शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

"हरकारा" पर रामदेव की पोल खोल

रामदेव ठग को धोखाधड़ी के धंधे से बिजनेस टायकून बनाने में किसने और कब मदद करी "हरकारा" पर रामदेव की पोल खोल कहीं रसूख का इस्तेमाल, कहीं कानून से किनारा जानते कितना हैं योग और आयुर्वेद की दुकान चलाने वाले रामकिशन यादव को आप? गौरव नौड़ियाल; रूह अफ़ज़ा शरबत को लेकर नफरती बयान देने का वीडियो जारी होने के बाद ‘हरकारा’ ने पतंजलि आयुर्वेद कंपनी के मालिक और खुद को योग गुरु बताने वाले रामदेव के बारे में थोड़ा रिसर्च और किया और पिछले कई सालों से उनके संग चल रहे विवादों की एक लिस्ट बनाई है. किसी और देश में ये सब होता, तो कानून कब का उन्हें टांग चुका होता. ये रामदेव के बारे में जितना है, उतना ही हम सबके बारे में भी है, जो न सिर्फ इस तरह की बेवकूफियों, भ्रष्टाचार, झूठ, छलावे और दुष्प्रचार को सह रहे हैं, बल्कि उसे बढ़ावा और चढ़ावा भी दिये जा रहे हैं. यह फेहरिस्त पूरी नहीं है. पर इसकी जरूरत है. ताकि सनद रहे और आगे आने वाली पीढ़ियां भी हमें आश्चर्य से देखें कि रामदेव को ये सब कैसे करने दिया गया. आपके होते हुए. साधारण से जोगी से जेट वाले कारोबारी बाबा तक रामदेव के इस सफर में घालमेल ही घालमेल है. रामदेव को साल 2014 के लोकसभा इलेक्शन में भाजपा का चुनाव प्रचार करने के एवज में अलग-अलग राज्यों में न केवल बेशुमार जमीनें मिली, बल्कि पोस्ट ऑफिस से माल की बिक्री से लेकर फौज की कैंटीन तक रामदेव की धमक बढ़ी. रामदेव के विज्ञापनों से बंधे बड़े-बड़े मीडिया हाउसेज ने रामदेव के प्रोडक्ट पोस्ट ऑफिस से बेचने की खबरों को ऐसे प्रसारित किया, मानों भारत सरकार की कोई महत्वाकांक्षी योजना हो. रामदेव के ही विज्ञापनों का असर है कि बाबा के बड़े-बड़े कांड हो जाने पर भी मुख्यधारा के मीडिया में अक्सर सन्नाटा ही पसरा रहता है. ये एक किस्म से रामदेव के कारोबार को सीधा समर्थन देना था. हालांकि, फौज ने प्रोडक्ट की गुणवत्ता को देखकर जल्द ही पतंजलि के कुछ उत्पादों से हाथ खींच लिए थे. रामदेव पर सरकार किस कदर मेहरबान थी, उसे समझने के लिए जरा 'जनसत्ता' की साल 2017 की इस हेडलाइन को देखिए- 'नरेंद्र मोदी राज के तीन साल में बाबा रामदेव की ‘पतंजलि’ को मिली 2000 एकड़ जमीन, 300 करोड़ की छूट भी'! बड़े मीडिया हाउसेज भले ही विज्ञापनों की चमक में खबरों की नब्ज़ ढूंढ़ने में नाकामयाब हों, लेकिन रामदेव के खिलाफ गुमनाम स्वतंत्र पत्रकारों की रिपोर्ट से यूट्यूब पर कई जिंदा दस्तावेज़ मौजूद हैं, जहां पीड़ित खुद बता रहे हैं कि कैसे रामदेव के साम्राज्य विस्तार ने उन्हें न्याय के दरवाजे तक से वंचित कर दिया है. बाबा रामदेव पर हरिद्वार में जमीनें कब्जाने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन बाबा की धमक और पहुंच के आगे पीड़ित हासिल कुछ नहीं कर पा रहे. हां, कभी कोई गुमनाम पत्रकार उनसे मिलता है तो वो साल 2007 से अपनी खरीदी हुई जमीनों और अब खंडहर हो रहे घरों के दु:ख के बीच, कानून का मजाक उड़ाती हुई रामदेव की कहानी सुना देते हैं. ऋषिकेश और हरिद्वार की सड़क, घाट, बाजारों में घूमकर जड़ी बूटियां बेचने वाले रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव आज ऐसे ही 'पूछ फाड़ लेगा क्या' की धमकी नहीं देते, बल्कि अपनी ऊंची राजनीतिक रसूख का उपयोग बाबा ने अपने से छोटे लोगों को कुचलने के लिए कई दफा किया है. पहुंच रामदेव की, गुंडागर्दी भाई राम भरत की योगगुरु बाबा रामदेव के भाई राम भरत पर पतंजलि योगपीठ में काम करने वाले एक युवक के अपहरण और मारपीट का आरोप भी लगा और उसकी ‘भूल’ महज इतनी थी कि वह पतंजलि से काम छोड़कर कहीं और चला गया था. इसके अलावा साल 2015 में फ़ूड पार्क में काम की मांग कर रहे स्थानीय ट्रक यूनियन के प्रदर्शनकारियों और पतंजलि कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प में ट्रक ड्राइवर दलजीत सिंह की मौत के बाद उस पर हत्या का आरोप लगाया गया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. दिलचस्प बात तो ये है कि ट्रक ड्राइवर की हत्या में आरोपी, गुंडागर्दी करने वाला और फैक्ट्री में मजदूरों को बंधक बनाकर पीटने वाला रामभरत यादव पतंजलि के उसी आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट का सीईओ है, जिसका उद्घाटन करने भारत के प्रधानमंत्री पहुंच जाते हैं. गुजरी जनवरी में ही पतंजलि आयुर्वेदिक लिमिटेड यूनिट-3 के डिप्टी मैनेजर को बंधक बनाकर मारपीट करने और डरा-धमकाकर संपत्ति हड़पने के मामले में अदालत ने आठ लोगों के खिलाफ नोटिस जारी किए थे, जिनमें बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव का भाई रामभरत भी शामिल था. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि धर्म और गुंडागर्दी के दम पर पतंजलि कैसे कानूनों का खुला मखौल उड़ा रही है. ‘न्यूजलॉन्ड्री’ की एक रिपोर्ट कहती है कि रामदेव के परिवार को जानने वाले 24 वर्षीय दीपक सिंह ने आरोप लगाया, "उन्होंने देश के लिए जो कुछ भी किया हो, उन्होंने यहां के लोगों के लिए कुछ नहीं किया. उनके परिवार के सदस्यों ने गांव की पंचायत की जमीन हड़पने की कोशिश की है. उन्होंने एक सरकारी तालाब पर कब्जा कर लिया है और किसी को वहां से मिट्टी भी नहीं लेने देते." एक बुजुर्ग ग्रामीण ने बताया कि सैदलीपुर में, जिसकी आबादी करीब 3,000 है, ज़्यादातर शिक्षित लोग बेरोज़गार हैं, “लेकिन कोई भी पतंजलि नहीं जाना चाहता”. “कोई भी उन्हें अपना नहीं मानता. रामदेव और उनके परिवार की हालत इतनी खराब है कि अगर वे सरपंच का चुनाव लड़ते हैं, तो उनके परिवार के अलावा कोई भी उन्हें वोट नहीं देगा.” रामदेव और उनके परिवार द्वारा कथित शोषण की ऐसी कहानियां सैदलीपुर में प्रचुर मात्रा में हैं, जो कि रामदेव का मूल गांव है. 'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' के लिए तपस्या की रिपोर्ट है कि रामदेव की संस्था ‘योगक्षेम संस्थान’ ने वर्षों तक कोई चैरिटी नहीं की, बल्कि टैक्स-फ्री ढांचे का उपयोग निवेश पार्किंग के लिए किया. 2016 में स्थापित योगक्षेम संस्थान को योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में टैक्स में छूट दी गई थी. छह वर्षों तक इस संस्था ने कोई भी सामाजिक सेवा या चैरिटी का कार्य नहीं किया, बल्कि इसका उपयोग पातंजलि समूह की निवेश संपत्तियों को पार्क करने के लिए किया गया. संस्था को बालकृष्ण और अन्य कंपनियों से 2 करोड़ शेयर (₹79.8 करोड़ मूल्य) दान में मिले, पर ये शेयर पहले से बैंकों को गिरवी रखे गए थे, जिसका बाद में ट्रांसफर रद्द करना पड़ा. इसके बावजूद योगक्षेम को टैक्स छूट मिलती रही और जांच एजेंसियों की नजर से यह बची रही. योगक्षेम संस्थान ने रुचि सोया (अब पातंजलि फूड्स) में निवेश को गुप्त रखने का माध्यम बनाया. 2020-21 में, योगक्षेम को 6 करोड़ शेयर रुचि सोया के (₹42 करोड़ मूल्य) दान में मिले, जिससे वह कंपनी का 20.28% मालिक बन गया. यह निवेश पहले दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, फिर पातंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट और अंत में पातंजलि फूड एंड हर्बल पार्क्स प्रा. लि. को ट्रांसफर होता रहा, जिससे मालिकाना हक और लाभार्थी की पहचान छिपी रही. 2022-23 में योगक्षेम ने रुचि सोया से ₹30 करोड़ का डिविडेंड कमाया, जिसमें से केवल ₹19.43 करोड़ चंद अज्ञात संस्थाओं को दान में दिया गया, और ₹10.48 करोड़ टैक्स चुकाया. फिर भी, योगक्षेम 16.52% हिस्सेदारी रुचि सोया में रखे हुए है और अब भी चैरिटेबल संस्था का दर्जा रखता है. हरियाणा में तो बाबा रामदेव और पतंजलि समूह द्वारा की गई कथित ज़मीन खरीद-फरोख्त और नीतिगत लाभ के कई मामले हैं, लेकिन कोई पूछने वाला नहीं. ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ की ही एक रिपोर्ट कहती है कि 2015 में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने रामदेव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की पेशकश की, जिसे रामदेव ने यह कहकर ठुकरा दिया कि "अब पीएम हमारे हैं, पूरा कैबिनेट हमारा है." रामदेव का बीजेपी से गहरा नाता, विशेषकर नरेंद्र मोदी को समर्थन देने के बाद, पतंजलि को नीतिगत लाभ मिला. अरावली की ज़मीन में हेराफेरी : हरियाणा सरकार ने अरावली की पहाड़ियों में स्थित संवेदनशील वन भूमि को संरक्षण से बाहर रखा. सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों की अनदेखी की गई, ताकि ज़मीनें निजी हाथों में जाएं. शेल कंपनियों के ज़रिए ज़मीन की खरीद-फरोख्त : रामदेव से जुड़ी कम से कम 14 कंपनियों और 2 ट्रस्टों ने फरीदाबाद के मंगर गांव में ज़मीन खरीदी और बेची. इन कंपनियों ने "औद्योगिक संयंत्र लगाने" के नाम पर ज़मीन ली, पर उद्योग नहीं लगाया. सिर्फ ज़मीन बेचकर भारी मुनाफा कमाया. एक सौदा, 365% लाभ : "कंकाल आयुर्वेद प्रा. लि." नामक शेल कंपनी ने 2.66 करोड़ रुपये की ज़मीन 12.38 करोड़ में बेची. यह कंपनी कभी अपने घोषित उद्देश्य (आयुर्वेदिक उत्पाद बनाना) में सक्रिय नहीं रही. नीति का दुरुपयोग : हरियाणा सरकार ने जानबूझकर जंगल क्षेत्र की पहचान को टालते हुए उन्हें "गैर मुमकिन पहाड़" के रूप में वर्गीकृत किया. इन वर्गों की ज़मीन पर संरक्षण कानून लागू नहीं होते, जिससे रियल एस्टेट का रास्ता साफ हो गया. कानूनी खामियों का लाभ : 2023 में केंद्र सरकार ने "फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट" में संशोधन कर ‘डीम्ड फॉरेस्ट’ की रक्षा को हटा दिया. इससे ऐसी तमाम ज़मीनें, जिन्हें जंगल माना जा सकता था, अब कानूनी संरक्षण से बाहर हो गईं, जिसका सीधा लाभ पतंजलि और अन्य रियल एस्टेट समूहों को मिला. पैसे का घुमाव : ज़मीन बेचकर जो पैसा आया, उसे अन्य पतंजलि कंपनियों में निवेश किया गया या ‘एडवांस’ के नाम पर लोगों को दिया गया. एक नेपाल की एयरलाइन (गुणा एयरलाइंस) में भी निवेश किया गया. जवाबदेही से बचाव : सरकार और कंपनियों को भेजे गए सवालों के जवाब टालमटोल वाले थे. सबने वही कॉपी-पेस्ट जवाब भेजा कि “हमने सभी कानूनों का पालन किया है.” पारदर्शिता की कमी : इन शेल कंपनियों की गतिविधियों की सार्वजनिक तौर पर कोई जांच नहीं हुई है. पिछली बार 2012 में यूपीए सरकार के समय इस प्रकार की जमीन लेन-देन पर सवाल उठे थे. छुपा हुआ रियल एस्टेट साम्राज्य : योग और आयुर्वेद की आड़ में पतंजलि ने एक गुप्त रियल एस्टेट बिज़नेस खड़ा कर लिया है, जिसे अब तक जनता की नज़रों से दूर रखा गया है. इसके अलावा भी रामदेव ने विज्ञान, उपभोक्ता और नैतिकता के साथ खासा घालमेल किया हुआ है. कोरोनिल का दावा : 2020 में पतंजलि ने 'कोरोनिल' नामक उत्पाद को COVID-19 के इलाज के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे बाद में आयुष मंत्रालय ने केवल 'इम्यूनिटी बूस्टर' के रूप में मान्यता दी. एफएसएसएआई लाइसेंस की कमी : 2015 में पतंजलि ने इंस्टेंट आटा नूडल्स लॉन्च किया वो भी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) से आवश्यक लाइसेंस प्राप्त किए बिना, जिसके कारण उन्हें कानूनी नोटिस का सामना करना पड़ा. आंवला जूस और घी की गुणवत्ता : 2015 में कैन्टीन स्टोर्स डिपार्टमेंट ने पतंजलि के आंवला जूस को पीने के लिए अनुपयुक्त बताया और अपने स्टोर्स से हटा दिया. उसी वर्ष, हरिद्वार में पतंजलि घी में फंगस और अशुद्धियां मिलने की शिकायतें भी सामने आईं. भ्रामक विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी : सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को भ्रामक विज्ञापनों के लिए फटकार लगाई और चेतावनी दी कि यदि ऐसे विज्ञापन जारी रहे तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी. बिना शर्त माफी की अस्वीकृति : सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा मांगी गई बिना शर्त माफी को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि उनके भ्रामक दावों से जनता को नुकसान हो सकता है. एलोपैथी को 'मूर्खतापूर्ण विज्ञान' कहना : बाबा रामदेव ने एलोपैथी को 'मूर्खतापूर्ण और दिवालिया विज्ञान' कहा, जिससे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की. डॉक्टरों पर आरोप : रामदेव ने दावा किया कि एलोपैथी दवाओं के कारण लाखों मरीजों की मौत हुई है, न कि ऑक्सीजन की कमी से, जिससे चिकित्सा समुदाय में आक्रोश उत्पन्न हुआ. बच्चों के लिए उत्पाद विवाद : "शिशु केयर किट" को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) द्वारा बिना अनुमोदन के बेचे जाने के आरोप. गाय के दूध विवाद : मदर डेयरी और अमूल पर भ्रामक दावे करने के आरोप. विज्ञापन विवाद : कई गैर-वैज्ञानिक और अतिशयोक्तिपूर्ण दावों के लिए एडवरटाइज़िंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) द्वारा आलोचना. स्पष्ट लेबलिंग का अभाव : कुछ उत्पादों पर पूर्ण सामग्री सूची का अभाव. नेपाल में पतंजलि उत्पादों पर प्रतिबंध : नेपाल के ड्रग रेगुलेटर ने योग गुरु रामदेव के पतंजलि उत्पादों का निर्माण करने वाली दिव्य फार्मेसी को ब्लैक लिस्ट कर दिया है. अब ये कंपनी नेपाल में अपनी दवा नहीं बेच पाएगी. नेपाल ने इस कंपनी को बैन करने के पीछे विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के मानदंडों का पालन नहीं करने का हवाला दिया, हालांकि भारत में बाबा धड़ल्ले से कुछ भी बेचता है और सालों से लैबों में एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई-कई उत्पाद टेस्ट में फेल हो रहे हैं. आयकर विभाग विवाद : 13 साल पहले की बात है जब आयकर विभाग ने बाबा रामदेव से जुड़े ट्रस्टों की आय वर्ष 2009-10 में 120 करोड़ रुपए आंकी और इसके आधार पर ट्रस्ट से 58 करोड़ रुपए का कर मांगा. बाबा से जुड़े ट्रस्टों को मिलने वाली छूट भी समाप्त कर दी गई थी. यह छूट ट्रस्टों को कल्याणकारी व धर्मार्थ कार्यों के लिए दी जाती थी, लेकिन जैसे ही बाबा रामदेव व अन्ना हजारे ने दिल्ली में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला था, उत्तराखंड में रामदेव के काले कारनामें एक के बाद एक बाहर आने लगे थे. टैक्स पर छूट लेकर रामदेव एक ओर धंधा बढ़ाता रहा और दूसरी ओर सरकार बदलते ही तमाम तरह की रियायतें हासिल करने की ताकत पा ली. भूमि अधिग्रहण विवाद : सबसे चौंकाने वाला है बार-बार बाबा रामदेव का जमीनों को कब्जाने या हेर-फेर में उछलने वाला नाम, लेकिन इसके बावजूद पसरी चुप्पी. मानों बाबा के आगे कानून नतमस्तक हो. पिछले कुछ साल पहले छोटानागपुर लॉ कॉलेज की ओर से सरकार को जमीन देने के लिए दिए गए आवेदन की अनदेखी कर झारखंड सरकार ने पतंजलि योगपीठ को दे दी थी. यहां रामदेव ने अस्पताल बनाने का झांसा देकर औने-पौने दाम पर जमीन ले ली थी. न्यूजलॉन्ड्री ने तो बाबा के जमीन कब्जाने पर ही एक पूरी रिपोर्ट की हुई है. बसंत कुमार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है- 'उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में तेलीवाला नाम का एक गांव है. तेलीवाला, औरंगाबाद और इसके आस पास के गांवों में सैकड़ों बीघा जमीन पतंजलि के पास है. एक विश्व प्रसिद्ध योग गुरु खासकर जो एक समय में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला चुका है, उसके द्वारा जमीनें खरीदने के लिए ऐसा कुछ भी किया जा सकता है, यह विश्वास से परे लगता है. कहीं ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा तो कहीं बरसाती नदी को भरकर कब्जा. कहीं दलितों की जमीन खरीदने के लिए दलितों को ही मोहरा बनाया गया.' ऐसे ही स्‍वामी रामदेव से जुड़ी पतंजलि योग लिमिटेड को नोएडा में ‘फूड पार्क’ स्‍थापित करने के लिए दी गई 4,500 एकड़ जमीन पर भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामला पहुंचा. हाई कोर्ट ने यमुना एक्‍सप्रेसवे अथॉरिटी से पूछा था कि क्‍या फूड पार्क स्‍थापित करने के लिए रामदेव, उनके किसी सहयोगी या उनकी कंपनी को परोक्ष-अपरोक्ष रूप से जमीन आवंटित की गई थी? असफ खान नाम के व्‍यक्ति ने हाई कोर्ट में याचिका डालकर पतंजलि को जमीन आवंटन पर सवाल उठाए थे. याचिका में कहा गया था कि इस जमीन पर लगे 600 पेड़ काटे जाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा. अवैज्ञानिक बयान विवाद : गर्भ में बच्चे के लिंग चयन के बारे में अवैज्ञानिक दावे. फिर बाद में 'पुत्रजीवक बीज' दवा को लेकर उठे विवाद पर बाबा रामदेव ने सफाई भी पेश की थी. काला धन विवाद : राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर काले धन से संबंधित बयानों को लेकर विवाद. रामदेव ने साल 2012 में काला धन को लेकर ट्वीट किया था कि काला धन वापस आने के बाद पेट्रोल 30 रुपए प्रति लीटर बिकने लगेगा. GST चोरी के आरोप : पतंजलि पर कर चोरी के आरोप और टैक्स अधिकारियों द्वारा जांच के एक-दो नहीं, बल्कि कई मामले हैं. जीएसटी इंटेलीजेंस महानिदेशालय (DGGI) ने पतंजलि ग्रुप की कंपनियों - पतंजलि आयुर्वेद और पतंजलि फूड्स को जीएसटी पेमेंट न करने और गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) क्लेम करने के लिए 19 अप्रैल, 2024 को पतंजलि ग्रुप की कंपनियों- पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और पतंजलि फूड्स लिमिटेड को दो कारण बताओ नोटिस भेजे थे. डायरेक्टर जनरल ऑफ गुड्स एंड सर्विस टैक्स इंटेलीजेंस जीएसटी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी है, जो देशभर में जीएसटी की चोरी पर नजर रखती है. साल 2012 में भी सरकार ने योग गुरु रामदेव द्वारा चलाए जाने वाले ट्रस्ट योग शिविरों के लिए कथित तौर पर सेवा कर के भुगतान के संबंध में पांच करोड़ रुपये का डिमांड नोटिस जारी किया था. अधिकारियों ने तब कहा था कि हरिद्वार के पतंजलि योग पीठ और दिव्य योग ट्रस्ट द्वारा आयोजित शिविर वाणिज्यिक गतिविधि है, इसलिए राजस्व विभाग ने योग सीखने वाले व्यक्तियों से आयोजित शुल्क पर 5.14 करोड़ रुपये का नोटिस जारी किया गया. 12 साल पहले योगगुरु रामदेव के फर्मों पर सेंट्रल एक्‍साइज और कस्‍टम विभाग के अधिकारियों ने छापेमारी की थी और तब अधिकारियों ने दावा किया था कि छापे के दौरान 20 करोड़ रुपये की टैक्‍स चोरी सामने आई. छापेमारी में पता चला है कि पतंजलि के कई कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स पर एक्साइज ड्यूटी अदा नहीं की गई थी. भ्रामक प्रमाणपत्र विवाद : कुछ उत्पादों पर लगाए गए "प्रमाणित" या "अनुमोदित" जैसे दावों की वैधता पर सवाल. शुद्धता से नीचे का कतई दावा न करने वाले बाबा का घी तक मिलावटी निकला. पतंजलि ब्रांड गाय के घी का सैंपल फेल पाया गया है. यह सैंपल उत्तराखंड राज्य की प्रयोगशाला के बाद केंद्रीय प्रयोगशाला में भी सैंपल फेल पाया गया. जिसके बाद टिहरी जनपद के खाद्य सरंक्षा और औषधि विभाग के द्वारा पतंजलि कंपनी के खिलाफ एडीएम कोर्ट में वाद दायर किया गया. अतिरंजित विज्ञापन दावे : वजन घटाने और रोग निवारण के दावों पर नियामक संस्थाओं द्वारा आपत्ति. पतंजलि नूडल्स विवाद : खाद्य सुरक्षा मानकों के उल्लंघन के आरोप और बाद में वापसी. मधुमेह उपचार दावा विवाद : मधुमेह को ठीक करने के दावों पर चिकित्सा संस्थानों द्वारा आपत्ति. प्रतिस्पर्धी व्यवसायों पर अनुचित टिप्पणियां : अन्य FMCG कंपनियों के खिलाफ विवादास्पद बयानबाजी. हाल ही में ‘शरबत जिहाद’ का मामला, जो अब तूल पकड़ चुका है. पतंजलि और बाबा रामदेव को विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जो ज्ञात भूमि आवंटन या लीज पर दी गई हैं, उनमें कुछ इस प्रकार हैं : हरिद्वार, उत्तराखंड : पतंजलि योगपीठ और विश्वविद्यालय के लिए बड़े पैमाने पर भूमि आवंटन नोएडा, उत्तर प्रदेश : पतंजलि फूड और हर्बल पार्क के लिए भूमि आवंटन, जहां रियायती दरों पर जमीन दी गई. महाराष्ट्र : विदर्भ क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण इकाई और अन्य परियोजनाओं के लिए भूमि. असम : पतंजलि हर्बल और फूड पार्क के लिए जमीन. मध्य प्रदेश : औषधीय और खाद्य उत्पादों के लिए विभिन्न स्थानों पर भूमि आवंटन. छत्तीसगढ़ : जड़ी-बूटी खेती और औद्योगिक इकाइयों के लिए भूमि लीज. हरियाणा : कृषि और औद्योगिक प्रयोजनों के लिए भूमि आवंटन. राजस्थान : विशेष आर्थिक क्षेत्र और औद्योगिक इकाइयों के लिए जमीन गुजरात : औद्योगिक इकाइयों के लिए भूमि आवंटन इनमें से कई भूमि आवंटन रियायती दरों पर किए गए और कुछ मामलों में विवादास्पद रहे हैं, जहां आरोप लगाया गया कि सामान्य प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया या विशेष लाभ दिए गए. हालांकि, सरकारों ने इन्हें आमतौर पर निवेश और रोजगार सृजन के लिए प्रोत्साहन के रूप में न्यायोचित ठहराया है. कुछ मामलों में, भूमि के उपयोग या आवंटन की शर्तों के उल्लंघन के आरोप भी लगे हैं, जिससे विवाद उत्पन्न हुए हैं. कुल मिलाकर बाबा की दादागिरी सिर्फ दूसरी कंपनियों को धर्म के नाम पर बदनाम करने या अपना माल बेचने के लिए एलोपैथी को निशाने पर लेने और भ्रामक दावों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बाबा के साम्राज्य की नींद में मजदूरों की पिटाई से लेकर जमीनें कब्जाने और सरकारी रसूख का इस्तेमाल कर टैक्स चोरी के भी बेशुमार किस्से ही किस्से हैं. भारत का कानून कभी बाबा को शिकंजे में लेगा, ये जरूर देखने वाली बात होगी. Pankaj Chaturvedi आज यह सब आज पोस्ट कर पा रहा हूं क्योंकि बहुत से पर्दे फ़ाश हो चुके हैं नहीं तो मेरे शहर में रहने वाले इसके अंधभक्त घर पर आकर हमला कर देते।

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