बुधवार, 4 अक्टूबर 2023

संघियो के झूठ का खुलासा ःरघुनाथ नायक - सुरैश खैरनार

रघुनाथ नायक को सलाम ! यह है, रघुनाथ नायकने 30 जनवरी 1948 के दिन श्याम के पांच बजकर सत्रह मिनट के समय, बिड़ला हाऊस के बगीचे में काम करते हुए ! ( वह बिड़ला हाऊस में माली का काम करते थे ! ) तब उन्होंने अचानक गोली चलाने की आवाज सुनी ! और सामने देखा कि एक नौजवान पिस्तौल से गोली मारकर भागने वाले, को पुलिस के आने तक धर दबोच कर रखा हुआ था ! लेकिन संघ परिवार के तरफ से पचहत्तर सालों से लगातार कहा जा रहा है कि ! " नाथूराम गाँधी जी के सिनेमे तीन गोलीया दागने के बाद अपनी जगह पर खडा रहा ! और अपने आप को पुलिस के हवाले किया है !" यह नाथूराम को पकड़ने वाले रघुनाथ नायक ओरीसा के केंद्रपाडा जिला के जुगलीपाडा गांव के रहने वाले थे ! जिन्होंने गाँधी हत्या के बाद, बिड़ला हाऊस की नौकरी गाँधी हत्या का दृश्य खुद अपनी आंखों से देखने की और महात्मा गांधी की हत्या को नहीं रोक सकने की भावना से हताश होने की वजह से छोड़कर, अपने पुश्तैनी गांव जुगलीपाडा, केंद्रपाडा जिला, ओरीसा चले गए थे ! और गांधी हत्या की कोर्ट केस की सुनवाई के दौरान वह नियमित रूप से अपने गाँव से दिल्ली आते जाते थे ! 1983 में उनका निधन हुआ है ! उन्हें उनके इस काम के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने सम्मानित किया है ! और ओरीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने आर्थिक सहायता शुरू की थी ! और वर्तमान मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने वह जारी रखी है ! संघ के तरफसे हमेशा कहा जा रहा है, "कि नाथूराम ने खुद होकर अपना गुनाह कबुल कर लिया था ! और कोर्ट में अपनी जिरह खुद ही की थी ! उसने सजा ए मौत के खिलाफ कोई अपिल या रियायत नहीं मांगी थी ! यह सब कुछ झुठ है ! उसने वकिल तो किया ही था ! तथा हायकोर्ट मे अपिल की थी ! और फांसी की सजा से रियायत देने के लिए, लंडन के प्रिव्ही कौंसिल में अर्जी दाखल किया था ! वह ठुकराया गया ! तो भारत के आखिरी गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के सामने दया की याचिका दाखिल किया है ! जो डाक्यूमेंट्स उपलब्ध हैं ! लेकिन नाथूराम के महिमामंडित करने की संघ परिवार की कोशिश की कडीयो में, लिखे जा रहे नाटक तथा सिनेमाओ के स्क्रिप्टो में, उसका तथाकथित अदालत में पढा गया आखिरी 90 पन्ने का निवेदन जो बैरिस्टर सावरकर ने लिखकर दिया था ! उसके मंचन करते समय सभागार में श्रोताओं की तालियां बजवाने के हिसाब से उसे बहुत ही नाटकीय ढंग से पेश किया जाता है ! और सबसे हैरानी की बात, उसके नाम के आगे पंडित लगाया हुआ देखकर हंसी आती है ! यह बंदा 19 साल की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा में असफल रहा है ! और उसने आगे की कोई पढाई नही की! क्योंकि वह मैट्रिक की परीक्षा के बाद रत्नागिरी में अपने पिता की पोस्ट की नौकरी की वजह से, तबादला हुआ ! तो वह भी पिताजी के साथ रत्नागिरी गया था ! तो वहां पर बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर हाऊस अरेस्ट है ! यह उसे पता चलने पर वह सुबह निंद से उठने के बाद और रात्री को सोने के बीच का पूरा समय, सावरकर की सोहबत में रहने की वजह से ! सावरकर ने मदनलाल धिंग्रा से लेकर दर्जनों नवयुवक आतंकवाद के लिए तैयार किए थे ! और उसी कड़ी में का आखिरी आतंकवादी सावरकर के स्कूल से निकला हुआ नाथूराम है ! गाँधी द्वेष से सावरकर खुद बीमारी के स्तर पर पहुंच गए थे ! और उन्होंने वह अपने हाथों से नाथूराम के लिए कोर्ट में पढ़ने के लिए आखिरी निवेदन में पूरी तरह से उंडेल कर रख दिया है ! हालांकि कोर्ट में सुनवाई के दौरान, सावरकर ने कहा कि, "मैं इसे कभी मीला हूँ ! यह मुझे याद नहीं है ! क्योंकि मुझे रोज सैकड़ों की संख्या में लोग मिलने आते हैं ! तो यह भी उनमें से एक हो सकता है ! लेकिन मुझे याद नहीं है !" और नाथूराम ने भी अपने गुरु बैरिस्टर सावरकर को बचाने के लिये झुठ ही कहा था ! "कि सावरकर से मै कभी भी मिला नही हूँ !" सबसे हैरानी की बात, सरकारी वकील को क्या हो गया था पता नहीं ? उसने इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट में सुनवाई के दौरान कुछ भी नहीं बोलने की वजह से, सावरकर पर्याप्त सबूत के अभाव में छुटे है ! और आज उसी सावरकर और नाथूराम का महिमामंडित करना शुरू है ! सावरकर के उपर महात्मा गाँधी जी की समाधि स्थल से गांधी स्मृति के द्वारा चलाई जा रही 'अंतिम जन' नाम की पत्रिका का पिछले साल के जून माह में सावरकर विशेषांक निकालने की करतूत! और उस पत्रिका में सावरकर और गांधी जी के बीच में क्या समानताएं थी ! उसे रेखांकित करने का अत्यंत हास्यास्पद प्रयास किया गया है ! महात्मा गाँधी और सावरकर में भला क्या समानता हो सकती है ? गाँधी सत्य ही इश्वर मानते थे ! सावरकर की जिंदगी झुठ और समय समय पर समझौते जैसे अंदमान के जेल में जाने के तुरंत बाद ही पहला माफीनामा लिखने से लेकर जो शुरुआत की है वह एक दर्जन माफीनामा लिखकर इंग्लैंड की महारानी से जेल से रिहाई करने के लिए गिड़गिड़ाते हुए लिखा है ! "कि मुझे अगर रिहाई मील गई तो, मै ब्रिटेन के साम्राज्य को मजबूत करने के लिए, अपने और मेरे से प्रभावित भटके हुए युवकों को लेकर संपूर्ण शक्ति लगाकर सेवा करुंगा ! " और आखिर में दया कहिए या अंग्रेजो की चालाकियां के तहत सावरकर से अंडरटेकिंग लिखवा कर सिर्फ रिहाई ही नही दी गई ! उन्हें अपने तरफसे पाचसौ रुपये मासिक पेंशन के रूप में देना शुरू किया ! और उसके बाद सावरकर ने, अंग्रेजी सेना की भर्ती बोर्ड में शामिल होकर ! अंग्रेजी सेना में भारतीय युवकों को भर्ती करने का काम किया है ! और पांचसौ रुपये की राशि को बढ़ाने के लिए भी अर्जी भेजा ! तो अंग्रेजों ने कहा कि आप को हमारे कलक्टर के बराबर पेंशन दी जा रही है ! इसलिए उससे ज्यादा हम दे नही सकते ! सावरकर ने अपनी बैरिस्टर की प्रॅक्टिस तो कभी नही की ! लेकिन उन्होंने अपनी बैरिस्टर की कला का उपयोग खुद को बचाने के लिए ! और एक दर्जन से अधिक युवकों को आतंकवादी हमले करवाने के लिए तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया ! और खुद को हर घटना से अलग थलग रखने के लिए ही खर्च किए हैं ! और आखिरी आतंकवादी नाथूराम को तो दस साल की पक्की ट्रेनिंग रत्नागिरी के वास्तव्य मे दी है ! और नाथूराम के जीवन का एक मात्र लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ महात्मा गाँधी जी की हत्या करने का रहा है ! पुराने समय में विषकन्या की संकल्पना पढी है ! वैसे ही बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर ने अपने संपूर्ण जीवन में एक दर्जन से अधिक आतंकवादियों को तैयार कराकर, उन्हें फांसी की सजा में मरने दिया है ! भला ऐसे आदमी की महात्मा गाँधी जी के साथ तुलना करना ! मतलब गाँधी जी की शारीरिक हत्या के बाद वैचारिक हत्या करने के लिए ! 'अंतिम जन' विशेषांक सावरकर के उपर मुखपृष्ठ पर, उनका फोटो देकर, निकालने की कृति करते हुए ! महात्मा गांधी की वैचारिक और नैतिक हत्या का प्रयास किया है !

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