रविवार, 3 जुलाई 2011

पीड़ा


बहुत जानता है तू

बहुत कुछ सीखा है

पंडित है कर्मयोगी है

ज्ञेय है तुझे सब

पढ़ा है ग्रंथों को

जानता है अनेक रहस्य

बता मुझे पीड़ा क्या है ?

कैसी होती है पीड़ा ?

प्रेम कीए प्रताड़ना की

प्रताड़ित मन के प्रति

प्रेम से उपजी पीड़ा

जानता भी है तू ?

पीड़ा क्या होती है ?

यदि नहीं तो छोड़

इस पांडित्य ढोंग को

जो तुम्हें एक साधारण

मनुष्य भी नहीं छोड़ता



-केदार नाथ कादर

2 टिप्‍पणियां:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

व्याकुल भावों की सहज अभिव्यक्ति

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!!!

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