माननीय उच्चतम न्यायलय ने कहा कि आदिवासी देश के असली नागरिक हैं। शेष 92 फ़ीसदी लोग आव्रजक आक्रमणकारियों की संतानें हैं। लेकिन हम उनके साथ बुरा व्यवहार करते हें पुराने समय में उन्हें राक्षस और असुर न जाने क्या क्या कहा जाने लगा जबकि ये लोग गैर आदिवासियों के मुकाबले चरित्रवान होते हें, ये न कभी झूठ बोलते हें न कभी ठगते हैं। लेकिन इन पर लगातर अत्याचार होते रहे हैं। इसकी वजह से ये लोग सैकड़ों साल पहले जंगलों में चले गए। आज वे सबसे ज्यादा अशिक्षित, भूमिहीन, बीमार तथा काम आयु तक जीवित रहने वाले लोग बन गए हैं। लेकिन अब जंगलों में भी उन्हें विकास के नाम पर बेदखल किया जा रहा है। कभी खदानें तो कभी कारखाना लगाकर उन्हें वहां से भी खदेड़ा जा रहा है। वाक्य आ गया है कि हम उनके प्रति किये गए ऐतिहासिक अन्याय के बदले में उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तथा उन्हें अपना जीवन जीने दें।
माननीय उच्चतम न्यायलय की इस टिपण्णी के बाद जरा अपने बारे में सोचिये कि आप क्या हैं ?
सुमन
लो क सं घ र्ष !
माननीय उच्चतम न्यायलय की इस टिपण्णी के बाद जरा अपने बारे में सोचिये कि आप क्या हैं ?
सुमन
लो क सं घ र्ष !
5 टिप्पणियां:
Vicharneey bindu.
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इस तथ्य पहली बार पढ़ने में आए हैं पता नहीं किस रिसर्च का हिस्सा हैं... इस देश में किसी को भी कुछ भी कहने आज़ादी है भई...
इस तथ्य = इस तरह के तथ्य
वाकई विचारनीय मुद्दा है। धन्यवाद।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों के पिछड़ेपन के जो कारण बताये हैं वास्तव में सही जान पड़ते हैं लेकिन मात्र वही लोग इस देश के असली नागरिक हैं यह किस आधार पर कहा गया है यह एक सोचनीय मुद्दा है ,
...... वक़्त आ गया है कि हम उनके प्रति किये गए ऐतिहासिक अन्याय के बदले में उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तथा उन्हें अपना जीवन जीने दें। निसंदेह ...........
धन्यवाद।
ध्यानार्थ :- "वाक्य" > वक़्त
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