सोमवार, 8 नवंबर 2010

खाली हंडिया में भूख पक रही है

खाली हंडिया में भूख पक रही है
बच्चों की आँखें चमक रही हैं
सरकारी वादे रहे हैं रोज़
अख़बारों में, रेडिओ पर, ख़बरों में
मां बाप डरते हैं बच्चों से, चूल्हा जलाते
कब तक वो खाली हंडिया हिलाएं
भूखे बच्चों को बहकाकर सुलाएं
भूख का भस्मासुर -
रोज ताल ठोककर चढ़ जाता है
हमारी इज्ज़त के ऊपर-
और हम खड़े रहते हैं मजबूर
बच्चों के सामने निर्वस्त्र से

कोई है जो ले सके-
हमारे हिस्से की भूख
हमारे हिस्से की निर्लज्जता
हमारे हिस्से का नंगापन
उनको चाहिए बस एक अंगूठा
हमारा उनके चुनाव चिन्ह पर

- केदारनाथ"कादर"

4 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

और हम खड़े रहते हैं मजबूर
बच्चों के सामने निर्वस्त्र से
खुबसूरत रचना सीधी सादी अच्छी लगी

कविता रावत ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना ...आभार

M VERMA ने कहा…

यकीननन बेहद सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना
बहुत सुन्दर

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

कविता में करुणा भी है और कटाक्ष भी।

Share |