उत्तर प्रदेश में फायर ब्रिगेड में पम्प घोटाला, पुस्तक घोटाला, पुलिस भर्ती घोटाला, खाद्यान्न घोटाला सहित हजारों चर्चित घोटाले हैं जिसकी जांच आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन या पुलिस विभाग की अन्य एजेंसियां करती हैं। कुछ दिनों तक अखबारों की सुर्ख़ियों में घोटाले चर्चित रहते हैं और उसके बाद घोटालों की फाइलें आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति के अभाव में अलमारियों में बंद हो जाती हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अखंड प्रताप सिंह आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल जाना पड़ा वहीँ अब प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव सुश्री नीरा यादव को सी.बी.आई अदालत ने चार साल की सजा सुनाई है। जांच एजेंसी का स्वतन्त्र अस्तित्व न होने के कारण प्रदेश या केंद्र सरकार जांच पूरी होने के बाद भी आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति नहीं देते हैं जिससे जांच में लाखो रुपये खर्च होने के बाद भी परिणाम शून्य ही रहता है यदि शिकायत दर्ज करने वाली एजेंसी स्वतन्त्र हो तो वह जांच उपरांत आरोप पत्र न्यायलय में सीधे दाखिल करे तो भ्रष्ट अधिकारीयों को अपने आर्थिक अपराधों की सजा मिले। हद तो वहां हो जाती है कि सम्बंधित भ्रष्ट अफसर जिसकी जांच एजेंसी के यहाँ विचाराधीन होती है। उसी का वह अधिकारी हो जाता है। इस समय पूरे प्रदेश में खाद्यान्न से लेकर मनरेगा की योजनाओ में घोटाले ही घोटाले हैं और अधिकांश नौकरशाह विकास योजनाओ का धन लूटने में लगे हुए हैं। निर्माण करने वाले विभागों में तो खुले आम विकास का धन हड़प कर लिया जाता है।
आज जरूरत इस बात की है कि आर्थिक अपराधों में लिप्त राजनेता, नौकरशाह व दलाल वर्ग के खिलाफ सकारात्मक कार्यवाई के लिए एक स्वायत्तशासी जांच एजेंसी का गठन किया जाए अन्यथा ये जांच एजेंसियां घोटालों की कब्रगाह ही होंगी।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
1 टिप्पणी:
... desh ke haalaat din va din naajuk hote jaa rahe hain ... !!!
एक टिप्पणी भेजें