मुम्बई सीरियल धमाकों के तुरन्त बाद मीडिया में आने वाली खबरों की शुरुआत पुणे और वाराणसी की घटना के बाद वाले समाचारों से भिन्न नहीं थी। हालाँकि इस बार इंडियन मुजाहिदीन का ईमेल भी नहीं था। 13
जुलाई की शाम को लगातार बारिश के कारण जाँच में कई प्रकार की बाधाएँ थीं। अफवाहों के कारण यातायात बाधित होने की आशंका से स्थानीय प्रशासन ने थोड़े समय के लिए मोबाइल नेटवर्क जाम कर दिया था। धमाके के बाद से समाचार पत्रों के प्रकाशन में दो से तीन घण्टे का समय भी बाकी था। शायद इतने कम समय में जाँचदल के घटना स्थल पर पहुँचने पर कोई निश्चित जानकारी हासिल कर पाना भी संभव नहीं हो पाता। यदि कोई सुराग हाथ आ भी जाता तो यह तय कर पाने के लिए समय नहीं था कि जाँच हित में उसे सार्वजनिक किया जाए अथवा नहीं। केन्द्रीय गृहमंत्री ने धमाकों से पूर्व किसी भी खुफिया जानकारी के होने से साफ इंकार किया था। ऐसे में अगले ही दिन कई समाचार पत्रों में इस समाचार से खुफिया एजेंसी (
आई0
बी0)
की भूमिका एक बार फिर संदेह के घेरे में आती है। ‘‘
धमाकों से दहली मुम्बई’’ ’......
इन हमलों के पीछे इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-
ए-
तोयबा का हाथ होने की आशंका है’ (
दैनिक जागरण 14
जुलाई पृष्ठ-1) ‘‘
मुम्बई में आतंकी हमला’’ .....
विस्फोटों के पीछे इंडियन मुजाहिद्दीन और लश्कर-
ए-
तोयबा का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है....’’ (
हिन्दुस्तान 14
जुलाई पृष्ठ-1)
यही नहीं अगले दिनों के समाचार पत्रों में देश के कई क्षेत्रों के कथित इंडियन मुजाहिदीन माड्यूल्स पर यकीन की हद तक शक जाहिर करने वाले समाचार खुफिया एजेंसियों के हवाले से प्रकाशित होते रहे। इन समाचारों के शीर्षकों से ही उनके प्रायोजित होने का संदेह होता है। ‘‘
आई0
एम0
माड्यूल्स की तलाश में आजमगढ़ में छापे’’ ‘‘
जाँच एजेंसियाँ खाली हाथ’’
कहीं आत्मघाती हमला तो नहीं’’ (
हिन्दुस्तान 15
जुलाई पृष्ठ-1) ‘‘
आई0
एम0
के भटकल ग्रुप का हाथ’’ ‘‘
मानव बम इस्तेमाल भी जाँच के घेरे में’’
जाँच एजेंसियाँ खाली हाथ’’ (
दैनिक जागरण 15
जुलाई पृष्ठ-1) ‘‘
ब्लास्ट का यूपी कनेक्शन तलाश रही ए0
टी0
एस0’’ (
दैनिक जागरण 15
जुलाई पृष्ठ-13) ‘‘
शक की सुई आत्मघाती हमलावर पर’’ (
अमर उजाला 15
जुलाई पृष्ठ-1) ‘‘
पुलिस की जाँच दायरे में हैं कई आतंकी संगठन’’ (
अमर उजाला 15
जुलाई पृष्ठ-13)
एक ही दिन के अखबार के इन समाचार शीर्षकों से स्पष्ट होता है कि उन्हें कोई अज्ञात शक्ति नियंत्रित कर रही है। वह शक्ति यह तय कर चुकी है कि इन धमाकों का आरोप इंडियन मुजाहिदीन पर ही डालना है और वह लगातार एक-
एक चीज़ की निगरानी भी कर रही है। मुम्बई के झाबेरी बाजार में आत्मघाती हमला होने के समाचार लगभग सभी समाचार पत्रांे में 15
जुलाई को छपे तो 16
जुलाई को ‘‘
धमाकों के पीछे हो सकता है कोई नया संगठन’’
शीर्षक से प्रकाशित समाचार में कहा गया....
जाँच अधिकारियों का मानना है कि पिछले कुछ महीनों में आन्ध्र प्रदेश और केरल से कुछ कम उम्र मुस्लिम युवकों के फिदाईन संगठन में शामिल होने की खुफिया एजेंसियों ने जानकारी दी थी।’’ (
अमर उजाला 16
जुलाई पृष्ठ-13)
पहले फिदाईन हमले की आशंका जताने वाला समाचार और अगले दिन खुफिया एजेंसियों के हवाले से आने वाली इस खबर को जोड़कर देखा जाए तो साफ तौर पर यह लगता है कि आत्मघाती हमला साबित होने की सूरत में भी यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है कि जाँच की जो दिशा पहले तय की जा चुकी है उस पर कोई आँच न आने पाए। लगभग एक सप्ताह तक चलने वाले इस अभियान में इंडियन मुजाहिदीन के भूत को सिर पर उठाए खुफिया एजेंसियाँ देश भर में भ्रमण करती रहीं। कभी कोलकाता से तार जोड़ने का समाचार छपा तो कभी वाराणसी विस्फोट से। कई जगहों से पूछताछ और मुस्लिम युवकों को हिरासत में लेकर यातना देने के समाचार भी आए। फैज उसमानी की मुम्बई क्राइम ब्रांच द्वारा पूछताछ के दौरान टार्चर किए जाने से मृत्यु भी हो गई। जेलोें में बंद धमाकांे के आरोपियों से भी पूछताछ की गई। इस पूरी कवायद से देश भर में दो बड़े समुदायों के बीच भय और संदेह का वातावरण निर्मित होने में अवश्य मदद मिली परन्तु तीन महीने बाद भी गुत्थी नहीं सुलझ सकी। जाँच के गलत दिशा में जाने का यह एक और सुबूत है। पुणे और वाराणसी धमाकों के बाद बगैर किसी ठोस सुराग के इंडियन मुजाहिदीन और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ मीडिया बाजी को लेकर मानवाधिकार संगठनों और सभ्य समाज ने कड़ी आपत्ति जताई थी। शायद इसी वजह से मुम्बई सीरियल
धमाकों के बाद केन्द्रीय गृह मंत्री, गृह सचिव और स्वयं मुम्बई ए0टी0एस0 चीफ ने लगातार यह बात दोहराई कि ऐसा कोई सुराग नहीं मिला है जिससे स्पष्ट रूप से किसी संगठन या व्यक्ति पर उँगली उठाई जाए। फिर भी धमाकों के बाद इंडियन मुजाहिदीन और उसके नाम पर मुसलमानों के खिलाफ पहले से भी ज्यादा आक्रामक मीडिया अभियान पर सीधे इंटेलीजेंस ब्यूरो पर उँगली उठ रही है। आई0बी0 पर यह भी आरोप लग रहा है कि वह भगवा आतंकवाद पर परदा डालने और अपनी नाकामियों से जनता का ध्यान हटाने के लिए मीडिया को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।
-मसीहुद्दीन संजरी
समाप्त
मो. 9455571488
1 टिप्पणी:
khufiya ajensiyon ki nakami ko samne lane ke kiye LOK SANGHARSHA ko dhanyabaad....
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