आई बी भारत सरकार की गुप्त सूचनाएं प्राप्त करने की प्रमुख संस्था है। इतना ही नहीं यह हुकूमत की आँख और कान है, अत: बिलकुल शुरू से ही हिन्दुत्ववादियों ने इसमें घुसपैठ शुरू कर दी और आजादी के बाद के दस साल में इसपर पूरा कंट्रोल हासिल कर लिया। किसी सांप्रदायिक संगठन के किसी सरकारी संसथान पर योजनाबद्ध तरीके से नियंत्रण प्राप्त कर लेने का यह आदर्श उदहारण है। उन्होंने ये सब कुछ किस तरह किया, यह भी अध्ययन के लिये एक दिलचस्प विषय है।
आई बी के अधिकारी और कर्मचारी दो तरह के होते हैं। कुछ तो स्थायी रूप से नियुक्त होते हैं और कुछ ख़ास कर माध्यम व ऊँचे पदों पर, राज्यों से डेपुटेशन पर नियुक्त किया जाता है। प्रारंभ में हिन्दुत्ववादियों ने आई बी में प्रवेश किया और सबसे महत्वपूर्ण स्थाई पदों पर जम गए। उसी के साथ आर एस एस जैसे हिन्दुत्ववादी संगठनो ने विभिन्न राज्यों से तेज तर्रार नवयुवक ब्राहमण आई पी एस अधिकारीयों को डेपुटेशन पर आई बी में जाने के लिये प्रोत्साहित करना शुरू किया।
मराठी पाक्षिक पत्रिका 'बहुजन संघर्ष' ( 30 अप्रैल 2007) में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि :
"इस प्रकार आई बी के प्रमुख पदों पर आर एस एस के वफादारों के आसीन हो जाने के बाद उन्होंने यह नीति अपनाई कि खुद ही राज्यों के ऐसे अधिकारीयों को चिन्हित करते जो उनकी नजर में आई बी के लिये उचित होते और उनको जी आई बी में लिया जाने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि आर एस एस की विचारधारा से सहमत युवा आई पी एस अधिकारी अपने सेवा काल के आरम्भ में ही आई बी में शामिल होने लगे और फिर 15, 20 साल तक आई बी में ही रहे। कुछ ने तो अपना पूरा करियर ही आई बी में गुजरा। उदहारण के लिये महाराष्ट्र कैडर के अफसर वी जी वैध सेवानिवृति तक आई बी में ही रहे और डाईरेक्टर के उच्चतम पद तक पहुंचे। दिलचस्प बात यह है कि जब आई बी के डाईरेक्टर थे, उनके भाई एम जी वैध महाराष्ट्र आर एस एस के प्रमुख थे। अगर आई बी के ऐसे अधिकारीयों की सूची पर, जो विभिन्न राज्यों से डेपुटेशन पर आई बी में लिये गए, गहराई से नजर डाली जाए तो यह नजर आएगा कि उनमें से अधिकतर या तो आर एस एस के वफादार रहे हैं या उनका आर एस एस से निकट सम्बन्ध रहा है और वे या तो आर एस एस के इशारे पर आई बी या रा में गए हैं या फिर उनको इन संगठनो में मौजूद आर एस एस का एजेंडा पूरा करने वाले अधिकारीयों ने लिया है। रिकॉर्ड में दिखाने के लिये कुछ ऐसे अफसर भी आई बी में लिये जाते रहे जिनका सम्बन्ध आर एस एस से नहीं रहा लेकिन उनको स्थाई रूप से गैर महत्वपूर्ण काम सौंपे गए।"
एस एम मुशरिफ़
पूर्व आई जी पुलिस
महाराष्ट्र
मो 09422530503
आई बी के अधिकारी और कर्मचारी दो तरह के होते हैं। कुछ तो स्थायी रूप से नियुक्त होते हैं और कुछ ख़ास कर माध्यम व ऊँचे पदों पर, राज्यों से डेपुटेशन पर नियुक्त किया जाता है। प्रारंभ में हिन्दुत्ववादियों ने आई बी में प्रवेश किया और सबसे महत्वपूर्ण स्थाई पदों पर जम गए। उसी के साथ आर एस एस जैसे हिन्दुत्ववादी संगठनो ने विभिन्न राज्यों से तेज तर्रार नवयुवक ब्राहमण आई पी एस अधिकारीयों को डेपुटेशन पर आई बी में जाने के लिये प्रोत्साहित करना शुरू किया।
मराठी पाक्षिक पत्रिका 'बहुजन संघर्ष' ( 30 अप्रैल 2007) में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि :
"इस प्रकार आई बी के प्रमुख पदों पर आर एस एस के वफादारों के आसीन हो जाने के बाद उन्होंने यह नीति अपनाई कि खुद ही राज्यों के ऐसे अधिकारीयों को चिन्हित करते जो उनकी नजर में आई बी के लिये उचित होते और उनको जी आई बी में लिया जाने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि आर एस एस की विचारधारा से सहमत युवा आई पी एस अधिकारी अपने सेवा काल के आरम्भ में ही आई बी में शामिल होने लगे और फिर 15, 20 साल तक आई बी में ही रहे। कुछ ने तो अपना पूरा करियर ही आई बी में गुजरा। उदहारण के लिये महाराष्ट्र कैडर के अफसर वी जी वैध सेवानिवृति तक आई बी में ही रहे और डाईरेक्टर के उच्चतम पद तक पहुंचे। दिलचस्प बात यह है कि जब आई बी के डाईरेक्टर थे, उनके भाई एम जी वैध महाराष्ट्र आर एस एस के प्रमुख थे। अगर आई बी के ऐसे अधिकारीयों की सूची पर, जो विभिन्न राज्यों से डेपुटेशन पर आई बी में लिये गए, गहराई से नजर डाली जाए तो यह नजर आएगा कि उनमें से अधिकतर या तो आर एस एस के वफादार रहे हैं या उनका आर एस एस से निकट सम्बन्ध रहा है और वे या तो आर एस एस के इशारे पर आई बी या रा में गए हैं या फिर उनको इन संगठनो में मौजूद आर एस एस का एजेंडा पूरा करने वाले अधिकारीयों ने लिया है। रिकॉर्ड में दिखाने के लिये कुछ ऐसे अफसर भी आई बी में लिये जाते रहे जिनका सम्बन्ध आर एस एस से नहीं रहा लेकिन उनको स्थाई रूप से गैर महत्वपूर्ण काम सौंपे गए।"
एस एम मुशरिफ़
पूर्व आई जी पुलिस
महाराष्ट्र
मो 09422530503
3 टिप्पणियां:
बड़ी दूर की कौड़ी लाये हैं भाई ||
एकदम सही कथन है। आर एस एस का सोच है शहरों के 3 प्रतिशत और ग्रामों के 2 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल करके वह भारत मे अर्ध सैनिक तानाशाही स्थापित आर सकता है। पुलिस,सेना,गुप्तचर-संगठनॉ,सूचना विभाग,शिक्षा विभाग सभी जगह तो आर एस एस विचार धारा के लोग ठूंस दिये गए हैं और इसमे कांग्रेस के एक गुट ने बराबर उनका साथ दिया है। आजादी के 64 वर्ष बाद भी साम्राज्यवादियों की सांप्रदायिक विभाजनकारी नीतियाँ बरकरार हैं।
अतः निर्णय भी उसी अनुसार लिए जाते हैं जिसमे कोई संशय नहीं है।
are bhai sahab rss se desh ko khtra hota to aaj bharat rss ke hath me hota. sb jante hai ap pulish walo ko agar bharat se pulish ht jaye sena lg jaye to bharat vaise hi visw skti bn jayega...ha hum khud khte hai hm sb jgah hai jitne rss ki sakha me nhi hai usse 3 guna jyada sakha me nhi jate .... desh ke liye mr skte hai... har wakt mdd krte hai...jb bhi seniko ko khun ki jrurat hui diya hai.... bharat ma ko bechne se pehle hm jaise krodo log ko marna pdega rss muslimo ke khilaf nhi hai.... apne bete se puchho POK kya hai jbab mil ljayega rss kya hai
एक टिप्पणी भेजें