रविवार, 26 अप्रैल 2009
कभी दिनमान को रोये...
कभी नभ को कभी तम को कभी दिनमान को रोये।
कभी प्रियको कभी अरिको कभी पहचान को रोये ।
अजब संसार की माया सदा घटती रही मुझको
कभी सुख को कभी दुःख को कभी भगवान को रोये॥
रात का साथ हो फिर जरूरी नही।
प्यार की बात हो जरूरी नही ।
नेह कुछ आंसुओ में मिला लीजिये
ये मिलन फिर कभी हो जरूरी नही॥
विष को पी जाए वो चंद्रधर चाहिए।
पाप धुल जायें वो वारिधर चाहिए ।
पीत पर के फहरने का वक्त आ गया
सारथी सा सजग चक्रधर चाहिए ॥
कलयुगी कल्प बीते परखते हुए।
शान्ति सुख खोज में ही भटकते हुए।
मातृ भू पर कृपा राम की हो गई-
भ्रम अचल हो गया है बरसते हुए
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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