बुधवार, 14 सितंबर 2011

भूमि अधिग्रहण का नया मसौदा -अधिग्रहण को बढाने का , न की रोकने का

(आम किसानो व अन्य ग्रामवासियों को इन मसौदो व नये भूमि विधेयक के झांसे में आने की जगह भूमि अधिग्रहण का निरन्तर विरोध जारी रखना चाहिए | उसे अपने विरोध को वैश्वीकरणवादी नीतियों तथा डंकल प्रस्ताव के विरोध के रूप में और ज्यादा व्यापक कर देना चाहिए |)
कृषि भूमि अधिग्रहण को लेकर बढ़ते विवाद एवं संघर्ष के फलस्वरूप केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को भूमि अधिग्रहण के नये विधेयक का मसौदा सार्वजनिक कर दिया है |इसमें भूमि अधिग्रहण के साथ - साथ पुनर्वास एवं पुनरस्थापना का भी मसौदा पेश किया गया है| हिन्दी दैनिक "बिजनेस स्टैंडर्ड " (30 जुलाई )और हिन्दी दैनिक " हिन्दुस्तान (30 जुलाई ) के अंक में छपे भूमि - अधिग्रहण के इस मसौदे में बताया गया है कि (1 )80% किसानो के राज़ी होने पर ही भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा ( 2 ) 5 वर्ष तक इस्तेमाल नही होने पर भूमि वापस किसानो को दे दी जायेगी ( 3 ) किसान द्वारा अधिग्रहित जमीन के विवाद में किसी भी स्तर पर किसान हस्तक्षेप की माँग कर सकते है ( 4) सार्वजनिक निजी भागीदारी के तहत किसानो के लिए पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना की व्यवस्था भी अवश्य करना होगा :(5) विधेयक के नये मसौदे के अनुसार सरकार अब निजी कम्पनियों के लिए या निजी उद्देश्यों के लिए जमीन का अधिग्रहण नही कर सकती :(6 ) कई फसले उगाने वाली जमीन का अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भी नही किया जाएगा : ( 7 ) इस मसौदे के अनुसार सरकार को बाँध निर्माण जैसे सार्वजनिक कामो के लिए 80% किसानो की रजामंदी अनिवार्य नही रहेगी ( 8 ) निजी कम्पनियों के निजी इस्तेमाल के लिए अब सरकार भूमि अधिग्रहण नही करेगी | यदि कम्पनिया 100 एकड़ या इससे अधिक भूमि का अधिग्रहण करती है तो उन्हें पुनर्वास पैकेज अपनी तरफ से देना होगा | पुनर्वास पुनर्स्थापना के लिए मसौदे में यह कहा गया है की (1) जमीन की कीमत शहरी इलाके में बाज़ार रेट से दो गुनी और ग्रामीण इलाके में बाज़ार रेट से 6 गुनी ज्यादा भुगतान की जायेगी ( 2 ) प्रत्येक परिवार को 20 साल तक 3000 रूपये महीने के हिसाब से भुगतान किया जाएगा (3) अधिग्रहण में मकान खोने वालो को नये मकान देने होंगे (4) विकसित जमीन को 20 % हिस्सा अधिग्रहण के भुक्तभोगी किसानो को दिया जाएगा (5) प्रत्येक परिवार को मिलेगा दो लाख रूपये मुआवजा या किसी एक सदस्य को नौकरी | नये भूमि अधिग्रहण मसौदे में आपातकालीन भूमि अधिग्रहण पर रोक लगा दी गयी है | विशेष परिस्थिति में सेना सुरक्षा या फिर प्राकृतिक आपदाओं के लिए ही जमीन का आपातकालीन अधिग्रहण किया जाएगा | अभी यह मसौदा है |इसलिए इस पर चर्चा तभी ज्यादा सार्थक रहेगी , जब यह सुधारों , संशोधनों के बाद संसद से पास होकर विधेयक के रूप में हमारे सामने जाए |फिलहाल इन तमाम मसौदो से यह बात साफ़ झलक रही है कि सरकार शहरीकरण , औधोगिकरण एवं बुनियादी ढाचे के विकास के नाम पर जमीन के अधिग्रहण को रोकने का नही , बल्कि उसे बढावा देने का काम करने जा रही है | सरकार के इस मसौदे की मंशा एकदम साफ़ है कि अधिग्रहण तो हो पर विवाद कम से कम हो | किसानो को बेहतर मुआवजे तथा पुनर्वास व पुनर्स्थापना के सुझावों , लालचो से सहमत कराया जाए | यह सरकार द्वारा किसानो व ग्रामीणों के हितो की रक्षा की चिंता से उपजा मसौदा नही है , बल्कि भूमि अधिग्रहण को लेकर पूरे देश में और इस समय उत्तर प्रदेश में किसानो व अन्य ग्रामवासियों के बढ़ते संघर्ष के फलस्वरूप बना मसौदा है | फिर इस मसौदे के पीछे अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव का थोड़ा दबाव जरुर है | अब तक लागू होते रहे भूमि अधिग्रहण कानून और अब उसके नये मसौदे से भी ये बात साफ़ है कि चाहे वर्तमान कांग्रेस की सरकार हो या फिर भाजपा या किसी अन्य पार्टी या मोर्चे की सरकार हो , चाहे वह केंद्र की सरकार हो या फिर प्रांत की सरकार हो , वह कृषि भूमि अधिग्रहण पर अंकुश लगाने वाली नही है | बल्कि उसे वह मुआवजे और पुनर्वास के लालचो के साथ पुलसिया दमनात्मक कारवाइयो के साथ ही आगे बढाने वाली है , जैसा की आज तक होता रहा है ,
क्योंकि धनाढ्य कम्पनियों , बिल्डरों , डेवलपरो को निजी वादी मालिकाना बढाने की उदारवादी एवं निजी छूटे देने के बाद उन्हें देश के हर संसाधन का अधिकाधिक मालिकाना अधिकार चाहिए ही | पिछले 20 सालो से लागू हो रही इन्ही नीतियों के तहत पैसे - पूंजी के धनाढ्य मालिको को यह अधिकार नीतिगत रूप से बढाया जा रहा है | इसके फलस्वरूप ये हिस्से एक के बाद दूसरे क्षेत्र में अपना मालिकाना अधिकार बढाते जा रहे है | स्वभावतया कृषि भूमि पर उनका मालिकाना अधिकार बढाने में भी सरकारे उनका साथ नही छोड़ सकती | अत : चाहे कैसा भी किसान हिमायती दिखने वाला मसौदा क्यों ना जाए , पर उसके जरिये किसानो से जमीन का मालिकाना छुड़ाने , छिनने से बाज़ भी नही सकती |
जंहा तक मसौदे में निजी कम्पनियों के हितो के लिए सरकार द्वारा अधिग्रहण करने का मामला है , तो उसके निजी हितो , स्वार्थो को कहना बताना जितना आसान है , तना ही आसान उसके जरिये सार्वजनिक हितो को दिखलाना भी है | क्योंकि उद्पादन विनिमय जैसी आर्थिक क्रियाये चाहे सार्वजनिक क्षेत्र की हो या निजी क्षेत्र की , वह सामाजिक आर्थिक क्रियायो को ही परिलक्षित करती है |यह बात दूसरी है की निजी क्षेत्र से प्रत्यक्ष: और सार्वजनिक क्षेत्र से भी अप्रत्यक्ष: परन्तु सबसे ज्यादा लाभ उठाने वाली निजी कम्पनिया ही होती है |अत: निजी कम्पनियों द्वारा लाभ के लिए किए जा रहे अधिग्रहण को भी अंतत: निजी मालिकाने में सार्वजनिक हित के लिए किया जाने वाला अधिग्रहण साबित कर दिया जाना है | फिर इस संदर्भ में अगली महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले 20 सालो के पूरे दौर में सरकार सार्वजनिक क्षेत्रो के अपने मालिकाने को बड़े धनाढ्य मालिको को मुकम्मल सौपती जा रही है | अत:कृषि भूमि का सरकार द्वारा सार्वजनिक हित के नाम पर किया जा रहा अधिग्रहण भी क्या कल धनाढ्य कम्पनियों के निजी मालिकाने में नही किया जाएगा ? एकदम किया जाएगा | क्योंकि निजीकरण वादी नीति का मतलब ही है की सार्वजनिक क्षेत्र का मालिकाना निजी हाथो में सौप दिया जाना चाहिए ताकि वे अपने दक्ष एवं कुशल प्रबन्धन से उसे अधिकाधिक लाभकारी ( जाहिर सी बात है अपने लिए ) बना दे |इसलिए इस दौर में सार्वजनिक हित के नाम पर शहरीकरण औधोगिकरण और बुनियादी ढाचे के विकास में उपर से थोड़ा बहुत सार्वजनिक हित भले ही दिखाई पड़ जाए परन्तु उसके भीतर धनाढ्य कम्पनियों का हित मालिकाना अधिकार ही छुपा हुआ है |अत: आम किसानो अन्य ग्रामवासियों को इस मसौदो नये भूमि विधेयक के झासे में आने की जगह भूमि अधिग्रहण का निरंतर विरोध जारी रखना चाहिए | उसे अपने विरोध को वैश्वीकरण वादी नीतियों तथा डंकल प्रस्ताव के विरोध के रूप में और ज्यादा गहरा व व्यापक क देना चाहिए | जागो साथियो जब हमारी जमीने ही हमारे पास नही होंगी तो हम क्या करेंगे सोचो ?
सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

5 टिप्‍पणियां:

desh videsh ने कहा…

बढिया

बिरोध जरूरी है. आपस में एकता भी.

हमारी राय................

http://gulami20.blogspot.com/

आर्थिक गुलामी के 20 वर्ष : कारण और समाधान
पिछले 20 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थतंत्र में ढेर सारे बदलाव किये गये। इसने भारतीय समाज और जनजीवन को गहराई से प्रभावित किया। शासक वर्ग इन बदलावों को विकास के नये युग का नाम दे रहे हैं। उनका कहना है कि भारत की आर्थिक विकास दर 9 प्रतिशत से भी आगे जा चुकी है और जल्दी ही 10-12 प्रतिशत तक पहुँचने वाली है। शेयर सूचकांक एक समय 21000 तक जा पहुँचा था और आज भी यह 18000 से ऊपर बना हुआ है। विदेशी मुद्रा भण्डार 262 अरब डॉलर हो गया है। हमारे प्रबन्धन संस्थानों से निकले स्नातकों की दुनियाभर में माँग बढ़ रही है। इत्यादि।
रेडियों, टीवी चैनल, अखबार, पत्र-पत्रिकाएँ, व्यवस्था-पोषक बुद्धिजीवी-पत्रकार, साम्राज्यवादी देशों की सरकारें, बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रबन्धक, देशी-विदेशी पूँजीपति, नेता, नौकरशाह एक सुर में इस विकास का राग अलाप रहें हैं। इनका मानना है कि भारत 'उभरती हुई अर्थ व्यवस्थाओं' की अगली कतार में है और जल्दी ही यह 'आर्थिक महाशक्ति' बनने वाला है। उनके अनुसार यह चमत्कार 1991 में नयी आर्थिक नीति के लागू होने के साथ शुरू हुए आर्थिक सुधारों की सफलता का परिचायक है।
आर्थिक विकास के ये आँकडे काफी हद तक सही हैं। इसने देश की एक छोटी सी आबादी को मालामाल किया है। लेकिन यह पूरी भारत की सच्चाई नहीं है। जब हम देश की बड़ी आबादी पर निगाह डालते हैं तो इस चमचमाते विकास की कलई खुलने लगती है। मीडिया के अंधाधुंध प्रचार और आंकड़ों के मायालोक से बाहर निकलते ही 'सुधार' जैसे मोहक और भ्रामक शब्द के पीछे छिपी क्रूरतम सच्चाइयाँ हमारी आँखों के आगे नाचने लगती हैं।
इन नीतियों के जरिये हमारे देश के शासकों ने मुट्‌ठी भर लोगों के लिए स्वर्ग का सृजन किया है, जबकि बहुसंखयक आबादी की जिन्दगी को नरक से भी बदतर बना दिया है। इस आलेख में देश को आर्थिक गुलामी की ओर ले जाने वाली इन नवउदारवादी नीतियों के दुष्परिणामों पर एक सरसरी निगाह डालते हुए इसके कारणों पर गहराई से विचार किया जायेगा ताकि हम समस्या के सही समाधान की दिशा में आगे बढ सकें।

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

पहली नजर में तो सचमुच यह अधिनियम सही लगता है लेकिन ध्यान देते ही पता चलता है कि किसी स्थाई सम्पत्ति के बदले अस्थायी लालच के जरिये जमीनें छीन लेने की और चोरों को मालामाल करने की बात कही जा रही है। लेकिन भुलावे के लिए ऐसे नियम बनाए जाने के बाद भी लोग भुलावे में नहीं आएँ, यही तो चाहिए। …मुझे लगता है कि लोगों में यानि किसानों में जमीन को लेकर जागरुकता बहुत आवश्यक है। वरना फँसाने की पुरानी नीति फिर काम कर जाएगी। एक बात मान गया कि हैं सारे नीति निर्माता बड़े शैतान और चालाक।

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

धीरे-धीरे कृषि भूमि कम होते रहने से अन्न-संकट और बढ़ेगा तथा फिर विदेशों से आयात करना पड़ेगा ,इसके पीछे यह षड्यंत्र भी होगा।

बेनामी ने कहा…

Tasveer ka dusra rukh....
such aankhe khol di aapne.
dhanywad

Arvind Pande Wardha ने कहा…

Tasveer ka dusra rukh....
such aankhe khol di aapne.
dhanywad

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