शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

कहां तय था चिरागां हर घर के लिए !-डाँ सुरेश खैरनार

कहां तय था चिरागां हर घर के लिए ! कहां तय था हरसाल दो करोड नौकरीया देना ! और साढें नौ सालों में नौ लाख नियुक्ति पत्र ! मतलब हर साल एक लाख से भी कम ! वह भी 140 करोड आबादी के देश के प्रधानमंत्री खुद बाटते हुए खुद घुम रहे हैं ! यह नौबत क्यों आई ? और उसके लिए इतने इश्तिहार और चिल्ला - चिल्ला कर कहना पड रहा है ! इससे लगता होगा कि लोगों की याददाश्त कमजोर होती है तो नौ सालों में भुल गए होंगे ! लेकिन यह गलतफहमी है ! काफी अर्से से युवाओं का हल्ला बोल नौकरीया मांगने के लिए चल रहा है ! आप भले ही इंडिया - भारत की कुश्ती खेलते रहिएगा और वह कम पड रहा है तो सनातन धर्म की रक्षा जैसा पाखंड करना पड रहा है ! लेकिन जैसे ही कर्नाटक में जयबजरंग के नारे को भुनाने के लिए ऐडीचोटी एक कर दिया था ! क्या नतिजा निकला ? वैसे ही सनातन, भारत, राममंदिर का उद्घाटन, मणिपुर में आदिवासियों के साथ चल रहे अत्याचार पूरी दुनिया देख रही है ! आए दिन हमारे अन्नदाता किसानो की आत्महत्याओं की खबरे रोज ही आ रही है ! और गौतम अदानी को भारत के सभी सार्वजनिक क्षेत्र एक एक करके सौंप रहे हो और उसके लिए ही उस क्षेत्र से संबंधित कर्मचारियों की छंटनी और नये लोगों की बहाली नही कर रहे हो क्योंकि अदानी - अंबानी को मजदूरों की झंझट नहीं चाहिए और भारतीय जनता पार्टी की भारतीय मजदूर संघ से लेकर स्वदेशी जागरण मंच और कभी-कभी मातृ संघटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सुब्रमण्यम स्वामी जैसा व्हिसल ब्लोअर लगातार नरेंद्र मोदी के खिलाफ उन्होंने चीन को भारत की जमीन देने से लेकर आर्थिक सवालों पर लगातार हमले कीए जा रहे हैं ! सुब्रमण्यम स्वामी ने अभी तक काफी लोगों को जेल में भेजने से लेकर कानूनी कार्रवाईयों में खिंचा है ! इसलिए विरोधी गठबंधन के इंडिया नाम ही से डर गए तो आगे तेरा क्या होगा सांबा ? उसके बारे में आए दिन अनाप-शनाप बोल रहे हो ! भाई जबतक आप लोग इंडिया शायनिंग, डिजिटल इंडिया, और दुनिया भर की इंडिया नाम लेकर अपने प्रॉडक्ट्स बेचने का काम किया है और अचानक विरोधी दलों के नेताओं ने एकमत से इंडिया हालांकि इंडिया न रहते हुए वह एक लंबे वाक्यों का संक्षिप्त रूप इंडिया होने के बावजूद संघ सिर्फ सांस्कृतिक संघठन है बोलने वाले मोहन भागवत भी इंडिया - भारत की बहस में शामिल हो गए हैं ! और प्रधानमंत्री के क्या कहने वह तो बारह महिनों चौबीसों घंटों सिर्फ और सिर्फ चुनाव के मोडपर ही रहते हैं और उनके हरेक कृति कार्यक्रम सिर्फ और सिर्फ चुनाव के ध्रुवीकरण के हिसाब से डिजाइन करके पेश किए जाते हैं ! फिर कोई रेल को सिग्नल देने से लेकर नई संसद का कोरोना मे संपूर्ण देश में लॉकडाऊन लेकिन राष्ट्रपति भवन के सामने रात-दिन बडे-बडे सर्च लाईट लगाकर हजारों मजदूरों के स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर उसका निर्माण कार्य करने की जल्दबाजी का मतलब क्या था ? मेरे जितेजी उद्घाटन या फिर राममंदिर की निर्माण की भी जल्दबाजी का उद्देश्य क्या है ? मेरे जितेजी क्योंकि नरेंद्र मोदी को एहसास हो गया है कि अगले चुनाव में बुरी तरह से मात खाने वाले हैं ! क्योंकि लाखों की संख्या में वादे जिन्हें सिर्फ चुनाव के जुमले यह अमित शाह ने अभी हाल ही में किसी एक चैनल पर कहा है कि चुनाव में यह जुमलेबाजी करनी पडती है ! तो फिर उसकी किमत चुकाने के लिए तैयार हो जाइएगा ! साडेनौ सालों में सिर्फ जुमलेबाजी के सिवाय कोई भी काम किया नही उल्टा विदेश में हमारे बैंकों को चुना लगा कर भागे हुए भगौडो में से एक को भी वापस लाकर उससे एक रुपये की वसूली नही की और कहा था कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लायेंगे ! अपने देश की बैकों को लुटकर गए हुए चोरों को वापस नहीं ला सके और कोई विरोधी दल का नेता ने इस बात पर कटाक्ष किया तो उसे संसद की सदस्यता से हटाने जैसी टुच्ची हरकत करने का मतलब चोरों को संरक्षण देना क्योंकि उन सभी भगौडो को चोर ही तो बोला था ! उनके उपर कारवाई करने की जगह उन्हें चोर बोलने वाले पर कार्रवाई भारतीय संसदीय इतिहास की सबसे अजिबोगरिब कारवाई की गई और सर्वोच्च न्यायालय ने संसद सदस्यता बहाल की तो क्या इज्ज़त रही ? 2013 के चुनाव प्रचार सभाओं में नरेंद्र मोदी ने मुझे एक मौका दो ! मै हरसाल दो करोड नौकरीया दुंगा ! विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाकर हरेक भारतीय नागरिकों के खाते में पंद्रह लाख रुपये जमा करुंगा लेकिन एक रुपया जो लोगों से खाता खुलवाने के लिए लिया गया वह तक वापस नहीं किया उल्टा उसीसे करोड़ों रुपये लोगों से ले लिया है ! और फिर तथाकथित गब्बर सिंग टैक्स और उसके बाद नोटबंदी दिल्ली के तख्तपर एक मुहम्मद तुघलक नाम का अर्ध पागलपन का शिकार बादशाह ने भी दिल्ली से दौलताबाद राजधानी ले जाने जैसे निर्णय लेने के बाद लाखों की संख्या में लोग उत्तर की दिल्ली से दक्षिण के दौलताबाद हजारों मील की दूरी तय करते करते ही काफी लोगों की मौत हो गई और वह कम था तो वह दौलताबाद पहुंच कर धातु के सिक्कों की जगह पर चमड़े के शिक्के बनाने का फरमान जारी कर बैठा और लोगों ने अपने अपने घरों में शिक्के बनाने की शुरुआत कर दी ! अंत में उस राज्य की अर्थव्यवस्था से लेकर हर तरह की आराजकता फैल गई थी ! लेकिन लोगो ने नरेंद्र मोदी को एक नहीं दो बार मौका दिया ! लेकिन अब दुसरी टर्म भी खत्म होने में आ रही है ! और कुल साडेनौ सालों में भी दो करोड़ नौकरीया देना दूर ! उल्टा केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि नौ सालों में हमारी सरकारने नौ लाख नियुक्ति के पत्र दिए हैं ! कहा गया चुनाव में किया हुआ वादा ? भाई आप लोग अच्छे दिनों का सब्जबाग दिखाकर ! और मुझे एक मौका दो ! मै हरसाल दो करोड नौकरीया दुंगा ! विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाकर हरेक व्यक्ति के खाते में पंद्रह लाख रुपये जमा करने जैसे जुमलेबाजी मे से एक भी पूरी नहीं कर सके उल्टा किसानों की सुरक्षा के लिए बनाए कानून बदलने की कवायद और वैसे ही हमारे देश के शेकडो वर्ष की लड़ाई लडकर मजदूरों ने अपने लिए बनाए कानूनों को पूरी तरह उद्योगपतियों के सुविधाओं के अनुसार बदलाव कर दिया है ! और अब मजदूरों को कोई कानूनी सुरक्षा या सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है और मजदूरों के केसेस चलाने वाले वकिलो ने अपनी लेबरप्रैक्टिस छोड़ कर अन्य क्षेत्रों में शामिल हो गए हैं ! मतलब आए थे सबका साथ सबका विकास बोलते हुए लेकिन नौ सालों के प्रगति पुस्तक को देखते हुए सिर्फ और सिर्फ पुंजिपतियो की तिजोरीया भरने के लिए हमारे सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों से लेकर विमा कंपनी को भी इन धन्नासेठों के कर्जे माफ करने से लेकर नए कर्ज देने की जबरदस्ती से हमारे बैंकिंग सिस्टम को खत्म करने की कृति जारी है ! और इन पुंजिपतियो के लिए हमारे देश की संपत्ति जिसमें जल - जंगल - जमीन जैसे संवेदनशील संसाधन वहां के आदिवासियों के सुरक्षा के लिए बनाया गया कानून को बदलकर उन्हें उजाडना बदस्तूर जारी है और सबसे बड़ी विडम्बना हमारे देश की सर्वोच्च पद पर बैठी हुई महिला राष्ट्रपति आदिवासी है ! जैसे इनके पहले दलित राष्ट्रपति थे लेकिन उनके कार्यकाल में सब से अधिक दलितों के उपर अत्याचार की घटनाएं हुईं हैं और सबसे अधिक उनके गृहराज्य उत्तर प्रदेश में शुरुआत में ही सहारनपुर के दलितों के साथ काफी समय तक दंगा चलते रहा और दंगा करने वाली जाति वर्तमान मुख्यमंत्री की जाती होने की वजह से उनके उपर कारवाई की जगह दलितों के उपर ही कारवाई हुई है ! और अल्प संख्यक समुदाय के लोगों को तो सत्ताधारी बनने के तुरंत बाद गोहत्या बंदी से लेकर मॉबलिंचिग और वह कम लगा तो कोरोना फैलाने जैसे झुठे आरोप और एन आर सी जैसे दक्षिण अफ्रीका की सरकारो ने सौ वर्ष पहले भारतीय अप्रवासीयो पर लगाए थे जिसमें से एक मोहन करमचंद गांधी नामके बैरिस्टर ने अपने जीवन के इक्कीस साल खपा दिए और सत्याग्रह जैसा क्रांतिकारी लडने के लिए जो एक सामान्य फटेहाल आदमी - औरत भी इस्तेमाल कर सकते हैं ! और वहाँ की लड़ाई जितकर आने के बाद उम्र के 46 वे साल में भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई उसी क्रांतिकारी हथियार से भारत में आजादी दिला कर रहे ! तभी तो उन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है ! तो यह सब कुछ मालूम रहते हुए जानबूझकर उन्होंने खड़े किए हुए आश्रम तथा संस्थाओं को कब्जे में करना राष्ट्रपिता का सब से बड़ा अपमानित करने का गुनाह वर्तमान सरकार सत्ता में आने के दुसरे दिन से कर रही है और दुसरी तरफ विदेशी मेहमानों को उनके समाधि स्थल से उनके आश्रमों में ले जाने का पाखंड भी किए जा रहे हैं ! आए थे हमारे देश के सबसे अंतिम आदमी - औरत का कल्याण करने लेकिन वास्तव में हमारे देश का अंतिम आदमी और औरतें को आए दिन अपमानित किया जा रहा है और सबसे संवेदनशील बात उसके जीवनयापन के संसाधनों को कब्जे में करके उसे भीक के रूप में सडा हुआ अनाज और कुछ कौडियों को उसके उपर फेककर उसे जिंदगी भर के लिए भिकारी बनाने की कोशिश जारी है ! यह उस सर्वहारा वर्ग का सब से बड़ा अपमान है और सबका साथ सबका विकास जैसे जुमलेबाजी की ऐसी की तैसी करना जारी है ! भारत के मतदाताओं का ऐसा अपमान आजतक किसी भी दल ने करने की हिम्मत नहीं की जो भारतीय जनता पार्टी गत साढ़ेनौ सालों से लगातार कर रही है और इस का करारा जवाब आने वाले चुनावों में दिया जायेगा इतना पक्का ! मैंने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के लोगों की प्रतिक्रियाओं को देखते हुए यह आकलन लिखा है ! कहाँ चराग़ाँ तय था हरेक घर के लिए कहा चराग मयस्सर नही शहर के लिए चलें यहाँ से चले उम्र भर के लिए न हो कमिज तो पॉंव से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब है इस सफर के लिए खुदा नही न सही आदमी का ख्वाब सही कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए वो मुतमईन है कि पत्थर पिघल नही सकता मै बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए जिएं तो अपने बगिचे में गुलमोहर के तले मरे तो गैर कि गलियों में गुलमोहर के लिए ! - दुष्यंत कुमार - डॉ. सुरेश खैरनार

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