रविवार, 26 जून 2011

संयुक्त राष्ट्र की राजनीति: अमरीकी साम्राज्यवाद का खेल

इराक के बाद लीबिया
सुरक्षा परिषद ने एक ओर तो बहरीन में विदेशी सेनाओं के प्रवेश को अनदेखा किया परन्तु दूसरी ओर लीबिया में उसके तेल भण्डार पर कब्जे़ हेतु अरबलीग के इशारे से नो फ्लाई मिलिट्री जोन लागू किया।
इस बार लीबिया में वही सब हो रहा है जो प्रथम खाड़ी युद्ध के बाद के वर्षों में इराक में घटित हुआ था। याद होगा कि इराक पर जो हमला और कब्जा किया गया उसका मुख्य उद्देश्य वहाँ के तेल स्रोतों पर कब्जा जमाना तथा वहाँ के बजट एवं तेल की आमदनी को हाथ में लेना था। यह इसलिए कि बड़ी आर्थिक शक्तियों को अपनी गिरती हुई आर्थिक स्थिति को सँभालना था। इस हेतु उन्हें रूस एवं चीन के सहारे आगे बढ़ना था ताकि इराकी जनता के प्रतिरोध का मुकाबला उन पर सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव द्वारा प्रतिबंध लगा कर, किया जाय। लीबिया में अब संयुक्त राष्ट्र ने ‘नो फ्लाई जोन’ तथा अन्य प्रतिबंधों को अपने प्रस्ताव द्वारा लागू कर दिया है, जो एक बड़ा तेल उत्पादक देश है।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि सुरक्षा परिषद के एक भी स्थाई सदस्य ने ‘वीटो’ का प्रयोग नहीं किया। रूस एवं चीन द्वारा वोट का बहिष्कार तथा वीटो के
अधिकार का प्रयोग न करने का अर्थ तो यही निकला कि उन्होंने प्रस्ताव का समर्थन किया। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ये शक्तियाँ लीबिया में वही सब हरकते करेंगी जो वह इराक में कर चुकी हैं। नागरिकों एवं सभी जमीनी जीवों आदि पर बम वर्षा, यहाँ तक की लीबिया के उन सच्चे राजनैतिक आन्दोलन कर्ताओं पर भी जो किसी कठपुतली सरकार को लाने का विरोध कर सकते थे। संसार एक नए प्रकार का उपनिवेशवाद देख रहा है- एक ऐसा सार्वभौमिक नेटवर्क जो अपने आर्थिक एवं भौगोलिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु आर्थिक एवं कार्पोरेट शक्तियों के साथ-साथ नाटो एवं सुरक्षा परिषद के गठजोड़ का प्रयोग करता है।
इस प्रस्ताव का प्रभाव दूर तक जाता है। लीबिया में एक राजनैतिक आन्दोलन चल रहा है जो लीबिया के तेल पर बाहरी शक्तियों के कब्जे का विरोध करताहै तथा कर्नल गद्दाफी का भी विरोधी है, उन्हें भी अलग-थलग करने की रणनीति है। अब यह देखिए कि जिसे चतुराई से ‘उड़ान निषिद्ध क्षेत्र’ घोषित किया गया वहाँ नाटो के सैनिक विमान बराबर उड़ रहे हैं, क्योंकि ‘प्रस्ताव’ वहाँ बाहरी शक्तियों को सैनिक कार्यवाही की स्वीकृति देता है।
सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव का उद्देश्य निश्चित रूप से यह नहीं है कि कर्नल गद्दाफी के वास्तविक या कथित अत्याचारों पर रोक लगाई जाए या यह कि वहाँ की आन्तिरिक अशान्ति का मामला सैनिक कार्यवाही द्वारा हल किया जाय। वास्तविकता यह है कि ये शक्तियाँ स्वयं अपनी आंतरिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक अशान्ति एवं समस्याआंे से बचने के लिए ऐसा करती हैं, जैसा कि उन्होंने इराक में किया था। वे इस प्रस्ताव की सहायता से लीबिया के तेल भण्डारों पर पूर्ण नियंत्रण एवं कब्जा भी चाहते हैं। जो जन-आन्दोलन चल रहे हैं, उनसे उन साम्राज्यवादियों को खतरा है जो अरब के पैसों से मौज उड़ा रहे हैं। वहाँ की कामकाजी जनता को जीविकोर्पाजन एवं सुरक्षा से वंचित कर दिया गया है अतः उनकी अशान्ति ने वहाँ के बादशाहों की नींद हराम कर दी है तथा उनके बाहरी समर्थकों के तेल के फायदे को भी नुकसान पहुँचाया है जो अभी तक शेखों के शोषण सिस्टम को समर्थन देते रहे हैं।
वित्तीय एवं कार्पोरेट जगत नाटो तथा रूस एवं चीन के साथ मिलकर ‘उड़ान निषिद्ध क्षेत्र’ को इसलिए लागू कर रहे हैं कि लीबिया में ऐसा कोई विकल्प न निकले जो इन सबके स्वार्थ के विपरीत हो। यह एक राजनैतिक तथ्य है कि सभी अरब देशों में तेल का अथाह पैसा है, फिर भी उन्होंने उसको अपनी जनता के कल्याण के लिए खर्च नहीं किया। दूसरी ओर अरब लीग के सदस्य होते हुए भी कई देशों ने इसराईल से संबंध स्थापित कर लिए।
वहाँ की जनता जो पहले नहीं जानती थी अब सुरक्षा परिषद की दोगली नीति को जान गई है। तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के कुवैत पर अचानक सैनिक आक्रमण की भत्र्सना सुरक्षा परिषद एवं अरब लीग ने की परन्तु दूसरी ओर कपटपूर्ण ढंग से इराक में अमरीकी राजदूत ने इसे उकसाया। इसी प्रकार इराक-ईरान की युद्ध रचना इस क्षेत्र को कमजोर करने हेतु की गई। कुवैत जो कि उस क्षेत्र की उपनिवेश संरचना से पूर्व ईराक का एक हिस्सा था उस पर आक्रमण की योजना इस हेतु बनवाई गई ताकि यू0एस0-यू0के0 को उस क्षेत्र में सैनिक आक्रमण एवं कब्जे का मौका मिल जाए। इराकी जनता पर यह युद्ध जबरदस्ती थोपा गया था, यद्यपि इराक, कुवैत से हट गया था तथा युद्ध विराम हेतु प्रस्ताव दिया था, परन्तु वहाँ यूरेनियम हथियारों के छिपे होने का बहाना बनाया गया। जो लोग हथियार डालने को तैयार थे उन्हें अमानवीय तौर पर बालू में जीवित दफन कर दिया गया और उन्हें सामूहिक रूप से भी मार डाला गया। क्षेत्र में हमले के लिए कुवैत मिलिट्री बेस बना लिया गया, जहाँ से अब तक इराक पर बम वर्षा जारी है। इसी तरह लीबिया पर ‘‘उड़ान निषिद्ध क्षेत्र’’ घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है जबकि कर्नल गद्गाफ़ी उनके पुत्र तथा इंग्लैण्ड और अमरीकी सरकारों के बीच घनिष्ठ सम्बंधों के राज़ सामने आ रहे हैं। यहाँ तक कि प्रतिष्ठित ‘लंदन स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स’ अब संदेह के घेरे में है जो लीबिया से गुप्त रूप से आर्थिक सहायता प्राप्त कर रहा है।
इराक, उत्तरी कोरिया, ईरान तथा अन्य स्थानों पर सुरक्षा परिषद ने इतने प्रतिबंध लगाए हैं कि अब इनका समर्थन कोई नही करता। यह तो दरअसल वहाँ की जनता के खिलाफ युद्ध की घोषणा है। संयुक्त राष्ट्र संघ जो दुनिया में हर जगह अपने आकाओं के फायदे के लिए अपना हुक्म चलाता है, अब सऊदी अरब की सेनाओं के बहरीन मंे दाखिल हो जाने पर भत्र्सना क्यों नही करता? कि यह एक पड़ोसी देश में खुली हुई सैनिक घुसपैठ है। संयुक्त राष्ट्र संघ लगता है कि एक सार्वभौमिक माफिया है जो भौगोलिक एवं राजनैतिक सीमाओं का खयाल किए बगैर अपने विŸाीय नेटवर्क के इशारे पर काम करता है। पेट्रो-डालर की दुनिया में ऐसी सरकारें बाहरी शक्तियों के भरोसे ही जिन्दा हैं। अब ट्युनेशिया, मिस्र, और बहरीन की अरब जनता में एक उफान आ गया है तथा इनकी बदलाव की हवा अन्य देशों की ओर बढ़ रही है, परन्तु साथ ही दूसरी ओर एक रणनीति ऐसी तैयार की जा रही है कि इस उफान को रोक दिया जाए तथा इसकी दिशा को बदल दिया जाए।
इसी सुरक्षा परिषद की ओर से कोई प्रयास आज तक इस बात का नहीं किया गया कि इसराईल पर ‘नो फलाई जोन’ लागू होता तथा इराक, अफगानिस्तान पर आक्रमण करने वाली शक्तियों पर कोई कार्यवाही की जाती। यहाँ पर कर्नल गद्दाफी की सरकार के पक्ष में बात नहीं की जा रही है। वास्तविकता यह है कि कोई ऐसी नैतिक विवशता भी नहीं है कि लीबिया में सुरक्षा परिषद के नेतृत्व वाले ‘नो फ्लाई जोन’ या किसी ऐसे सैनिक घुसपैठ का समर्थन किया जाए जो अरब लीग के इशारे से हुआ। इसने तो आम जनता की कभी बात ही नहीं की, इसने क्षेत्र में हमेशा शाहों के स्वार्थ का समर्थन किया।
अरब दुनिया की जनता को ही केवल यह हक होना चाहिए कि वे अपने भाग्य का फैसला स्वयं करें। ‘मानवीय हस्तक्षेप’ का बहाना बनाकर सुरक्षा परिषद, नाटो या उसके संबंधी को, (अरब लीग में या कहीं भी) अपनी मनपंसद सरकार या डिक्टेटर हेतु सैनिक कार्यवाही करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। बातें नव औपनिवेशिक व्यवस्था के तौर पर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र, एक देश से दूसरे देश में बराबर देखी जा रही है। मुख्य स्वार्थों का एक नेटवर्क है जो सुरक्षा परिषद, नाटो अरब लीग आदि के साथ मिल कर एशिया अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका की कभी एक सोसायटी पर सैनिक हवाई जहाजों या ड्रोन से पक्षियों के समान लोगों पर लक्ष्य साधकर निशाना बनाते हैं तथा अंधाधुंध बम वर्षा करके लोगों को मार डालते हैं। नाटो में जो सरकारें शामिल हैं वे युद्ध अपराधी हैं।
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर (जो अरब दुनिया के मामले में पुर्जे-पुर्जे करके हवा में उड़ा दिया गया) के अनुसार किसी देश के नागरिक ही अपनी राजनैतिक पसंद का निर्धारण करेंगे, इनमें किसी औपनिवेशिक शक्ति, बन्दूक या विदेशी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
इसमें कोई शंका नहीं कि तानाशाहों ने औपनिवेशिक सरकारों, उनके वित्तीय एवं कार्पोरेट स्वार्थी तत्वों से साठगाँठ करके अरब दुनिया के संसाधनों को ख्ूाब लूटा है, यह लूट अब भी जारी हैं, इस बात को ट्युनेशिया, मिस्र आदि की अरब जनता खूब जानती है। अरब जगत की कोई भी सरकार अपने नागरिकों की वफादारी का दैवीय
अधिकार प्राप्त करने का दावा कैसे कर सकती है जब कि वह अपनी जनता का शोषण कर रही है, अपने कामकाजी आमजन को बेरोजगार बनाए हुए है, वह सामाजिक तकलीफें उठा रहे हैं तथा राजनैतिक प्रक्रिया में उन्हें भाग लेने का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। लगता है कि वहाँ कोई स्पष्ट राजनैतिक समझौता है कि सुरक्षा परिषद, नाटो या अरब लीग अथवा अन्य किसी संगठन की मदद से औपनिवेशिक सैनिक हस्तक्षेप के द्वारा अरब जनता के आन्दोलनों को अपहृत करना है तथा उनके रुख को मोड़ देना है। वास्तव में अरब भू भागों में स्थापित प्रत्येक बादशाहत को इन्हीं उपनिवेशवादियों ने ही थोपा था तथा वही उन पर अभी तक अपना आधिपत्य जमाए हुए हैं। राजनैतिक या कानूनी तौर से इस्लाम में बादशाहत या डिक्टेटर शिप की या फिरके बंदी ‘सुन्नी’ या ‘शिया’ की कोई मान्यता नहीं है। जब कि हम वहाँ धर्म के दुरुपयोग को बराबर देख रहे हैं, वे सरकारें चाहती हैं कि उन्हें आस्था की नजर से देखा जाए जबकि उन्होंने अपनी जनता को तथा दूसरे क्षेत्रों में भी लोगों को गुलाम बना रखा है तथा जाली संगठनों को विŸाीय सहायता इसलिए दे रहे हैं कि वे अपने उपनिवेशवादियों के सहयोग से दुनिया में इस्लाम की अलग ढंग से व्याख्या करें ताकि वहाँ के स्रोतों के दोहन करने का अवसर प्राप्त रहे।
भूत के समान ‘अलकायदा’ तथा इसी प्रकार के अन्य संगठन कभी दिखते हैं तथा कभी गायब हो जाते हैं, वे धार्मिक उकसाहरों से जब इशारे पाते हैं तो रणनीति के अनुसार यहाँ वहाँ मार काट व खून खराबा करते हंै।
अगर वास्तव में सुरक्षा परिषद नाटो और अरब लीग गम्भीर हैं और उन्हें लीबिया में सरकार एवं विद्रोहियों द्वारा बमबारी की चिंता है तो उन्हें पहले इन बातों पर ध्यान देना होगा कि वे कब्जा किए गए देशों- फिलिस्तीन, कांगो, इराक, अफगानिस्तान के भू भागों से अपने सैनिक वापस लें।
यूगोस्लाबिया की फेडेरल रिपब्लिक को पुनस्र्थापित करें, रवान्डा में पाल कागमे की सरकार को गद्दी से उतरने को कहें, लेबनान व सीरिया के कब्जे वाले भू भागों को खाली करवाएँ, तथा इस्राईल द्वारा कब्जे वाले क्षेत्रों को भी खाली करें। अफगानिस्तान पाकिस्तान क्षेत्र में बम वर्षा रोकें। संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंम्बली के प्रस्ताव के अनुरूप निर्धारित सीमाओं सहित फिलिस्तीन राज्य को मान्यता दें तथा इस्राईल व फिलिस्तीन की राजनैतिक सीमाओं को स्पष्टतः निर्धारित करके दोनों राज्यों की स्थापना करें। सऊदी अरब से बहरीन भेजी गई सेनाओं को तुरन्त वापस बुलाएँ। हैती में दूसरे अन्य अर्जेन्ट उपायों के अतिरिक्त स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराएँ। संयुक्त राष्ट्र, नाटो एवं अरब लीग को अपने खून खराबा करवाने की आगे की छवि को दुरुस्त बनाने हेतु इससे कम की अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे दुनिया के सामने अपना स्पष्टीकरण दें। यद्यपि ये बातें ऐसी हैं जैसे कि सुईं के सूराख से हाथी का पार होना फिर भी ‘नो फलाई जोन’ के मामले में इससे कम तर कुछ भी विचार नही किया जा सकता।

-नीलोफर भागवत
अनुवादक -डॉ0 एस0एम0 हैदर

3 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

कुछ दिनों बाद भारत का भी नम्बर आने वाला था,वो तो शुक्र करो कि उनके परमाणु संयत्र खरीद लिये।

Arunesh c dave ने कहा…

ये चोर लोग पूरे विश्व मे अशांती फ़ैला रहे हैं पूरी दुनिया के प्राक्रुतिक संसाधनो पर ऐश करते हैं अरब देशो के सत्ताधीशो को पटा रखा है और यहां हम सब पिस रहे हैं आपस मे लड़ रहे हैं मुझे तो किसी दिन यह पढ़ कर भी आश्चर्य नही होगा कि भारत मे हिंदू मुसलमानो मे विद्वेश फ़ैलाने मे भी इनका हाथ है आपस मे लड़ो इनके हथियार लो और इनके जूते चाटॊ जो खिलाफ़ जायेगा वो अत्याचारी बलात्कारी निर्मम शासक कहलायेगा और जो साथ रहेगा वो भले हदो को पार कर ले उसके बारे मे कुछ न छपेगा

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

विभाजन और वैमनस्य ही तो पूंजवाद और साम्राज्यवाद की शक्ति और औजार हैं इन्हीं से विश्व भर में उत्पीडन-शोषण चल रहा है.

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