अभी हाल में उत्तर प्रदेश ने पत्रकारों से सम्बंधित दो घटनाएं हुई हैं। एक में कानपुर से प्रकाशित हिंदुस्तान अखबार के प्रेस को पुलिस वालों द्वारा चारो तरफ से घेर कर वहां चेकिंग के नाम पर गाड़ियों को सीज किया गया और प्रेस के अन्दर घुस कर वहां कार्यरत लोगों की मां का डाकन किया गया। दूसरी घटना में में यशवंत सिंह की बूढी माँ व अन्य औरतों को गाजीपुर जनपद के नंदगांव थाने में बिना किसी अपराधिक कारण के निरुद्ध रखा गया।
मुख्य प्रश्न यह है कि यह सब क्या देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की जानकारी में नहीं है। उसका एक ही उत्तर है कि यह सब उनकी जानकारी में होता है। थानों के अन्दर दस बीस लात मार देना, चूतडों पर पट्टे चला देना, गुप्तांगो में मिर्च पाऊडर डाल देना, पेट्रोल लगाना, करंट लगाना 15-15 दिन तक थाने में बंद कर मारपीट करना आम बात है और यह सब कार्य मासूम से लगने वाले पुलिस के उच्च अधिकारीयों की जानकारी में होता है। बड़े-बड़े न्यायविद्, न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े हुए लोग की जानकारी में होता है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया, साइबर मीडिया यह सब लोग इन अमानवीय कुकृत्यों के ऊपर पर्दा डालने का काम करते हैं। जब देश का राष्ट्रपति किसी को पुलिस पदक दे रहा होता है तो हम आप गौरवन्वित महसूस करते हैं कि उसने ऊपर लिखे कार्य भी किये होंगे यह भूल जाते हैं।
आजकल कोई घटना होने पर दस बीस लोगों को पकड़ कर थाने ले आया जाता है और फिर तमाम तरह की अमानुषिक यातनाओ का दौर शुरू होता है और फिर घटना का राज खुल जाता है। पिटे हुए लोगों को पुलिस अधिकारी पत्रकारों के समक्ष पेश करता है। पीटा हुआ व्यक्ति अपने सारे अपराधों को तोते की तरह कबूल करता दिखाई देता है। तब प्रिंट मीडिया के पत्रकार, इलेक्ट्रोनिक मीडिया का एनाउंसर पुलिस अधिकारी भोपू बनकर कहानियां गाने का काम करने लगता है तब इन पत्रकार बन्धुवों को अमानुषिक यातनाओ को करने का अविधिक कार्य दिखाई नहीं देता है। अगर हमारी मीडिया के लोग अधिकारीयों को चप्पल पहनाने का कार्य छोड़ कर वस्तुस्तिथि को लिखना प्रारंभ कर दें तो निश्चित रूप से सुधार आयेगा। इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यह कार्य अबाध्य रूप से जारी है और राजनेताओं से लेकर सभी की जानकारी में होता है। जब जिसके मत्थे पर यह बातें आती हैं तो वही दर्द से रोता और चीखता नजर आता है। चाहे वह बिरला जी का हिन्दुस्तान अखबार हो, चाहे साइबर पत्रकार यशवंत सिंह।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
मुख्य प्रश्न यह है कि यह सब क्या देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की जानकारी में नहीं है। उसका एक ही उत्तर है कि यह सब उनकी जानकारी में होता है। थानों के अन्दर दस बीस लात मार देना, चूतडों पर पट्टे चला देना, गुप्तांगो में मिर्च पाऊडर डाल देना, पेट्रोल लगाना, करंट लगाना 15-15 दिन तक थाने में बंद कर मारपीट करना आम बात है और यह सब कार्य मासूम से लगने वाले पुलिस के उच्च अधिकारीयों की जानकारी में होता है। बड़े-बड़े न्यायविद्, न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े हुए लोग की जानकारी में होता है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया, साइबर मीडिया यह सब लोग इन अमानवीय कुकृत्यों के ऊपर पर्दा डालने का काम करते हैं। जब देश का राष्ट्रपति किसी को पुलिस पदक दे रहा होता है तो हम आप गौरवन्वित महसूस करते हैं कि उसने ऊपर लिखे कार्य भी किये होंगे यह भूल जाते हैं।
आजकल कोई घटना होने पर दस बीस लोगों को पकड़ कर थाने ले आया जाता है और फिर तमाम तरह की अमानुषिक यातनाओ का दौर शुरू होता है और फिर घटना का राज खुल जाता है। पिटे हुए लोगों को पुलिस अधिकारी पत्रकारों के समक्ष पेश करता है। पीटा हुआ व्यक्ति अपने सारे अपराधों को तोते की तरह कबूल करता दिखाई देता है। तब प्रिंट मीडिया के पत्रकार, इलेक्ट्रोनिक मीडिया का एनाउंसर पुलिस अधिकारी भोपू बनकर कहानियां गाने का काम करने लगता है तब इन पत्रकार बन्धुवों को अमानुषिक यातनाओ को करने का अविधिक कार्य दिखाई नहीं देता है। अगर हमारी मीडिया के लोग अधिकारीयों को चप्पल पहनाने का कार्य छोड़ कर वस्तुस्तिथि को लिखना प्रारंभ कर दें तो निश्चित रूप से सुधार आयेगा। इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यह कार्य अबाध्य रूप से जारी है और राजनेताओं से लेकर सभी की जानकारी में होता है। जब जिसके मत्थे पर यह बातें आती हैं तो वही दर्द से रोता और चीखता नजर आता है। चाहे वह बिरला जी का हिन्दुस्तान अखबार हो, चाहे साइबर पत्रकार यशवंत सिंह।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
पुलिसिया दुर्गन्ध के लिए हमारे देश की व्यवस्था के सर्वोच्च पर बैठे लोग पूरी तरह जिम्मेवार हैं..कास उनकी माओं के साथ ऐसा होता ...पूरी तरह सड़ चुकी है इस देश की व्यवस्था ...इस देश को प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति या मुख्यमंत्री की अब जरूरत ही नहीं है ..जरूरत है ऐसे लोगों की जो ऐसे पुलिस वालों को सख्त सजा दे सके..
कभी सोचा भी है ऐ नज़्म-कुहना के खुदावंदो
तुम्हारा हश्र क्या होगा जो ये आलम कभी बदला
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