सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

परम आदरणीय सर्वश्री पं.डी.के.शर्मा"वत्स, Anupam कर्ण, पद्म सिंह, सुमित प्रताप सिंह

बाबरी मस्जिद से पहले भी वहां मस्जिद ही थी - डा। सूरजभान

के आलेख पर आई हुई टिप्पणियां
ब्लॉगर"> पं.डी.के.शर्मा"वत्स" ने कहा…

सुमन जी, अब तो आपको अपना नाम बदल ही लेना चाहिए....वैसे नमाज वगैरह पढना तो अब तक सीख ही चुके होंगें :)

१७ अक्तूबर २०१० ७:५९ अपराह्न


<span title=ब्लॉगर"> Anupam karn ने कहा…

. Mr. Surajbhan , May be you right in your logic but ever thought that whether god lives in logic or not , sure the judgement is based more on faith less logical ....that's how They (judges) could be wise Because God lives in our faith our perception , That's all they could think about the termination of the problem but now ...why are we fueling it more saying it unwiseful .It's not that they didn't leave the land for Masjid May be it support the demolition May be it hurt a few muslim . but same time it's with the sentiments of crores of hindus(which can't be neglected) and we will have to think what the mass want (they want peace) everybody can't be satisfied on this issue . I'll will urge all the people to accept it to terminate it as we all know God don't live in mandir/masjids but in something else . plz don't be logical but be thoughtful here as they did ..... it's now because of media that they (Muslim) are going to SC just nothing except promoting the problem more .

१७ अक्तूबर २०१० १०:३१ अपराह्न


<span title=बेनामी"> पद्म सिंह ने कहा…

हाईकोर्ट का फैसला आर एस एस या विश्व हिंदू परिषद द्वारा प्रायोजित पुरातत्वविदों की रिपोर्ट के आधार पर किया गया ... कमी ये रही कि आप या सूरजभान पिछले साठ वर्षों से जाने कहाँ खोये रहे ... वरना जजों को कुछ तो अक्ल आ जाती ...
कृपया यह बताएँगे कि ये पोस्ट किस के द्वारा प्रायोजित है ?

१८ अक्तूबर २०१० ५:३८ पूर्वाह्न


<span title=बेनामी"> पद्म सिंह ने कहा…

कृपया एक पोस्ट मथुरा, वाराणसी के मंदिरों के बारे में लिखें कि वहाँ की मस्जिदों से पहले वहाँ क्या था ?
दिल्ली की कुतुबमीनार के बारे में भी लिखें कि इसे कैसे बनाया गया है ... क्या ये आपके एजेंडे में नहीं है ?

१८ अक्तूबर २०१० ५:४१ पूर्वाह्न


सुमित प्रताप सिंह ने कहा…

आप अपनी पत्रिका का नाम "लोकसंघर्ष पत्रिका" की बजाय "मुस्लिम संघर्ष पत्रिका" रख तो ज्यादा बेहतर रहेगा...


परम आदरणीय सर्वश्री पं.डी.के.शर्मा"वत्स, Anupam कर्ण, पद्म सिंह, सुमित प्रताप सिंह
सादर नमस्कार
लोकसंघर्ष ब्लॉग व लोकसंघर्ष पत्रिका हम सभी साथियों का सामूहिक ब्लॉग है व पत्रिका है। इस पत्रिका में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई व भाषा आदि से अलग हटकर समाज के विभिन्न तबकों की सोच को प्रकाशित किया जाता है। जिसमें तथ्यों को तोडा व मरोड़ा नहीं जाता है। हम सब पहले भारतवासी हैं। उसके पश्चात अन्य चीजें यह देश जितना हमारा है उतना ही आपका है और हमारी आपकी एकता इस देश की एकता को मजबूत करती है। विभिन्न मत मतान्तर के बगैर जीवन चलना संभव नहीं है। विविधता में एकता हमारी ताकत है लेकिन आज कल कुछ लोगों ने राष्ट्रीयता या देश भक्ति का प्रमाणपत्र दूसरे की तरफ ऊँगली उठा कर मांगने की एक प्रथा चल चुकी है। जिससे स्तिथि यह है कि राष्ट्रीयता का झुनझुना बजाते हुए इस देश को चाहे जितना कमजोर करो सब जायज है। देश के असली दुश्मन हमारी आपकी आस्तीनों में छुपे बैठे हैं जो मिलावटखोर, भ्रष्टाचारी, मुनाफाखोर व आर्थिक अपराधी हैं जो देश की अर्थ व्यवस्था को कमजोर करके क्या देश की एकता और अखंडता को कमजोर नहीं करते हैं लेकिन हमारी आपकी दृष्टि में उनका कोई अपराध दिखाई नहीं देता है। बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ टैक्स चोरी के नए नए आयाम कायम करती हैं हम उनकी तरफ ऊँगली नहीं उठाते हैं। धार्मिक विवाद, भाषाई विवाद, जातीय विवाद में अपना समाये नष्ट कर हम देश की एकता और अखंडता को कमजोर करते हैं। लोकसंघर्ष पत्रिका इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया से तमाम सारे विषय छूट जाते हैं उनको प्रकाशित करती है। हम आपके विचारों का हमेशा स्वागत करते हैं।
आपका
सुमन
loksangharsha

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