मंगलवार, 26 नवंबर 2024
बिजली कर्मचारी संघ बिजली के निजीकरण का विरोध करेगा - रणधीर सिंह सुमन
बिजली कर्मचारी संघ बिजली के निजीकरण का विरोध करेगा
उ प्र की बिजली व्यवस्था निजी हाथों में दी जाएगी, पूर्वांचल और दक्षिणांचल से होगी शुरुआत
बिजली कर्मचारी संघ के संरक्षक रणधीर सिंह सुमन ने बताया कि जनपद व प्रदेश स्तर पर उनका संगठन अन्य संगठनों के साथ मिलकर जबरदस्त विरोध करेगा और सरकार को अपने फैसले वापस लेना पड़ेगा।
बिजली कंपनियों को सहभागिता के आधार पर निजी क्षेत्र को दिए जाने के लिए बुने जा रहे ताने-बाने के कुछ संकेत बाहर आए हैं। सूत्रों का कहना है कि सबसे पहले पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम वाराणसी और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम आगरा को निजी क्षेत्र में दिया जाना है।
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन प्रबंधन द्वारा प्रदेश की बिजली कंपनियों को सहभागिता के आधार पर निजी क्षेत्र को दिए जाने के लिए बुने जा रहे ताने-बाने के कुछ संकेत बाहर आए हैं। सूत्र बता रहे हैं कि सबसे पहले पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम वाराणसी और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम आगरा को निजी क्षेत्र में दिया जाना है। इन दोनों बिजली कंपनियों को निजी क्षेत्र में दिए जाने का फैसला बहुत ही उच्च स्तर से लिया जा चुका है। इस संबंध में देश के दो बड़े निजी घरानों को आश्वासन भी दिया जा चुका है। इन दोनों कंपनियों को जल्द से जल्द इन दोनों निजी घरानों को दिए जाने का दबाव प्रबंधन पर है।
इस संबंध में दिल्ली से लेकर लखनऊ तक कई स्तर पर वार्ता हो चुकी है। जो चर्चाएं सामने आ रही हैं, उसके मुताबिक यूपी की इन दो बड़ी बिजली वितरण कंपनियों को सहभागिता के आधार पर निजी क्षेत्र में दिए जाने के बाद मध्यांचल, पश्चिमांचल, केस्को को भी सहभागिता के आधार पर निजी क्षेत्र को दिए जाने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी। सूत्र तो उन दोनों निजी घरानों का नाम भी बता रहे हैं, जिन्हें ये दोनों बिजली कंपनियां दिए जाने का फैसला लिया जा चुका है।
चार साल बाद यूपी में फिर से बिजली कंपनियों के निजीकरण का दांव
सितंबर 2020 में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का खाका खींचा गया था। कर्मचारी संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध किया। जिसके बाद मंत्री सुरेश खन्ना और श्रीकांत शर्मा की अगुवाई में गठित मंत्रिमंडलीय उप समिति ने लिखित समझौता कर निजीकरण के प्रस्ताव को टाल दिया था। 2009 से अब तक यूपी में बिजली कंपनियों और कुछ खास क्षेत्रों के निजीकरण के पांच प्रयास हो चुके हैं। यूपी में बिजली क्षेत्र के निजीकरण का पहला उदाहरण नोएडा है। राज्य विद्युत परिषद के जमाने से यानी 1993 में ही नोएडा की बिजली व्यवस्था एनपीसीएल कंपनी को दे दी गई। यह कंपनी अब भी इस क्षेत्र में कार्यरत है।
2009 में निजीकरण की पहली बड़ी कोशिश हुई थी
इसके बाद राज्य विद्युत परिषद का विघटन 14 जनवरी 2000 में किया गया। इस विघटन के एक साल बाद यानी कानपुर की बिजली व्यवस्था के निजीकरण की पहली कोशिश 2001 में हुई 2009 तक कई बार कोशिश हुई लेकिन विरोध के चलते सरकार टेंडर नहीं कर पाई थी। 2009 में कानपुर और आगरा की बिजली व्यवस्था टोरंट पावर को देने का एग्रीमेंट सरकार ने कर लिया था। कानपुर में इसका जबर्दस्त विरोध हुआ, जिसकी वजह से टोरंट पावर से समझौता हो जाने के बाद भी राज्य सरकार को यह एग्रीमेंट 2013 में तोड़ना पड़ा। हालांकि इस बीच एक अप्रैल 2010 को आगरा की बिजली टोरंट पावर को दे दी गई।
2013 में पांच शहरों की बिजली के निजीकरण का हुआ था फैसला
अप्रैल 2013 में पांच शहरों जिसमें मुरादाबाद गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ, कानपुर शामिल हैं, इनके निजीकरण का फैसला होने के बाद टेंडर कर दिया गया था। विरोध होने पर टेंडर होने के बाद इस फैसले को टाल दिया गया।
2018 में कैबिनेट से निजीकरण के संबंध में दो फैसले हुए
इसके बाद मार्च 2018 में कैबिनेट से निजीकरण के संबंध में दो फैसले हुए। पहला फैसला छह जिलों जिसमें रायबरेली, मऊ, उरई, आजमगढ़, जौनपुर तथा एक अन्य जिले की बिजली व्यवस्था सर्विस प्रोवाइडर (सेवा प्रदाता) को देने का फैसला हुआ। इस फैसले के बाद इसके लिए टेंडर और बिडिंग हो गई। मार्च 2018 में ही कैबिनेट से हुआ जिसमें लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, मुरादाबाद और मेरठ शहर की बिजली व्यवस्था निजी हाथों में दिए जाने का फैसला हुआ। सरकार के इस फैसले का कर्मचारी संगठनों ने पुरजोर विरोध किया। नतीजतन, पांच अप्रैल 2018 को ऊर्जा मंत्री ने कर्मचारी संगठनों व उपभोक्ता परिषद से लिखित समझौता कर इस फैसले को टालने का काम किया।
अंतिम बार 2020 में निजीकरण का हुआ था प्रयास
इसके बाद सितंबर 2020 में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम वाराणसी के निजीकरण का फैसला लिया गया। इस फैसले का भी जोरदार विरोध हुआ। कर्मचारी संगठन आंदोलन करने लगे। जिसके बाद राज्य सरकार द्वारा वित्त मंत्री सुरेश खन्ना और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की अगुवाई में गठित मंत्रिमंडलीय उप समिति ने लिखित समझौता कर इस फैसले को टाल दिया।
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