मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

भगवा आतंकवाद

मडगाँव धमाके में जिन चीजों का प्रयोग किया गया है , उसी तरीके से ठाणे, पनवल में भी हुआ थामडगांव धमाके में राज्य सरकार के परिवहन मंत्री जो गोमांतक पार्टी के है , पत्नी का नाम भी रहा हैमालेगांव की घटना भी इससे जुड़ती हैसमझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में राजस्थान पुलिस सी बी आई ने भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रणव मंडल समेत 4 से पूछ ताछ की हैयह संकेत देश के लिए हितकर नही है । देश में पनप रहे भगवा आतंकवाद और पाकिस्तान के तालिबानी आतंकवाद का मुख्य श्रोत्र अमेरिकन साम्राज्यवाद है और अमेरिका विरोधी मुख्य देश ईरान में रेवोलुशनरी गॉर्ड मुख्यालय पर आत्मघाती हमले में 49 लोगों की मृत्यु हो चुकी हैईरान ने कहा है कि इस आत्मघाती हमले में पकिस्तान का हाथ हैपकिस्तान सरकार के पीछे अमेरिका का हाथ हैअफगानिस्तान व ईराक में अमेरिका अपनी कठपुतली सरकार चला ही रहा हैपकिस्तान में उसका वर्चश्व है ही . अमेरिकन साम्राज्यवाद चाहता यह है कि एशिया की सरकारों पर उसका नियंत्रण हो जिसके लिए वह धार्मिक उन्माद वाली शक्तियों को मदद देकर अपना अधिपत्य स्थापित करना चाहता है । दूसरी तरफ़ मुख्य बात यह है की अमेरिका भारतीय सेना को भी प्रशिक्षित कर रही है । पकिस्तान की सेना को उसने पहले प्रशिक्षित किया था तो पकिस्तान का यह हाल है । अमेरिका ही आतंकवाद का मुख्य श्रोत्र है वह सरकार के साथ भी है और आतंकवादियों के साथ भी है । भगवा आतंकवाद के बहाने अमेरिकन साम्राज्यवाद देश को अस्थिर करके अपना वर्चश्व स्थापित करके यहाँ प्राकृतिक सम्पदा व मानव सम्पदा का दोहन करना चाहता है । आज आवश्यकता इस बात की है कि हम सब मिलकर विविध,सांस्कृतिक , धार्मिक एकता को मजबूत बनाये रखें ।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

Mishra Pankaj ने कहा…

सुमन जी आपकी बात सही है आज आवश्यकता इस बात की है कि हम सब मिलकर विविध,सांस्कृतिक , धार्मिक एकता को मजबूत बनाये रखें ।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

इस लेख का शी
र्षक आपने दिया है भगवा आंतकवाद किन्‍तु इस परिपेक्ष में आपका लिखना कम ही हुआ है, इस प्रकार आतंकवादी घटनाओ को धर्म का नाम दिया जाना गलत है क्‍योकि आंतक को धर्म नही होता है।

आपके ब्‍लाग पर आना हुआ, फिर आना होगा।

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

कडियाँ जोड़ने की सुघड़ कोशिश, पर सक्षम सरकार, कानून न तो पाकिस्तानी आतंकवाद का आज तक कुछ कर पाए, न नक्सलवाद का. अब आपके हिसाब से भगवा आतंकवाद से कैसे निपतेगें, यह भी देखना है.............

हमारे विचार से अपने देश की सारी सरकारे अब तक निकम्मी ही साबित हुई हैं, वर्ना कहीं तो नियंत्रण दिखता,

यही नहीं खेल बस दोषारोपण का ही चलता रहता है,
अब और बर्दाश्त नहीं करेगें जैसे जुमले न जाने कितनी बार दोहराए जाते रहेगें,
अब हमें न तो दोषारोपण सुनना है, न भाषण, अब तो कारवाई चाहिए निदान के रूप में और वह भी समय सीमा के अन्दर.....

निदान नहीं तो कुछ नहीं, बाकि सब बाते हैं इन बातों का क्या, यह भी कह सकते हैं फिर तो, "थोथा चना, बाजे घना"
कार्यवाही स्वयं बोलती है, उसे किसी प्रचार की आवश्यकता नहीं होती.
कसब को पकड़ कर भी क्या कर लिया आज तक.सभी सरकारों ने........
अफज़ल गुरु को कैसे बर्दाश्त करते आ रहे हैं "अब और नहीं बर्दाश्त करेगें " जैसे जुमले प्रयोग करने वाले......,
विवादित बाबरीमस्जिद/ रामजन्मभूमि को ढहाने वालों का आज तक क्या कर पाई सरकार.....
मालेगांव कांड का भी आज तक क्या परिणाम रहा, सिवाए आरोप-प्रत्यारोप के............
आदि-आदि...
ये सब राजनीति है..........
हमें राजनीति जनहित की, व्यवस्थाओं की, जान-माल की रक्षा की, सहभागिता की, समझदारी की, स्वाभिमान की, ईमानदारी की, कर्त्तव्य की, समभाव, अनुशासन की चाहिए न कि
ऐसी जो भेदभाव, अलगाव , वैमनस्य , डर, नक्सलवाद, आतंकवाद, लूटपाट, उंच-नीच, आरक्षण , मनमर्जी, अंहकार , परिवारवाद, अराजकता जैसी बातें, हरकतें पैदा करे.............

क्या पार्टियों के मेनीफेस्टों पूर्णतः जुदा है, दो-एक विभिन्नताओं को लेकर अलग-अलग पार्टियों का बनाना जनता के लिए क्या सन्देश है, जब खुद को जनता का लीडर कहने वाले ही एकमत नहीं, तो आम ज़नता से एकता की उम्मीद क्यों?
पहले नेता तो एकता का आदर्श स्थापित करने का विश्वास तो पैदा करें...ज़नता खुद ब खुद आगे आएगी.

भ्रम की स्तिथिया समाप्त होनी चाहिए. आदर्श की स्थापना होनी चाहिए.............. यही राजनीति से अपेक्षा है अब......

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर

संजीव गौतम ने कहा…

आपकी इस बात से तो सहमत हूं कि आर0एस0एस0 अपने आप में साम्प्रदायिक है लेकिन उम्मीद किसी से भी नहीं है. कांग्रेस यदि वास्तविक धर्मनिरपेक्ष होती और प्रारम्भ से ही कानून का शासन कायम करती तो आज ऐसी शक्तियों की ताकत न बढती. वामपंथियों ने भी मुस्लिम शक्तियों के दवाब में तस्लीमा नसरीन को अपने यहां से भगा दिया. सिंगूर में हम देख ही चुके हैं कि बंगाल का कैडरीकरण कितना खतरनाक है. वामपंथियों के कैडरों और आर0एस0एस0 में ज़्यादा अंतर नहीं है. आम आदमी के साथ कोई नहीं. सब उसे सत्ता प्राप्त करने का हथियार बनाना चाहते हैं. सिर्फ़ एक ही पक्ष को मत देखिये.
तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है.
खैरात जो देता है वही लूटता भी है.

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