उपर्युक्त आंकड़ा केवल सोसायटी रजिस्त्रतिओन एक्ट 1860 के अंतर्गत निबंधित संगठनो का है। इसके अलावा अनेक प्रांतीय कानून हैं, जिसके अंतर्गत एनजीओ का निबंधन होता है। केवल महाराष्ट्र में 5 लाख एनजीओ निबंधित हैं। उसके बाद आन्ध्र, केरल, कर्णाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान, उड़ीसा का नंबर आता है, जहाँ प्रत्येक राज्य में एक लाख से ज्यादा एनजीओ कार्यरत हैं। देश के कुल एनजीओ का 80 प्रतिशत इन्ही राज्यों में है। इनका सालाना कारोबार औसत 80000 करोड़ से 100000 करोड़ रुपये का है।
एनजीओ कार्यों का अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्टर और प्रबंध तंत्र है। इनके परस्पर सहयोग का मजबूत नेटवर्किंग है। विदेशों से धन प्राप्त करने और उसके आवंटन का भी मंच है। एनजीओ के मातहत काम करनेवाले युवक युवतियों की संख्या लाखों में है। इनके दारुण शोषण की अलग ही अनोखी कहानिया है। एनजीओ के मातहत काम करनेवाले ऐसे कार्यकर्ताओं की बैठकों में जाने और उनकी व्यथा सुनने का मौका इन पंक्तियों के लेखक को मिला है। उन्होंने अपना संगठन बनाया है, लेकिन उनकी सीमाएं भी हैं, जिनके अन्दर उन्हें काम करना पड़ता है। दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग का भी ध्यान इन कार्यकर्ताओं की तरफ गया और उसने असंगठित क्षेत्र के कार्यकलापों में एनजीओ को भी सूचीबद्ध किया।
एनजीओ को विदेशों से प्राप्त धन का ठीक-ठाक अनुमान लगाना कठिन है। पिछले वर्षों में सरकार ने जो जांच की प्रक्रिया प्रारंभ की, उससे अनेक एनजीओ बौखलाए हैं। मानवाधिकार के नाम पर सथानीय एनजीओ के सहयोग से कश्मीर घाटियों और उत्तर-पूर्व में अनेक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ सक्रिय हैं। इनमें विदेशी जासूसों की उपस्तिथि को नाकारा नहीं जा सकता है।
एनजीओ की बढती विशाल संख्या, इनकी विराट वित्तीय क्षमता और इनकी नानाविधि गतिविधियों को देखते हुए यह जरूरी है कि इन्हें समुचित जांच के दायरे में रखा जाए। भारत की उद्दात मानवतावादी राष्ट्रीयता पर आधारित लोकतंत्र और आजादी की रखवाली के लिये सावधान रक्षा कवच आवश्यक है।
सत्य नारायण ठाकुर
समाप्त
एनजीओ कार्यों का अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्टर और प्रबंध तंत्र है। इनके परस्पर सहयोग का मजबूत नेटवर्किंग है। विदेशों से धन प्राप्त करने और उसके आवंटन का भी मंच है। एनजीओ के मातहत काम करनेवाले युवक युवतियों की संख्या लाखों में है। इनके दारुण शोषण की अलग ही अनोखी कहानिया है। एनजीओ के मातहत काम करनेवाले ऐसे कार्यकर्ताओं की बैठकों में जाने और उनकी व्यथा सुनने का मौका इन पंक्तियों के लेखक को मिला है। उन्होंने अपना संगठन बनाया है, लेकिन उनकी सीमाएं भी हैं, जिनके अन्दर उन्हें काम करना पड़ता है। दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग का भी ध्यान इन कार्यकर्ताओं की तरफ गया और उसने असंगठित क्षेत्र के कार्यकलापों में एनजीओ को भी सूचीबद्ध किया।
एनजीओ को विदेशों से प्राप्त धन का ठीक-ठाक अनुमान लगाना कठिन है। पिछले वर्षों में सरकार ने जो जांच की प्रक्रिया प्रारंभ की, उससे अनेक एनजीओ बौखलाए हैं। मानवाधिकार के नाम पर सथानीय एनजीओ के सहयोग से कश्मीर घाटियों और उत्तर-पूर्व में अनेक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ सक्रिय हैं। इनमें विदेशी जासूसों की उपस्तिथि को नाकारा नहीं जा सकता है।
एनजीओ की बढती विशाल संख्या, इनकी विराट वित्तीय क्षमता और इनकी नानाविधि गतिविधियों को देखते हुए यह जरूरी है कि इन्हें समुचित जांच के दायरे में रखा जाए। भारत की उद्दात मानवतावादी राष्ट्रीयता पर आधारित लोकतंत्र और आजादी की रखवाली के लिये सावधान रक्षा कवच आवश्यक है।
सत्य नारायण ठाकुर
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5 टिप्पणियां:
आलेख से एनजीओ के बारे में कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं बनता है। आलेख के इस भाग में आप ने स्वीकार किया है कि सोसायटीज एक्ट में पंजीकृत संगठन ही एनजीओ है। सोसायटीज एक्ट में प्रत्येक राज्य में पंजीकरण होता है। प्रत्येक शिक्षण संस्था जो सरकारी नहीं है या फिर सहकारी समिति या कंपनी नहीं है वह सोसायटीज एक्ट में पंजीकृत होती है। बहुत से काम जो सरकार द्वारा कराये जाते हैं वे केवल सोसायटी के द्वारा ही कराए जाते हैं। वस्तुतः इस तरह की सोसायटियाँ एक ठेकेदार फर्म की तरह काम करती हैं। जो सरकारी कामों को ठेकेदारी के आधार पर करती हैं। सभी हाउसिंग सोसायटियाँ भी इसी अधिनियम में पंजीकृत हैं। इस कारण यदि हमें एनजीओ का अध्ययन और उन की सामाजिक आर्थिक राजनैतिक भूमिका का अध्ययन करना है तो उन का वर्गीकरण करना पड़ेगा। उस के लिए तथ्य और आँकड़े जुटाना दुष्कर काम है।
लेकिन बहुत से एनजीओ जनसंगठन की भूमिका भी अदा कर रहे हैं हम उनकी अनदेखी नहीं कर सकते।
उन की भूमिका समाज में सकारात्मक है। उन के योगदान का मू्ल्यांकन भी करना होगा।
कुछ भी हो सोसायटीज एक्ट में पंजीकृत संस्थाओं पर समाज का प्रभावी नियंत्रण होना चाहिए। इस बात से सहमति है। वह कैसे संभव हो यह देखना होगा।
एन जी ओ की हालत तो ऐसी है कि अधिकारी की तनख्वाह है 50,000 और साधारण कार्यकर्ता की 1000
एन जी ओ... लोकतंत्र का पाँचवां खम्भा जो कि अदृश्य रह कर कार्य करना चाहता है। सभी ऐसे संगठन चाहते हैं कि सरकार अपाहिज बनी रहे।
kukarmutto ki tarah desh me fele NGO jab karodo me khel rahe hain to un par bhi nazar rakhna aaj ke pridrash me behad jaruri ho jata hai.aapka lekh ati uttam hai...
ये एन जी ओज रिश्वत कमाने की एजेंसियां हैं ज़्यादातर आई ए एस अधिकारियों की पत्नियाँ चलाती हैं और इन्हीं की चेकिंग लोकपाल से अन्ना टीम नहीं कराना चाहती है-मंसूबा साफ है भ्रशाचार का संरक्षण।
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