लेकिन ममता सरकार आने के बाद सशस्त्र बलों का माकपा को सहयोग मिलना बंद हो गया और राज्य सरकार ने विभिन्न किस्म के झूठे मुकदमों में माकपा के कार्यकर्ताओं को फँसाना आरंभ कर दिया और स्थानीय स्तर पर माकपा कार्यकर्ताओं और हमदर्दों को लालगढ़ इलाक़ा छोड़ने के लिए मजबूर किया और इसका माओवादियों को सीधे लाभ मिला। लालगढ़ इलाके में अन्य किसी दल के पास माओवादियों से लड़ने की सांगठनिक क्षमता नहीं है। ऐसे में ममता बनर्जी सरकार का माकपा पर किया गया हमला मूलतः माओवादियों के लिए एक तरह से खुली छूट की सूचना थी कि वे अब लालगढ़ में मनमानी कर सकते हैं।
माओवादियों ने इस मौके का लाभ उठाया और दुकानदारों से लेकर मकानमालिकों-किराएदारों और सरकारी नौकरों तक सबसे रंगदारी हफ्ता वसूली का धंधा तेज कर दिया है। वे लालगढ़ में प्रतिमाह दो करोड़ रूपये से ज्यादा चैथ वसूली कर रहे हैं। चैथ वसूली करने वालों के खिलाफ यदि कोई व्यक्ति पुलिस में शिकायत करने जाता है तो उसकी शिकायतदर्ज ही नहीं की जाती है और उलटे पुलिसवाले माओवादी आतंक से परेशानी की अपनी दास्तानें सुनाने लगते हैं।
ममता सरकार के आने के बाद केन्द्र-राज्य सरकार की संयुक्त कमान में चल रहा संयुक्त अभियान कमजोर हुआ है। जबकि वामशासन में लालगढ़ इलाके से माओवादियों को पूरी तरह खदेड़ दिया गया था और कई दर्जन माओवादी गिरफ्तार किए गए थे। लेकिन ममता सरकार आने के बाद किसी भी माओवादी को सशस्त्रबलों ने पकड़ा नहीं है,उलटे राज्य सरकार गिरफ्तार माओवादियों को रिहा करने का मन बना चुकी है। संयोग की बात है कि केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम् ने ममता बनर्जी से साफ कहा है कि किसी भी माओवादी को रिहा नहीं किया जाना चाहिए।
सवाल यह है कि माओवाद की समस्या का समाधान क्या है? यह एक खुला सच है कि माओवाद की समस्या उन इलाकों में ज्यादा है जहाँ पुलिस थानों की संख्या कम है, थानों में पर्याप्त पुलिस नहीं है। सामान्य पुलिस व्यवस्था का जहाँ अभाव है वहाँ पर माओवादी जल्दी अपनी गतिविधियाँ संगठित करते हैं। माओवाद से लड़ने के लिए पुलिस व्यवस्था के विकास, थानों में पर्याप्त पुलिसकर्मी नियुक्त करने, थानों के अपग्रेडेशन की जरूरत है, इसके अलावा पुलिसकर्मियों को चुस्त-दुरूस्त बनाए जाने की भी सख्त जरूरत है। इसके अलावा माओवाद और विभिन्न किस्म के आतंकी संगठनों से निबटने के लिए माओवाद प्रभावित इलाकों में विशेषदलों की पर्याप्त मात्रा में समान रूप से नियुक्ति करने की जरूरत है।
भारत के प्रसिद्ध सुरक्षा विशेषज्ञ अजय साहनी के अनुसार माओवाद प्रभावित जिलों में आज तकरीबन 70 बटालियन नियुक्त करने की जरूरत है। एक बटालियन में 400 सैनिक होते हैं। साहनी का मानना है कि किसी एक इलाके में सैन्यबलों की खास मौजूदगी देखकर माओवादी उस इलाके से निकलकर अन्य कम पुलिसवाले इलाकों में चले जाते हैं। अतः माओवाद प्रभावित इलाकों में स्थाई तौर पर 28 हजार सैन्यबलों को नियुक्त किया जाना चाहिए और यह काम दीर्घ कालिक (मियादी) होना चाहिए। माओवाद से दीर्घ कालिक (मियादी) योजना बनाकर ही लड़ा जा सकता है। इस समस्या का समाधान यह नहीं है कि माओवाद प्रभावित इलाकों में विकास के कार्यक्रम लागू कर दिए जाएँ। विकास को माओवादविरोधी रणनीति के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए बल्कि विकास को निरंतर चलने वाली सामान्य प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए।
माओवाद का समाधान विकास नहीं है। माओवाद का समाधान पुलिस एक्शन भी नहीं है। विकास को निरंतर जारी प्रक्रिया के रूप में लिया जाना चाहिए, दूसरा, माओवाद प्रभावित इलाकों में थानों को चुस्त बनाया जाना चाहिए। सामान्य तौर पर थानों में पर्याप्त पुलिस बलों की मौजूदगी और विशेषबलों द्वारा तुरंत, प्रभावशाली एक्शन लेने की मनोदशा तैयार करने की जरूरत है और इस काम को दलीय स्वार्थ से मुक्त होकर करना चाहिए।
कुछ विशेषज्ञ तर्क दे रहे हैं कि माओवादियों के सक्रिय होने का प्रधान कारण यह है कि नव्य आर्थिक उदारीकरण के कारण बड़े पैमाने पर देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों को जमीनें दी गई हैं और इसके कारण ही माओवादी संगठनों को इन इलाकों में अपना जाल फैलाने का अवसर मिला। यह तर्क एब्सर्ड है। माओवादी पहले से हैं और उन्हें हम नक्सल नाम से जानते हैं। नेपाल में विदेशी कपनियों का कोई पैसा नहीं लगा है फिर वहाँ माओवादी संगठनों ने व्यापक जनाधार कैसे बना लिया?
गरीबी, विकास का अभाव, बहुराष्ट्रीय निगमों या करपोरेट घरानों के हाथों में बड़े पैमाने पर आदिवासियों की जमीन के स्वामित्व के कारण माओवादी संगठनों का प्रसार नहीं हुआ है। इसका प्रधान कारण है
मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के लोगों का किसान, आदिवासी आदि के प्रति रोमैंटिक क्रांतिकारी नजरिया। दूसरा प्रधान कारण है माओवादी संगठनों का अवैध धंधों, जैसे फिरौती वसूली, तस्करी, ड्रग स्मगलिंग,
अवैध हथियारों की खरीद-फरोख्त के ग्लोबल नेटवर्कों के साथ साझेदारी और मित्रता। खासकर बहुराष्ट्रीय शस्त्रनिर्माता कंपनियों के हितों के विकास के लिए काम करना।
-जगदीश्वर चतुर्वेदी
मो. 09331762368
क्रमश:
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