मंगलवार, 16 जून 2009

वह शांत अश्रु करते है...


चितिमय निखिल चराचर की,

विभूति ,मैंने अपना ली।

अंतस के तल में मैंने

विरहा की ज्योति जला ली॥


जो अग्नि प्रज्ज़वलित कर दी,

वह शांत अश्रु करते है॥

अब आंसू के जीवन में -

हम तिरते ही रहते है।


जीवन से लगन नही है,

इति से भी मिलन नही है ॥

अब कौन लोक है मेरा ?

चिंतन का विषय नही है॥


-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

saadhu saadhu !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहूत ही लाजवाब लिखा है........... सुन्दर रूप से उतारा है मन के भावों को......

Urmi ने कहा…

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत सुंदर कविता लिखा है आपने!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

sm ने कहा…

nice poem like it

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