रविवार, 11 सितंबर 2011

एनजीओ पर नजर रखना जरूरी भाग 2

वैश्वीकृत नवउदारवादी भारत में लाखों की तादाद में कुकुरमुत्ते की तरह एनजीओ का उगना अप्रत्याशित हैभारत सरकार द्वारा कराये गए अध्यन के मुताबिक अभी देश में एनजीओ की संख्या 40 लाख है, अर्थात प्रत्येक एक हजार की आबादी पर तीन एनजीओ अर्थात कोई तीन सौ आदमी के सर पर एक एनजीओ बैठा हैभारत में एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर तो क्या, एक नर्स या कम्पांडर भी नहीं है, वहां तीन-तीन एनजीओ जनता की सेवा में व्याकुल हैं
एनजीओ को नान गवर्मेंटल ओर्गनाईजेशन अर्थात गैर सरकारी संगठन कहा जाता है, लेकिन व्यवहार में ये संस्थाएं सरकारी पैसे और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से प्राप्त धन पर चलते हैंसरकार अपने संवैधानिक उत्तरदायित्व के अनेक काम जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, सफाई आदि उत्तरदायित्व एनजीओ को आउट सोर्स करती हैइसके एवज में एनजीओ सरकार और निजी कंपनियों से भारी रकम प्राप्त करते हैंइस तरह व्यवहार में ये न्यू गवर्मेंटल ओर्गनिजेशन सरकारी (एनजीओ) सरकारी कार्यों के नए सरकारी एजेंट हैंअखबार वालों ने ऐसे ही न्यू गवर्मेंटल एजेंसियों को सिविल सोसाइटी नाम दिया है
ऐसे संगठनो की नीतियाँ उन्हें दान देने वाली कंपनियों की नीतियों और कामो के अनुरूप बदलती रहती हैंये समाज के प्रति उत्तरदायी नहीं होते हैंये महज उनके प्रति जिम्मेदार होते हैं, जिनसे ये रुपये प्राप्त करते हैंकतिपय एनजीओ के सरकार विरोधी बयानों को पढ़कर यह भ्रम मत पालिए कि वे क्रांतिकारी हैंअसल में वे ऐसा करके अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहे होते हैं, जिनके लिये उन्हें धन मिला है
अन्ना आन्दोलन के सूत्रधार अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के संगठन कबीर ने पिछले तीन वर्षों में दुनिया की मशहूर परोपकारी संस्था फोर्ड फाउंडेशन से 4 लाख डालर प्राप्त किये हैंइसी तरह अब यह छिपा नहीं है कि अन्ना आन्दोलन को चलानेवाली संस्था इंडिया अगेंस्ट करप्शन को कोकाकोला और रियल इस्टेट कंपनियों से अपार धन प्राप्त हुए हैंनिम्नांकित तालिका से एनजीओ के सांख्यिक फैलाव को समझा जा सकता है

वर्ष एनजीओ की संख्या
1970
1,44,124

१९८० 1,78,936
1990 नवउदारवाद का प्रथम चरण 5 ,51,837

2000 नवउदारवाद का दूसरा चरण 11,22,782

2010 वर्तमान दौर 11,34,652

ऊपर के आंकड़ों से जाहिर होता है कि नवउदारवादी नीति के बाद एनजीओ की संख्या में दोगुना उछाल आया है

सत्य नारायण ठाकुर
क्रमश:

4 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सोसायटीज एक्ट में पंजीकृत हर संस्था एनजीओ है। बताई गई संख्या में वे सभी सम्मिलित हैं। इन में हर बहुमंजिली इमारत के लिए बनी रेजिडेंट सोसायटी, स्कूल की प्रबंधन समितियाँ आदि भी सम्मिलित हैं। सरकार या विदेशी संस्थाओं से मदद प्राप्त संस्थाओं की संख्या इन में कितने प्रतिशत है यह भी जानना आवश्यक है। इस तरह यह विश्लेषण सतही हो जाता है। हमें इस से बचना चाहिए। अन्यथा हम गलत नतीजों पर पहुँचेंगे।

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

जब एक गाँधीवादी कहलाने का इच्छुक व्यक्ति कोका कोला जैसी कम्पनी से पैसे ले तो भ्रष्टाचार का खात्मा क्या और अधिक फैलाव ही होगा। लानत है ऐसे नीच संगठनों पर और ऐसे गए गुजरे तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं पर।

Mr. Nice ने कहा…

जानते हैं सच तभी तो मौन हैं वो,
और ज्यादा क्या कहें हम कौन हैं वो।
जो हमारे दिल में रहते थे हमेशा-
हरकतों से हो गए अब गौण हैं वो।१।


Good .

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

दुखद बात तो यही है कि जिनके विरुद्ध कारवाई होनी चाहिए वे ही दहाड़ रहे है और जो सच उजागर कर देते है उन्हे उनके अनुयायी गाली लिख और बॅक रहे है ।

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