सोमवार, 9 अक्टूबर 2023
अंबेडकर और हिन्दुवत्व की राजनीति- रामपुनियानी
मेरे चालीस साल से अधिक समय के मित्र डॉ. राम पुनियानी की फारोस प्रकाशन की अम्बेडकर और हिंदुत्व राजनीति इस शिर्षक की किताब को कल रात सोने के पहले पढकर आज उसपर अपनी टिप्पणी लिखने के लिए बैठा हूँ !
कुल मजमून पचास पन्ना में है ! मुख्य मुद्दा डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी को संघ और संघ की अन्य इकाइयों के द्वारा अम्बेडकर भी हिंदुत्व के हिमायती दिखाने की कोशिश का पर्दाफाश करने का प्रयास किया है ! हालांकि इस के लिये एक पन्ना पर्याप्त था ! 13 अक्तुबर 1935 को येवला की सभा में डाॅ बाबा साहब अंबेडकरजी ने दस हजार लोगों के सामने घोषणा की थी कि " मेरा जन्म भले हिंदु धर्म में हुआ होगा लेकिन मरने के पहले मैं हिंदु धर्म का त्याग अवश्य करूंगा !" और जिस संघ की स्थापना नागपुर में 1925 के दशहरे के दिन हुई थी ! उसी दशहरे के दिन लेकिन 31 साल के पस्चात 14 अक्तुबर 1956 के दिन, अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिंदु धर्म का त्याग किया ! और जिस बौद्ध धर्म को आठवीं शताब्दी के दौरान, शंकराचार्य और तत्कालीन हिंदु राजाओं ने मिलकर भारत से बाहर कर दिया था ! और बौद्ध विहार तथा स्तूपो को मंदिरों में परिवर्तित किया था ! (हिंदु धर्म कितना सहिष्णु है इसकी मिसाल ! और हजारों सालों से दलित और महीलाओ के साथ का व्यवहार भी!) उसी बौद्ध धर्म की दिक्षा नागपुर के ऐतिहासिक दिक्षाभूमी पर ली है !
ढाई हजार साल के बाद यह बगावत, बहुत ही ऐतिहासिक है ! और जिस मनुस्मृति का महिमामंडित करने का प्रयास संघ के लोग कर रहे हैं ! उसका इससे अच्छा जवाब और क्या हो सकता है ? क्योंकि समाज को उसी स्थिति में रहने के लिए संघ ने समरसता मंच की स्थापना जो की है ! जो जहाँ पर है, वहीं खुष रहे ! ठेविले अनंते तैसेची रहावे ! (मतलब भगवान ने जैसा पैदा किया वैसा ही रहना चाहिए !)
प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदीजी ने वाल्मीकि जयंतीपर कहा ना, "कि गंदगी साफ-सफाई करना भी अध्यात्मिक स्थिति है !" (तो यह अध्यात्मिक आनंद गुफाओं में जाने के बजाय साफ-सफाई के कामकाज से हमारे ऋषि - मुनियों ने क्यों नहीं उठाया ? क्यों सिर्फ वाल्मीकि समाज के हिस्से में डाल दिया ?)
जो वाल्मीकि समाज के लोग सदियों से करते आ रहे हैं ! इसी चालाकी का इस्तेमाल करते हुए, हजारों सालों से दलितों को" ठेविले अनंते तैसेची रहावे !" (मतलब भगवान ने रखा है तो वैसा ही रहना चाहिए !) इस चालाकी के खिलाफ पहली बार महात्मा ज्योतिबा फुले ने आवाज उठाने की कोशिश की है ! और उसी कडी में डाॅ बाबा साहब अंबेडकरजी ने ! और वह संघ के विचारों के थे ? यह कहना कितना बडा पाखंड है ? इससे डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी की धम्मक्रांती का अपमान कर रहे हैं !
इसकी मुख्य वजह 14 अप्रैल 1891 से पैदा हुए भिमराव को होश आया तब से, कदम - कदम पर जातीय उच्च - निच, जो संघ के सबसे प्रिय ग्रंथ मनुस्मृति के अनुसार, समाज को कर्मविपाक के सिद्धांत के अनुसार विभाजित करने के कारण, अपमान के प्रसंग स्कूल में पढ़ने के लिए गए तबसे ! तो अस्पृश्य जाती में पैदा होने के कारण, स्कूल के बाहर बैठकर पढाई ! स्कूल के पानी पीने के मटके से वह अपने हाथों पानी नहीं ले सकते थे ! कोई ऊंची जाती के विद्यार्थियों में से किसी के हाथों वह भी बगैर छुए ! हालांकि स्कूल के अन्य छात्रों की तुलना में भिमा बहुत ही प्रतिभाशाली था ! इसलिए शिक्षकों का लाडला था ! और इसीलिये एक अंबेडकर नाम के शिक्षक ने भीमराव सपकाळ नाम के जगह अंबेडकर नाम देकर उनका नया नामकरण किया !
लेकिन मराठी में जात नही जाती कहावत के अनुसार ! अंबेडकरजी को वह अस्पृश्य जाती के है ! यह बडोदा महाराज के नौकरी से लेकर, भारत सरकार के मंत्री पदपर जाने के बावजूद ! सतत याद दिलाया गया है ! उनके साथ छुआछूत के अनुभवों से लेकर, अपने जैसे इस हिंदु धर्म के अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के साथ तथाकथित उच्च वर्गों के लोगों का व्यवहार ! पिने के पानी से लेकर मंदिरों के अंदर भगवान के दर्शन लेने की मनाही ! और उसके खिलाफ महाड चवदार तळे सत्याग्रह ! (20 मार्च1927), और दुसरा 25 दिसंबर 11927 सत्याग्रह मनुस्मृति दहन महाड, और तीसरे नासिक के काला राम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह, आंदोलन ने तो भारत के इतिहास का सबसे लंबे समय का सत्याग्रह, नासिकके काला राम मंदिर के प्रवेश का ! उन्हें और उनके अनुयायियों को (2 मार्च 1930 - 35) पांच सालों से भी अधिक समय चले सत्याग्रह के, बावजूद हिंदुत्ववादीयो ने उन्हें, और उनके साथ के लोगों को मंदिर के अंदर प्रवेश नहीं करने दिया ! यह व्यवस्था सदियों से चली आ रही थी ! और आज भी कई जगहों पर बदस्तूर जारी है ! जिसे बाबा साहब ने बदलने की कोशिश की है ! तब हिंदुत्ववादीयो को डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के संघ के विचारों के होने का दावा कितना खोखला है !
और उसके बाद ही 13 अक्तूबर 1935 के दिन नासिक जिले के येवला तालुका की जगह पर, दस हजार लोगों की उपस्थिति में उन्होंने कहा कि" मै हिंदु धर्म में पैदा हुआ हूँ ! लेकिन मरने के पहले इसे त्याग अवश्य करूंगा !" यह विद्रोह भी संघ के विचारों का होने वाला प्रमाण पत्र के रूप में इतिहास में दर्ज करेंगे ?
और इक्कीस साल के पस्चात, 14 अक्तुबर 1956 के दिन अपने लाखों अनुयायियों के साथ ! नागपुर के दिक्षाभूमी पर हिंदु धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाने की वजह क्या है ? और उसके बावजूद वोट के लिए डॉक्टर बाबा साहब अंबेडकरजी हिंदु ही है ! यह कहकर उनके धर्मपरिवर्तन को अनदेखा कर के ! उन्हें अपमानित करने का काम संघ के लोग कर रहे हैं ! और वह जब महाड से लेकर नासिक के सत्याग्रह आंदोलन कर रहे थे ! तो उन्हें रोकने के लिए और उनके अनुयायियों के उपर आतंकवादी हमले करने वाले हाथ किनके थे ? क्या संघ का कोई भी व्यक्ति अंबेडकरजी के इन अभियानों में शामिल क्यों नहीं था ?
डॉ राम पुनियानी अपने पुस्तक में डाॅ बाबा साहब अंबेडकरजी पाकिस्तान के निर्माण होने के विरोध में थे ! इसलिए संघ के लोग उनपर संघ के विचारों का होने का दावा बिल्कुल उल्टा है ! क्योंकि पाकिस्तान बनने के बाद बचा हुआ भारत हिंदुराष्ट्र होने की स्वाभाविक परिणिति है ! यह आकलन के कारण बाबा साहब पाकिस्तान के बनने का विरोध कर रहे थे ! लेकिन उसे भी तोडमरोडकर अपने हिंदुत्ववादीयो के नजरिए में ढालने की हिमाकत सिर्फ संघ के लोग ही कर सकते ! एक तरफ हिंदु और मुस्लिम यह दो राष्ट्रों की खोज शतप्रतिशत हिंदुत्ववादीयो के दिलों-दिमाग कि उपज है ! बैरिस्टर जीना को 25-30 साल बाद यह मुद्दा मिल गया !
और आज पचहत्तर साल के बाद बाबा साहब अंबेडकरजी कितने सही थे ! यह बात सामने है ! भारत के आजादी के आंदोलन में भाग न लेने वाले ! (उल्टा अंग्रेजों की सेना में भर्ती करने का काम करने वाले और समाजवाद - सेक्युलरिज्म के घोर विरोधी ! लोगों को बगैर किसी जनमुद्दो के भारत के केंद्रीय सत्ता में आने वाले और कौन सा कारण है ? कि इस तरह के फासिस्ट विचारों वाले दल को 135 करोड जनसंख्या में 31% लोगों के मतदाताओं के कारण सत्ता में आने को मिला है !) अगर भारत अखंड रहा होता तो संघ शाखा के ड्रील करने के अलावा और कोई भी मौका नहीं मिला होता !
और इसलिए बटवारे के समय सिर्फ विधवाविलाप के जैसे छाती पीटने के अलावा ! कोई और कृती कार्यक्रम क्यों नहीं किया ? क्योंकि मन-ही-मन में भावी भारत में आज न कल हम हिंदुत्व के आधार पर सत्ता में आने वाले हैं ! यह अंदाज इन तथाकथित राष्ट्रवादीयो को हो गया था !
और इसीलिए 23 मार्च 1940 के लाहौर प्रस्ताव अलग मुस्लिम देश बनने का मुस्लिम लीग ने पारित करने के बाद भी ! 1942 के भारत छोडो आंदोलन के दौरान, कांग्रेस के नेता जेलों में बंद कर देने के कारण ! मुस्लिम लीग और हिंदु महासभा की सरकारों के (सिंध, बंगाल में) बनने के उदाहरण किस बात का प्रमाण है ? उल्टा शामा प्रसाद मुखर्जी ने फजलूर रहमान के मंत्रीमंडल में रहते हुए वायसराय को भारत छोडो आंदोलन को कैसे निपटा जा सकता है ? इसका दस मुद्दों को लिखकर दिया है ! और आज भारत के देशभक्ति के पेटेंट इनके अलावा और किसी के पास नहीं है !
गोडसे की गोली बटवारे के विरोधी गांधी के लिए थी ! और जीना के गले मिलकर, मिलीजुली सरकारों को बनाने वाले बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर कौन-सी अखंडता को अंजाम दे रहे थे ?
डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी और डॉ राम मनोहर लोहिया ने भीअपनी किताब ((The guilty men of the country) दक्षिण पंथी विचारों के दोनों तटों के लोगों को समान रूप से बटवारे के लिए जिम्मेदार ठहराया है !
लेकिन संघ के लोग अन्य लोगों को मुर्ख समझकर ही ! डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी के पाकिस्तान के विरोध को अपने हिसाब से तोडमरोडकर पेश करने की कोशिश, डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के 125 वे जयंती के अवसर पर पांचजन्य और अॉरगनायझर के स्पेशल इस्यू में कोई अशोक मोडक ने अपने सरनेम के जैसे ही तोडमरोडकर पेश किया है !
इस कीताब के पंद्रह नंबर के पन्ने पर डॉ राम पुनीयानी ने 15 फरवरी 2015 को एक और सफेद झूठ ! शिर्षक से लिखा है कि "आर एस एस ने उछाला " की अंबेडकरजी संघ की विचारधारा में यकीन करते थे ! " और यह दावा किसी और छोटे - मोटे आदमी ने नहीं किया ! बल्कि संघ के सरसंघचालक श्री. मोहन भागवत ने किया !
हालांकि मोहन भागवत ने उसी 2015 के समय मंदसौर मध्य प्रदेश के जगह पर रविंद्रनाथ टागौर को भी, हिंदु राष्ट्र के हिमायती बोलने की हिमाकत की है ! जिसका मैंने रविंद्रनाथ टागौर और राष्ट्र राज्य की संकल्पना इस शिर्षक से लेख लिखकर कहा है ! "कि हिंदु राष्ट्र तो बहुत दूर की बात है ! रविंद्रनाथ टागौर विश्व के उन गिने चुने लोगों में से एक थे ! जो राष्ट्र-राज्य की संकल्पना के घोर विरोधी रहे हैं !
संघ की दिक्कत है कि ! उनके पास ऐसे राष्ट्रीय स्तर के कोई नेता नहीं हैं ! जिन्हें वह अपने कह सकते हो ! और संघ की संकीर्ण सोच के कारण जिसे अंग्रेजी में (Regimentetion) कहा करते हैं ! कभी भी राष्ट्रीय स्तर तो छोडिए, एक स्थानीय स्तर का भी संतुलित विचार विमर्श करने की योग्यता रखता हो ! ऐसा एक स्वयंसेवक भी तैयार नहीं कर सकते !(तथाकथित मिडिया में संघ के लोग कैसी बहस करते हैं ? यह उदाहरण पर्याप्त है!) क्योंकि संघ हिटलर - मुसोलीनी के नाजीवादी विचारों के आधार पर बनाया गया है ! इसलिए उन्होेंने अंबेडकरजी से लेकर रविंद्रनाथ टागौर, सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे लोगों को हड़पने की मुहिम शुरू है ! जो कि एक व्यर्थ प्रयास है !
डॉ राम पुनियानी ने इस किताब में सबसे महत्वपूर्ण बात को उजागर किया है ! कि इस सबके बावजूद आज दलितों के नेता, और कुछ हद तक दलित ओबीसी और आदिवासियों में भी ! संघ ने गत कुछ दिनों से उन्हें हिंदु होने का एहसास दिलाने में, कुछ हदतक कामयाबी हासिल की है ! और उसी कारण दंगों में सबसे अधिक हरावल दस्ते के तौर पर पिछडी जाती और आदिवासियों ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया है !
यह सभी दलितों आदिवासियों के साथ काम करने वाले साथियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है ! विस्थापन, जमीन के पट्टे दिलाने के आंदोलन में शामिल होने वाले, हमारे अपने ही संघटना के रहते हुए गुजरात, ओरिसा, झारखंड, छत्तीसगड या मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के सभी आदिवासी जिले ले लिजिए ! किस तरह से उन्हें शबरी के वंशज बोलकर, भावनात्मक स्तर पर संघ के प्रचार-प्रसार के साथ लाखों की संख्या में आदिवासी शबरी कुंभ मेले में गुजरात के आदिवासी जिले, डांग - अहवा के इलाकों में शामिल हुए थे !(2004) और मध्य प्रदेश ओरिसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ के ख्रिश्चन मिशनरीयो के उपर हमले करने वाले कौन लोग हैं ?
और वर्तमान समय में भारत के सभी क्षेत्रों में रामनवमी और हनुमानजयंती के दौरान हाथों में लंबे - लंबे बास के डंडे, और भगवा रंग के झंडे के साथ ! कौन से समाज के लोग शामिल थे ? भागलपुर और गुजरात के दंगों के दौरान भी कौन लोग थे ? यह भी दलित - पिछड़ा वर्ग के लिए काम कर रहे सभी साथियों के लिए सोचने की बात है !
डॉ राम पुनियानी के इस किताब के माध्यम से संघ की कुटील कारवाई का पर्दाफाश करने की कोशिश की है ! लेकिन उन्होंने बीच - बीचमे महात्मा गाँधी जी के अस्पृश्यता के बारे में कुछ हल्के स्वर में ही सही लेकिन टिप्पणी करते हुए कहा " कि पूना पॅक्ट और अस्पृश्यता के सवाल पर गांधी जी की भुमिका ठीक नहीं थी !" मेरी इस मुद्दे पर पूरी तरह से राय है कि डॉ राम पुनीयानी भी इस विषय पर पॉप्युलर नोशन के व्हीक्टिम है ! जैसी हमारी मित्र अरूंधति राॅय ने तो आजकल गांधी जी के खिलाफ बदनामी की मुहिम चला रखी है !
और हमारे इन सभी मित्रों को इतना भी काॅमनसेन्स नही है ? कि जीन लोगों ने महात्मा गाँधी जी को एक षडयंत्र के तहत हत्या की ! और आज वह उस हत्या को जायज ठहराने की ! और हत्या करने वाले को महान ठहराने की कोशिश में लगे हुए हैं ! यह देखकर कर भी फासीस्ट या सांप्रदायिक लोगों को बल मिलेगा इस तरह की हरकतों से बाज क्यो नही आ रहे हैं ? और महात्मा गांधी की बदनामी की मुहिम से आखिर क्या हासिल होगा ? इतना भर सोचने की विनती करूंगा !
महात्मा गाँधी जी के आत्मकथा में बचपन में वह और उनके परिवार की अस्पृश्यता के बारे में कैसी-कैसी मान्यता थी ! (जो भारत के सभी गैर अस्पृश्य समाज में पैदा होने वाले, लोगों की समस्या है ! और मेरी खुद की भी राष्ट्र सेवा दल में शामिल होने के पहले थी !) यह लिखने के कारण काफी लोगों को 30 जनवरी 1948 के दिन गोडसे की गोली से मरने के पहले क्षणों तक गांधी अस्पृश्यता के हिमायत करने वाले थे ! ऐसा लगता होगा ! तो उन्होंने खुद ही कहा " है कि कल की मेरी बात से आज मैने क्या कहा यही सही माना जाय ! "
तो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में बीसवीं सदी के शुरू में ही जो कुछ किया ! (इस पर शाम बेनेगल की मोहन से महात्मा फिल्म पर्याप्त है!) उनके जीवन के शुरू के बीस साल छोड़ दें तो साठ साल के सार्वजनिक जीवन में अस्पृश्यता को लेकर अपनी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के साथ भारत में जितने भी आश्रम बनाये और उनमें अस्पृश्य लोगों को शामिल करने के लिए क्या - क्या आलोचना और विरोध सहते हुए भी ! अपने अस्पृश्यता निवारण के कार्यक्रम को जारी रखा ! और मार्क्सवादी विचारों के अनुसार काम की श्रेणी यह भारत की जाती की सबसे बड़ी चुनौती है ! जिसमें डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने कहा कि यह सिर्फ काम की श्रेणी नही है आदमी - आदमियों को बाटने भी की श्रेणी है !
तो महात्मा गाँधी जी के सभी आश्रमो के अंदर संडास सफाई से लेकर चमड़े के काम करने के लिए, ब्राम्हण और अन्य सवर्ण जाती के लोगों को लेकर गांधी जी के प्रयोग किस बात के उदाहरण है ? अगर भारतीय जातीव्यवस्था कर्म के उपर आधारित है ! तो उसे बदलने का इतना मुलभूत काम करने वाले कोई और उदाहरण है ?
उन्होंने सजातीय शादी-ब्याह में मै श्यामिल नही होऊंगा यह कसम किस लिए खाई थी ? और उसे मरते दम तक निभाया था तो ! इस बहाने डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी के दुसरे ब्याह के पहले ! बाबा साहब शादी का कार्ड बाटने के समय गांधी जी के सचिव प्यारेलाल नैयर के साथ की मुलाकात में बोले "कि आज महात्मा गाँधी जी अगर जीवित होते तो मेरी शादी में अवश्य शामिल हुए होते !" तो प्यारेलालजीने पुछा की वह कैसे तो डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने कहा कि मेरी शादी दो अलग - अलग जाति के लोगों की शादी है ! इसलिए मैं यह दावा कर रहा हूँ !
तो अस्पृश्यता के संदर्भ में डाॅ बाबा साहब अंबेडकर कलेक्टेड खंड 20 के पन्ना नंबर 72 पर बाबा साहब के प्रासंगीक विचार बहिष्कृत भारत ता. 15 मार्च 1929 के अंक में प्रकाशित किया गया ! महात्मा गाँधी जी के रंगून की सभा के भाषण का कुछ अंश प्रकाशित किया है ! " वर्तमान दुनिया में अलग अलग धर्मों का अपने - अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जो स्पर्धा जारी है, उसमें हिंदु धर्म नष्ट हो जाना चाहिए या अस्पृश्यता का समुल निर्मुलन होना चाहिए !" (In the race of life in which all the religion's of the World are today engaged, I think, either Hinduism has got to perish or Untouchability has to be routed out completely, so that the fundamental fact of Advaita Hinduism may be realised in practical life) यह वृत्तांत पूना पॅक्ट के तीन साल पहले का है !
अब पूना पॅक्ट के संबंध में डाॅ. बाबा साहब अंबेडकरजी ने खुद ही पूना पॅक्ट के उपर हस्ताक्षर करने के बाद हुई ! मुंबई की जनसभा कहा कि " मेरे और गांधी जी के बीच में का साम्य देखकर मै खुद हैरानी में हूँ ! शुरू में हमारे बीच मतभेद थे ; लेकिन जब मतभेदों को, और महत्वपूर्ण मुद्दों को मै उनके सामने रख रहा था, तब - तब गांधी जी मेरे ही तरफसे बोलते हुए दिखाई दिए ! मुझे एक बडे भंवर से बाहर निकालने के लिए मदद करने वाले महात्माजी का मै कृतज्ञ हूँ ! यही भूमिका उन्होंने राऊंड टेबल कांफ्रेंस में क्यों नहीं ली ? इस बात का मुझे रह - रहकर अचरज लगता है ! " यह खुद डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के पूना पॅक्ट के उपर हस्ताक्षर करने के दिन की सभा की बात है !
जो डी जी तेंदुलकर के महात्मा खंड तिसरा के Cry For Justice नाम के पन्ने नंबर 166 से 189 कुल मिलाकर तेईस पन्नै, सिर्फ पूना पॅक्ट के उपर ही है ! और Epic Fast नाम की प्यारेलाल नैयर की किताब जो सिर्फ पूना पॅक्ट के 18 सितंबर 1932 से 29 सितंबर तक के ग्यारह दीन के, क्रोनालाजीकल प्रसंगों का क्षण - क्षण के रिपोर्ट के शक्ल में लिखी गई किताब के आधार पर मैंने लिखा है ! नवजीवन प्रकाशन !
महात्मा गाँधी जी के राऊंड टेबल कांफ्रेंस में जाती या धर्म के आधार पर, अलग अलग मतदातासंघो को विरोध करने के पिछे उनकी दृष्टि अंग्रेजों द्वारा जो प्रस्ताव था ! उसमें मुसलमान, ख्रिश्चन,सिखों, दलित तथा अंग्लोइंडियनो को अलग अलग मतदातासंघो का प्रावधान था ! (मतलब बाँटो और राज करो !)
और एक बात और भी महत्वपूर्ण है ! वह कम्युनल आवार्ड जो 1906 में प्रिंस आगाखान के साथ अंग्रेजो ने गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे ! उसी दौरान कर लिया था ! हालांकि पहले बटवारे की कोशिश 1905 बंगाल में फेल होने के बाद ! मुस्लिम समुदाय को भारत की आजादी की लड़ाई से दूर रखने के लिये ! कम्यूनल आवार्ड का पासा फेका गया था ! और लोकमान्य टिळक और बैरिस्टर जीना के साथ 1916 को लखनऊ पॅक्ट के हस्ताक्षर के समय गांधी भले भारत में आ चुके थे ! लेकिन तब उनकी हैसियत एक सामान्य कार्यकर्ता की थी ! अन्यथा सांप्रदायिक आधार पर इस तरह के किसी भी प्रकार के सुझावों को उन्होंने मान्यता देने का कोई सवाल ही नहीं था !
तब उसे प्रिंस आगाखान के साथ डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी की भी मान्यता दी थी ! उस समय महात्मा गाँधी जी ने विरोध करते हुए कहा कि " जिन्हें भारतीय समाजव्यवस्था की कल्पना नही है ! उनकी तरफसे यह विभक्तीकरण चल रहा है ! दुसरी भाषा में बाटो और राज करो ! मतलब अंग्रेज जाने के बाद और कितने पाकिस्तान बनेंगे ? इसकी नींव डालने का काम हो रहा था ! जिसे सिर्फ गांधी जी ने समझ लिया था ! और डंके की चोट पर विरोध किया है !
और इसीको कोई अस्पृश्य विरोधी तो किसी को अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के विरोधी लगते होंगे ! तो मुझे उनके बारे में सहानुभूति के साथ कहना है "कि यह भारत के विभाजन के बीज बोने की कांफ्रेंस थी" भले उसे गोल टेबल की बैठक जैसा गोलमाल नाम दिया गया था ! अंग्रेजो ने अपने साम्राज्य की समाप्ति करते हुए ! प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, कितने नये-नये देशों को तोड - तोडकर नये - नये देशों का तथाकथित निर्माण कार्य किया ? आज फिलिस्तीन इस्राइल-फिलीस्तीन, इसका सबसे भयंकर उदाहरण के लिए पर्याप्त नहीं है ?
दलितों को विभक्त मतदातासंघ देने से हर गांव, देहातों में भी बटवारा हो जायेगा ! और मुसलमानों के जैसा दलितों को भी शक की निगाह से देखने की शुरुआत हुई होती ! उस कारण संपूर्ण समाज में बटवारे के कारण बिखराव, कमजोरी और सडांध से भर जायेगा !
जो सावधानी का संकेत गांधी जी ने 1932 के राऊंड टेबल कांफ्रेंस में लंदन में दिया था ! हर गांव में एक और दूरीयां बनाने की योजना बनाई गई थी ! जिसे सिर्फ महात्मा गाँधी जी ने समझ लिया था ! और इसी कारण उन्होंने कहा कि मै अनशन कर के मर जाने के लिए तैयार हूँ ! लेकिन इस योजना को कभी भी स्वीकार नहीं करूंगा ! यह घोषणा लंदन में ही करके भारत वापस आये थे !
उसका प्रमाण आज भारत में रह रहे मुसलमानों को भुगतना पड़ रहा है ! यह जो आज हिंदुत्ववादीयो को सफल बनाने के लिए सबसे ज्यादा खंडीत भारत का मुद्दा काम आ रहा हैं ! और वहीं अलगाव अस्पृश्य समाज के लोगों के हिस्से में आया होता ! तो ! अभी तो सिर्फ उचनिच के कारण सताये जा रहे हैं ! उसमें राष्ट्रद्रोह का ठप्पा लग गया होता तो ?
यह चिंता गांधी जी को अपने दक्षिण अफ्रीका के तेईस साल के अनुभव के आधार पर ! भारत के दलितों के बारे में भी वही मां की तरह चिंता के कारण ! उन्होंने अपने जीवन को झोंक कर पूना के अनशन पर बैठे ! और मॅक्डोनाल्ड के पॅक्ट में तो सिर्फ 97 ही सीटें मिलने वाली थी ! महात्मा गाँधी जी के अनशन के बाद पूना पॅक्ट में 147 ! मतलब गिनकर पचास सिटो का अतिरिक्त फायदा अस्पृश्य समाज को हुआ है ! उसमें कौन सा नुकसानदायक पॅक्ट दिखाई दे रहा है ?
इस मुद्दे पर मेरी पुणे में रहने वाले एक दलित विचारक के साथ के वार्तालाप में उन्होंने कहा कि "सुरेशभाई जब कांशिरामजी पूणे में डिफेंस में नौकरी करते थे ! तब वह अक्सर मुझे मिलने के लिए आते रहते थे ! तो एक दिन उन्होंने कहा कि "आज मुझे मेरी राजनीति के लिए एक शत्रु मील गया ! तो मैंने पुछा कौन ? तो काशिरामजी ने कहा कि गांधी ! मैं बोला कि यह कैसे संभव है ? तो वह बोले कि पूना पॅक्ट की बात को लेकर मै उन्हें शत्रु ठहराने की कोशिश करूंगा ! तो मैंने कहा कि आप बहुत ही गैरजिम्मेदाराना बात कर रहे हो ! पूना पॅक्ट से तो दलितों को पचास सिटो का फायदा हुआ है ! नुकसान नहीं हुआ है !
लेकिन काशिरामजी ने और उनकी प्रिय शिष्या बहनजी आज किनके साथ खड़ी है ? यह वास्तव देखने के बाद कुछ और कहने को रहा है ? तो डॉ राम पुनीयानीजी, गांधी जी ने अपनी आत्मकथा का नाम ही है ! (सत्यके प्रयोग) रखा है ! तो उन्होंने अपने बचपन से लेकर सिर्फ जवान होने तक लिखा है ! जिसमें चोरी से लेकर अपने लैंगिकता के भी बारे में साफ - साफ शब्दों में लिखा है !
अमूमन भारत के लोगों की आत्मकथा में आत्मगौरव, और कुछ - कुछ लोगों की आत्मकथा में झूठ का भी अंशों को मैंने देखा है ! उस तुलना में महात्मा गाँधी जी के आत्मकथा युरोपीय लोगों के जैसा खुली किताब है ! और उस कारण से उनके उपर टिका - टिप्पणी करने वाले लोगों के लिए काफी मटेरियल मिला है ! और उनके खिलाफ लिखने - बोलने के लिए भी ! आप तो बहुत संतुलन बनाए रखने वाले लोगों में से एक है ! इसलिए आप को मैंने एक मित्र के नाते महात्मा गाँधी जी के बारे में आपको सावधानी के लिए इतना कुछ लिखा है ! कृपया अन्यथा मत लिजिए !
पचास पन्नौ में जो प्रवाह होना चाहिए था उसका अभाव है ! बिखरे - बिखरे और कुछ मुद्दों को बार बार देने की आवश्यकता नहीं थी ! लेकिन इन सब कमियों के बावजूद किताब का ऐतिहासिक महत्व कम नहीं है ! डॉ राम पुनियानी गत तीस साल से अधिक समय से, सांप्रदायिकता के उपर दर्जनों किताबों को लिख चुके हैं ! और उससे ज्यादा संख्या में शिबीर संमेलन तथा वेबीनार के माध्यम से लगातार प्रबोधन करने की कोशिश कर रहे हैं ! शायद भारत में उनके जैसा इस विषय पर लगातार नजर रखे हुए लिखने - बोलने वाले बहुत ही कम लोग हैं !
डॉ सुरेश खैरनार
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
भाजपा के सुब्रमण्यम स्वामीने संविधान के बारें में लिखा की उसमे हिंदु राष्ट्र को सपोर्ट है। उसका प्रतिवाद करना चाहिए। डॉ आंबेडकरजीने संस्कृत को राश्ट्रभाषा करने को सपोर्ट किया ऐसा बोला है। भारत को युनिटरी देश रहना चाहिए और फेडरल व्यवस्था को उनका विरोध था। RSS भी युनिटरी स्टेट का हिमायती है। इस बारे में स्पष्टीकरण होना चाहिए।
एक टिप्पणी भेजें