बच्चों की आँखें चमक रही हैं
सरकारी वादे आ रहे हैं रोज़
अख़बारों में, रेडिओ पर, ख़बरों में
मां बाप डरते हैं बच्चों से, चूल्हा जलाते
कब तक वो खाली हंडिया हिलाएं
भूखे बच्चों को बहकाकर सुलाएं
भूख का भस्मासुर -
रोज ताल ठोककर चढ़ जाता है
हमारी इज्ज़त के ऊपर-
और हम खड़े रहते हैं मजबूर
बच्चों के सामने निर्वस्त्र से
कोई है जो ले सके-
हमारे हिस्से की भूख
हमारे हिस्से की निर्लज्जता
हमारे हिस्से का नंगापन
उनको चाहिए बस एक अंगूठा
हमारा उनके चुनाव चिन्ह पर
- केदारनाथ"कादर"
सरकारी वादे आ रहे हैं रोज़
अख़बारों में, रेडिओ पर, ख़बरों में
मां बाप डरते हैं बच्चों से, चूल्हा जलाते
कब तक वो खाली हंडिया हिलाएं
भूखे बच्चों को बहकाकर सुलाएं
भूख का भस्मासुर -
रोज ताल ठोककर चढ़ जाता है
हमारी इज्ज़त के ऊपर-
और हम खड़े रहते हैं मजबूर
बच्चों के सामने निर्वस्त्र से
कोई है जो ले सके-
हमारे हिस्से की भूख
हमारे हिस्से की निर्लज्जता
हमारे हिस्से का नंगापन
उनको चाहिए बस एक अंगूठा
हमारा उनके चुनाव चिन्ह पर
- केदारनाथ"कादर"
4 टिप्पणियां:
और हम खड़े रहते हैं मजबूर
बच्चों के सामने निर्वस्त्र से
खुबसूरत रचना सीधी सादी अच्छी लगी
मर्मस्पर्शी रचना ...आभार
यकीननन बेहद सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना
बहुत सुन्दर
कविता में करुणा भी है और कटाक्ष भी।
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