गुरुवार, 28 सितंबर 2023
हमीद दलवाई की 91 वी जयंती के अवसर पर ! - डॉ. सुरेश खैरनार
हमीद दलवाई की 91 वी जयंती के अवसर पर ! - डॉ. सुरेश खैरनार
29 सितंबर 1932 को, कोंकण के चिपलूण के करीब मिरजोली नाम के गांव में हमीद दलवाई का जन्म हुआ था ! पिताजी मौलवी थे और उनकी तमन्ना थी कि बेटा भी मौलवी बने ! लेकिन चिपलूण में राष्ट्र सेवा दल की शाखा में हमीद बचपन से ही जाते थे ! इसलिए वह 'इंडियन सेक्युलर सोसाइटी' और 'मुस्लिम सत्यशोधक समाज' इन दो संस्थाओ के संस्थापकों में से एक बने ! हमीद दलवाई समस्त मुस्लिम जगत में, तुर्की के कमाल पाशा के बाद, दुसरे मुस्लिम सुधारवादी सुधारक निकले ! जिस कारण कठमुल्ला मुसलमानों ने सत्तर के दशक में, कई बार उनके उपर जानलेवा हमले किए हैं ! लेकिन उन्होंने अपने काम को छोडा नही ! लेकिन उन्होेंने किडनी की बीमारी से पीड़ित होने की वजह से,( 45 वर्ष की उम्र में ! ) अपने जीवन का अर्धशतक भी पूरा नहीं किया और 3 मई 1977 में किडनी की बीमारी से चल बसे।
साथियों 3 मई 1977 को हमीद दलवाई जी किडनी की बीमारी के कारण इस दुनिया से विदा कर गये थे ! गिनकर 45 साल की जिंदगी जिये, शुरुआत के 20 साल छोड दें तो, 25 साल अपनी जान जोखिम में डालकर वे महात्मा जोतिबा फुले के जैसे समाज प्रबोधन के काम में लगे रहे और उसमे भी मुस्लिम सामाजिक सुधार जो सौ साल पहले तुर्की में केमाल अतातुर्क पाशा ने सत्ता में आने के बाद कोशिश की थी !
लेकिन इस्लाम धर्म के 1500 सौ साल के इतिहास में, समाज सुधारक शायद ही कोई और हुआ है और हमीद दलवाई महाराष्ट्र के कोंकण के चिपलूण नाम की जगह पर पैदा हुए ! जहां पर और सामाजिक सुधार करने वाले विष्णु शास्री चिपलूणकर भी पैदा हुए थे ! उसी कोंकण क्षेत्र के, छोटेसे गावमे हमीद 29 सितम्बर 1932 में पैदा हुए और उम्रके 14 वें साल में, सिर्फ 9 साल पहले शुरू किया गया राष्ट्र सेवा दल नाम के बच्चों की उम्र में संगठन में शामिल हुये !
इस कारण एक संस्कारक्षम उम्र में जनतांत्रिक,समाजवाद,धर्मनिरपेक्ष,विज्ञानाभिमुकता और राष्ट्रवाद के मूल्य लेकर ही जीवन का आगे का सफर तय किया ! बहुत लोग अलग- अलग संगठनों में आते रहते हैं ! लेकिन सभी का अपने जीवन के लक्ष्य को खोजने का प्रयास होता है, ऐसा नहीं लगता ! लेकिन कुछ लोग होते हैं, जिन्हें अगर सही समय सही राह मिल जाती है तो हमीद दलवाई बनते हैं !
जब वे 15 साल के हो गये तो ! आजादी आ गई थी ! फिर मुख्य लक्ष्य देश को बनाना ! क्योंकि आजादी के पहले बांटो और राज्य करो की नीति के कारण एक तरफ मुस्लिम लीग और दूसरे तरफ हिंदू महासभा और 1925 के बाद संघ परिवार को प्रश्रय देने का काम अंग्रेज़ों ने बखूबी किया था ! जिसके कारण आजादी देश के बंटवारे के साथ मिलकर ही आई ! जिसमे लाखो लोग मारे गए और करोडो की संख्या में विस्थापित हुए !
जिस कारण, हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच में जबरदस्त खाई निर्माण हो गई थी ! जिसमे महात्मा गाँधी की बलि भी हूई ! इसलिए हमीद दलवाई का बच्चा से युवक होंनेका काल कितना बड़ा संक्रमण का काल रहा होगा ? इसकी कल्पना करने से मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं ! और ऐसे माहौल में अपने आप को सेक्युलर बनाये रखना कोई साधरण बात नहीं है ! यह तो सिर्फ और सिर्फ राष्ट्र सेवा दल के संस्कार के कारण ही संभव है !
आप का जाति धर्म निरपेक्ष रहना भी, आप का परिवेश और समय भी एक कारण होता है ! इसलिऐ मुझें हमेशा से लगता रहा की मुझेभी मेरे जीवन में, हमीद भाई की तरह उम्र के 13-14 वे साल में पदार्पण करते समय अगर राष्ट्र सेवा दल जैसा, जाति धर्म निरपेक्ष सामाज के संस्कार करने वाले संगठन का परिचय नहीं हूआ होता ! तो मैं शत - प्रतिशत संघ का स्वयंसेवक बना होता ! क्यौंकि मेरे प्रिय भूगोल के शिक्षक बी बी पाटील सर, मुझे संघ में शामिल करने के लिए काफी प्रयास करते रहे और उनके आग्रह की वजह से मै कुछ दिन संघ की शाखा में गया था !
मुझे लगता है, कि हमीद दलवाई के शुरुआत की जिंदगी में अगर राष्ट्र सेवा दल नहीं होता, तो वे मौलावी बने होते ! क्योंकि उनके अब्बाजान की इच्छा जो थी ! यह बात हमिद भाई ने मुझे अमरावती में मैने 70 के दशक में जब बुलाया था ! तब खुद गपशप में कहीं थी ! गपशप के बहुत शौकीन थे ! किडनी की बीमारी में जसलोक अस्पताल के बेड पर थे ! तब भी वह गपशप के मुड में थे और शरद पवार जी के आवास पर रहते थे ! तब अपने जीवन के अंत आ गया है ! यह मालूम रहते हुए भी ! इतना जिंदादिल आदमी बहुत कम देखे हैं !
उम्र के शुरुआत में, समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी रहे हैं और पत्रकार भी। आचार्य अत्रे के 'मराठा' नाम के अखब़ार में काम कीया है ! उसी समय 'इंधन' नाम के उपन्यास का मराठी में भी लेखन किया है ! जिसका दिलीप चित्रे ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है ! वैसे ही एक कथा संग्रह का भी लेखन किया है और दोनो कृतियों को पुरस्कार भी मिल चुका है ! याने ललित लेखन में भी अपना योगदान दिया है ! समाज सुधारक की धुन सवार हुई तो वह छूट गया !
लेकिन भारतीय मुसलमानो की हालत देख कर वे अपने आप को रोक नहीं सके ! एक वर्ग था, जो इस्लाम खतरे की बात कर के मुसलमानो की राजनीति कर रहे थे और दूसरे उनको वोट बैंक की राजनीति के कारण उनका सिर्फ इस्तेमाल कर रहे थे ! लेकिन हमीद भाई को तो मुसलमानो के भीतर की बहुपत्नीत्व, और तलाक का चलन खल रहा था और इसी कारण उन्होँने 18 अप्रैल 1966 में ! यानि उम्रके 34 वें साल में प्रवेश करते - करते मुम्बई के सचिवालय पर तलाक पीडित महिलाओं का पहला मोर्चा निकालने का साहसपूर्ण काम शुरू कर दिया था !
समाज सुधार का बिगुल बजा दिया था और अगले ग्यारह साल का समय, महात्मा ज्योतिबा फुले के राह पर पुणे में साने गुरुजी ने शुरू किया गया साधना साप्ताहिक के दफ्तर में, 22 मार्च 1970 को ! यानि अपनी उम्रके 38 वें साल में ! प्रवेश करते हुए ! 'मुस्लिम सत्य शोधक समाज' नाम के संगठन की स्थापना की थी ! ताकी हर बात में कुरान और हदीस का हवाला देकर, मुल्ला मौलवी और सत्ताकी राजनीति करने वाले मुस्लिम नेता सामान्य मुसलमानों को भेड बकरियां जैसे इस्तमाल कर रहे थे ! उसमे हमीद दलवाई भारतीय आजादी के 25 साल पूरे होने के पहले ही ! मुसलमानों में समाज सुधारक बनना इस्लाम के भीतर बहुत बडी क्रांति की बात है और उनके मृत्यु के 46 साल बाद भी अभी तक उनके हैसियत का कोई नहीं दिख रहा है !
उसमे भी आधी आबादी के लिए जो महिलाओ के साथ शरीयत का हवाला देकर व्यवहार किया जाता है ! उसी के खिलाफ़, 18 अप्रैल 1966 का मुंबई के सचिवालय पर तलाक पीडित महिलाओ का मोर्चा ! ऎतिहासिक कदम था ! शाह बानो का मामला उसके 20 साल बाद का है और यही भारतीय सेकुलर राजनीति का 'पतनपर्व' शुरु होता है ! "सवाल आस्था का है ! कानून का नहीं ! " इस नारे की शुरुआत यहीं से हुई है और संघ परिवार की बांछे खिल गई और उन्होंने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि के मसले पर, अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की शुरुआत यही से की है !
वैसे तो संघ का मुख्य सूत्र मुस्लिम द्वेष रहा है ! लेकिन हमीद भाई के बीमारी के समय, 1977 का जनता पार्टी का निर्माण, भारतीय सेक्युलर राजनीति के पतन की शुरुआत हो गयी थी !
क्योंकि महात्मा गाँधी की हत्या के बाद, मुंह छुपाकर रहनेवाला संघ परिवार को ! लेजिटीमेसी मिलनेकी शुरुआत यहीं से शुरु हुई ! आपातकाल में हम विभिन्न जेलों में रहने वाले साथियों के साथ, विचार विमर्श के लिए एस एम जोशी जी और नाना साहब गोरे जी घूमे है और मैने एस एम जोशी जिसे साफ साफ शब्दों में कहा कि "जनसंघ जैसे हिंदू सांप्रदायीक दल, जो समाजवाद,सेक्युलर ये हमारे को हर मुद्दों को बिलकुल नहीं मानता है ! पूरी पार्टी पूंजीपति,तथा सामंतवादी राजा,सरदारों ,जमींदार, और सबसे आपत्ति जनक बात वह उच्च जातियों की ब्राह्मणवाद की वकालत करने वाली पार्टी से ! हम समाजवादीयो का वैचारिक आधार कैसे बनेगा ? चाहों तो चुनावी गठजोड़ कर सकते ! लेकिन एक पार्टी, मेरे तो गले नहीं उतरता है !" तो एस एम जोशीजी ने कहा था" कि सुरेश मै तिहाड जेल से जॉर्ज फर्नांडीज से मिलकर आ रहा हूँ और उनका कहना भी तुम्हारे ही जैसा है ! यह सुनकर मुझे बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि जॉर्ज फर्नाडिस उस समय भले ही जेल में बंद थे लेकिन सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पदपर आधीन थे !
साथियों उस समय जॉर्ज फर्नांडीज समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष थे और लगभग मेरे पिताजी के उम्रके रहे होंगे और मै 22-23 साल का राष्ट्र सेवा दल का पूर्ण समय कार्यकर्ता ! मैने एस एम जोशी जी को कहा "कि जब जॉर्ज फर्नांडीज जैसे मेरे से दुगुने उम्र के साथी यही बात कह रहे हैं ! तो मुझे मेरी बात और पुख्ता लगती हैं !" लेकिन एस एम जोशी जी ने कहा कि "जयप्रकाश नारायण जी की शर्त है कि अगर आप सब पार्टिया जबतक एक नहीं होते ! तबतक मैं चुनाव प्रचार के लिए नहीं निकलने वाला !" इस पशोपेश में जनता पार्टी का गठन हुआ !
जिसका मै आचार्य केलकर के साथ दिल्ली के प्रगति मैदान में खुद की आंखों से देखने वाले दर्शकों में शामिल रहा हूँ और एक दिन पहले दिल्ली के विट्ठल भाई पटेल भवन के लॉन पर, 'सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया' के विसर्जित करने वाले अधिवेशन का भी, मूक दर्शक रहा हूँ ! जिस अधिवेशन की अध्यक्षता मेरे उस समय के हीरो जॉर्ज फर्नांडीज कर रहे थे और यही जॉर्ज फर्नाडिस और मधू लिमये ने जनसंघ के लोगो की दोहरी सदस्यता जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुद्दे पर 1980 में जनता पार्टी टूट गई और पुराने जनसंघ ने 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के नाम से वापस जनसंघ का नया नाम लेकर अपनी अलग पार्टी बनाई !
पांच सालों के दौरान उन्हें काफी मात खानी पड़ी लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक ईकाई होने की वजह से उसने अपनी उग्र हिंदूत्ववादी राजनीतिक गतिविधियों के विभिन्न प्रयोग किए और 1985-86 में शाहबानो के मुद्दे पर कांग्रेस का ढुलमुल रुख देखते हुए ! संघ परिवार ने बाबरी मस्जिद - रामजन्मभूमि विवाद को लेकर रथ यात्राओं का दौर की जो शूरूआत की और शाहबानो के केस में मुस्लिम कट्टरपंथियों के 'सवाल आस्था का है कानून का नहीं' नारे को लपककर राममंदिर वहीं बनायेंगे के साथ आज मस्जिद का विध्वंस करके मंदिर के निर्माण में लग गए हैं और इस पार्टी ने अपने जीवन में कभी भी गरीबी, दलित महिला तथा आदिवासी समाज और किसानों तथा मजदूरों के मुद्दे पर कोई आंदोलन किया नही ! लेकिन धार्मिक भावनाओं को भडकाकर हिटलर के जैसे ही सत्ता की सीढीयों पर चढने में कामयाब हो गए और यही भारतीय सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म के पराजित होने की वजह है। और आज वह संविधान में से दोनों शब्दों को हटाकर सीधा मेसेज दे रहे हैं कि हम हिंदुत्व और पूंजीवाद का खुलकर स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते जायेंगे !
इन्हीं 43 सालों में जोरों से कम्युनल राजनीति, जिस तरह से शनैः शनैः परवान पर चढी ! यह देखनेके लिये हमीद भाई जीवित नहीं है ! जहाँ तक मै उनको जनता हूँ ! उन्होनें नरेंद्र मोदी द्वारा लाया हुआ तथा कथित समान नागरिकता वाला कानून का समर्थन नहीं किया होता !
क्यों कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए इसी नरेंद्र मोदी ने, गोधरा की आड़ में जो मुसलमानों का नरसंहार किया और मुख्य रूप से भारत की आजादी के बाद के दंगोमे महिलाओं के साथ दंगों में अत्याचार करने की शुरुआत, गुजरातके 2002 के दंगेसे शुरु हुई है ! बिल्किस बानो, कौसर बी और सूरत में वीडियो रिकॉर्डिंग करके मुस्लिम औरतों पर के बलात्कार के क्लिपिंग्स ! मृणाल गोरे,तथा एस एन डी टी वुमेन युनिवर्सिटी मुंबई की तत्कालीन उपकुलपति श्रीमती सुमा चिटणीस की टीम ने यह तथ्य को उजागर किया है !
गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़कर, गर्भ को त्रिशूल की नोंकपर जुलुस में घुमाने की घटनाये , नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए, दिनदहाड़े हुई है ! इसलिए नरेंद्र मोदी को सचमुच मुस्लिम महिलाओं की कितनी चिंता है ? उसके लिए पर्याप्त प्रमाण हैं ! और वह नरेंद्र मोदी, जब समान नागरिक संहिता की बात करते हैं ! तो उनका इरादा मुसलमानों को डराने का, एक और हथकण्डे के रुप में मैं लेता हूँ और शायद हमीद भाई साहब ने भी नरेंद्र मोदी के इस पोलिटिकल जुमले को पक्का समझा होता ! क्यौंकि भारतीय मुसलमानोको हाशिये पर डालने का एक से बढ़कर एक हथियार, संघ परिवार ने इन 100 सालों में इस्तमाल किये हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि हमीद दलवाई सिर्फ मुस्लिम समाज सुधारक ही नहीं थे। वो इन्डियन सेक्युलर सोसाइटी के संस्थापकों में से एक महत्वपूर्ण सदस्य थे ! और इंडियन सेकुलर सोसाइटी के अभी तक उप्लब्ध साहित्य का मेरा अध्ययन कहता है, "कि वर्तमान मेजारटी कम्यूनिटी के कम्युनल एजेंडे को पुरजोर विरोध हमीद दलवाई,नरहर कुरुन्दकर और ए बी शाह ने किया होता ! आज तो सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म शब्दों को हटाकर नरेंद्र मोदी ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं !
क्योंकि भारतीय स्वतंत्र्यता के 76 सालो के इतिहास में 20-25 करोड मुस्लमान जो भारत में रह रहे हैं ! कभी भी इतने असुरक्षा की भावना के शिकार नहीं थे जितने आज है और यह हाल संघ परिवार ने अपने 100 साल से लगातार हिन्दू-मुस्लिम खाई बढाने के लिए कभी मंदिर-मस्जिद ,तो कभी गोहत्या ,तो कभी कश्मीर,पाकिस्तान,और अब नागरिकता का मुद्दा ! सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को गुरु गोलवलकर के कथन के अनुसार "मुसलमानों को हिन्दुओ की सदाशयता पर भारत में रहना है ! तो दोयम दर्जे का नागरिक बनकर रहना होगा !" और इस बात का सबसे बड़ा विरोध हमीद दलवाई ने किया होता !
क्योंकि वे हिंन्दुत्व वादियों के इरादों से भलीभांति परिचित थे ! यह मैने अमरावती के कर्यक्रममे खुद देखा सुना है ! तो 50 साल के भीतर, पूरी दुनिया में पोलिटिकल इस्लाम को लेकर, कम अधिक प्रमाण में एक जैसा व्यवहार चल रहा है ? और हमिद भाई जैसे जीनियस मित्र की नजर से यह सब नहीं छूटा होता ! शायद वे इस लडाई में हमारे नेता होते ! इसलिए काल सापेक्षता का सिद्धांत, हमारे सभी पूर्वजों की चिकित्सा करनी चाहिए ! फिर चाहे वो कोई भी क्यो ना हो ?
हमीद दलवाईने आज से 50 साल पहले मुस्लिम सत्यशोधक समाज नाम क्यो दिया ? तुकाराम महाराज के अभंग के अनुसार 'सत्य असत्याशी मन केले ग्वाही !' ( सत्य असत्य के साथ मेरा मन गवाह है ! ) महात्मा गाँधी के जीवन का निचोड़ क्या है ? सत्य की खोज, और उनसे भी 100 से भी ज्यादा समय पहले महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपने संगठनका नाम 'सत्यशोधक समाज' क्यों रखा था ? हमीद दलवाई जिने यह सब सोच समझकर अपने भी संगठन को यही नाम देना क्यों सूझा होगा ? और वह भी मराठी नाम !
हमीद भाई कोंकण में पैदा हुए थे , तो सभी मुसलमान कोकणी, मराठी भाषा बोलते हैं ! कुछ लोकल डायलेक्ट कोंकणी भी बोलते हैं ! बगल के कर्नाटक में कन्नड,आंध्र प्रदेश में तेलगु,तमिलनाडु में तमिल और मलयालम केरल राज्य में ! वैसे ही उडीसा में उडिया,बंगाल में बँगला,आसाम में असमिया और नॉर्थ ईस्ट के अन्य हिस्सों में वहां की विभिन्न बोलीयां,बगल के बिहार में भागलपुर में अंगिका,मिथिलंचल में मैथिली, भोजपूरी ,अवधी,हरियाणवी,पंजाबी,राजस्थानी ,गुजराती और जम्मू एवं कश्मीर में डोगरी,कश्मीरी,मिर्पुरि और लद्दाख में लद्दाकी और इसके अलावा हर दस मील पर भाषा बदलती हैं ! कहावत के अनुसार मेरी मातृभाषा धुलिया जिले का होने के कारण अहिरानी ! लेकिन मैं तो धोबी के कुत्ते जैसा ना घर का ना घाट का होनेके कारण कोई भी भाषा ढंगसे नहीं बोल लिख पाता बस काम चलाऊ चल रहा है !
भाषा के बारे में इतना विस्तार से लिखने कि वजह हमीद दलवाई भारतीय मुसलमानों को जोर देकर कहते थे ! "कि आपका जन्म जहाँ पर हूआ, वहाँ कि भाषा आपकी भाषा होनी चाहिए ! ऊर्दू ,अरेबिक ग्यानके लिए सीखिये ! लेकीन ऊर्दू अपनी भाषा है ! यह गलत फहमी मे महाराष्ट्र में पैदा हुए हैं, तो बेखटके मराठी में पढिये ! अन्यथा ऊर्दू या अरेबिक,फारसी के चक्कर में पिछड जाओगे ! क्योंकि इन भाषाओं में पढकर आपको नौकरी या रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं है !" लेकिन मुल्ला मौलवी लोग मदरसों की शिक्षा को कार्यक्रम देकर मुस्लिम समाज का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं ! अभी भी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं ! और इसलिये नौकरियों में अनुपात बहुत कम है और दूसरी बात बहुसंख्यक समुदाय का सांप्रदायिकिकरण वह भी मुसलमानों को नौकरियों में आने नहीं देते और कुछ लोगों ने कोशिश की तो कुछ बहाने बनाकर उनका चयन नहीं करते !
1971 भाषा में के नाम पर, जो मुल्क पहले धर्म के आधार पर पाकिस्तान बनाया गया था ! लेकिन 15- 20 साल के भीतर ही उर्दू की जबरदस्ती का विरोध करके ही पूर्व पाकिस्तान में बंगला भाषा को लेकर जो आंन्दोलन चला उसके परिणामस्वरूप, अलग बंगलादेश हो गया है और पाकिस्तान नाम को तक उखाडकर फेंक दिया और बंगला देश नाम से भारतीय उपमहाद्वीप में एक और देश का निर्माण आज से 52 साल पहले हो गया है ! " यह वास्तव हमीद दलवाई बतानेकी कोशिश करते रहे !
मुझे दो बार पकिस्तान जाने का मौका मिला है ! दोबारा तो अटारी-वाघा सीमा से पूरा पंजाब और सिंध और उसके बाद बलूचीस्थान क्रॉस कर के ईरान के झायदान नाम की जगह पर पूरा 3-4 दिनके सफर करते हुए ! जमीन से जाने के कारण उर्दू और इस्लाम का मसाला इस्तेमाल किया हुआ पकिस्तान में ! उर्दू की कितनी इज्जत हो रही हैं ? यह नजारा देखने सुनने का मौका मिला है ! अमृतसर से 50 किलोमीटर के लाहौर में ! पंजाबी का आलम दिखाई दिया और वहाँ से आगे बढे तो सक्कर,अटक,सिंध हैदराबाद और कराची में सिंधी ! वहाँ से आगे का सफर बलूचिस्तान पुरा बलूच बोलने वाले और आपस मे बैर। तो भारत पाकिस्तान का फीका लगेगा ऐसा यानि 76 सालों के पाकिस्तान का युनिफीकेशंन झीरो ! इसलिए इस्लाम खतरे में है ! और दुनिया के सभी मुसलमान इकठ्ठा होनी की कहानियाँ , संघ परिवार 100 वर्षों से अपनी शाखाओं में बढा चढाकर बताते आ रहा है !
उनकी मृत्युको आज 46 साल हो रहे हैं ! और आंतरराष्ट्रीय स्तर से भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति को देखने से पता चल रहा हैं ! कि गत पचास सालों से अधिक समय से, इस्लाम को वह भी 'सलाफि या वहाबी' इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए ! पश्चिमी देश, जिसमें नम्बर एक पर अमेरिका , दो पर ब्रिटेन और तीन पर फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों की भूमिका तेल के लिये ! तथाकथित ' क्लॅश ऑफ सिविलाइशन' का हौव्वा दिखाकर पहले अल कायदा,बोको हराम और अब इसिस के नाम पर ! जो घिनौना काम कर रहे हैं ! वह यदि आज हमीद दलवाई होते तो, महमुद ममदानी,नॉम चोम्स्की ,एडवर्ड सईद,समीर आमीन के साथ और एक नाम जुडा होता ! वह हमीद दलवाई का होता !
इसलिए 1977 तक हमीद दलवाई ने भारतीय मुसलमानों को जो राह दिखाई थी ! वह ठीक ही थी ! लेकिन 90 के दशक से, मुख्यतः हमारे अपने देश भारत में, संघ परिवार का आक्टोपस ने भारत को जकड़ लिया है और उसमे सबसे बड़ी कीमत अल्पसंख्यक समुदाय के लोग,दलित हो या आदिवासी और महिलाओं के प्रति होने वाले अन्याय सबसे संगीन होते जा रहे हैं ! इसलिए 'मुस्लिम सत्यशोधक समाज' जो आज अर्धशताब्दी मना रहा है तो अगले 50 साल में हमे क्या करना चाहिए ? इसका नियोजन भी आप लोग जरूर कर रहे होंगे ! मैं भी एक सह प्रवासी होनेके नाते, और हमीद भाई से जो भी थोडा बहुत संपर्क था उसके नाते ! उनकी आज 91 वी जयंती के अवसर पर, मैने सभी साथियो के दिल को चोट पहुंचाई हो तो माफ करियेगा !
उसी कारण कठमुल्लापन के शिकार, लोगों ने उनके ऊपर जान लेवा हमले किये ! लेकिन हमीद दलवाई के हिम्मत की दाद देनी होगी ! क्योंकि उसके बाद उन्होँने पूरे भारत का दौरा किया और मुस्लिम समाज सुधार का अपना काम करते रहे ! लेकिन आपात काल के दौरान यानि उम्रके 43 वें साल में प्रवेश करते- करते किडनी की बीमारी से ग्रस्त हो गए ! फिर उनको किडनी प्रत्यारोपण की गई ! उसके बाद, वे जयप्रकाश नारायण जी के साथ 1977 में एक आंतरराष्ट्रीय कॉंफ्रेंस में विदेश भी जाकर आये ! लेकिन प्रत्यारोपण की हुई किडनी उनके शरीर को सुट नहीं हुई !
मै उनके आखिरी दिनों में मुंबई के जसलोक हॉस्पीटल में, उन्हे मिलने गया था ! दोनो आँखो के नीचे थैलियों जैसा पानी जमा था ! मेहरुन्निसा जी उनकी पत्नी तीमारदारी कर रही थी और उस स्थिति में भी उनके सेन्स ऑफ़ हूमर की दाद देनी पड़ेगी ! उन्होँने एक शब्द अपनी तबीयत पर बात नहीं की ! लगातार जोक्स और कई इंटरेस्टिंग बाते करते रहे ! आखिर मुझें ही वह शो अच्छा नहीं लग रहा था और मैं खुद उनकी दोनों आंखों के नीचे लटकी हुई थैलियों को देखते ही समझ गया था, कि अब यह चंद दिनों के साथी है ! कभी भी जा सकते हैं !
शायद मेरे मिलने के हफ्ते दस दिन में ही खबर आई ! कि मशहूर मुस्लिम सत्यशोधक, समाजसेवक और विचारवंत हमीद दलवाई नही रहे !
45 साल की उम्र में उन्होंने ऐतिहासिक काम किया है ! जिसको उनके अनुयाइयों ने बदस्तूर जारी रखा है ! राष्ट्र सेवा दलके पुणे स्थित मुख्यालय में, जब मैं अप्रैल 2017 में अध्यक्ष पद पर आसीन होने के बाद ही, मुस्लिम सत्यशोधक समाज को कार्यालय के लिए बिना शुल्क जगह दी है !
उम्मीद है कि वह जगह जब तक राष्ट्र सेवा दल रहेगा, तब तक तो रहेगी ! क्योंकि मै व्यक्तिगत तौर पर मानता हूँ, कि राष्ट्र सेवा दल जाति धर्म निरपेक्ष समाज बनाने के लिए बनाया गया है और मुस्लिम सत्यशोधक समाज राष्ट्र सेवा दल की एक ईकाई है ! क्योंकि हमें संसदीय राजनीति नहीं करनी है ! जो लोग करते हैं, उन्हे अपने वोट के लिए सभी को खुश रखने की जरूरत होती है और इस लिए उन्हें इस समाज को नाराज नहीं करना, उस समाज को खुश रखने हेतु काफी कुछ ऊल-जलूल हरकतें करनी पड़ती है ! संसदीय जनतंत्र का तकाजा जो ठहरा !
राष्ट्र सेवा दल परिवर्तन का वाहक होंने का दावा किया करता हैं ! तो हमीद दलवाई ने लगाए हुये पौधे को, जिलाए रखने हेतु, राष्ट्र सेवा दल अपनी प्रतिबध्दता आगे भी दिखायेगा ! क्यौंकि राष्ट्र सेवा दल,हर तरह के सांप्रदायिकता का विरोधी होने का दावा जो करता हैं ! अन्यथा मुस्लिम सांप्रदायिकता के आगे घुटने टेक दिए जैसा होगा और फिर हमें हिंदू सांप्रदायिकता के बारे में बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है !
यह साल तो मुस्लिम सत्यशोधक समाज के स्थापना का अर्धशतक यानि पूरे 50 साल होने का साल है और देश और दुनिया की स्थिति को देखते हुए ! कभी नहीं इतनी राष्ट्र सेवा दल और मुस्लिम सत्यशोधक समाज की आवश्यकता है ! हम सचमुच सांप्रदायिक राजनीति के विरुद्ध है ! तो हमारा नैतिक दायित्व बनता है ! कि हम हर तरह की सांप्रदायिकता के विरोधी है ! जबतक हम लोग मुस्लिम कठमुल्लापन को विरोध नहीं करते तो हिंन्दू या किसी और धर्म के कठमुल्लापन का विरोध करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है !
हमीद दलवाई के सुधारवादी काम को लेकर आपत्ति जताई गई थी और उनके उपर छोटे मोटे हमले भी हुये ! मुल्ला मौलवीओं ने गाली गाली-गलौज भी की ! लेकिन महात्मा गाँधी या डॉ. नरेंद्र दाभोलकर,गोविंद पानसरे प्रो. कल्बुर्गी या गौरी लंकेश जैसी हत्या नहीं की ! भारत के हिन्दुत्व वादी और इस्लाम को मानने वालों में ये फर्क तो साफ साफ दिखता है कि जिन मुसलमानो को बर्बर दमन कारी जाहिलों की जमात बोलते बोलते संघ परिवार थकता नहीं है ! उन्होँने हमीद दलवाई,असगर अली इन्जीनियर,जुझर बन्दूकवाला जैसे सुधारक मुसलमानो को जानसे नहीं मारा ! यह बहुत बड़ा फर्क हिंदुत्व वादी और मुसलमानों में भारतीय भूमिपर साफ - साफ दिखाई देता है !
संघ परिवार, शाखा में इस्लाम की बर्बरता का वर्णन अपने स्वयंसेवकोंको भड़काने के लिए खूब बढा चढाकर बताते हैं और इसी कारण नाथूराम,प्रज्ञा सिंह,आसीमानंद,कल्सुंगरा ,बाबू बजरंगी,कर्नल पुरोहित और यू पी,बिहार,कर्नाटककी श्रीराम सेना,बजरंग दल ,अभिनव भारत,सनातन संस्था जैसे हरावल दस्ते बनाने के कारखानों मे तैयार होने वाले लोगों में, और भारतीय भूमिपर रहनेवाले मुसलमानों में कुछ तो फर्क है !
हमीद दलवाई और असगर अली इंन्जीनियर दोनो सुधारक अपनी बीमारियों के कारण मरे हैं और उल्टा प्रो. जुझर बन्दूकवाले के घर पर गुजरात दंगा के समय हिंदूत्ववादियों ने हमला किया और घर को आग लगा दी ! ओ तो अच्छा हुआ कि पडोसियों ने जोर जबरदस्ती से जुझर भाई और परिवार के लोगों को थोडी देर पहले अपने घर में छुपाकर रखा ! तो वो और परिवार बच गए ! लेकिन सब कुछ जलकर राख हो गया ! यह आक्रमक हिदुत्व का, और भारतीय मुसलमानो में का बहुत बड़ा फर्क , मुझें आज हमीद भाई की 91 वीं जयंती के अवसर पर बरबस याद आ रहा है !
गुजरात के दंगे का क्या कहना ? वर्तमान प्रधानमंत्री जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे और किस तरह उनकी शह पर पूरा दंगा हुआ ! यह ओपन सीक्रेट हो चुका है ! राणा आयुब से लेकर एक्स. डी. जी. पी. ऑफ गुजरात आर. बी. श्रीकुमार,तथा जस्टिस कृष्णा अय्यर,पी बी सामंत और सिद्दार्थ वर्दराजन,मनोज मित्ता आशीष
खेतान जैसे लोगों ने पर्याप्त मात्रा में गोधरा कांड से लेकर उसके बाद के गुजरात दंगों के ऊपर पर्याप्त मात्रा में रोशनी डाली है !
सबसे हैरानी की बात 27 फरवरी 2002 को श्याम से ही, भारतीय सेना के, जनरल पद्मनाभन ने, लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दींन शाह के नेतृत्व में,, 3000 भारतीय सेना के जवान हवाई जहाज से अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उतारे थे ! लेकिन उन्हें तीन दिनो तक एयरपोर्ट से बाहर निकलने नहीं दिया जाता हैं ! यह भी किसकी शहपर ? जमीरुद्दिन शाह साहब ने अपने आत्मकथा जिसका नाम 'सरकारी मुसलमान है !' उसमें विस्तारसे लिखा हुआ है !
अब नानावटी कमीशन ने बरी कर दिया बताया जा रहा है ! लेकिन नानावटी एक मंझे हूए संघ स्वयंसेवक, जिसको मैने खुद एडवोकेट मुकुल सिन्हा के साथ, पाँच बार उस कमीशन का काम करते हुए अहमदाबाद में देखा है और पहली सिटिंग के बाद ही, मैने मुकुल भाई को बोला की "आप अपने समय को क्यों बरबाद कर रहे हैं ? " तो मुकुल भाई ने मुझे बताया कि "नरेंद्र मोदी जल्द से जल्द इस कमीशन से अपने आप को क्लीन चिट चाह रहा है ! ताकि वो देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार रहना चाहते हैं और इसलिए मै इस कमीशन को लंबा खींचने की कोशिश कर रहा हूँ !" और दुर्दैव्य देखिये मोदी प्रधान-मंत्री बननेके दो दिन पहले , मुकुल भाई फेफड़ों के कैंसर की बीमारियों से मर गए !
इसलिए हमीद दलवाई के जीवन काल में 'हिंन्दू तालिबान' का स्वरूप देखने से वो बच गए ! हालाकि वह अपने भाषणों में इस विषय पर भी बोलते थे ! मैने उन्हें अमरावती में जो कार्यक्रम उनके भाषण का किया था ! उसमे मुसलमान एक भी नहीं था ! क्योंकि हमारे कर्यक्रम जोशी हॉल में ही होते थे और श्रोताओं को देखते ही समझ गया था कि अमरावती के सभी संघी आये हुए थे और यह बात मैने हमीद भाई के कान में धीरेसे कह दी ! तो उस दिन उन्होनें हिंदू और हिंन्दूत्व इस विषय पर क्लासिकल भाषण दिया ! जिससे संघी श्रोताओं का काफी मोहभंग हुआ था !
लेकिन हमीद भाई के 1977 में जाने के बाद ! भारतीय राजनीति के केंद्र में सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता ही होकर रह गया ! जो आज परवान पर चल रहा है ! इसलिए हमारी जिम्मेदारी बहुत बढ गई है ! हमें बहुसंख्यक समुदाय और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बहुत सोच समझ कर काम करना चाहिए !
सबसे पहले अल्पसंख्यक समुदाय के फियर सायको को देखकर, बहुत ही नजाकत से पेश आना चाहिए और उनका दिल जीतकर ही यह संभव है और मैं खुद 1989 के भागलपुर दंगे के बाद यह काम कर रहा हूँ और मेरा अनुभव है की आप मुसलमानों का विश्वास जीत सकते हो और फिर वो आप पर भरोसा करने लगते हैं और अब तो मैं नॉर्थ ईस्ट से लेकर गुजरात के कच्छ के रण से लेकर भारत के सभी क्षेत्रों में समय-समय पर जाकर वहां के लोगों से मिलकर सांप्रदायिकता के खिलाफ जिसमें कश्मीर ,कर्नाटक ,केरल,तमिलनाडु, राजस्थान,आंध्र,तेलंगाना, उड़ीसा , बंगाल,बिहार,पंजाब,हरियाणा,उत्तर प्रदेश गोवा,महाराष्ट्र, झारखण्ड,छत्तीस गढ़ और उत्तराखंड,हिमाचल प्रदेश और बिहार मध्य प्रदेश अब शायद पूरा भारत वैसे भी, मै गत 30 वर्षों से भागलपुर दंगेके बाद इसी विषय पर काम कर रहा हूँ !
और अब मुस्लिम सत्यशोधक समाज की अर्ध शताब्दी और हमीद भाई की 91 वी जयंती के अवसर पर ! मैं घोषित करता हूँ, "कि अभी मै उम्रके, 70 साल के दौर से मै गुजर रहा हूँ ! मुझे हार्ट डिसीज़,शुगर इत्यादि- इत्यादि बीमारियों से ग्रस्त होते हुए , मैं गत दस साल से ज्यादा समय से चल रहा हूँ ! 2018 के 23 जून को मेरे तीन ब्लॉक थे! जिनको मैने एंजियोप्लास्टी करके तीन स्टेंट लगवाये है और तबसे एक हफ्ते के बाद ही ! मैं रूटीन यात्रा, और अन्य काम कर रहा हूँ और मुझे कुछ भी तकलीफ नहीं हो रही हैं ! बिलकुल नॉर्मल स्टामिना लग रहा है ! इसलिए मेरी इच्छा है, "कि मेरे हिस्से में जो भी बोनस लाईफ है ! उसका एक-एक पल इसी प्रकार के काम में लगा दूँ !
तो आप सभी साथियों को मेरी गुजारिश है " कि मेरा इस्तेमाल कैसे किया जाए ? यह आप सब साथियों के सामने रख रहा हूँ ! मेरे हिसाब से हमीद दलवाई,नरहर कुरुंदकर ,ए बी शाह इन्डियन सेकुलर सोसाइटी के संस्थापक वरिष्ठ मित्रों का अधूरा काम पूरा करने के लिए, मैं तैयार हूँ ! अब आप सब मुझे बताये की मैने क्या- क्या करना है ? और कैसे - कैसे करना है ?
और हमीद दलवाई को उनके 91 वी जयंती के अवसर पर, और क्या हो सकता है ? क्योंकि वे तो अपने जीवन में यही जद्दो-जहद करते हुए, इस दुनिया से विदा हुए हैं ! अगर वे जीवित होते, तो आज 91 साल के होते ! लेकिन उससे आधी से भी कम जिंदगी जी कर, जो काम वह करके गए, वह कोई 100 साल में भी नहीं कर सकता ! इसलिए उन्हें सही श्रद्धांजलि उन्होने शुरु किया हुआ काम आगे भी करते रहना चाहिए ! हमीद भाई की स्मृति को विनम्र अभिवादन !
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