गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

देश सुरक्षा एजेंसियों की कैद में होता जा रहा है ?

भारत के प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह को संसद भवन से सुरक्षा के नाम पर वापस लौटना पड़ावहीँ गृहमंत्री पी.चिदंबरम को राष्ट्रमंडल खेलों की सुरक्षा तैयारी के सम्बन्ध में खेल स्थल पर पहुँचने के लिए 500 मीटर पैदल जाना पड़ा और ड्राईवर अन्य स्टाफ को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ादोनों घटनाओ में सुरक्षा एजेंसियों में तालमेल होना मुख्य कारण बताया गयाइस सम्बन्ध में मेरे एक मित्र मोस्को से लौटने के बाद बताया था कि साधारण सी मीटिंग में उनको 500 मीटर ले जाने के लिए काले शीशे की बंद गाडी में 10 किलोमीटर का चक्कर लगाकर ले जाया जाता थाबैठक समाप्त हो जाने के बाद मेरे मित्र महोदय पैदल टहलते हुए अपने होटल जाते थेउन्होंने सुरक्षा व्यवस्था का विश्लेषण करते हुए बताया कि जनता और नेताओं के बीच में एक इस्पात की मजबूत दीवाल खड़ी की जा रही हैजिससे नेता और जनता के बीच में संपर्क में रहे और पूरे देश में खुफिया एजेंसियों के अधिकारीयों का वास्तविक राज कायम हो जाता हैखुफिया अधिकारी तरह-तरह के किस्से और कहानियां गढ़ कर राजनेताओं को भयभीत करने का भी कार्य करते हैंयह स्तिथि किसी भी देश के लिए खतरनाक होती है
साधारणतय: चुनाव के दरमियान सुरक्षा शांतिपूर्वक चुनाव के नाम पर जो गुंडागर्दी प्रशासनिक होती है वह अद्भुद हैदूर-दराज के इलाकों में मतदान करने जाने का मतलब है कि सरकारी मशीनरी द्वारा बेइज्जत होना और पिटना हैप्रशासनिक अधिकारी चुनाव के समय जब निकलता है तो उसके साथ चल रही फ़ौज हटो और बचो के बीच जनता को जबरदस्त तरीके से पीटने का ही कार्य करती है। उच्च न्यायलय द्वारा बाबरी मस्जिद प्रकरण पर फैसला सुनाये जाने से पहले दो बार पूरे प्रदेश में कर्फ्यू जैसी स्तिथि पैदा की गयी। अब यह स्तिथि आम हो गयी है कि सुरक्षा के नाम पर नग्न तांडव होने लगता है और अगर इन सभी प्रकरणों में वित्तीय चीजों की जांच की जाये तो पता चलेगा की करोड़ो रुपयों की हेरा-फेरी भी हो रही है। आज बड़ी जरूरत है कि सुरक्षा के नाम पर हो रहे उत्पीडन को रोका जाए।

सुमन
लो क सं घ र्ष !

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