भोपाल गैस कांड में अभियुक्तों के खिलाफ अधीनस्थ न्यायलय को सुनवाई करने में 26 वर्ष लगे थे। वहीँ बाबरी मस्जिद ध्वंस में चल रहे वाद में 18 साल बाद आरोप न्यायलय ने तय किये हैं। सरकार और न्याय व्यवस्था दोनों ही समर्थ लोगों को दण्डित करने में असमर्थ है जबकि इसके विपरीत छोटे-छोटे मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से दिन-प्रतिदिन होती है। बाबरी मस्जिद ध्वंस का मामला राष्ट्रीय महत्व का है और इसकी भी सुनवाई दिन-प्रतिदिन करके अपराधियों को दण्डित करने की आवश्यकता है। जिससे आम जनता में कानून शासन के प्रति सम्मान बढ़ सके।
न्यायलयों ने विचाराधीन वादों में घटना के 30-30 साल 40-40 साल बाद अगर फैसले आते हैं तो उस न्याय का क्या अर्थ है। फौजदारी वादों में अधिकांश साक्षी इस दुनिया में साक्ष्य देने के लिए रहते ही नहीं हैं। सिविल वादों की स्तिथि तो अत्यधिक ख़राब है। बाबा ने दीवानी वाद दाखिल किया और पोते के बालिग होने के बाद भी मुक़दमे का फैसला नहीं आ पाता है। जब राष्ट्रीय महत्त्व के वादों के फैसले नहीं हो पाते हैं तो अन्य समर्थ अपराधियों के खिलाफ चल रही न्यायिक कार्यवाहियां जानबूझ कर लंबित कर दी जाती हैं।
आज जरूरत इस बात की है कि फौजदारी, दीवानी व राजस्व वादों की सुनवाई से शीघ्र से शीघ्र करके आम जनता को न्याय उपलब्ध कराया जाए।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
न्यायलयों ने विचाराधीन वादों में घटना के 30-30 साल 40-40 साल बाद अगर फैसले आते हैं तो उस न्याय का क्या अर्थ है। फौजदारी वादों में अधिकांश साक्षी इस दुनिया में साक्ष्य देने के लिए रहते ही नहीं हैं। सिविल वादों की स्तिथि तो अत्यधिक ख़राब है। बाबा ने दीवानी वाद दाखिल किया और पोते के बालिग होने के बाद भी मुक़दमे का फैसला नहीं आ पाता है। जब राष्ट्रीय महत्त्व के वादों के फैसले नहीं हो पाते हैं तो अन्य समर्थ अपराधियों के खिलाफ चल रही न्यायिक कार्यवाहियां जानबूझ कर लंबित कर दी जाती हैं।
आज जरूरत इस बात की है कि फौजदारी, दीवानी व राजस्व वादों की सुनवाई से शीघ्र से शीघ्र करके आम जनता को न्याय उपलब्ध कराया जाए।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
Nice
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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