ये वे लोग हैं जो वाम शासन में भूमिसुधार कार्यक्रम लागू किए जाने के बाद से विगत 20 सालों से भी ज्यादा समय से इस जमीन पर खेती, मछली पालन आदि कर रहे थे। लेकिन राज्य विधानसभा चुनावों में वाममोर्चे की हार के बाद अचानक इन लोगों पर तृणमूल कांग्रेस और भूस्वामियों के गुण्डों के हमले बढ़ गए। जिन किसानों पर हमले किए गए उनके पास वैध पट्टे थे।
इन हमलों में टेंटुलिया मौजा में 1263 बीघा, बातारगाछी में 800 बीघा, मुन्शीर घेरी में 1200 बीघा और नेबुतला में 2800 बीघा जमीन पर गुण्डों ने कब्जा कर लिया और पट्टादार किसानों को बेदखल कर दिया और पूरे इलाके में आतंकराज कायम कर दिया । टेंटुलिया में पूर्व वाम शासन के तहत भूमिसुधार के लिए अधिगृहीत 508 बीघा जमीन को 1205 किसानों में बाँटा गया था। इसके अलावा यहीं पर 755 बीघा जमीन और है जोअदालती मुकदमों में फँसी हुई थी और इसीलिए इस जमीन के औपचारिक पट्टे नहीं दिए जा सके थे। बहरहाल 2000 किसान इन जमीनों पर खेती कर रहे थे और सुप्रीम कोर्ट ने भी यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। लेकिन इस जमीन पर खेती कर रहे तीन हजार किसानों पर तृणमूली गुण्डों ने हमले किए और उनको इस जमीन से बेदखल कर दिया।
उल्लेखनीय है हरोआ एक जमाने में सामंती भूस्वामियों का मजबूत गढ़ हुआ करता था। लंबे किसान आंदोलन के बाद इस इलाके में वाममोर्चा सरकार भूमि
सुधारों को लागू कर पाई थी। भूस्वामियों ने अपनी पुरानी जमीन को हथियाने के लिए दो स्तरों पर हमले आरंभ किए हैं। पहले स्तर पर सीधे माकपा के कार्यकर्ताओं और हमदर्दों को निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें डरा-धमकाकर इलाका छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जो घर-द्वार छोड़कर नहीं जाना चाहते उन्हें सीधे झूठे मुकदमों में फँसाकर पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इस योजना में तथाकथित हथियारों की तलाशी के नाम पर झूठे केस बनाकर गिरफ्तारियाँ की जा रही हैं।
हरोआ के अलावा वीरभूमि, नानुर, दुबराजपुर, इलमबाजार, बाकुंडा के कोतुलपुर,इंदपुर, मेदिनीपुर के कांथी, नंदीग्राम, खेजुरी, भगवानपुर, पाताशपुर, एगरा, हुगली के पुरशुरा, खानकुल, धनियाखाली आदि में बड़े पैमाने पर किसानों को बेदखल किया गया है। इसी तरह वर्द्धवान जिले के कमरकाटी इलाके में 2200 किसान परिवारों की 1200 बीघा जमीन छीनी गई है। दूसरी ओर किसान सभा के नेतृत्व में पुनः नए सिरे से किसानों ने अपने को एकजुट किया और 1200 बीघा जमीन में से 700 बीघा पर फिर से अपना कब्जा जमा लिया। उसी तरह हरोआ में भी किसानों ने अपनी जमीन पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र आंदोलन किया और तृणमूली गुण्डों और भूस्वामियों को जमीन छोड़कर भागने को मजबूर किया।
ममता सरकार आने के साथ ही लालगढ़ इलाके में माओवादियों के खिलाफ चल रहा सशस्त्र सैन्यबलों का ऑपरेशन बिना कहे ढीला कर दिया गया और इस बीच में माओवादियों ने जो इलाके सैन्यबलों के ऑपरेशन के कारण खोए थे उन पर पुनः कब्जा जमा लिया। लालगढ़ में चल रहा माओवाद विरोधी ऑपरेशन केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के संयुक्त कमान के तहत चलाया जा रहा है, लेकिन ममता बनर्जी ने अपने माओवादी प्रेम के चलते इस ऑपरेशन को ठंडा कर दिया और विगत 5 महीनों में पुनः आतंक का राज कायम कर लिया, अपने खोए हुए इलाकों पर पुनः कब्जा जमा लिया, ममता सरकार से मित्र संबंध के बावजूद एक भी माओवादी ने न तो समर्पण किया और न ही माओवादियों ने लालगढ़ में आतंक और हत्या की राजनीति को बंद किया।
इसके विपरीत स्थिति यह है कि लालगढ़ में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर भी माओवादियों के कातिलाना हमले हो रहे हैं। किसी भी दल को लालगढ़ में काम करने की मनाही है और इस इलाके में माओवादियों ने जबरिया धन वसूली का
धंधा तेज कर दिया है। पहले माओवादियों ने माकपा के 270 से ज्यादा सदस्यों की हत्या की और उनके आतंक के कारण सैंकड़ों लोग आज भी लालगढ़ से बाहर रह रहे हैं।
ममता सरकार ने यह मान लिया था कि वह विधानसभा चुनाव जीतने के चंद घंटों में माओवादी हिंसा को बंद कर देगी। लेकिन माओवादियों ने हिंसा और तेज कर दी और सीधे तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को सरेआम कत्ल करके मौत के घाट उतार दिया।
हाल में ममता बनर्जी सरकार को केन्द्र सरकार ने हिदायत दी है कि किसी भी माओवादी नेता या कार्यकर्ता को छोड़ा न जाए। दूसरी हिदायत यह दी है कि लालगढ़ में सैन्यबलों का ऑपरेशन तेज किया जाए। फलतः ममता सरकार को मजबूर होकर माओवादियों के खिलाफ अभियान चलाना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव जीतने के पहले बार-बार यह कहती रही हैं कि लालगढ़ में माओवादी नहीं हैं वहाँ तो माकपा की हरमदवाहिनी हमले कर रही है। ममता बनर्जी लंबे समय से पश्चिम बंगाल में खासकर लालगढ़ में माओवादियों की मौजूदगी को अस्वीकार करती रही हैं। इसके पीछे साफ कारण था कि वे माओवादियों के साथ साँठ-गाँठ करके किसी तरह चुनाव जीतना चाहती थीं और इसके लिए वे एकसिरे से झूठ बोलती रही हैं। अभी भी वास्तविकता यह है कि वे खुलकर माओवादियों के खिलाफ सक्रिय रूप से एक्शन नहीं ले रही हैं। पिछले दरवाजे से अपने हमदर्दों और मानवाधिकार कर्मियों के जरिए माओवादियों से मधुर
संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रही हैं।
-जगदीश्वर चतुर्वेदी
मो. 09331762368
क्रमश:
उल्लेखनीय है हरोआ एक जमाने में सामंती भूस्वामियों का मजबूत गढ़ हुआ करता था। लंबे किसान आंदोलन के बाद इस इलाके में वाममोर्चा सरकार भूमि
सुधारों को लागू कर पाई थी। भूस्वामियों ने अपनी पुरानी जमीन को हथियाने के लिए दो स्तरों पर हमले आरंभ किए हैं। पहले स्तर पर सीधे माकपा के कार्यकर्ताओं और हमदर्दों को निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें डरा-धमकाकर इलाका छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जो घर-द्वार छोड़कर नहीं जाना चाहते उन्हें सीधे झूठे मुकदमों में फँसाकर पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इस योजना में तथाकथित हथियारों की तलाशी के नाम पर झूठे केस बनाकर गिरफ्तारियाँ की जा रही हैं।
हरोआ के अलावा वीरभूमि, नानुर, दुबराजपुर, इलमबाजार, बाकुंडा के कोतुलपुर,इंदपुर, मेदिनीपुर के कांथी, नंदीग्राम, खेजुरी, भगवानपुर, पाताशपुर, एगरा, हुगली के पुरशुरा, खानकुल, धनियाखाली आदि में बड़े पैमाने पर किसानों को बेदखल किया गया है। इसी तरह वर्द्धवान जिले के कमरकाटी इलाके में 2200 किसान परिवारों की 1200 बीघा जमीन छीनी गई है। दूसरी ओर किसान सभा के नेतृत्व में पुनः नए सिरे से किसानों ने अपने को एकजुट किया और 1200 बीघा जमीन में से 700 बीघा पर फिर से अपना कब्जा जमा लिया। उसी तरह हरोआ में भी किसानों ने अपनी जमीन पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र आंदोलन किया और तृणमूली गुण्डों और भूस्वामियों को जमीन छोड़कर भागने को मजबूर किया।
ममता सरकार आने के साथ ही लालगढ़ इलाके में माओवादियों के खिलाफ चल रहा सशस्त्र सैन्यबलों का ऑपरेशन बिना कहे ढीला कर दिया गया और इस बीच में माओवादियों ने जो इलाके सैन्यबलों के ऑपरेशन के कारण खोए थे उन पर पुनः कब्जा जमा लिया। लालगढ़ में चल रहा माओवाद विरोधी ऑपरेशन केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के संयुक्त कमान के तहत चलाया जा रहा है, लेकिन ममता बनर्जी ने अपने माओवादी प्रेम के चलते इस ऑपरेशन को ठंडा कर दिया और विगत 5 महीनों में पुनः आतंक का राज कायम कर लिया, अपने खोए हुए इलाकों पर पुनः कब्जा जमा लिया, ममता सरकार से मित्र संबंध के बावजूद एक भी माओवादी ने न तो समर्पण किया और न ही माओवादियों ने लालगढ़ में आतंक और हत्या की राजनीति को बंद किया।
इसके विपरीत स्थिति यह है कि लालगढ़ में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर भी माओवादियों के कातिलाना हमले हो रहे हैं। किसी भी दल को लालगढ़ में काम करने की मनाही है और इस इलाके में माओवादियों ने जबरिया धन वसूली का
धंधा तेज कर दिया है। पहले माओवादियों ने माकपा के 270 से ज्यादा सदस्यों की हत्या की और उनके आतंक के कारण सैंकड़ों लोग आज भी लालगढ़ से बाहर रह रहे हैं।
ममता सरकार ने यह मान लिया था कि वह विधानसभा चुनाव जीतने के चंद घंटों में माओवादी हिंसा को बंद कर देगी। लेकिन माओवादियों ने हिंसा और तेज कर दी और सीधे तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को सरेआम कत्ल करके मौत के घाट उतार दिया।
हाल में ममता बनर्जी सरकार को केन्द्र सरकार ने हिदायत दी है कि किसी भी माओवादी नेता या कार्यकर्ता को छोड़ा न जाए। दूसरी हिदायत यह दी है कि लालगढ़ में सैन्यबलों का ऑपरेशन तेज किया जाए। फलतः ममता सरकार को मजबूर होकर माओवादियों के खिलाफ अभियान चलाना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव जीतने के पहले बार-बार यह कहती रही हैं कि लालगढ़ में माओवादी नहीं हैं वहाँ तो माकपा की हरमदवाहिनी हमले कर रही है। ममता बनर्जी लंबे समय से पश्चिम बंगाल में खासकर लालगढ़ में माओवादियों की मौजूदगी को अस्वीकार करती रही हैं। इसके पीछे साफ कारण था कि वे माओवादियों के साथ साँठ-गाँठ करके किसी तरह चुनाव जीतना चाहती थीं और इसके लिए वे एकसिरे से झूठ बोलती रही हैं। अभी भी वास्तविकता यह है कि वे खुलकर माओवादियों के खिलाफ सक्रिय रूप से एक्शन नहीं ले रही हैं। पिछले दरवाजे से अपने हमदर्दों और मानवाधिकार कर्मियों के जरिए माओवादियों से मधुर
संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रही हैं।
-जगदीश्वर चतुर्वेदी
मो. 09331762368
क्रमश:
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