खीरी लखीमपुर जनपद में थाने के अन्दर एक युवती की हत्या का मामला थमा नहीं था कि बाराबंकी जनपद में घुंघटेर थाने में भिठोकर निवासी गया प्रसाद सूरमा को पूछताछ के नाम पर पुलिस वालों ने पीट-पीट कर मार डाला। उसकी हत्या हो जाने के बाद पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों इस हत्या के मामले पर लीपापोती शुरू कर दी। पुलिस अधिकारीयों ने कहना शुरू किया कि बीती रात 12 बजे गया प्रसाद को ह्रदयघात हो जाने के कारण उसकी मौत हो गयी। जनता ने थाने का घेराव शुरू कर दिया तो पुलिस वालों को पोस्टमार्टम करा कर हत्या का मुकदमा थाना अध्यक्ष हरी लाल करदम, दरोगा बी.एन वर्मा, सिपाही संदीप व अवधेश व तीन अन्य लोगों के ऊपर कायम करना पड़ा।
पुलिस अधिकारीयों की भूमिका हत्या जैसे जघन्य अपराध के साक्ष्यों को नष्ट करने की होती है। यही काम इस केस में भी प्रारंभ हो गया था। अपराधिक विधि के अनुसार सबूतों को नष्ट करने वाले व्यक्तियों को अंतर्गत धारा 401 आई.पी.सी के तहत अभियुक्त होते हैं। ज्ञातव्य है कि भिठोकर गाँव में पांच वर्षीय सविता की हत्या हो गयी थी जिसकी पूछताछ के नाम पर एस.ओ.जी, पुलिस विभाग के उच्चाधिकारी गाँव से कई व्यक्तियों को पकड़ लाये थे और थाने में उनकी पिटाई का कार्यक्रम चल रहा था। मृतक गया प्रसाद सूरमा पुलिस की पिटाई बर्दाश्त न कर पाया और काल के गाल में समा गया। फिर उसके बाद पुलिस अधिकारीयों का बचाव का प्रबंधन शुरू हुआ। तरह-तरह के उपाय निकाले जाने लगे। हर छान अधिकारीयों ने अपने बयान बदले। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों के पास जुगाड़ शुरू हुआ और हो सकता है कि मृतक गया प्रसाद सूरमा का पोस्टमार्टम पुन: कराना पड़े।
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्तिथि बेहद ख़राब है उच्च अधिकारीयों के खिलाफ गंभीर से गंभीर अपराधिक मामलों में उनके खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं होती इसीलिए प्रदेश भर के थानों में पूछताछ के नाम पर तब तक पीता जाता है जबतक मोती रकम देना लोग स्वीकार न कर लें अन्यथा मृत्यु ही उनको उस पिटाई से मुक्ति दिला पाती है। अधिकांश मामलों में कोई कार्यवाई संभव नहीं हो पाती है। जिससे पुलिस के हौसले इस तरह कामो को करने के लिये बुलंद रहते हैं।
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्तिथि बेहद ख़राब है उच्च अधिकारीयों के खिलाफ गंभीर से गंभीर अपराधिक मामलों में उनके खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं होती इसीलिए प्रदेश भर के थानों में पूछताछ के नाम पर तब तक पीता जाता है जबतक मोती रकम देना लोग स्वीकार न कर लें अन्यथा मृत्यु ही उनको उस पिटाई से मुक्ति दिला पाती है। अधिकांश मामलों में कोई कार्यवाई संभव नहीं हो पाती है। जिससे पुलिस के हौसले इस तरह कामो को करने के लिये बुलंद रहते हैं।
-महंत बी.पी दास
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
यू पी में आजकल ऐसा ही है,
सरकार को तो स्मारक के काम से ही फुर्सत नहीं है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
चिंताजनक स्थिति.
एक टिप्पणी भेजें