गुरुवार, 30 जून 2011

क्या कोई अपने को हिन्दू कहता है?

देश और विदेशों में कोई हिन्दू नहीं, यह शब्द केवल कागजों तक ही सीमित है।
यदि आप नम्बर एक दर्जे से पूछें कि आप कौन है? तब वे बताते हैं कि मैं ब्राह्मण हूँ। तब आप यह पूछें कि आप कौन से ब्राह्मण हैं? तब वे बताना प्रारम्भ कर देते हैं कि मैं शर्मा हूँ, मिश्रा हूँ, उपाध्याय हूँ, दीक्षित हूँ, भारद्वाज हूँ, कश्यप हूँ, पाण्डेय हूँ, शुक्ला हूँ, दूबे हूँ, द्विवेदी हूँ, तिवारी हूँ, त्रिपाठी हूँ, त्रिवेदी हूँ, चतुर्वेदी हूँ, चौबे हूँ, भट्टाचार्य हूँ, मुखर्जी हूँ, बनर्जी हूँ, चटर्जी हूँ और अपने को विभिन्न प्रकार का ब्राह्मण बताते हैं। लेकिन अपने आपको हिन्दू नहीं बताते हैं, क्योंकि वे हिन्दू हैं ही नहीं। इसलिए वे अपने आपको हिन्दू नहीं बताते हैं और न ही अपने नाम के पीछे हिन्दू लिखते हैं। वे ब्राह्मण हैं, इसलिए अपने आपको विभिन्न प्रकार का ब्राह्मण बताते हैं, न कि हिन्दू।
यदि आप नम्बर दो दर्जे से पूछें कि आप कौन हैं? तो वे बताते हैं कि मैं क्षत्रिय हूँ, तब आप पूछें कि आप कौन से क्षत्रिय हैं? तब वे बताना प्रारम्भ कर देते हैं कि मैं चौहान क्षत्रिय हूँ, राजपूत क्षत्रिय हूँ, भदौरिया क्षत्रिय हूँ, तोमर क्षत्रिय हूँ, राव क्षत्रिय हूँ, राय क्षत्रिय हूँ, सिंह क्षत्रीय हूँ, मैं शाही क्षत्रीय हूँ और अपने को विभिन्न प्रकार का क्षत्रिय बताते हैं, लेकिन अपने आपको हिन्दू नहीं बताते हैं और न ही अपने नाम के पीछे हिन्दू लिखते हैं। वे क्षत्रिय हैं, इसीलिए अपने आपको विभिन्न प्रकार का क्षत्रिय बताते हैं, न कि हिन्दू।
यदि आप नम्बर तीन दर्जे से पूछे कि आप कौन हैं? तो वे बताते हैं कि मैं वैश्य हूँ। तब आप पूछें कि आप कौन से वैश्य हैं? तब वे बताना प्रारम्भ कर देते हैं कि मैं गुप्ता हूँ, अग्रवाल हूँ, माथुर हूँ, महाजन हूँ, अग्रहरि हूँ, मद्धेशिया हूँ, जायसवाल हूँ और अपने को विभिन्न प्रकार का वैश्य बताते हैं, लेकिन अपने आपको हिन्दू नहीं बताते हैं, क्योंकि वे हिन्दू हैं ही नहीं। इसी लिए अपने आपको हिन्दू नहीं बताते हैं और न ही अपने नाम के पीछे हिन्दू लिखते हैं। वे वैश्य हैं, इसीलिए अपने आपको विभिन्न प्रकार का वैश्य बताते हंै, न कि हिन्दू।
यदि आप नम्बर चार दर्जे से पूछें कि आप कौन हैं? तो वे अपनी जातियाँ बताना प्रारम्भ कर देते हैं, मैं जार हूँ, गुर्जर हूँ, कायस्थ हूँ, सुनार हूँ, माली हूँ, यादव हूँ, कहार हूँ, बढ़ई हूँ, नाई हूँ, राठौर (तेली) हूँ, शाक्य हूँ, काछी हूँ, राजपूत लोधी हूँ, बघेल हूँ, जाटव (चमार) हूँ, कोरी हूँ, धोबी हूँ,
धानुक हूँ, खटीक हूँ, कोहरी हूँ, कुर्मी हूँ, वाल्मीकि (भंगी) हूँ और वे अपनी विभिन्न प्रकार की जातियाँ बताते हैं, लेकिन अपने को हिन्दू नहीं बताते हैं, क्यांेकि वे हिन्दू हैं ही नहीं। इसीलिए अपने आपको हिन्दू नहीं बताते हैं और न ही अपने नाम के पीछे हिन्दू लिखते हैं। शूद्र होने के नाते अपनी विभिन्न प्रकार की जातियाँ बताते हैं, न कि हिन्दू।
यदि किसी के मुँह से, धोखे से हिन्दू शब्द निकल गया, तो इससे उसकी सन्तुष्टि नहीं होगी, उसे अपनी जाति बताओ, तब उसकी सन्तुष्टि और तसल्ली होगी।
ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई ‘चातुर्य वर्ण व्यवस्था’ को मानने वाला कोई भी आदमी अपने नाम के पीछे न हिन्दू लिखता है और न ही कहता है, तो फिर कौन हिन्दू है? फिर किसका नाम हिन्दू हैं?
जब कोई अपने आपको हिन्दू कहता और लिखता नहीं, तो फिर हिन्दू नहीं। हिन्दू नहीं, हिन्दू धर्म नहीं, हिन्दू धर्म नहीं, हिन्दू समाज नहीं। हिन्दू समाज नहीं, विश्वहिन्दू परिषद नहीं, विश्व हिन्दू परिषद नहीं, हिन्दुत्व नहीं, हिन्दुत्व नहीं, हिन्दू संस्कृति नहीं, हिन्दू संस्कृति नहीं, हिन्दू राष्ट्र नहीं, हिन्दू राष्ट्र नहीं, हिन्दूस्थान नहीं, हिन्दूस्थान तो हिन्दुस्तान नहीं।
तो फिर इसका क्या नाम है और इसे क्या कहना चाहिए, ब्राह्मणों की व्यवस्था ही इसका असली नाम है और इसे ब्राह्मणों की व्यवस्था ही कहना चाहिए। ब्राह्मण संस्कृति और वर्तमान में ब्राह्मण राष्ट्र ही कहना चाहिए।
ब्राह्मणों (ब्राह्मण ऋषियों द्वारा बनाई गई) की यह एक ऐसी व्यवस्था है कि इसे न अनादि ही कहा जा सकता है, और न ही इसे बहुत प्राचीन ही कहा जा सकता है, न ही धर्म ही कहा जा सकता है और न इसे दर्शन ही कहा जा सकता है, न इसे संस्कृति ही कहा जा सकता है और न ही इसे मानवता का हितेषी ही कहा जा सकता है, न इसकी प्रशंसा की जा सकती है और न ही यह प्रशंसा करने के योग्य है।
यह तो ब्राह्मणों द्वारा समाज में फैलाई गई साजि़श का हिस्सा है। जिसने भारत की प्राचीन सभ्यता को छिन्न-भिन्न कर दिया है। जिसने भारत की जनता में फूट का बीज बो दिया है। ब्राह्मणों द्वारा अन्ध विश्वास के प्रचार-प्रसार करने के कारण यह देश विदेशियों का हजारों वर्षों तक गुलाम रहा। ब्राह्मणी व्यवस्था के बराबर संसार की किसी भी दूसरी व्यवस्था ने इतनी असमानताओं को जन्म नहीं दिया। इस देश के सवर्ण लेखकों तथा अन्य लोगों की खोपड़ी में इस बात का भूत सवार है कि हिन्दुओं के कारण ही इस देश का नाम हिन्दुस्तान है। ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई वर्ण व्यवस्था को मानने वाला कोई भी आदमी अपने आपको न तो हिन्दू कहता है और न ही अपने नाम के पीछे हिन्दू लिखता ही है, तो फिर इस देश का नाम हिन्दुस्तान नहीं है।
भारत का अर्थ हिन्दुस्तान, हमारे देश का प्राचीन नाम नहीं है। यह नाम विदेशियों द्वारा रखा गया है। ईरानियों ने सिन्धु नदी का नाम, बदलकर ‘हिन्दू’ रख दिया। यूनानियों ने इसका नाम ‘इण्डोस’ रखा, इससे हमारे देश का नाम इण्डिया पड़ गया। बहुत प्राचीन काल में इस देश का नाम जम्बूदीप था। बौद्ध ग्रन्थों तथा कतिपय मंत्रों जो विवाह आदि के अवसरों पर अब भी पढ़े जाते हैं में इस नाम का उल्लेख मिलता है। केवल इस देश की सीमा का निर्देश करने के लिए जम्बू द्वीप शब्द का प्रयोग होता था। इस देश का नाम जो उस समय की जनता को ज्ञात था, भारतवर्ष अथवा भरत का देश था। भरत दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र थे। उनके प्रभाव से इस देश का प्रत्येक भाग उद्दीप्त तथा प्रभावित था। इस कारण इस देश का नाम भारत है और इस देश का इतिहास, भारतवर्ष अथवा भारतीय इतिहास के नाम से इतिहास है, न कि हिन्दुस्तान के नाम से इतिहास है। वर्तमान में इस देश का
संविधान, भारतीय संविधान के नाम से संविधान है, न कि हिन्दुस्तान के नाम से संविधान है।
यदि वास्तव में इस देश का नाम हिन्दुस्तान होता, तो फिर हिन्दुस्तान के नाम से इस देश का इतिहास और संविधान होता। वास्तव में इस देश का नाम हिन्दुस्तान है ही नहीं। इसीलिए हिन्दुस्तान के नाम से इस देश का इतिहास और संविधान नहीं लिखा गया है।
विश्व में बौद्ध हैं। यदि आप पूछें कि आप कौन हैं? तो वे आपको उत्तर देंगे कि मैं बौद्ध हूँ, क्योंकि भगवान बुद्ध ने विश्व के मानव समाज को एकता, समता तथा स्वतंत्रता का ही उपदेश दिया है।
भगवान बुद्ध ने 563 ईसा पूर्व में एक ऐसी ‘व्यवस्था’ को जन्म दिया कि उसे हर हालत में अनादि और प्राचीन भी कहा जा सकता है, इसे ‘सद्धर्भ’ और ‘दर्शन’ भी कहा जा सकता है। इसे ‘संस्कृति’ और ‘कला’ भी कहा जा सकता है। इसे मानवता का हितैषी एवं शुभ ‘चिन्तक भी कहा जा सकता है। इसकी प्रशंसा भी की जा सकती है और यह प्रशंसा करने के योग्य है।
भगवान बुद्ध द्वारा फैलाई गई विश्व में इन्सानियत है। जिसने विश्व के मानव समाज को एकता के सूत्र में बाँधा है। जिसने विश्व के मानव समाज को सत्य, अहिंसा, शान्ति और समता का पाठ पढ़ाया है।
भगवान बुद्ध की ‘श्रेष्ठ व्यवस्था’, बौद्ध धर्म के बराबर संसार में कोई दूजी व्यवस्था नहीं है। जिसने विश्व में मानव समाज को सभ्यता और महा मानवता का पाठ पढ़ाया हो। वैसे तो भारतीय संविधान के अन्तर्गत, भारत बौद्ध राष्ट्र है, क्योंकि राष्ट्रीय चिन्ह पर अशोक चक्र (धम्मचक्र) है। डाक टिकटों, सिक्कों और नोटों पर अशोक के चार सिंह हैं ये भगवान बुद्ध और सम्राट अशोक की वीरता तथा महानता के सूचक हैं। इसे स्वतंत्र भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार कर लिया है।
‘हिन्दू’ शब्द का सम्बन्ध धर्म से नहीं, इस शब्द का सम्बन्ध ‘सिन्धु नदी’ से है।
‘हिन्दू’ शब्द मध्ययुगीन है। श्री रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में ‘हिन्दू’ शब्द हमारे प्राचीन साहित्य में नही मिलता है। भारत में इसका सबसे पहले उल्लेख ईसा की आठवीं सदी में लिखे गए एक ‘तन्त्र ग्रन्थ’ में मिलता है। जहाँ इस शब्द का प्रयोग धर्मावलम्बी के अर्थ में नहीं किया गया जाकर, एक, ‘गिरोह’ या ‘जाति’ के अर्थ में किया गया है।
गांधी जी भी ‘हिन्दू’ शब्द को विदेशी स्वीकार करते हुए कहते थे- हिन्दू धर्म का यथार्थ नाम, ‘वर्णाश्रमधर्म’ है।
हिन्दू शब्द मुस्लिम आक्रमणकारियों का दिया हुआ एक विदेशी नाम है। ‘हिन्दू’ शब्द फारसी के ‘गयासुललुगात’ नामक शब्दकोश में मिलता है। जिसका अर्थ- काला, काफिर, नास्तिक सिद्धान्त विहीन, असभ्य, वहशी आदि है और इसी घृणित नाम को बुजदिल लोभी ब्राह्मणों ने अपने धर्म का नाम स्वीकार कर लिया है।
हिंसया यो दूषयति अन्यानां मानांसि जात्यहंकार वृन्तिना सततं सो हिन्दू: से बना है, जो जाति अहंकार के कारण हमेशा अपने पड़ोसी या अन्य धर्म के अनुयायी का, अनादर करता है, वह हिन्दू है। डा0 बाबा साहब अम्बेडकर ने सिद्ध किया है कि ‘हिन्दू’ शब्द देश वाचक नहीं है, वह जाति वाचक है। वह ‘सिन्धु’ शब्द से नहीं बना है। हिंसा से ‘हिं’ और दूषयति से ‘दू’ शब्द को मिलाकर हिन्दू बना है।
अपने आपको कोई ‘हिन्दू’ नहीं कहता है, बल्कि अपनी-अपनी जाति बताते हैं।

-भिक्षु विमल कीर्ति महास्थविर
मो0:- 07398935672

13 टिप्‍पणियां:

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

सटीक जानकारी देना सम-सामयिक है.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

हिन्दू व मुस्लिम तो नाम देख कर ही पता चल जाता है, जैसे राम रहीम, बाकि आपने सब कुछ तो बता ही दिया है।

Ratan Singh Shekhawat ने कहा…

१-महाभारत काल के पूर्व के धार्मिक ग्रन्थों को देखने से ज्ञात होता है की पहले धर्म शब्द का की प्रयोग हुआ है उसके आगे हिन्दू , बौद्ध , जैन , मुस्लिम व ईसाई जैसे नाम वर्णित नहीं है | इससे स्पष्ट होता है कि संसार के सभी धर्मों का उदय महाभारत के बाद ही हुआ है |
२- आपकी यह बात सही है कि पंडावादियों ने ही हमारे धर्म का बेडा गर्क किया हमारे धर्म ग्रंथों में जोड़तोड़ कर अपने आपको सर्व श्रेठ करने के लिए कहानियां घड़ी |

Ratan Singh Shekhawat ने कहा…

जो जाति अहंकार के कारण हमेशा अपने पड़ोसी या अन्य धर्म के अनुयायी का, अनादर करता है, वह हिन्दू है।
@ बेशक हिन्दू शब्द विदेशियों का दिया हुआ हो ,पर अब यह धर्म हिन्दू धर्म के नाम से ही जाना जाता है पर आपने जो उपरोक्त लाइन लिखी है इससे सहमत नहीं | ये वाक्य जिसने भी लिखा है यह उस पर स्वयं पर लागू होता है |

Ratan Singh Shekhawat ने कहा…

बोद्ध धर्म का उदय इसी पंडावाद के खिलाफ हुआ था |

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

‘‘भगवान बुद्ध की ‘श्रेष्ठ व्यवस्था' बौद्ध धर्म के बराबर संसार में कोई दूजी व्यवस्था नहीं है।‘‘
इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने इंसानियत की शिक्षा दी और ऐसे टाइम में दी जबकि ब्राह्मणों का विरोध करना आसान नहीं था। उनका साहस और मानवता के प्रति उनकी करूणा क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन यह दावा निःसंदेह अतिश्योक्ति से भरा हुआ है।
भीख मांगना आज जुर्म है और बौद्ध धर्म गुरू का नाम ही भिक्षु है भिक्षा मांगने के कारण। भिक्षा मांगने की व्यवस्था के बारे में तो यह नहीं कहा जा सकता कि इस जैसी व्यवस्था संसार में दूसरी है ही नहीं। दूसरे मतों में भी भिक्षा मांगने की परंपरा रही है।
आज के ज़माने में केवल वही व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ कही जा सकती है जिसमें भिक्षा मांगने से रोका गया हो और मेहनत की कमाई खाने की प्रेरणा दी गई हो।
पता कीजिए कि वह धर्म कौन सा है जो अपने अनुयायियों को भिक्षा और भीख मांगने से रोकता है ?
हे भिक्षुक ! सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था भिक्षा मांगने रोकती है

Arunesh c dave ने कहा…

निश्चित ही जो दलित पढ़ लिख जाता है वह दलित पर हुये अत्याचार को नही भूल पाता भूलना आसान भी नही है । साजिश शब्द सदियो से चल रही किसी प्रथा पर प्रयोग नही हो सकता । और उच्च वर्ग मे सभी लोग अत्या चारी थे यह कहना भी अनुचित ही है आखिर दलितो के उत्थान मे उच्चवर्ग के लोग आगे आये तभी उच्चवर्ग के नियंत्रण वाले देश मे दलितो को अब सम्मान मिला है । हम हिंदुस्तान कहे या ईंडिया देश तो वही है जिसे बाटने की नौबत आयेगी तो उसके टुकड़े गिनना भी संभव न होगा ऐसे मे अंबेडकर जी की तरह दलितो के उत्थान का प्रयास करना उचित होगा ना कि नफ़रत फ़ैलाने से दलितो का और देश का हित होगा

pandit rakesh arya ने कहा…

श्रीमान भिक्षु विमल कीर्ति जी यह आपने कुछ ठीक लिखा कि हिन्दु नाम हमे विदेशियोँ द्वारा प्रदत्त है ,लेकिन आपको यह नही पता कि हिन्दु से पहले हमारा ही नही तुम्हारा और तुम्हारे बाप - दादाओँ का व भगवान बुद्ध के पूर्वजोँ का क्या नाम (जाति)थी ।शायद आपको पता तो होगा लेकिन ईर्ष्यावश आप लिख नही सके ।वह नाम था "आर्य " जो हम पहले से थे ,हैँ ,और रहेँगे ।हिन्दु नाम ग्रहण करना और अपने वास्तविक नाम को न जानना यह सब मध्यकाल मे मुस्लिमोँ के प्रभुत्व के कारण हुआ ।लेकिन आज हमेँ दुनिया हिन्दु नाम से जानती है ,और हम भी अपने को हिन्दु मानते और कहते हैँ तो इसमे कोई बुराई नही है ।और आर्य शब्द भी पूर्ण रूपेण विलुप्त नही हुआ था और न होगा ।आपके द्वारा बताए चार वर्ण आर्य जाति के हैँ न कि ब्राह्मणी व्यवस्था के ।ब्राह्मण तो मात्र एक वर्ण है ,समाज मे अस्पृश्यता अशिक्षा आदि का कारण ब्राह्मण व क्षत्रिय दोनो रहे हैँ ,जिसका दुष्प्रभाव पूरे समाज पर पडा ,लेकिन इसी कारण महाराज भरत का यह महान देश पराधीन हुआ ऐसा भी पूर्णरूपेण सत्य नही है ।क्या विश्व के अन्य सभी देश जो पराधीन हए(एशिया के देश ,अफ्रीका के देश ,कुछ योरोपीय देश व अमेरिका भी)सभी ब्राह्मणोँ के कारण ही पराधीन हुए थे क्या ?विश्व के अन्य देश जो गुलाम हुए वेँ अपनी पहचान जाति इतिहास व संस्कृति सब खो चुके ,लेकिन हमारा प्यारा आर्यवृत किंञ्चित हानि के पश्चात भी अपनी प्राचीन आर्य संस्कृति के साथ पुनः सबल अवस्था मेँ है ।हाँ कुछ जाति व देश द्रोही लोगोँ के कारण अवनति को प्राप्त हुआ था ।उनमेँ मुख्य थे बौद्ध ।बौद्धोँ के कारण ही यह देश पराजित हुआ न कि ब्राह्मणोँ के कारण जैसा कि आपने लिखा कि हजार वर्षोँ की गुलामी ब्राह्मणोँ की देन है ।पुष्यमित्र शुँग ,वसुमित्र व राजा दाहिर के समय मेँ बौद्धोँ ने देश के साथ गद्दारी की ,अनेक अवसरोँ पर शत्रु का साथ दिया ,मिनाण्डर को देश पर आक्रमण के लिए आमन्त्रित किया उसका साथ दिया ।मुहम्मद बिन कासिम का साथ दिया ।बौद्ध ही कायर (आत्यन्तिक अहिँसक)थे ।चीनी यात्री ह्वेनसाँग ने लिखा है कि बंगाल और बिहार मेँ बौद्धमत के लोग हिँसा विरोधी होने के कारण सेना मेँ भर्ती नही होते ।क्या बख्तियार खिलजी द्वारा कुछ सैनिकोँ के साथ बँगाल और बिहार को रोँदे जाने ,बौद्ध मठोँ मे लाखोँ बौद्धोँ के मुस्लिमोँ द्वारा बिना प्रतिरोध के सर काटे जाने का कारण यह कायरता (आत्यन्तिक अहिँसा) ही नही थी ? भिक्षु जी आपने लिखा बुजदिल(कायर) और लोभी ब्राह्मणोँ ने घृणित हिन्दु नाम को अपना लिया ।ब्राह्मण बुजदिल नही वीर थे ।प्राचीन काल से अब तक के कुछ नाम आपको याद दिला दूँ , परशुराम ,मेघनाद , द्रोणाचार्य ,अश्वत्थामा ,कृपाचार्य ,चाणक्य ,पुष्यमित्र शुँग , वसुमित्र ,राजा दाहिर ,राजा लल्य ,राजा रूसाल,राजा दाहिर व उसकी दो पुत्रियां सूर्या व परमाल ,बालाजी विश्वनाथ ,बाजीराव पेशवा ,झाँसी की रानी ,ताँत्या टोपे ,नाना साहब ,मँगल पाँडे ,चाफेकर बन्धु ,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ,गोपाल कृष्ण गोखले ,पं0 गेँदालाल दिक्षीत ,वासुदेव बलवन्त फडके ,वीर सावरकर ,पं0 चन्द्रशेखर आजाद ,पं0 रामप्रसाद बिस्मिल ,बटुकेश्वर दत्त ,भाई परमानन्द , मतिदास ,सतिदास ,सुभाष चन्द्र बोष आदि ।कुछ शास्त्रार्थवीर - जगद्गुरु शंकराचार्य ,स्वामी दयानन्द सरस्वती ,मंडन मिश्र ,कुमारिल भट्ट ,दर्शनान्द सरस्वती , पं0गणपति शर्मा । और ब्राह्मण ऋषि-महर्षियोँ के अलौकिक ज्ञान-विज्ञान ,व विद्वानो के साहित्य रचना और वैज्ञानिकता का लोहा पूरा विश्व मानता है ।किसी अल्पज्ञ मानव के व्यर्थ प्रलाप को कौन सुनता है ।क्रमशः ..... .. .. .
पंडित राकेश आर्य
ग्रा +पो0- दतियाना
जनपद-मुजफ्फर नगर उ0 प्र0 08950108708

pandit rakesh arya ने कहा…

श्रीमान भिक्षु विमलकीर्ति जी आपकी यह बात गलत है कि कोई अपने को हिन्दु नही कहता । हमसे जब कोई ईसाई ,पारसी ,यहूदी , मुसलमान हमारी जाति पूछता है तो हम सब अपने को हिन्दु ही कहते हैँ । हिन्दु का अर्थ आपने लिखा कि 'हिँ 'से हिँसा 'दू 'से दूषण (बुराई) जो हिँसा करता हो ,बुराई फैलाता हो , अपने पडोसी को सताता हो व दूसरे धर्म वाले का अपमान करता हो ।आपकी यह सोच सच्चाई से कोसो दूर व ईर्ष्यावश है । इतिहास साक्षी है हिन्दु ने आज तक न किसी पडोसी को सताया न ही किसी पडोसी पर कभी अकारण आक्रमण किया । न ही कोई बुराई फैलाई ।हमारे अन्दर तो जो भी बुराई आई वह विदेशियोँ के कारण आई । चीनी यात्री ह्वेन्साँग लिखता है कि "भारत के किसी भी घर मेँ ताला नही लगाया जाता चोरी आदि का कोई भय नही " ।भिक्षु जी ताले या LOCK के लिए हिन्दी शब्दकोश मेँ शब्द ही नही है । महाराजा अश्वपति के यहाँ एक अतिथि सन्यासी आए तो राजा उनके आतिथ्य सत्कार के लिए उनसे भोजन ग्रहण का आग्रह करते हैँ तो वह सन्यासी यह कह कर नकार देते हैँ कि हम राजगृह का अन्न ग्रहण नही करते क्योँकि राजा के यहाँ अनेक प्रकार के ' कर ' संग्रह से धन आता है और उस कर मेँ अच्छे-बुरे सभी व्यक्तियोँ या कार्योँ से धन आता है तब राजा अश्वपति बडे गर्व एवं आत्मविश्वास से एक उच्च कोटि की महान उद्घोषणा करते हैँ कि हे महाराज मेरे राज्य मेँ कोई चोर नही ,कोई व्यभिचारी नही ,कोई दरिद्र नही ,कोई दुर्व्यसनी नही आप निःसंकोच भोजन ग्रहण करेँ ।ऐसे थे हम हिन्दु (आर्य) । हिन्दुओँ ने बुराई नही अच्छाई फैलाई है । इसी कारण हम विश्वगुरु थे । क्रमशः ........

pandit rakesh arya ने कहा…

श्रीमान भिक्षु विमलकीर्ति जी आपने डा0 भीमराव अम्बेडकर का हवाला देकर लिखा कि हिन्दु हिँसा व बुराई फैलाने वाले को कहते हैँ ,यह पूर्णरूपेण असत्य है ।हिन्दु तो प्राचीन काल से ही ईमानदार ,सत्यवादी व मानवप्रेमी ही नही प्राणी मात्र से प्रेम करने वाले रहे हैँ । अगर हमारी बात सत्य नही लगती हो तो इन विदेशियोँ व अन्य मत वालों के मुख से सुनो जिन्होने हिन्दु और हिन्दु संस्कृति की अत्यधिक प्रशंसा की [शौपेनहर ,हम्बोल्ट , लूई जैकोलियट , गोल्डस्टुकर ,पार्जीटर , बौर्नफ , सर विलियम जोन्स , हर्टल , लासेन , टी0 एच0 कोलब्रुक , एच0 एच0 विल्सन , प्रो0 मैक्समूलर ,काउन्ट एञ्जेलो , डा0 श्रीमति ऐनी बेसेन्ट , सी0 एफ0 ऐन्ड्रयूज , मैडम एलिस लूई बार्थो , फर्ग्यूसन , वाल्टर यूजीन क्लार्क , डा0 लेन्सलौट होगबेन , डब्लू 0डी0 ब्राउन , बिल डूरेण्ट , डा0 जेम्स एच कजिन्स , रौमां रौलां , इमर्सन , सारा बुल , विक्टर कजिन्स , प्रो0 हीरेन ,मौरिस फिलिप , बेवर एलब्रेख्ट , भगिनी निवेदिता , दादा चान जी (पारसी विद्वान ) दारा शिकोह , मंसूर सर्मद ,फैजी , बुल्लाशाह , रहीम , रसखान , सैय्यद अकबर अली ,उमर अली , कबीर शेख , आदि ] हिन्दु हिँसक नही ,अहिँसक ही रहे हैँ , लेकिन आत्यन्तिक अहिँसक नही ,अकारण किसी की हिँसा नही की , कारण सहित तो राम व कृष्ण ने भी दुष्टोँ का संहार किया व कराया है जो धर्मानुकूल है । हिन्दु तो वास्तव मे सहिष्णु ही रहा है ।दूसरे के मत -पन्थ की मान्यताओँ की उनके वृद्धोँ , स्त्रीयोँ , असहाय बच्चोँ की सदा रक्षा ही की है , सम्मान ही दिया है । हिन्दु की दया व सहिष्णुता तो विश्वप्रसिद्ध है ।इसी हिन्दु धर्म ने भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार माना । वसुधैव कुटुम्बकम , विश्वबन्धुत्व की भावना हिन्दु धर्म मे ही है ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत ।।
ऐसी जिसकी प्रार्थना है वह हिन्दु ( वैदिक )धर्म ही है ।हिन्दु धर्म ही मानवता का हितैषी है ,श्री दलाई लामा व भारत मेँ शरण लिए लाखोँ बोद्धोँ से पूछ लो । इसीलिए यह प्रशंसा के योग्य है । क्रमशः ..... ... .ु हिँसा व बुराई फैलाने वाले को कहते हैँ ,यह पूर्णरूपेण असत्य है ।हिन्दु तो प्राचीन काल से ही ईमानदार ,सत्यवादी व मानवप्रेमी ही नही प्राणी मात्र से प्रेम करने वाले रहे हैँ । अगर हमारी बात सत्य नही लगती हो तो इन विदेशियोँ व अन्य मत वालों के मुख से सुनो जिन्होने हिन्दु और हिन्दु संस्कृति की अत्यधिक प्रशंसा की [शौपेनहर ,हम्बोल्ट , लूई जैकोलियट , गोल्डस्टुकर ,पार्जीटर , बौर्नफ , सर विलियम जोन्स , हर्टल , लासेन , टी0 एच0 कोलब्रुक , एच0 एच0 विल्सन , प्रो0 मैक्समूलर ,काउन्ट एञ्जेलो , डा0 श्रीमति ऐनी बेसेन्ट , सी0 एफ0 ऐन्ड्रयूज , मैडम एलिस लूई बार्थो , फर्ग्यूसन , वाल्टर यूजीन क्लार्क , डा0 लेन्सलौट होगबेन , डब्लू 0डी0 ब्राउन , बिल डूरेण्ट , डा0 जेम्स एच कजिन्स , रौमां रौलां , इमर्सन , सारा बुल , विक्टर कजिन्स , प्रो0 हीरेन ,मौरिस फिलिप , बेवर एलब्रेख्ट , भगिनी निवेदिता , दादा चान जी (पारसी विद्वान ) दारा शिकोह , मंसूर सर्मद ,फैजी , बुल्लाशाह , रहीम , रसखान , सैय्यद अकबर अली ,उमर अली , कबीर शेख , आदि ] हिन्दु हिँसक नही ,अहिँसक ही रहे हैँ , लेकिन आत्यन्तिक अहिँसक नही ,अकारण किसी की हिँसा नही की , कारण सहित तो राम व कृष्ण ने भी दुष्टोँ का संहार किया व कराया है जो धर्मानुकूल है । हिन्दु तो वास्तव मे सहिष्णु ही रहा है ।दूसरे के मत -पन्थ की मान्यताओँ की उनके वृद्धोँ , स्त्रीयोँ , असहाय बच्चोँ की सदा रक्षा ही की है , सम्मान ही दिया है । हिन्दु की दया व सहिष्णुता तो विश्वप्रसिद्ध है ।इसी हिन्दु धर्म ने भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार माना । वसुधैव कुटुम्बकम , विश्वबन्धुत्व की भावना हिन्दु धर्म मे ही है ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत ।।
ऐसी जिसकी प्रार्थना है वह हिन्दु ( वैदिक )धर्म ही है ।हिन्दु धर्म ही मानवता का हितैषी है ,श्री दलाई लामा व भारत मेँ शरण लिए लाखोँ बोद्धोँ से पूछ लो । इसीलिए यह प्रशंसा के योग्य है । क्रमशः ..... ... .

pandit rakesh arya ने कहा…

श्रीमान भिक्षु विमलकीर्ति जी जिसे आप ब्राह्मण धर्म , ब्राह्मण वर्णव्यवस्था , ब्राह्मण राष्ट्र , ब्राह्मण संस्कृति कहते हो , यह तो वैदिक धर्म , वैदिक वर्णव्यवस्था , वैदिक राष्ट्र व वैदिक संस्कृति है । वैदिक हमारा धर्म है , आर्य हमारी जाति । यह वर्णव्यवस्था भी ब्राह्मण ऋषियोँ द्वारा बनाई गयी नही अपितु सृष्टि के प्रारम्भ मे स्वयं ईश्वर द्वारा प्रदत्त ज्ञान ( वेद ) मेँ कही गयी है । यजुर्वेद के 31 वे अध्याय का 11 वाँ मन्त्र देखेँ । पश्चात महर्षि मनु ने भी पवित्र वेद का अनुकरण करते हुए मनुस्मृति के 10 वे अध्याय मेँ वर्णव्यवस्था का विधान किया है । यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि वैदिक ( आर्य ) वर्णव्यवस्था जन्म से नही गुणकर्मानुसार है । जन्म से सब शूद्र होते हैँ , चाहे किसी का जन्म ब्राहम्ण के घर हो या क्षत्रिय के , सब योग्यतानुसार वर्णोँ मे दिक्षीत होँगे । ब्राह्मण शूद्र हो सकता है और शूद्र ब्राह्मण ( मनु0 अ0 10 श्लोक 65 ) । यह व्यवस्था पूर्णतया वैज्ञानिक है । हाँ कुछ काल पूर्व से यह व्यवस्था कर्मणा के स्थान पर जन्मना होकर रहगयी । जो कि महर्षि मनु के विधान विरुद्ध ,धर्म विरुद्ध , वेद विरुद्ध थी । कुछ स्वार्थी व धूर्त पण्डितो ने या आक्रमण काल मे विधर्मियोँ के दबाव मे मनुस्मृति मेँ प्रक्षेप ( मिलावट ) की । जिसके कारण कुछ दुष्ट राजनीतिज्ञोँ ने महर्षि मनु को कलंकित करने का असफल प्रयास किया है ।मनु का विधान वेदानुकूल है , संसार मे सर्वोत्तम है । भिक्षुजी इस वैदिक वर्णव्यवस्था को ही आपने ब्राह्मण वर्णव्यवस्था लिखा जो उचित नही है । इसमे कोई साजिश नही , इससे सभ्यता छिन्न - भिन्न नही अपितु सभ्यताओँ का विकास व विस्तार ही हुआ है । क्रमशः ..... .... ... .. .

pandit rakesh arya ने कहा…

श्रीमान भिक्षु विमलकीर्ति जी आपने लिखा कि इस ब्राह्मण वर्णव्यवस्था ( वैदिक वर्णव्यवस्था ) ने सभ्यता को छिन्न - भिन्न किया है ।यह कथन असत्य है । क्योँकि ईरान , इराक ( बेबिलोन ) , मिश्र , रोम , यूनान , आदि की सभ्यताऐँ भी भारतीय ( आर्य ) सभ्यता की देन है । मेहरगढ , सिन्धु घाटी की सभ्यताऐँ भी वैदिक ( आर्य ) सभ्यताऐँ थी । पुरातत्वविदोँ व इतिहासज्ञोँ के नये कथन व शोध पढेँ ।इस ब्राह्मणी ( वैदिक ) व्यवस्था ने फूट का नही एकता का सूत्रपात किया है । जगद्गुरु आदिशंकराचार्य ने भारत के चारो कोनो पर चार मठ स्थापित करके यह व्यवस्था दी कि पूर्वी मठ मेँ पश्चिम का पुजारी ,पश्चिम मेँ पूर्व का , उत्तर मे दक्षिण , दक्षिण मे उत्तर का पुजारी रहेगा ,जो अभी तक लागू है।क्या यह सांस्कृतिक व भौगोलिक एकता का उत्तम प्रयास नही था ? आर्यवृत के महानतम प्रधानमंत्री , महान अर्थशास्त्री ,महान नीतिशास्त्री व राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य ( कौटिल्य ) ने क्या भारत को एकता के सूत्र मे नही पिरोया ? क्या विदेशी शक व हूण जाति को भी यहाँ के विद्वान ब्राह्मण आचार्योँ ने हिन्दु (आर्य ) जाति मे आत्मसात ( विलय ) नही कर लिया ? आपने लिखा कि इस व्यवस्था को न तो अनादि कहा जा सकता न प्राचीन न ही धर्म न ही दर्शन न संस्कृति और न इसकी प्रशंसा की जा सकती । जबकि यह वैदिक वर्णव्यवस्था ही सर्वाधिक प्राचीन अपितु अनादि ,धर्म , दर्शन व संस्कृति है ।अन्य तो धर्म नही मत ,पन्थ , सम्प्रदाय हैँ ।आप चाहेँगे तो सिद्ध कर दिया जाएगा । हिन्दु धर्मग्रन्थ वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है , भाषा संस्कृत ही सबसे प्राचीन है । हिन्दु धर्म मे अस्पृश्यता जैसी बुराई जो कुछ समय तक रही उसे मिटाने मेँ भी कथित सवर्णोँ का ही सर्वाधिक योगदान है । तथागत भगवान बुद्ध ने जो अहिँसा आदि के जो सिद्धान्त दिए ,क्या वेँ वैदिक धर्म मे पहले से नही थे ? क्रमशः ... .. . ्राह्मण वर्णव्यवस्था ( वैदिक वर्णव्यवस्था ) ने सभ्यता को छिन्न - भिन्न किया है ।यह कथन असत्य है । क्योँकि ईरान , इराक ( बेबिलोन ) , मिश्र , रोम , यूनान , आदि की सभ्यताऐँ भी भारतीय ( आर्य ) सभ्यता की देन है । मेहरगढ , सिन्धु घाटी की सभ्यताऐँ भी वैदिक ( आर्य ) सभ्यताऐँ थी । पुरातत्वविदोँ व इतिहासज्ञोँ के नये कथन व शोध पढेँ ।इस ब्राह्मणी ( वैदिक ) व्यवस्था ने फूट का नही एकता का सूत्रपात किया है । जगद्गुरु आदिशंकराचार्य ने भारत के चारो कोनो पर चार मठ स्थापित करके यह व्यवस्था दी कि पूर्वी मठ मेँ पश्चिम का पुजारी ,पश्चिम मेँ पूर्व का , उत्तर मे दक्षिण , दक्षिण मे उत्तर का पुजारी रहेगा ,जो अभी तक लागू है।क्या यह सांस्कृतिक व भौगोलिक एकता का उत्तम प्रयास नही था ? आर्यवृत के महानतम प्रधानमंत्री , महान अर्थशास्त्री ,महान नीतिशास्त्री व राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य ( कौटिल्य ) ने क्या भारत को एकता के सूत्र मे नही पिरोया ? क्या विदेशी शक व हूण जाति को भी यहाँ के विद्वान ब्राह्मण आचार्योँ ने हिन्दु (आर्य ) जाति मे आत्मसात ( विलय ) नही कर लिया ? आपने लिखा कि इस व्यवस्था को न तो अनादि कहा जा सकता न प्राचीन न ही धर्म न ही दर्शन न संस्कृति और न इसकी प्रशंसा की जा सकती । जबकि यह वैदिक वर्णव्यवस्था ही सर्वाधिक प्राचीन अपितु अनादि ,धर्म , दर्शन व संस्कृति है ।अन्य तो धर्म नही मत ,पन्थ , सम्प्रदाय हैँ ।आप चाहेँगे तो सिद्ध कर दिया जाएगा । हिन्दु धर्मग्रन्थ वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है , भाषा संस्कृत ही सबसे प्राचीन है । हिन्दु धर्म मे अस्पृश्यता जैसी बुराई जो कुछ समय तक रही उसे मिटाने मेँ भी कथित सवर्णोँ का ही सर्वाधिक योगदान है । तथागत भगवान बुद्ध ने जो अहिँसा आदि के जो सिद्धान्त दिए ,क्या वेँ वैदिक धर्म मे पहले से नही थे ? क्रमशः ... .. .

pandit rakesh arya ने कहा…

श्रीमान भिक्षु विमलकीर्ति जी भगवान गौतमबुद्ध ने कोई नया सिद्धान्त नही दिया ,और कोई भी व्यक्ति कोई नया सत्य सिद्धान्त दे ही नही सकता ,क्योँकि सभी सत्य सिद्धान्त वैदिक धर्म मेँ पहले से ही विद्यमान हैँ । क्योँकि वैदिक धर्म के सिद्धान्त सर्वकालिक , सार्वभौमिक व सम्पूर्ण हैँ । मैडम एच0 पी0 ब्लैवेट्स्की ( संस्थापिका : थियोसोफिकल सोसायटी ) ने कहा है कि ऐसा कोई धर्मप्रवर्त्तक नही हुआ , जिसने किसी नये धर्म का प्रवर्त्तन किया हो या किसी नये सत्य को उद्घाटित किया हो । ये धर्मप्रवर्त्तक पुरातन ज्ञान ( वैदिक ज्ञान ) के संवाहक ही थे , मूल प्रवर्त्तक नही । हाँ गौतमबुद्ध ने जो नये सिद्धान्त दिये उनसे प्राचीन सत्य सिद्धान्त विकृत ही हुए हैँ ,जैसे - निरीश्वरवाद ( नास्तिकता ) ,क्षणभंगुरता , दुःखमय संसार ( संसार दुःखोँ का घर ) , आत्यन्तिक अहिँसा आदि । केवल इस अकेले आत्यन्तिक अहिँसा के सिद्धान्त ने ही लोगोँ को भीरू व कायर बना दिया जिससे वेँ शत्रु का प्रतिकार नही कर सके । और दुष्ट विधर्मियोँ ने क्रूरता व निर्दयता से असंख्य मनुष्योँ ,स्त्रियोँ , बच्चोँ , वृद्धोँ की हत्या की । इस विकृत सत्य , अहिँसा , शान्ति ,( कुपात्र व कुसमय ) के कारण भारतवर्ष की बहुत हानि हुई है । इसी के कारण हम चीन से युद्ध हारे । इसी के कारण तिब्बत को चीन निगल गया । इसी के कारण लाखोँ तिब्बती बौद्ध ,भारत मेँ शरणार्थी हैँ । भारत के पराधीन होने का एक बडा कारण भी यह तथाकथित अहिँसा व शान्ति रही है । इसी के कारण वृहत क्षेत्र मे फैला बौद्ध धर्म आज संकुचित अवस्था मे है ।इसी के कारण अफगानिस्तान के बामियान ( ब्राह्मणान ) मे विश्वप्रसिद्ध भगवानबुद्ध की मूर्तियोँ को तालिबानियोँ ने तोपोँ से उडा दिया । उन अफगानियोँ व चीनीयोँ ने आपके अहिँसा और शान्ति के पाठ को क्योँ भुला दिया ? उन्होने आपको व्यवहारिकता का दिग्दर्शन कराया । क्या अब भी आपको सत्य , अहिँसा व शान्ति को सही समय व सुपात्र के साथ प्रयोग करने की समझ नही आयी ? । अगर सत्य सिद्धान्तोँ को जानना और मानना चाहते हो तो अपने पुराने मातृधर्म ( वैदिक धर्म ) मेँ पुनः लौटो , तुम्हारा स्वागत है । क्योँकि वैदिकधर्म के सिद्धान्त ही पूर्ण सत्य व वैज्ञानिक हैँ । वैदिक धर्म मेँ अस्पृश्यता (छूआ - छूत , ऊँच - नीच ) का कोई स्थान न तो पहले था और न अब है । इति ।ओउम शम ।।
पंडित राकेश आर्य
ग्राम + डाक - दतियाना
जनपद - मुजफ्फर नगर
उत्तर प्रदेश
चलित दूरभाष 08950108708

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