गुरुवार, 18 दिसंबर 2025

स्टालिन क्या तानाशाह थे..?

स्टालिन क्या तानाशाह थे..? ➖➖➖➖➖➖➖➖ भाग..१ किसी व्यक्ति ,शासन,व्यवस्था का मुल्यांकन उसके खत्म होने पर समाज से मिलने वाली प्रतिक्रिया के बाद आंकी जाती है। आज स्टालिन की चर्चा क्यों करनी पड़ रही है उसकी वजह Ashok Kumar Pandey जी ने बीसवीं सदी के तानाशाह के तौर पर स्टालिन को इंगित किये हैं। साथ में इस प्लेटफॉर्म्स के उन्दा और हमारे प्रिये लेखक Reborn Manish भाई जी ने भी सहमती देते हुए लेख लिखे हैं। हमारा लेख उन्हीं दोनों के जवाब है। सन 1953 स्टालिन की गंभीर बीमारी के कारन मृत्यु से दूनिंया के मानवतावादि शोक में ढूब गयी। स्टालिन के मृत्यु पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, स्वतंत्रता सेनानी दिवंगत जवाहर लाल नेहरू ने दुख व्यक्त करते हुए कहते हैं कि.. "स्तालिन ने जिस तरह से इस समय के इतिहास को तोड़कर नये तरीके से गढ़ा है, विभिन्न पहलुओं से उसे प्रभावित किया है, शायद कोई और ऐसा नहीं कर सका है। धीरे-धीरे वे किंवदंती में तब्दील हुए थे। ... कहना चाहिए कि करोड़ों लोगों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी। असंख्य लोग उन्हें अपना आदमी मानते हैं, अपना मित्र मानते हैं, अपना परिवारजन मानते हैं। सिर्फ सोवियत संघ ही नहीं, दूसरे देश के काफी लोग उन्हें ऐसा ही मानते हैं। ... वे सत्ता या पद पर हों न हों-वे अपने कर्तव्य से ही महान थे। मेरा मानना है कि उनके इस प्रभाव ने शांति के पक्ष में ही काम किया है। जब युद्ध आया, तो उन्होंने खुद को एक महान योद्धा के रूप में साबित किया।" (डेली वर्कस,लंदन,15/3/1953) एक दूसरे मानवता वादी और गांधीजी के सही उत्तराधिकारी आचार्य बिनोवा भावे ने कहा था, "मार्शल स्तालिन ने अपने विविध गुणों से दुनिया की जनता की आस्था और आदर को हासिल किया था। इन गुणों को दुनिया कभी भुला नहीं पायेगी। उनके निधन से रूस को ही क्षति नहीं पहुंची, बल्कि पूरी दुनिया को क्षति पहुंची। (लेबर मंथली,खंड-35,अंक-4, 04/1953) " रैडिकल ह्यूमनिस्ट एम. एन. राय ने कहा था, "हमारे समय के सबसे महान व्यक्ति थे स्तालिन।" (द हिन्दु,मद्रस,03/1953) उपरोक्त लोग कम्युनिस्ट नहीं थे इसलिए इनकी बातों को मैंने यहां जिक्र किया, वे कम्युनिस्ट विरोधी के तौर पर ही जाने जाते हैं। आप हो सकता है कि कॉमरेड स्टालिन पर नेहरू का संदेश डेप्लोमेटिक ,राजनैतिक विवस्ता बोल सकते हैं..! क्योंकि अभी-अभी हीं भारत ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त हुआ था और सोवियत से वृहद सहयोग मिल रहा था। ऐसे एक सहयोगी राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष के लिए इतना तो बनता है। चलिये आपकी बात मान लेता हूं नेहरू ने स्टालिन से वास्तविक में प्रभावित होकर नहीं मात्र कोरम पुरा करने के लिये शोक संदेश व्यक्त किये होंगे..! सहयोग जो लेना था। सहयोग से याद आया जब स्टालिन कहते हैं.. "दस्तावेज इंतजार कर सकते हैं, भूख इंतजार नहीं कर सकती !" भारत आजाद होने के कुछ ही समय बाद घोर अन्न संकट की गिरफ्त में आ गया था। उसने अमरीका और रूस दोनों से जल्दी से जल्दी अनाज भेजने का अनुरोध किया। वाशिंगटन के सौदागर-सूदखोर अनाज की कीमत और उसकी अदायगी की शर्तों पर सौदेबाजी करते रहे। उधर जब यही अनुरोध क्रेमलिन के पास पहुँचा, तो स्तालिन ने अन्यत्र भेजे जा रहे अनाज के जहाज भारत की ओर मोड़ने का निर्देश दिया। इस पर क्रेमलिन के एक उच्चाधिकारी ने स्तालिन से कहा : "अभी इस मसले पर समझौता और दस्तावेजों पर हस्ताक्षर होने हैं।" तब स्तालिन ने कहा : "दस्तावेज-समझौते इन्तजार कर सकते हैं, भूख इन्तजार नहीं करती।" (गत शताब्दी में 50 के दशक के एक उच्चपदस्थ भारतीय राजनयिक पी. रत्नम ने उक्त वार्ता की चर्चा मास्को में अपने दूतावास में एकत्र भारतीयों के समक्ष की।) खैर.. अब चलिये करते हैं भारत के हीं स्वतंत्रता संग्राम के अग्रृणी योद्धा नेता जी सुभाष चंद्र बोस का। इनके सामने तो किसी प्रकार का डेप्लोमेटिक विवस्ता नहीं थी न..? "युद्ध में जब आजाद हिन्द फौज की पराजय हुई, तो नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने काफी भरोसे के साथ कहा था, "आज यदि युरोप मैं किसी ऐसे जीवित व्यक्ति की बात की जाय, जिसके हाथ में आने वाले कई दशकों के लिए यूरोपीय राष्ट्रों का भाग्य निर्भर करता है, तो वह मार्शल स्तालिन हैं। इसलिए भविष्य में सोवियत संघ क्या करता है उस ओर सर्वाधिक आग्रह के साथ पूरी दुनिया और सर्वोपरि पूरे यूरोप का ध्यान रहेगा।" (1945 ,सिंगापुर रेडियो से) प्रख्यात वैज्ञानिक जी. बी. एस. हॉलडेन ने कहा था, "वे एक महापुरुष थे। उन्होंने असाधारण कार्य किया।" (द लाइफ एंड वर्क्स ऑफ जी.बी.एस हॉलडेन (रोनाल्ड क्लार्क,लंदन 1961) प्रख्यात वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस ने 6 मार्च, 1953 को अपने एक शोक संदेश में कहा था, "स्तालिन नहीं रहे। इस खबर ने मुझे गंभीर रूप से विचलित कर दिया है। तीस सालों तक अपने गौरवपूर्ण कार्यभार के लिए वे सारी दुनिया में परिचित हैं। मातृभूमि की रक्षा के लिए उनकी महान कृति उनके गौरव के एक चिरंतन स्तंभके रूप में मौजूद है।" (परिचय पत्रिका,स्टालिन स्मरण अंक,मार्च 1953) क्रमशः. ... #Dharmendra kumar

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