंह जोश ने उस वक्त के पंजाब के
सबसे बड़े भूस्वामी राजा सांसी के
रघबीर सिंह को हराया। जोश उस
वक्त समूचे भारत में चुने गए एकमात्र
कम्युनिस्ट थे। वे कांग्रेस के टिकट
पर लड़े। जोश कांग्रेस ग्रुप के ‘चीफ
व्हिप’ भी थे।
‘कीर्ति‘ का प्रकाशन
विदेश में गदर पार्टी के कुछ
नेता, विशेषकर संतोख सिंह,
मार्क्सवाद-उन्मुख अखबार निकालने
की सोच रहे थे। संतोख सिंह और
रतन सिंह मास्को में कॉमिन्टर्न की
चौथी कांग्रेस ;1922 से प्रभावित
होकर इस दिशा में झुक रहे थे। इस
उद्देश्य तथ अन्य मकसद से संतोख
सिंह भारत आए लेकिन गिरफ्तार कर
लिए गए और अत्यंत कठिन दौर के
बाद अपने गांव धारदेव में एक साल
नजरबंद रखे गए। 1925 में रिहाई
के बाद वे अमृतसर चले गए। उन्होंने
भाग सिंह ‘कनेडियन’ और करम सिंह
चीमा को बुलाकर पंजाबी में एक
मासिक पत्रिका ‘कीर्ति’ ;मजदूर
के प्रकाशन की योजना बनाने लगे।
इससे पहले करतार सिंह सराभा
इसी उद्देश्य के लिए भारत आए थे
और गदर पार्टी का अखबार प्रकाशित
करना चाहते थे। यह लाहौर षड्यंत्र
केस की कार्यवाही से साबित हो जाता
है।
कीर्ति का प्रथम अंक फरवरी
1926 में प्रकाशित हुआ। अखबार
मजदूरों की आवाज बन गया और
इतिहास में उसने बहुत बड़ी भूमिका
अदा की।
कीर्ति का प्रकाशन एक बड़ी
राजनैतिक घटना थी। मास्को के प्राब्दा
अखबार ने 11 फरवरी 1928 को
टिप्पणी की कि कीर्ति का प्रकाशन
पंजाब की अच्छी खबर है किसानों
को संगठित करने का यह अच्छा
माध्यम बनेगा। सोहन सिंह जोश कीर्ति
से जुड़े रहे। वे इसके प्रमुख
संगठनकर्ता थे।
1927 में बंबई में
मजदूर-किसान पार्टी के गठन के बाद
पंजाब में भी जोश की पहल पर पार्टी
का गठन किया गया। 1927 में
होशियारपुर में कीर्ति-किसान पार्टी
गठित की गई। 1928 में मेरठ में
मजदूर-किसान सम्मेलन में बंबई,
बंगाल, पंजाब और  संयुक्त प्रांत के प्रतिनिधि शामिल हुए। यहीं मजदूर-किसान पार्टी स्थापित की
गई। इसके अध्यक्ष जोश बनाए गए।
वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी बने।
कलकत्ता में आयोजित
मजदूर-किसान पार्टी के वार्षिक
अधिवेशन में जोश की मुलाकात
मिरजकर, मुजफ्फर अहमद तथा
अन्य नेताओं से हुई।
पंजाब में मजदूर-किसान पार्टी
की स्थापना 12 अगस्त 1928 को
अमृतसर के कीर्ति साथियों की पहल
पर की गई। इससे पहले सितंबर
1927 में कीर्ति ग्रुप की पहल पर
होशियापुर में एक श्रमिक सम्मेलन
का आयोजन किया गया। इसकी
अध्यक्षता सोहन सिंह जोश ने की।
बर्लिन से मजदूरों का तार इस
अनुरोध के साथ आया कि सम्मेलन
स्वयं को ‘साम्राज्यवाद-विरोधी लीग’
से संब( कर ले।
मजदूर-किसान पार्टी, पंजाब का
दूसरा सम्मेलन 29 सितंबर 1928
को लायलपुर में हुआ। इसका उद्देश्य
‘जमींदारा लीग’ का विरोध करना
था। जोश काफी सक्रिय रहे। यह
सम्मेलन पंजाब राजनैतिक सम्मेलन
के पंडाल के नजदीक किया गया।
इस सम्मेलन से किसान उठकर
मजदूर-किसान पार्टी के सम्मेलन में
शामिल हो गए।
पार्टी का तीसरा सम्मेलन 10
मसर्च1929 को रोहतक में
आयोजित किया गया। सोहन सिंह
जोश ने ‘भाग्यवाद’ का विरोध करते
हुए कहा कि मनुष्य अपने भाग्य का
निर्माण खुद करता है। पार्टी ने ‘रूस
के साथ मित्रता’ सप्ताह बनाया।
अक्टूबर1928 में मेरठ में यू.
पी. ;उस वक्त संयुक्त प्रांतद्ध के
मजदूर-किसान पार्टी की स्थापना की
गई। पंजाब से सोहन सिंह जोश तथा
अन्य साथियों को आमंत्रित किया
गया।
मजदूर-किसान पार्टियों का
अखिल भारतीय सम्मेलन कलकत्ता
में 21 से 23 दिसंबर 1928 को
सोहन सिंह जोश की अध्यक्षता में
संपन्न हुआ। उन्होंने केंद्रीय संगठन
बनाने पर जोर दिया। इसमें ‘नेहरू
रिपोर्ट’ पर भी चर्चा हुई।
जोश भारत नौजवान सभा के
साथ गहरे रूप से जुडे हुए थे और
उसका मार्ग-निर्देशन करते रहे। अप्रैल
1928 में अमृतसर में कीर्ति ग्रुप ने
सोहन सिंह जोशः 1937 के आम चुनावों के...
नई नौजवान सभा बनाई जिसमें जोश
ने काफी सहायता की। उसने साइमन
कमिशन के खिलाफ आंदोलन
चलाया।
मेरठ षड्यंत्र और जोश
20 मार्च 1929 को पंजाब,
बंबई, बंगाल तथ यू.पी. के महत्वपूर्ण
कम्युनिस्ट मजदूर तथा किसान
नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
इनमें सोहन सिंह जोश भी थे। उनके
अलावा पंजाब से अब्दुल माजीद तथा
केदारनाथ सहगल भी थे। इस वक्त
जोश पंजाब नौजवान सभा के अध्यक्ष
भी थे। जोश को सात साल की सजा
मिली।
सोहन सिंह जोश ने मेरठ षड्यंत्र
केस में अपने लंबे वक्तव्य में कहा कि
मैं धरमबीर के समान माफी मांग कर
अपनी आजादी खरीदना नहीं चाहता।
उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को चुनौती
दी।
1933 में जोश को रिहा कर
दिया गया। उन्होंने पंजाब में फिर से
काम शुरू कर दिया। 1934 में वे
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो
गए। 1935-36 में उन्होंने पंजाबी
में परभात नामक साहित्यिक पत्रिका
का प्रकाशन आरंभ किया। उर्दू और
पंजाबी के अलावा मेरठ में उन्होंने
बंगला तथा मराठी का भी अध्ययन
किया।
सोहन सिंह जोश ने 1937 का
आम चुनाव पार्टी के आदेश से उत्तरी
अमृतसर से लड़ा। कांग्रेस के टिकट
पर लडे़। वे खुलकर कम्युनिस्ट के
नाम से लड़े। वे असेम्बली का चुनाव
जीत गए।
आजादी के बाद पंजाब के
मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों उस वक्त
उनके ऑफिस सचिव बने।
1938 में अमृतसर में किसानों
का सत्याग्रह हुआ। उसमंे जोश की
सक्रिय भूमिका रही। 1939 में।
उन्होंने लाहौर में किसानों के आंदोलन
का नेतृत्व किया।
1939 में वे पंजाब प्रदेश कांग्रेस
कमिटि के अध्यक्ष चुने गए। जोश ने
अपने भाषणों में पंजाब की जस्टिस
पार्टी की सरकार का खूब पर्दाफाश
किया। वे पंजाब विधान सभा में कांग्रेस
दल की ‘चीफ व्हिफ’ थे।
जून 1940 में सोहन सिंह जोश
अन्य कई साथियों के साथ गिरफ्तार
कर लिए गए। वे लगभग दो साल
फतेहगढ़, देवली, गुजरत के जेलों
में रहे। मई 1942 में रिहा होने के
बाद वे पंजाब प्रदेश कम्युनिस्ट पार्टी
के सचिव बनाए गए।
पार्टी संगठन के प्रश्नों को लेकर
तेजा सिंह ‘स्वतंतर’ के साथ उनके
मतभेद हुए। बाद में तेजा सिंह पार्टी
में आ गए।
देवली कैम्प में कई सारे
कम्युनिस्ट गिरफ्तार कर लिए गए थे
जिनमें जोश भी थे। मेरठ षड्यंत्र केस
के बाद पंजाब में आंदोलन में काफी
गड़बड़ी रही। तेजा सिंह तथा अन्य
कई कम्युनिस्ट सोवियत रूस तथा
अन्य देशांे से भारत वापस लौटे।
लेकिन यहां क्रांतिकारियों के कई गुट
बन गए। पंजाबी और उर्दू कीर्ति
अखबारों की हालत खराब हो गई।
कीर्ति-किसान पार्टी, भारत नौजवान
सभा तथा अन्य संगठन गुटबाजी में
एक-दूसरे से लड़ रहे थे। तेजा सिंह
स्वतंतर में ‘कीर्ति कम्युनिस्ट ग्रुप’ या
‘लाल कम्युनिस्ट पार्टी’ बना ली थी।
कीर्ति कम्युनिस्ट पार्टी‘ चरम वामपंथी दृष्टि से काम कर रही थी। वे भा.ज. पा. से विशेषतौर पर टकरा रहे थे। देवली कैम्प में ‘कीर्ति’ कम्युनिस्टों से सोहन सिंह जोश तथा अन्य व्यक्तियों की काफी बहसें हुई। ‘कीर्ति’ कम्युनिस्टों ने पुनर्विचार करना आरंभ किया। आखिरकार ‘कीर्ति’ कम्युनिस्टों ने अपनी पार्टी भंग करने का निर्णय लिया। वे भा.क.पा. में मिल गए। इस प्रकार देवली कैम्प ने कम्युनिस्टों के बीच एकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
आजादी के बाद पार्टी में ‘बी .टी.आर. लाइन के दौरान जोश ने वामपंथी संकीर्णतावादी और दुस्साहसवादी लाइन का विरोध किया। वे 1958 की अमृतसर पार्टी कॉग्रेस में भा.क.पा. की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य चुने गए। बाद में वे पार्टी की केंद्रीय कार्य कार्यकारिणी समिति के सदस्य भी चुने गए। वे 1971 से 1974 तक केंद्रीय कंट्रोल कमिशन के अध्यक्ष भी थे। शोधकार्य अपने अंतिम वर्षों में सोहन सिंह जोश अधिकतर भा.क. पा. हेडक्वार्टर, अजयभवन, नईदिल्ली ही रहा करते। उन्होंने भा.क.पा. के इतिहास पर काम किया। इसके अलावा अकाली एवं आंदोलनों के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय इतिहास पर उन्होंने विस्तृत शोधकार्य किया। उन्होंने अकाली आंदोलन के इतिहास संबंधी कई पुस्तकें लिखीं। उन्होंने इस संबंध में कनाडा, अमरीका, इंगलैंड इ. देशों से काफी सामग्री जुटाई और वहां बस गए क्रांतिकारियों और उनके परिवारों से संपर्क स्थापित किया। सोहन सिंह जोश की मृत्यु 29 जुलाई 1982 को अमृतसर में हो गई।

कोई टिप्पणी नहीं:

Share |