
13.02.2010 का पुणे जर्मन बेकरी धमाका हो या 07.12.2010 का शीतला घाट, वाराणसी विस्फोट, 13.07.11 का मुम्बई सीरियल ब्लास्ट हो या 13.09.11 की दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर की घटना, इन सभी वारदातों के बाद खुफिया सूत्रों के हवाले से मीडिया में लगातार आने वाले समाचारों में भगवा आतंकवाद से जनता का ध्यान हटाकर जेहादी आतंकवाद को पूरी तरह फिर से स्थापित करने के प्रयासों की झलक साफ दिखाई देती है।
पुणे धमाके के तुरन्त बाद इंडियन मुजाहिदीन और उसके पाकिस्तानी कनेक्शन की खबरें अलग-अलग सूत्रों से आना शुरू हो र्गइं। घटना को अंजाम देने वाले माड्यूल्स के तार कभी पुणे और मुम्बई से जुड़े बताए गए तो कभी उत्तर प्रदेश और भटकल से। अभी कडि़याँ जुड़ भी नहीं पा रही थीं कि जल्दबाजी में भटकल के एक युवक को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे पहले कि ए0टी0एस0 उसके दोषी होने का प्रथम दृष्टया कोई सुबूत दे पाती उसने अपनी बेगुनाही अदालत में साबित कर दी। शीतला घाट वाराणसी के धमाके के पश्चात खुफिया एजेंसियों ने एक बार फिर शक की सुई इंडियन मुजाहिदीन की तरफ घुमाई। इस बार आई0एम0 का कथित आजमगढ़ माड्यूल निशाने पर रहा। कुछ मुस्लिम युवकों के नाम भी उछाले गए। इस घटना को अंजाम देने वाले सूत्रधारोें के बारे में खुफिया एजेंसियों (आई0बी0 तथा रा) के हवाले से कभी यह खबर आई कि वे शारजाह में हैं तो कभी पाकिस्तान में। जाहिर सी बात है कि शीतला घाट पर फटने वाले बम को उतनी दूर से उछाला नहीं जा सकता था। इसके लिए यहाँ पर कुछ लोगों की मौजूदगी आवश्यक थी। ऐसी स्थिति में इन सम्पर्क सूत्रों तक पहुँचे बगैर सूत्रधारों तक पहुँचने की थ्योरी कितनी हास्यास्पद और दुर्भावना पूर्ण है। लगभग एक साल बीत जाने के बाद भी अब तक जाँच में कोई प्रगति नहीं हो पाई है। इससे जाहिर होता है कि जाँच की दिशा ही गलत थी और इसकी जिम्मेदारी खुफिया एवं जाँच एजेंसियों पर ही जाती है। समाचार माध्यमों पर खुफिया एजेंसियों का कितना नियंत्रण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुम्बई धमाकों के बाद पिछले विस्फोटों को अंजाम देने वाले संगठनों की जो सूची समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई है उसमें पुणे और वाराणसी धमाकों के सामने इंडियन मुजाहिदीन का नाम अंकित है। हालाँकि उनको अभी हल नहीं किया जा सका है।
-मसीहुद्दीन संजरी
क्रमश:
पुणे धमाके के तुरन्त बाद इंडियन मुजाहिदीन और उसके पाकिस्तानी कनेक्शन की खबरें अलग-अलग सूत्रों से आना शुरू हो र्गइं। घटना को अंजाम देने वाले माड्यूल्स के तार कभी पुणे और मुम्बई से जुड़े बताए गए तो कभी उत्तर प्रदेश और भटकल से। अभी कडि़याँ जुड़ भी नहीं पा रही थीं कि जल्दबाजी में भटकल के एक युवक को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे पहले कि ए0टी0एस0 उसके दोषी होने का प्रथम दृष्टया कोई सुबूत दे पाती उसने अपनी बेगुनाही अदालत में साबित कर दी। शीतला घाट वाराणसी के धमाके के पश्चात खुफिया एजेंसियों ने एक बार फिर शक की सुई इंडियन मुजाहिदीन की तरफ घुमाई। इस बार आई0एम0 का कथित आजमगढ़ माड्यूल निशाने पर रहा। कुछ मुस्लिम युवकों के नाम भी उछाले गए। इस घटना को अंजाम देने वाले सूत्रधारोें के बारे में खुफिया एजेंसियों (आई0बी0 तथा रा) के हवाले से कभी यह खबर आई कि वे शारजाह में हैं तो कभी पाकिस्तान में। जाहिर सी बात है कि शीतला घाट पर फटने वाले बम को उतनी दूर से उछाला नहीं जा सकता था। इसके लिए यहाँ पर कुछ लोगों की मौजूदगी आवश्यक थी। ऐसी स्थिति में इन सम्पर्क सूत्रों तक पहुँचे बगैर सूत्रधारों तक पहुँचने की थ्योरी कितनी हास्यास्पद और दुर्भावना पूर्ण है। लगभग एक साल बीत जाने के बाद भी अब तक जाँच में कोई प्रगति नहीं हो पाई है। इससे जाहिर होता है कि जाँच की दिशा ही गलत थी और इसकी जिम्मेदारी खुफिया एवं जाँच एजेंसियों पर ही जाती है। समाचार माध्यमों पर खुफिया एजेंसियों का कितना नियंत्रण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुम्बई धमाकों के बाद पिछले विस्फोटों को अंजाम देने वाले संगठनों की जो सूची समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई है उसमें पुणे और वाराणसी धमाकों के सामने इंडियन मुजाहिदीन का नाम अंकित है। हालाँकि उनको अभी हल नहीं किया जा सका है।
-मसीहुद्दीन संजरी
क्रमश:
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