शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

महान पत्रकार, पत्रकारिता जगत के सिरमौर - रूसी करंजिया


"बाती बुझ गयी-
देह दीप की व बाती
जिससे अहंकार त्रस्त थे
और नरभक्षी हवाएं बदहवास,
आज का नवजात इतिहास-
जब भी बोलेगा
यही बोलेगा"

पत्रकारिता जगत के निर्भीक महामानव रूसी करंजिया की याद आते ही उपरोक्त पंक्तियाँ बरबस होठों पर जाती हैं एक पत्रकार बंधु ने रूसी को जब उपरोक्त पंक्तियाँ सुनाई तो रूसी करंजिया का मुखमंडल मुस्कान की झीनी आभा से दमक उठा था उनके आसपास बैठे लोग चकित थे- उनकी आकृति की उर्जमायी छवि देखकर रूसी करंजिया पंचानवे बसंत देख चुके थे दुनिया को दिखा चुके थे कि निर्भीक एवं स्वतन्त्र पत्रकारिता के माने क्या होते हैं, कितने और क्या-क्या होते हैं उसके पहलू और पराक्रम जाना तो था ही उन्हें, सो चले गए, किन्तु अपनी जो विरासत छोड़ गए उस पर, उनके जाते ही, एक चुनौतीबाचक प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है- है कोई शेर की छातीवाला वीर इस मीडिया में, जो रूसी करंजिया को आगे बाधा सके? रूसी करंजिया भारत में टेबोलायड पत्रकारिता के जनक माने जाते हैं सही अर्थों में वे देश के प्रथम खोजी पत्रकार थे ऐसे समय जब सारे अख़बार 'व्यवस्था पत्र' का चोला धारण कर रहे थे, करंजिया का अखबार व्यवस्था को बेपर्द कर रहा था जिन व्यवस्था - पुरुषों के काले कारनामों का करंजिया ने पर्दाफाश किया उन्होंने उनकी खोजी पत्रकारिता को 'पीत पत्रकारिता' करार देने की लाख कोशिशें की किन्तु उनका कोई असर नहीं पड़ा- करंजिया की सेहत पर 'ब्लित्ज' के तेवरों-ताकत पर, ही पाठकों के चाव पर
'ब्लित्ज' का मतलब ही - आक्रमण, धावा, चढ़ाई व्यवस्था का चाहे जो भी अंग अथवा अवयब हो, 'ब्लित्ज' का नाम सुनते ही खौफ लगता था 'ब्लित्ज' समाचार पत्र के पाठकों की पहली पसंद होता था रूसी करंजिया ने 'ब्लित्ज' साप्ताहिक के निर्भीक एवं स्वतन्त्र चरित्र को कभी विचलित या कलंकित नही होने दिया उन्होंने 'इंडियन एक्सप्रेस' के संपादक 'फ्रेंक मोरेस' को अपना गुरु माना था मोरेस के निधन पर उन्होंने कहा था- फ्रेंक की रचना के बाद भगवन ने अपना सांचा तोड़ दिया यह टिपण्णी स्वयं करंजिया के लिये भी शत प्रतिशत सटीक है रूसी अपने समय के सबसे महान संपादक थे, सबसे सज्जन और सबसे उदार व्यक्ति भी वे अपने देश के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे जीवन के उत्तरार्ध में उनके विचारों में भारी बदलाव आया वे सचमुच बदल गए इसी कारण वे मीडिया के नज़ारे पर लगभग आधी सदी तक छाये रहे प्रत्येक स्तर प्रत्येक क्षेत्र के लोगों ने उनकी साहसिक पत्रकारिता को सराहा वे विश्व के नेताओं से सीधा- संपर्क साधते और संवाद करते थे, और अपने साप्ताहिक पत्र में उनक नेताओं के चित्र के साथ अपना चित्र भी प्रकाशित करते थे मिस्र के नासिर से, रूस के खुश्चेव, कास्त्रो और ईरान के शाह तक तमाम विश्व-विभूतियों के साथ चित्र छपने से करंजिया देश विदेश में विख्यात हो गए थे वे मीडिया में अपनी पहचान ' क्रांतियों के इतिहासकार और क्रांतिकारियों के जीवनी- लेखक' के रूप में स्थापित करना चाहते थे यह पहचान उन्होंने डंके की चोट पर बनायीं-अपनी विशुद्ध विनम्रता को बरकरार रखते हुए अपनी प्रसिद्धि और प्रभाव को वे तुच्छ मानते थे और किसी भी व्यक्ति से किसी भी समय मिलने में संकोच नहीं करते थे

राम किशोर

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