मै "रा" को आई बी की श्रेणी में नहीं रखना चाहता क्यूंकि दोनों की विशेषताएं अलग हैं। और उसके निम्न कारण हैं :
2. इसके अलावा यह कि "रा" का कार्य क्षेत्र पाकिस्तान, बंगला देश, चीन, अफगानिस्तान, श्रीलंका और कुछ दूसरे देशों तक सीमित है और वह देश के आंतरिक मामलों पर प्रभाव नहीं डाल सकती। इसलिए आई बी की तरह उपस्तिथि महसूस नहीं हो सकती।
3. पिछले कुछ वर्षों के दौरान इन दोनों संगठनो में प्रोफेशनल मुकाबला इस हद तक पहुँच गया है कि दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नहीं देते।
इस वजह से "रा" में काफी संख्या में हिन्दुवत्व वादी अधिकारीयों की मौजूदगी के बावजूद आर एस एस और दूसरे हिन्दुवत्व वादी संगठन उसको 'अपना' नहीं समझते और उसपर ज्यादा भरोसा नहीं करते। यद्यपि समय-समय पर वे अपने उद्देश्यों के लिये उसका उपयोग भी करते हैं। नतीजे के तौर पर आई बी धीरे-धीरे सबसे ज्यादा शक्तिशाली संगठन बन गई है।
एस एम मुशरिफ़
पूर्व आई जी पुलिस
महाराष्ट्र
मो 09422530503
1. "रा" (RAW: Research & Analyasis Wing ) की स्थापना आजादी के कोई बीस साल बाद इंदिरा गाँधी के शासन काल में हुई थी, इसलिए लगातार कोशिशों के बावजूद इस संगठन का आई बी की तरह हिंदुत्वीकरण नहीं हो सका। यूँ तो रा में भी कुछ अधिकारी हिंदुत्व वादी विचारधारा के हैं, मगर ऐसा मामला एक-आध ही हो सकता है इसलिए इस संस्था में उस प्रकार की वैचारिक घुसपैठ नहीं हो सकी जिस तरह आई बी में हो गयी है।
2. इसके अलावा यह कि "रा" का कार्य क्षेत्र पाकिस्तान, बंगला देश, चीन, अफगानिस्तान, श्रीलंका और कुछ दूसरे देशों तक सीमित है और वह देश के आंतरिक मामलों पर प्रभाव नहीं डाल सकती। इसलिए आई बी की तरह उपस्तिथि महसूस नहीं हो सकती।
3. पिछले कुछ वर्षों के दौरान इन दोनों संगठनो में प्रोफेशनल मुकाबला इस हद तक पहुँच गया है कि दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नहीं देते।
इस वजह से "रा" में काफी संख्या में हिन्दुवत्व वादी अधिकारीयों की मौजूदगी के बावजूद आर एस एस और दूसरे हिन्दुवत्व वादी संगठन उसको 'अपना' नहीं समझते और उसपर ज्यादा भरोसा नहीं करते। यद्यपि समय-समय पर वे अपने उद्देश्यों के लिये उसका उपयोग भी करते हैं। नतीजे के तौर पर आई बी धीरे-धीरे सबसे ज्यादा शक्तिशाली संगठन बन गई है।
एस एम मुशरिफ़
पूर्व आई जी पुलिस
महाराष्ट्र
मो 09422530503
2 टिप्पणियां:
पूर्व आई.जी. एस.एम. मुशरिफ़ महोदय की बातों से सहमति या असहमति जताने से पहले हिंदू या मुसलमान अथवा बाभन या दलित(स्वयंभू) होने की प्रक्रिया से खुद को गुजारना होगा जो कि मुझे स्वीकार नहीं है। आप यदि चाहें तो सरकारी अधिकारी के पद पर नियुक्त करे जाने वाले व्यक्ति का पहले ब्रेन वाश कराने की अनुशंसा कर सकते हैं क्योंकि हर व्यक्ति की कोई न कोई विचारधारा तो होती ही है जिनमें से एक "हिंदुत्ववादी"(हिंदू आतंकवादी नहीं)भी होती है यदि इसमें आपको परेशानी है तो ये बात अन्य धर्मों के मानने वाले अधिकारियों पर भी लागू होती है।
वैसे वर्तमान परिस्थितियों से तंग आकर मैं एक चिढ़ी हुई सलाह दे सकता हूँ कि यदि सारा देश एक साथ इस्लाम स्वीकार कर ले तो शान्ति हो जाएगी और देश कदाचित तरक्की भी करने लगेगा लेकिन इस्लाम का कौन सा पंथ? शिया, सुन्नी, खोजा, बोहरा या फिर नवीनतम अहले हदीस...????? आप भी इसी तरह चिढ़ कर कोई सलाह देना चाहें तो मेरा मोबाइल नंबर है - 09224496555 (नवी मुंबई, महाराष्ट्र)
अफ़सर धार्मिक प्रवृत्ति के हो सकते हैं पर पूरे संस्थान.... !
माफ़ करना, आपसे सहमत नहीं हुआ जा सकता....
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