अन्ना आप भी गांधीवादी हो और डॉ मनमोहन सिंह गांधीवाद की ही विरासत पर सत्तानसीन हैं फिर झगडा किस बात का दोनों गांधीवादी एक साथ मिल जुल कर मामले को हल कर लेते लेकिन आपके आन्दोलन के पीछे जिन ताकतों का हाथ है। उन ताकतों की तरफ या तो आप देख नहीं रहे हैं या देख कर भी अनदेखी कर रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक मुल्क है आपके अनशन के पीछे फोर्ड फाउण्डेशन, ब्लैक ऑथोर फाउण्डेशन सहित दुनिया के तमाम साम्राज्यवादी मुल्कों से मदद लेने वाले गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ) हैं और मीडिया अपनी खबरें बेचने का काम कर रहा है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है। भ्रष्टाचार तो सिर्फ बहाना है एन.जी.ओ का मतलब ही भ्रष्टाचार है और आपके पीछे अधिकांश एन.जी.ओ वाले ही हैं। देश की बहुसंख्यक जनता का लोकपाल या जन लोकपाल से कोई लेना देना नहीं है।
आज अमेरिका दिवालियेपन की और बढ़ रहा है, फ्रांस ऋण ग्रस्त हो रहा है भारत पूंजीवादी विकास के पथ पर एक शक्तिशाली आर्थिक ताकत के रूप में उभर रहा है। साम्राज्यवादी शक्तियां उस पूंजीवादी आर्थिक विकास को रोकने के लिये हर तरह के हथकंडे अपना रही हैं जिसका एक औजार आप भी बन गए हैं। साम्राज्यवादियों के आका अमेरिका को अब लोकतंत्र याद आने लगा है। भारतीय दौरे पर आए अमेरिकी सीनेटर जॉन मैक्केन ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि भारत में इस समय हर ओर भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। देश के लोकतंत्र के लिए यह चिंता की बात है। उन्होंने कहा है कि देश में लोकतंत्र के लिए यह सही संकेत नहीं है। वे इस समय दिल्ली में हैं। उन्होंने कहा कि उनके होटल के सामने हजारों लोग भ्रष्टाचार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।
अन्ना हजारे की गिरफ्तारी पर अमेरिका की तरफ से यह बयान आया था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और वहां किसी को अनशन करने की इजाजत मिलने में रुकावट नहीं आनी चाहिए।
क्या अब अमेरिका बताएगा कि किसको अनशन करने की इजाजत होगी किसको नहीं। ईराक से लेकर अफगानिस्तान तक लोकतंत्र का ठेका अमेरिका ने ले रखा है और इन मुल्कों की दशा और दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। लीबिया में नाटो सेनायें लोकतंत्र के लिये बम्बार्ड कर रही हैं। अधिकांश एशियाई व अफ्रीकी मुल्क अमेरिकन साम्राज्यवादियों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम हैं। आप अनशन अवश्य करिए सिर्फ 21 दिन का नहीं 121 दिन का कर दीजिये तो भी इस देश की मेहनतकश जनता का आपको समर्थन नहीं मिलने वाला है और न समर्थन है। सिर्फ हिन्दुवत्व वादी शक्तियों का आपको समर्थन प्राप्त है जो बेनकाब हो चुकी हैं और आप का लोकपाल बिल भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है आपकी ज़िद है, ज़िद का राजनीति में कोई स्थान नहीं है अगर अमेरिकन इशारे पर यह तय होने लगेगा की लोकतंत्र है या नहीं तो देश नहीं चलेगा। भारत अमेरिकन साम्राज्यवाद से टक्कर लेने में असमर्थ नहीं है न इस देश की जनता। अमेरिका को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि यदि उसने अपने एजेंटों के माध्यम से देश में गड़बड़ी करने की कोशिश की तो दुनिया के नक़्शे पर अमेरिकन साम्राज्यवाद का नामोनिशान मिट जायेगा।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
आज अमेरिका दिवालियेपन की और बढ़ रहा है, फ्रांस ऋण ग्रस्त हो रहा है भारत पूंजीवादी विकास के पथ पर एक शक्तिशाली आर्थिक ताकत के रूप में उभर रहा है। साम्राज्यवादी शक्तियां उस पूंजीवादी आर्थिक विकास को रोकने के लिये हर तरह के हथकंडे अपना रही हैं जिसका एक औजार आप भी बन गए हैं। साम्राज्यवादियों के आका अमेरिका को अब लोकतंत्र याद आने लगा है। भारतीय दौरे पर आए अमेरिकी सीनेटर जॉन मैक्केन ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि भारत में इस समय हर ओर भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। देश के लोकतंत्र के लिए यह चिंता की बात है। उन्होंने कहा है कि देश में लोकतंत्र के लिए यह सही संकेत नहीं है। वे इस समय दिल्ली में हैं। उन्होंने कहा कि उनके होटल के सामने हजारों लोग भ्रष्टाचार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।
अन्ना हजारे की गिरफ्तारी पर अमेरिका की तरफ से यह बयान आया था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और वहां किसी को अनशन करने की इजाजत मिलने में रुकावट नहीं आनी चाहिए।
क्या अब अमेरिका बताएगा कि किसको अनशन करने की इजाजत होगी किसको नहीं। ईराक से लेकर अफगानिस्तान तक लोकतंत्र का ठेका अमेरिका ने ले रखा है और इन मुल्कों की दशा और दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। लीबिया में नाटो सेनायें लोकतंत्र के लिये बम्बार्ड कर रही हैं। अधिकांश एशियाई व अफ्रीकी मुल्क अमेरिकन साम्राज्यवादियों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम हैं। आप अनशन अवश्य करिए सिर्फ 21 दिन का नहीं 121 दिन का कर दीजिये तो भी इस देश की मेहनतकश जनता का आपको समर्थन नहीं मिलने वाला है और न समर्थन है। सिर्फ हिन्दुवत्व वादी शक्तियों का आपको समर्थन प्राप्त है जो बेनकाब हो चुकी हैं और आप का लोकपाल बिल भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है आपकी ज़िद है, ज़िद का राजनीति में कोई स्थान नहीं है अगर अमेरिकन इशारे पर यह तय होने लगेगा की लोकतंत्र है या नहीं तो देश नहीं चलेगा। भारत अमेरिकन साम्राज्यवाद से टक्कर लेने में असमर्थ नहीं है न इस देश की जनता। अमेरिका को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि यदि उसने अपने एजेंटों के माध्यम से देश में गड़बड़ी करने की कोशिश की तो दुनिया के नक़्शे पर अमेरिकन साम्राज्यवाद का नामोनिशान मिट जायेगा।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
"देश की बहुसंख्यक जनता का लोकपाल या जन लोकपाल से कोई लेना देना नहीं है"
क्या उन्हें भ्रष्टाचार से कोई परेशानी नहीं है ? यदि है तो फिर क्यों नहीं लेना देना ?
"एन.जी.ओ का मतलब ही भ्रष्टाचार है"|
सही बात है ,इसलिए उन्हें भी लोकपाल के दायरे में आना चाहिए |
"लोकपाल बिल भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है"|
क्या मूल भावना ये नहीं कहती की संसद को जन हित में कानून बनाने चाहिए,
अब यदि संसद ऐसा नहीं कर रही है , तो जनता को तो जरूर कुछ करना चाहिए |
लोक तंत्र में जन सर्वोच्च है, तंत्र नहीं, तंत्र ये सुनिश्चित करने के लिए है , की सभी कुछ ठीक से चले,
पर जब तंत्र ऐसा नहीं कर पा रहा तो जनता को कदम उठाने ही चाहिए |
जन लोकपाल बिल से सब कुछ सही नहीं हो जायेगा ये सच है, पर ये काफी हद तक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर लेगा |
ये इस दिशा में उठा पहला कदम तो जरूर ही होगा |
अन्ना का पर्दा उठा कर आपने तो अच्छा किया लेकिन यहाँ पढे-लिखे भी नासमझ बन गए है।
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