इस बात को अक्सर अनदेखा किया जाता है कि प्रजातंत्र, संवैधानिक एवं मानवाधिकार भवन की भाँति हैं एवं आर्थिक राजनैतिक एवं सामाजिक स्वरूप उसकी नींव हैं। नीतियों की फिर से विवेचना आवश्यक है जब संसार इस मार्ग से विपरीत ढंग से प्रभावित हो। सरकार की प्रमुख राजनैतिक शक्तियों ने चाहे वह केन्द्र की हो अथवा राज्य की, विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, निजी आर्थिक संस्थाआंे एवं कारपोरेट समूहों द्वारा नामित सलाह कारों एवं नीति निर्धारकों की सारी शर्तें स्वीकार कर ली हैं। जिसके परिणाम स्वरूप सार्वजनिक संसाधनों का अंधाधुंध निजीकरण हो रहा है, जैसे कि हाइड्रोकार्बनिक संसाधन एवं खनिज पदार्थ। फलस्वरूप प्रजातांत्रिक संस्थाएँ विपरीत ढंग से प्रभावित हो रही हैं। करोड़ों लोगों के हितों की सुरक्षा खटाई में पड़ रही है एवं सामाजिक समझौते का पूर्ण ह्रास हो रहा है। इन नीतियों के कारण स्थानीय उत्पादन में गिरावट आई है, जीविकोपार्जन प्रभावित हो रहा है, एवं किसान वर्ग खाद्य एवं आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में बढ़ती हुई मुद्रास्फ़ीति के कारण बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
मुझे व्यक्तिगत रूप से भारत के जहाज़रानी निगम की एक नव रत्न कम्पनी के निजीकरण के निर्णय को वैधानिक रूप से जाँचने का अवसर प्राप्त हुआ, यह घाटे वाली इकाई नहीं थी। इसके साथ ही भारत के जहाज़रानी निगम की मैरीटाइम एकेडमी की भूमि को दीन दयाल उपाध्याय ट्रस्ट के पक्ष में निजीकरण के लिए चिह्नित किया गया। मुझे एन0डी0ए0 गवर्नमेंट द्वारा 2003 में कैबिनेट कमेटी के निजीकरण के निर्णय को भी जाँच पड़ताल करने का अवसर मिला। यह निजीकरण जनहित में बिल्कुल नहीं था। यदि आर्थिक दृष्टिकोण से इस पर नजर डाली जाए तो यह पूरी तरह से निजी बड़ी कम्पनियों के हित में था। यह निर्णय केवल इस इकलौती विचार धारा से प्रभावित था कि सार्वजनिक सम्पत्ति को कैसे सर्वाधिक प्रिय निजी कम्पनियों को हस्तांतरित कर दिया जाए। इस व्यवस्था को (दोस्ताना) पूँजीवाद कहा जाता है तथा इस व्यवस्था की संपूर्ण विश्व में आलोचना की जा रही है। सौभाग्य वश निजीकरण को रोक दिया गया, जब हमने इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस निर्णय की प्रकृति से प्रथम दृष्टया ही स्पष्ट था कि जिस निजीकरण की नीति को व्यावहारिक बताकर, विशाल सार्वजनिक संसाधनों, वित्त एवं सम्पदा को, जिसको कि स्वतंत्रता के बाद बड़े कष्ट से बनाया गया था, उस धन को निजी पूँजीपतियों के घरानों को सौंपा जा रहा था एवं संविधान के आदेशों की अवहेलना करके भारतीय गणराज्य को कारपोरेटों के हवाले किया जा रहा था, क्योंकि राजनैतिक संस्थाओं का पूरे विश्व में पतन हुआ है एवं यह ‘प्लूटोवाद’ की तरफ लौट रही है। नीरा राडिया टेप अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे आर्थिक नीतियों पर कारपोरेट जगत के प्रभाव को स्पष्ट करते हैं। इसके साथ-साथ वे मीडिया तथा सरकार पर भी उसके प्रभाव को उजागर करते हैं। मीडिया से यह आशा की जाती है कि वे जनता से संबंधित समस्त समस्याओं को निष्पक्ष भाव से प्रकाशित करेंगे। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, जहाँ कई राजनैतिक दल राष्ट्रीय अर्थ के मुद्दों पर राज्य की नीतियों के प्रभाव के सम्बंध में उदासीन रहे। सार्वजनिक नागरिक उड्डयन विभाग का दिवालियापन,इसके पीछे बोइंग कम्पनियों से एयरक्राफ़्ट आयातित करने का फैसला शक्तिशाली मन्टीनेशनल कम्पनी के प्रति एक तरह से श्रद्धांजलि थी। यह कुछ ऐसे उदाहरण हैं कि जिसको भारत के महालेखाकार ने खुलासा किया। हाइड्रोकार्बन के क्षेत्र में भी निजीकरण किया गया। यह इस बात का साक्ष्य है कि राष्ट्रीय धन को प्रत्येक क्षेत्र के निजीकरण के होड़ में नष्ट किया जा रहा है। हम प्रतिदिन ऐसी नीतियों से घनिष्ट होते जा रहे हैं जिसके कारण पश्चिमी संसार के बहुत से देश दिवालिया घोषित हो रहे हैं तथा बैंकों की अलाभकारी संपत्तियों से सब्सिडी के नक़ाब के पीछे तथा कारपोरेट सेक्टर को 5 लाख करोड़ से अधिक टैक्स छूट प्रदान करके जनता की नजरों से ओझल किया जा रहा है।
यह कुछ ऐसे तज़ुर्बे हैं जो पश्चिमी जगत के बैंकों, आर्थिक संस्थानों के धराशायी होने से सामने आए हैं। अमरीका की नीतियाँ जो कि लोगों के लिए आर्थिक कष्ट उत्पन्न कर रही हैं एवं जिससे संवैधानिक संकट भी उत्पन्न हो रहा है। रिजर्व बैंक की यह घोषणा कि निजी बैंकों को जहाँ कि विदेशों की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी हो, को अनुमति प्रदान करना एवं बैंकों को कारपोरेट कंपनियों के लिए सुविधा प्रदान करना है। यह ऐसी नीति है कि स्वयं अमरीका अपने देश में इसकी अनुमति नहीं प्रदान करता। फलस्वरूप इससे हमारी आर्थिक व्यवस्था प्रभावित होगी तथा संवैधानिक एवं आर्थिक ढाँचा चरमरा जाएगा।
-नीलोफर भागवत
अनुवादक: मो0 एहरार एवं मु0 इमरान उस्मानी
क्रमश:
मुझे व्यक्तिगत रूप से भारत के जहाज़रानी निगम की एक नव रत्न कम्पनी के निजीकरण के निर्णय को वैधानिक रूप से जाँचने का अवसर प्राप्त हुआ, यह घाटे वाली इकाई नहीं थी। इसके साथ ही भारत के जहाज़रानी निगम की मैरीटाइम एकेडमी की भूमि को दीन दयाल उपाध्याय ट्रस्ट के पक्ष में निजीकरण के लिए चिह्नित किया गया। मुझे एन0डी0ए0 गवर्नमेंट द्वारा 2003 में कैबिनेट कमेटी के निजीकरण के निर्णय को भी जाँच पड़ताल करने का अवसर मिला। यह निजीकरण जनहित में बिल्कुल नहीं था। यदि आर्थिक दृष्टिकोण से इस पर नजर डाली जाए तो यह पूरी तरह से निजी बड़ी कम्पनियों के हित में था। यह निर्णय केवल इस इकलौती विचार धारा से प्रभावित था कि सार्वजनिक सम्पत्ति को कैसे सर्वाधिक प्रिय निजी कम्पनियों को हस्तांतरित कर दिया जाए। इस व्यवस्था को (दोस्ताना) पूँजीवाद कहा जाता है तथा इस व्यवस्था की संपूर्ण विश्व में आलोचना की जा रही है। सौभाग्य वश निजीकरण को रोक दिया गया, जब हमने इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस निर्णय की प्रकृति से प्रथम दृष्टया ही स्पष्ट था कि जिस निजीकरण की नीति को व्यावहारिक बताकर, विशाल सार्वजनिक संसाधनों, वित्त एवं सम्पदा को, जिसको कि स्वतंत्रता के बाद बड़े कष्ट से बनाया गया था, उस धन को निजी पूँजीपतियों के घरानों को सौंपा जा रहा था एवं संविधान के आदेशों की अवहेलना करके भारतीय गणराज्य को कारपोरेटों के हवाले किया जा रहा था, क्योंकि राजनैतिक संस्थाओं का पूरे विश्व में पतन हुआ है एवं यह ‘प्लूटोवाद’ की तरफ लौट रही है। नीरा राडिया टेप अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे आर्थिक नीतियों पर कारपोरेट जगत के प्रभाव को स्पष्ट करते हैं। इसके साथ-साथ वे मीडिया तथा सरकार पर भी उसके प्रभाव को उजागर करते हैं। मीडिया से यह आशा की जाती है कि वे जनता से संबंधित समस्त समस्याओं को निष्पक्ष भाव से प्रकाशित करेंगे। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, जहाँ कई राजनैतिक दल राष्ट्रीय अर्थ के मुद्दों पर राज्य की नीतियों के प्रभाव के सम्बंध में उदासीन रहे। सार्वजनिक नागरिक उड्डयन विभाग का दिवालियापन,इसके पीछे बोइंग कम्पनियों से एयरक्राफ़्ट आयातित करने का फैसला शक्तिशाली मन्टीनेशनल कम्पनी के प्रति एक तरह से श्रद्धांजलि थी। यह कुछ ऐसे उदाहरण हैं कि जिसको भारत के महालेखाकार ने खुलासा किया। हाइड्रोकार्बन के क्षेत्र में भी निजीकरण किया गया। यह इस बात का साक्ष्य है कि राष्ट्रीय धन को प्रत्येक क्षेत्र के निजीकरण के होड़ में नष्ट किया जा रहा है। हम प्रतिदिन ऐसी नीतियों से घनिष्ट होते जा रहे हैं जिसके कारण पश्चिमी संसार के बहुत से देश दिवालिया घोषित हो रहे हैं तथा बैंकों की अलाभकारी संपत्तियों से सब्सिडी के नक़ाब के पीछे तथा कारपोरेट सेक्टर को 5 लाख करोड़ से अधिक टैक्स छूट प्रदान करके जनता की नजरों से ओझल किया जा रहा है।
यह कुछ ऐसे तज़ुर्बे हैं जो पश्चिमी जगत के बैंकों, आर्थिक संस्थानों के धराशायी होने से सामने आए हैं। अमरीका की नीतियाँ जो कि लोगों के लिए आर्थिक कष्ट उत्पन्न कर रही हैं एवं जिससे संवैधानिक संकट भी उत्पन्न हो रहा है। रिजर्व बैंक की यह घोषणा कि निजी बैंकों को जहाँ कि विदेशों की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी हो, को अनुमति प्रदान करना एवं बैंकों को कारपोरेट कंपनियों के लिए सुविधा प्रदान करना है। यह ऐसी नीति है कि स्वयं अमरीका अपने देश में इसकी अनुमति नहीं प्रदान करता। फलस्वरूप इससे हमारी आर्थिक व्यवस्था प्रभावित होगी तथा संवैधानिक एवं आर्थिक ढाँचा चरमरा जाएगा।
-नीलोफर भागवत
अनुवादक: मो0 एहरार एवं मु0 इमरान उस्मानी
क्रमश:
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