रविवार, 17 दिसंबर 2023

इस जुमले ने राजनीति बदल दी - "सवाल आस्था का है ! कानून का नही !" - डाँ सुरेश खैरनार

भारतीय जनतंत्र के सामने की चुनौतियां ! साथियों कल 15 दिसंबर को दो प्रख्यात गांधीजी और आचार्य विनोबा भावे के अनुयायी एक आचार्य दादा धर्माधिकारी और दुसरे श्री. आर के पाटील की स्मृति व्याख्यानमाला में, मैंने "वर्तमान संसदीय जनतंत्र के सामने की चुनौतियों" के उपर एक घंटे से अधिक समय तक रोशनी डालने की कोशिश की है ! डॉ. नरेंद्र दाभोलकर के वरिष्ठ बंधू श्री. दत्तप्रसाद दाभोळकरजीने उसे रेकॉर्ड करने की विनती की थी ! तो आवाज इंडिया टीवी चैनल ने वह भाषण पूरा-पूरा रेकॉर्ड किया है ! सिर्फ वे लोग एडिटिंग कर रहे हैं, तो शायद आज श्याम तक लिंक मिल जायेगी ! तो मै फेसबुक पर पोस्ट करने की कोशिश करुंगा ! संक्षेप में मैंने क्या कहा थोडा लिखने की कोशिश कर रहा हूँ ! "मुख्य रूप से मैंने कहाँ की 1985 - 86 के समय इंदौर की एक उम्रदराज तलाकशुदा औरत जिसका नाम शाहबानो था ! उसे हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ राहत दिलाने के लिए एक फैसला दिया था ! वह न्यायाधीश वर्तमान मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड के पिताजी थे ! लेकिन उस फैसले के खिलाफ भारत के कठमुल्ला मुसलमानों ने काफी हाय-तौबा मचाने की वजह से, और "सवाल आस्था का है ! कानून का नही !" यह जुमला उसी आंदोलन से निकला ! और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा उनकी राजनीतिक इकाई भारतीय जनता पार्टी तथा विश्व हिंदू परिषद जैसे घोर हिंदूत्ववादी सांप्रदायिक संघठनोने उसे अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए ( जिन्हें 1984 के चुनाव में 7-7% वोट मिले थे ! और लोकसभा में सिर्फ दो सदस्य चुनकर आए थे ! ) लपक लिया ! और 'भारतीय राष्ट्र 'की भौगोलिक परिभाषा की जगह 'हिंदू राष्ट्र ' और पूर्व अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने लाया हुआ 'गांधीवादी समाजवाद' का त्याग करते हुए ! गोलवलकर - सावरकर के उग्र हिंदूत्ववादी, विचारों की पुनर्स्थापना करने की शुरूआत की गई ! पहले 1978 में जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा था कि "वह सांस्कृतिक संघटना है !" अब उन्होंने एक प्रतिज्ञा पत्र के द्वारा घोषित किया कि "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यक्रम राजनीतिक कार्यक्रमों के समान रहेगा ! और संघ के स्वयंसेवक राजनीतिक दलों में शामिल होते हुए, राज्य विधानसभा तथा लोकसभा में सदस्यों के रूप में शामिल होने की शुरुआत खुले रूप से की गई !" 1979 के बाद उन्होंने खुलकर हिंदू मतों के आधार पर अपनी मतपेटियों को बनाने की शुरुआत की ! और तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने कहा कि " अब हिंदूओ ने अपने आपको खुलकर हिंदू के रूप में घोषित करते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए ! " और यही से भारतीय संसदीय राजनीति धर्म के ईद - गिर्द घुमने की शुरुआत हुई हैं ! और यही वह साल है भागलपुर दंगे का भी ! जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री. राजीव गांधी ने उस फैसले को संसद में कानून में बदलाव करके बदल दिया ! और गत तीन दशकों से बंद बाबरी मस्जिद में (1949 से ) लगाया हुआ ताले को खोलने के लिए फैजाबाद कोर्ट को ताला खोलने का फैसला लेने के लिए, जोर डालने की गलती की ! इस घटनाक्रम का सब से बड़ा फायदा, कठमुल्ला हिंदूत्ववादी दल भाजपा जो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बहुत जद्दोजहद कर रहा था ! जिसके तत्कालीन लोकसभा में सिर्फ सांसद सदस्य थे ! उसे भारतीय राजनीति में अपनी पैठ बनाने के लिए मैदान उपलब्ध कराने के लिए कांग्रेस ने अपने ढुलमुल रवैया भी एक कारक तत्व है ! तो उनका मातृसंघठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, और उसकी दुसरी शाखा विश्व हिंदू परिषदने मिलकर, बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि और अन्य हिंदू धार्मिक स्थलों कि लिस्ट बनाकर, उनके इर्द-गिर्द विवाद खड़ा करने का प्रयास करते हुए ! आगे की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का सुत्रपात किया ! और उसी समय दूरदर्शन पर रामानंद सागर का 'रामायण' नाम से एक धारावाहिक चल रहा था ! जो काफी लोकप्रिय हो गया था ! उसका भी उपयोग अपने रामजन्मभूमि आंदोलन के लिए बखूबी किया है ! और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने आग में घी डालने में कोई कोर-कसर छोडी नही ! तो पालनपुर में, जून 1989 में भाजपा ने बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि विवाद को लेकर, रथयात्राओ की मालिका निकालने का फैसला लिया ! तब लोकसभा में इनके सदस्यों की संख्या सिर्फ में दो थी ! और उसके बाद आजादी के बाद पहली बार, भागलपुर के जैसे भिषण दंगे से लेकर, बाबरी मस्जिद के विध्वंस ( 6 दिसंबर 1992 ) तथा देश के विभिन्न हिस्सों में लगातार दंगे, और तथाकथित आतंकवाद की घटनाएं की गई ! और भारत के इतिहास में प्रथम बार, किसी राज्य के द्वारा प्रायोजित दंगा करने का प्रयास, 27 फरवरी 2002 के दिन, गुजरात में वर्तमान समय के प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी जब 2001 के अक्तुबर के महिने में, तात्कालिक व्यवस्था के तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री बनाए गए थे ! और 27 फरवरी 2002 के दिन गोधरा कांड होता है ! और प्रवासीयो के अधजली शवों के गोधरा में चल रहे पोस्टमार्टम को बीच में ही रोक कर जिस बात का गोधरा कि कलेक्टर जयंती रवि ने आपत्ति जताई थी लेकिन उनके मातहत तहसीलदार पदाधिकारी की मदद से औपचारिकता पूरी करने के बाद गुजरात विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष को 56 अधजली लाशों को सौंपा जाने का उद्देश्य क्या था ? और उस आदमी ने उन लाशों को लेकर अहमदाबाद में, 28 फरवरी को विश्व हिंदू परिषद के द्वारा बंद और शवों का जुलूस निकाल कर ! सांप्रदायिक हिंसा करने के लिए लोगों को उकसा कर, हिंसा तथा तोडफोड शुरू करने का नियोजनबद्ध आयोजन किया गया था ! और उसमे दो हजार से अधिक लोगों को मारकर ! जिसमें औरतों के साथ बलात्कार, यह भारतीय दंगो के इतिहास में आजादी के बाद पहली बार किया गया है ! और सबसे हैरानी की बात ! यहीं मुख्यमंत्री 28 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर, उन्हें सेना भेजने का अनुरोध करते हैं ! और 28 फरवरी की श्याम से ही, जोधपुर बेस से साठ हवाई जहाज भरकर लेफ्टिनेंट जनरल झमिरुद्दीन शाह के नेतृत्व में तीन हजार सेना के जवान अहमदाबाद एअरपोर्ट पर उतरने के बावजूद ! उन्हें लॉजिस्टिक्स देने की जिम्मेदारी गुजरात सरकार की होने के बावजूद ! रात के दो बज रहे, लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल झमिरुद्दीन के फोन को कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति जवाब नहीं दे रहा था ! तो रात के दो बजे, थकहारकर वे अपने साथ लाई हुई जिप्सी, तथा लोकल गाइड को लेकर, गांधीनगर के मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचते हैं ! तो देखा कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी और तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री. जॉर्ज फर्नाडिस दोनों डायनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे ! तो लेफ्टिनेंट जनरल को देखते ही जॉर्ज फर्नाडिस ने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा कि "जनरल आप बहुत सही समय पर आ पहुंचे हैं ! कृपया गुजरात को बचाए !" तो लेफ्टिनेंट जनरल झमिरुद्दीन शाह ने कहा कि "हां सर मैने अपने विमान से निचे देखा है, कि पूरा गुजरात जल रहा है ! हम तीन हजार सैनिक है! ! लेकिन अहमदाबाद एअरपोर्ट पर इतनी देर से आने के बावजूद हमें लॉजिस्टिक्स नही दिया जा रहा है! कृपया आप मुख्यमंत्रीजी को कहिए !" तो जॉर्ज फर्नाडिस ने नरेंद्र मोदी को कहा कि" नरेंद्रभाई इन्हें जो भी कुछ चाहिए तुरंत दे दिजीए !" लेकिन उसके बावजूद एक मार्च का पूरा दिन चला गया ! हालांकि उस दिन सुबह जॉर्ज फर्नाडिस खुद एअरपोर्ट पर आकर तीन हजार जवानों को लॉ एंड ऑर्डर को सम्हालने के लिए प्रेरित करने वाले भाषण देकर गए ! लेकिन उस दिन भी तीन हजार सेना के जवान, एअरपोर्ट पर ही पडे रहे ! दो मार्च को बडी मुश्किल से लॉजिस्टिक्स दी गई ! लेकिन सबसे महत्वपूर्ण समय बर्बाद हुआ ! और गुजरात के मुसलमानों को बर्बाद करने के लिए कौन जिम्मेदार हैं ? जबकि खुद इस देश के रक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री को सेना को सहयोग करने के लिए बोल रहा है ! और उसके बावजूद मुख्यमंत्री ने इतने घंटे तक सेना को लॉजिस्टिक्स नहीं देना ! इसका क्या मतलब है ? नरेंद्र मोदी को भले ही तथाकथित जांच आयोगों ने और एस आईटी ने क्लिन चिट दे दी होगी ! लेकिन गोधरा स्टेशन जाकर 56 अधजली बॉडिज को विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष को देकर, 28 फरवरी को अहमदाबाद के सडकों पर जुलुस निकालने की इजाजत कौन दे रहा था ? और उधर तीन हजार सेना के जवान लॉजिस्टिक्स के इंतजार में निठल्ले बैठाकर रखने के लिए, कौन-से मुख्यमंत्री के राज्य की कानून व्यवस्था बनाए रखने की योजना में शामिल होता है ? पूर्व पुलिस अधिकारी संजिव भट्ट, पूर्व डीजीपी गुजरात आर. बी. श्रीकुमार और हरेन पंड्या ने 27 फरवरी की श्माम को गांधीनगर की कैबिनेट मिटिंग में नरेंद्र मोदी ने कहा कि "कल गुजरात में जो भी कुछ होगा ! उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं करेगा ! जो भी कुछ होगा वह होने देना है ! " यह बात हरेन पंड्या ने 'क्राइम अगेंस्ट ह्यूमैनिटी' इन्क्वायरी रिपोर्ट में शपथ लेकर कही है ! और उन्हें जस्टिस कृष्ण अय्यर ने आगाह भी किया कि "आप यह जो कुछ बोल रहे हैं ! इसका परिणाम क्या होगा आपको मालूम है ?" तो हरेन पंड्या ने कहा कि " ज्यादा से ज्यादा मेरी हत्या हो सकती है ! लेकिन कैबिनेट में नरेंद्र मोदी ने कलसे गुजरात में दंगा होने देना है ! यह बात साफ-साफ शब्दों में कहा है ! यह बात मै बोले बगैर रह नहीं सकता !" यही बात संजीव भट्ट और आर. बी. श्रीकुमार ने भी कही है ! एक मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री बनने के समय शपथ लेता है कि "मै नरेंद्र दामोदरदास मोदी आजसे गुजरात का मुख्यमंत्री बनते हुए यह शपथ लेता हूँ कि ! कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए, मै इस राज्य में रहने वाले हर नागरिक का बगेर कोई भेदभाव किए, उनके जानमाल की रक्षा करने का आश्वासन देता हूँ ! " और यह शपथ नरेंद्र मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्री के नाते तीन बार ! और भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद दो बार यही शपथ ली है ! और 15 अगस्त 2014 के दिन लाल किले के भाषण में मेरे देश की 135 करोड की 'टिम इंडिया !' इसका मतलब 135 करोड़ की टीम इंडिया के अंदर भारत का हर जाति संप्रदाय तथा लिंग के लोगों का समावेश होता है ! लेकिन सत्ताधारी बनने के तुरंत बाद गोमाता के नाम पर जुनैद, अखलाक से लेकर सौ से अधिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मॉबलिंचिग ! जो भारत के लिए एक नया अध्याय शुरू किया गया ! क्या यह 135 करोड़ टीम इंडिया के अंदर नही थे ! इसके अलावा अल्पसंख्यक आयोग नही बनाना, राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक नहीं बुलाना, तथा नागरिकता जैसे घोर सांप्रदायिक विधेयक को पारित करने की क्या आवश्यकता थी ? डिटेंशन सेंटर जो मैंने सितंबर के अंत में 2019 के समय आसाम मे अपनी आंखों से देखा हूँ ! फिर कोरोना मे तबलिगि जमात के निजामुद्दीन स्थित मुख्यालय को लेकर जो बदनामी की मुहिम चलाई गई वह किसलिए ? दिल्ली में फरवरी 2019 मे हुए दंगों के लिए कौन जिम्मेदार है ? एन. आर. सी. के खिलाफ चले आंदोलनकारियों को खुलेआम "गोली मारो सालों को" बोलने वाले मंत्री महोदय पर क्या कारवाई हुई ? और हमारे देश का अन्नदाता अपने फसलों को उचित मूल्य मिलने को लेकर आंदोलन कर रहे थे ! और उन्हें खलिस्तानी से लेकर पाकिस्तान का समर्थन और देशद्रोही करार देने वाले कौन थे ? और दो तीन डिग्री सेल्सियस टेंपरेचर के रहते हुए ! उनके उपर बर्फीले पानी की बौछारें, तथा सडकों को खोदकर किले ठोकने की कृतियां करने वाला खुराफाती दिमाग किसका था ? मै खुद आंदोलनों में रहा हूँ ! लेकिन यह करतुत और किसी जगह पर नहीं देखी गयी ! संसद में किसानो के खिलाफ के बिलों को तथाकथित आवाजी मतदान से पारित करने का कारनामा ! भारतीय संसदीय इतिहास का सबसे काला अध्याय माना जायेगा ! और आप यह करतूत करने वाले, राज्यसभा के उपाध्यक्ष की पाखंड से लबरेज चिठ्ठी को अपने ट्विटर हैंडल पर, पोस्ट करना, कौनसी संसदीय परंपरा का पालन करने का उदाहरण माना जायेगा ? सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बच्चों के साथ जेएनयू से लेकर, जामिया मिलिया, हैदराबाद, श्रीनगर, चैन्नई के आई आई टी तथा कम-अधिक - प्रमाण में भारत के सभी शिक्षा संस्थानों में एबीवीपी के गुंडों के द्वारा जारी युद्ध किस बात का परिचय दे रहा है ? विश्व भारती जैसे आंतरराष्ट्रीय स्तर की जगह एक नोबल पुरस्कार से सम्मानित तथा भारत रत्न से सम्मानित किया गया, नब्बे साल उम्र के अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को अपमानित करने के लिए, विशेष रूप से वहाँ के कुलपति को खुली छूट देने वाली शख्सियत कौन है ? कुछ बच्चियों को, सिर्फ सोशल मीडिया पर, सरकार की आलोचना करने की, पोस्ट डालने पर, गिरफ्तार करने का फैसला किसके इशारे पर लिया गया था ? और सबसे महत्वपूर्ण बात भारत के औद्योगिक क्षेत्र में प्रायवेट मास्टर्स को सौपना कौनसा राष्ट्रभक्ति के व्याख्या में आता है ? उसके साथ रक्षा उत्पादन, हवाई अड्डे , जहाजरानी, रेल तथा देश के जल जंगल जमीन पर्यावरण संरक्षण और आदिवासी समाज की सुरक्षा के लिए बनाया गया कानून का उल्लंघन करते हुए ! हमारे देश की सभी नैसर्गिक संपदाओं को उद्योगपतियों को सौपना ! कौन-से देश भक्ति की व्याख्या में आता है ? एक तरफ डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर के स्मारक बनाने का काम ! और दुसरी तरफ देश में हर कुछ मिनट में एक दलित महिला की आबरू से खिलवाड़ करना ! कौन सा दलितों को न्याय देने का तरीका है ! हजारों किलोमीटर चीन भारत की जमीन हडपते हूए ! रेल और सड़क निर्माण कर रहा है ! और आप चीनी राष्ट्राध्यक्ष के साथ साबरमती आश्रम में साबरमती नदी के किनारे झूला झुलने का क्या मतलब है ? भारत में आदिवासी समस्या या दलित समस्याओं पर, पचास साल से अधिक समय से, काम करने वाले लोगों को, गिरफ्तार कर के जेलों में बंद कर रहे हो ! यह कौन-से राष्ट्रीयता का लक्षण है ? आजसे सौ वर्ष पहले हिटलर ने जर्मनी में बिल्कुल यही सब करतूतों को अंजाम दिया था ! लेकिन बाद में उसका क्या अंजाम हुआ ? इतना इतिहास संघ की शाखा में सुना होगा ! एहसान जाफरी या नरोदा पटिया जैसे जधन्य कांड होने देना ! कौन सी कानून व्यवस्था में आता है ? लेकिन इसे लेकर ही 44 इंची बनियन पहनने वाले नरेंद्र मोदी की छाती रातोंरात बारह इंच बढकर 56 इंच की होकर ! 'हिंदूहृदयसम्राट' के रूप में उभरकर गुजरात के मुख्यमंत्री पदपर तीन बार ! और फिर 2014 के चुनाव से दो बार ! भारत के प्रधानमंत्री बनने का मेरीट क्या सिर्फ दंगो की राजनीति करके भारत के समस्त अल्पसंख्यक समुदाय को असुरक्षित महसूस करने वाली छप्पन इंच छाती यही इस बात का परिचायक है ? 100 साल पहले जर्मनी में भी एक ऐसा ही अल्पसंख्यक समुदाय के कत्लेआम करते हुए 30 जनवरी 1930 के दिन जर्मनी का चांसलर बनने का सफर काफी एक जैसा है ! इससे ज्यादा पतन भारत की संसदीय पद्धति का और क्या हो सकता है ? 140 करोड़ आबादी के देश में पंद्रह प्रतिशत अल्पसंख्यक जातियों के असुरक्षित मानसिकता के तवे पर अपनी राजनीतिक रोटी सेकना ! क्या भारतीय संसदीय राजनीति का आजादी के पचहत्तर सालों के सफर में बहुत बडा अभिमान का सफर है ? मेरे हिसाब से यह पचहत्तर सालों की आजादी से लेकर हमारे देश की संसदीय पद्धति का सब से बड़ा पतन का समय जारी है ! और इस दल ने विशुद्ध रूप से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के बाद ! भारतीय संसद में बहुमत हासिल करता है ! यह हमारे जनतंत्र की सबस बडी चुनौती है ! और नरेंद्र मोदी ने सत्ताधारी बनने के पहले ! अहमदाबाद का अदानी जैसे एक साधारण सा व्यवसायी ! आज दुनिया का सबसे बड़ा अमिर आदमी बनने का रहस्य क्या है ? उनके गुजरात में मुख्यमंत्री बनने के बाद इस छोटे से व्यवसायी का ! ऑक्टोपस के जैसा भारत से लेकर विदेशी निवेश का विस्तार करने के लिए ! नरेंद्र मोदी ने खुद कैसे - कैसे फेवर किया है ? इसपर सवाल करने वाले संसद सदस्यों की सदस्यता चली जाने का मतलब क्या है ? हमारे देश के कानून बनाने वाले सदन का सदस्यों में से कोई भी व्यक्ति इतना बड़ा कैसे हो सकता है ? यह सवाल पूछना आपको इतना नागवार क्यों लगता है ? एक समय था, जब संसद में फिरोज गांधी खुद सत्ताधारी दल के होने के बावजूद ! मुंधडा प्रकरण में संसद में सवाल पूछे ! तो तत्कालीन मंत्रालय के मंत्री टी. कृष्णमाचारी को इस्तीफा देना पड़ा था ! और तब प्रधानमंत्री सवाल पुछने वाले सदस्य के ससुर जवाहरलाल नेहरू थे ! ऐसे ही प्रोफेसर मधू दंडवते, मधू लिमये, बैरिस्टर नाथ पै, इंद्रजित मुखर्जी, पीलू मोदी, जैसे सांसद सदस्यों ने अल्पमत के दलों से रहने के बावजूद ! तत्कालीन सरकारों को आर्थिक घोटालों को लेकर, काफी बार घेरने का प्रयास किया है ! लेकिन कभी भी किसी सदस्य की सदस्यता पर आंच नहीं आई ! और अभी क्या चल रहा है ? और इतनी सब हरकते करने के बावजूद सरकार चुनाव का निर्धारण करने वाले ! चुनाव आयोग के चयन करने के लिए, वर्तमान संसदीय सत्र में, जो कानून पास करा लिया ! उसका मतलब अब चुनाव आयोग का गठन सरकारी मर्जी से किया जायेगा ! इससे बड़ी चुनौती भारत के जनतंत्र में इसके पहले कभी नहीं थी ! सबसे संगिन बात हमारे देश का चुनाव आयोग शतप्रतिशत वर्तमान सत्ताधारी दल के द्वारा नियुक्त करने का कानून बनाने का अधिकार वर्तमान सरकार ने बना लिया है ! वैसे भी गत दस सालों से चुनाव आयोग कौन-सा निस्पक्ष काम कर रहा है ? और सिर्फ चुनाव आयोग की ही बात नहीं है ? हमारी न्यायालयों की क्या स्थिति है ? हमारे देश की सभी जांच एजेंसियों को देख लिजिए ! इडी, आई बी, सीबीआय, सेबी गत दस सालों से सत्ताधारी दल की इकाइयों के अलावा कोई और परिचय दे रहे हैं ? मिडिया संस्थाओं ने तो सिर्फ घुटने ही नहीं टेके ! पूरी तरह साष्टांग दंडवत डाल कर सरकार के भाट बनकर काम कर रहे हैं ! आप प्रधानमंत्री बनने के बाद आज दस साल होने जा रहें हैं ! लेकिन आपने एक बार भी मिडिया को अधिकृत रूप से संबोधित करने का कष्ट नहीं किया है ? उल्टा अपने घर में ही किसी सिनेमा वाले को बुलाकर बात करते हुए उसे टेलीकास्ट करने का पाखंड क्यों ? तो भारत के जनतंत्र के चारों खंबे इस तरह सरकार के इशारे पर नाचने के अलावा अन्य कुछ भी नहीं कर रहे हैं ! तो हमारे जनतंत्र की चुनौतियों का सामना करना कैसे करेंगे ? अक्तुबर 1989 के भागलपुर दंगे के बाद ! मै खुद लगातार 33 सालों से बोल - लिख रहा हूँ ! और सभी सेक्युलर साथियों को चेतावनी देने की कोशिश की है ! "कि आने वाले कम-से-कम पचास साल की भारत की राजनीति सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही चलने वाली है ! और हमारे रोजमर्रे के सभी सवाल हाशिये पर डाले जायेंगे ! लेकिन किसी को विस्थापन की लड़ाई से हम इसका जवाब देंगे, ऐसा आत्मविश्वास था ! तो किसी को मजदूरों और किसानों के आंदोलनों से ! और कोई नई पीढ़ी पर भरोसा रखकर , लेकिन आज की तारीख में विस्थापितों के भीतर भी सांप्रदायिकता सर चढकर बोल रही है ! क्योंकि उस क्षेत्र में भी दंगे हुए ! और उन्होंने उसमे भाग लिया है ! वही बात हमारे मजदूरों और किसानों की लिजिए मुंबई जैसे औद्योगिक शहर के दंगों को देख लिजिए ! लगभग मुंबई के हर दंगे में शामिल लोगों को देखने के बाद लार्सन एंड टुब्रो तथा पोर्ट ट्रस्ट जैसे प्रतिष्ठानों ने अपने मुख्य गेट पर तख्तियों पर लिखा था कि "अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारियों को अगर काम पर आना है ! तो वह अपनी खुद की जिम्मेदारी पर आएंगे ! हम उनके जानमाल के सुरक्षा की गारंटी नही देते ! " और सबसे हैरानी की बात कोई भी यूनियन सामने नही आई ! की हम जिम्मेदारी लेते हुए, अल्पसंख्यक समुदाय के मजदूरों को काम पर आना चाहिए !" यह है वर्तमान मुंबई के औद्योगिक जगत की स्थिति ! वैसे ही किसानों के क्षेत्र में तथाकथित बेटी बचाओ अभियान के तहत पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ, श्यामली मलियाना के दंगे हुए ! किसानों के यूनियन ने उस समय कौन-सी भूमिका निभाई ? आज भी मुजफ्फरनगर के दंगों में भाग कर गए हुए हजारों की संख्या में लोग वापस अपने गांव में आए नही है ! और तथाकथित पढ़ने - लिखने वाले लोगों में, चंद अपवादों को छोड़ दें तो क्या स्थिति है ? आज शिक्षा के क्षेत्र में जूडिशल सिस्टम में, स्वास्थ्य तथा विभिन्न नौकरी पेशा के लोगों को देख लिजिए ! पूरी तरह से सांप्रदायिकता के ध्रुवीकरण में बट चुके हैं ! और इसलिए उन्हें महंगाई भ्रष्टाचार तथा शिक्षा - स्वास्थ्य के सवाल पर विचार विमर्श करने की फुर्सत कहा है ? हिंदू - मुसलमान की जुगलबंदी में मश्गूल है ! हमारे समाजवादी या सेक्युलर साथियों को, बहुत नागवार गुजरेगा ! आज की तारीख में संपूर्ण भारत सांप्रदायिकता के सवाल पर, आजादी के पचहत्तर सालों के बावजूद ! बटवारे से कुछ भी सबक नहीं सिखते हुए ! बुरी तरह से हिंदू और मुसलमान के रूप में बट चुका है ! यह वास्तव है ! कोई प्रकट रूप से बोलता है ! तो कोई मौन धारण करते हुए, दिल ही दिल में सांप्रदायिकता के जहर को लेकर चल रहा है ! हम कुछ अपवादस्वरूप उदाहरण देखकर उसिका महिमामंडित करने में मश्गूल है ! और सांप्रदायिक शक्तियों का अश्व चारों और दौड रहा है ! इसमें दलित, ओबीसी, और आदिवासी और सबसे संगिन बात महिलाओं के भीतर भी यह वायरस ने अपनी जगह बना ली है ! एक हम हैं, कि शतूरमूर्ग की तरह रेत में सर गडाकर बैठे हैं ! और सबसे संगिन बात हम सिर्फ आपस में ही एक दूसरे को मिलकर मान रहे हैं ! कि हम बहुत कुछ कर रहे हैं ! हमारे पत्र, पत्रिका व्हॉट्सअ, ट्विटर, टेलिग्राम, फेसबुक, यूटूब से लेकर जितने भी संवाद के माध्यम से हम एक-दूसरे के साथ ही संवाद करते हैं ! नये लोगों के पास कितने पहुंचते हैं ? माफ किजिए यह मेरा आक्रोश और किसी दूसरों को कटघरे के खड़े करते हुए बोलने का कतई नहीं है ! मै खुद इसमें का एक हिस्सा हूँ ! मै भागलपुर दंगे के बाद 33 साल पहले से ही, एक तरह से इसी विषय पर काम करने से लेकर, बोलना तथा लिखने की कोशिश कर रहा हूँ ! लेकिन मेरा कतई दावा नहीं है ! कि मैंने बहुत कुछ बदल डाला है ! बिल्कुल भी नहीं, मै खुद कबुल करता हूँ कि हम नेकी कर दरिया में डाल रहे हैं ! डॉ. सुरेश खैरनार, 15 दिसंबर 2023, नागपुर के सर्वोदय आश्रम में दिया गया भाषण.

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