कुछ मजबूरियां रही होंगी वर्ना हम बेवफा नहीं होते
स्वतन्त्र राष्ट्रों की कुछ मजबूरियां होती हैं। उनके हित होते हैं. अपने को सर्वोच्च साबित करने के लिए एक दूसरे के खिलाफ षड़यंत्र भी करते रहते हैं. षड़यंत्र या कूटनीति संसद या विधानसभाओ में या मीडिया में प्रचारित करके नहीं होती है लेकिन जब मामले फंसते हैं तो जनता अपनी अपनी तरह से आवाज उठाती है।
यह बात सुरजीत सिंह के पाकिस्तान की लखपत कोट जेल से रिहाई के बाद सही साबित होती है। सुरजीत सिंह ने अपने बयान में कहा है कि वह रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रा) का एजेंट था और भारतीय सेना के लिये जासूसी करने गया था, इसके लिये उसे सम्मान दिया जाना चाहिए। यह बात सही भी हो सकती है और पूर्णतया गलत भी। होता यह है कि किसी देश के जासूस के पकडे जाने के बाद हर देश अपने जासूस को पहचानने से इनकार कर देता है और रिहाई जिस देश से होती है वह देश भी ऐसी बातें कहला सकता है। जासूस डबल एजेंट भी हो जाते हैं सुरजीत सिंह को फांसी की सजा हुयी थी। जिसको माफ़ करके आजीवन कारावास में काफी पहले बदला जा चुका था और अब चिश्ती की रिहाई के बदले में मृत्युदंड प्राप्त पाकिस्तान में निर्रुध सरबजीत की रिहाई होनी थी। सरबजीत का मामला जैसे उठता है पाकिस्तानी मीडिया, आई.एस.आई तथा पाकिस्तानी जनता चीख पुकार लगाना शुरू कर देती है। पाकिस्तानी मीडिया ने सुरजीत सिंह को छोड़ते समय सरबजीत सिंह को आतंकवादी कहलाया है। यह राजनीति का घालमेल है। जैसे हमारे देश में मुंबई आतंकी घटना में मृत्युदंड प्राप्त पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब का मामला आता है मीडिया आर.एस.एस हिन्दुत्ववादी शक्तियां हाय-तौबा करने लगती हैं और एक बड़ा तबका कसाब को बिरयानी खिलाने को लेकर प्रलाप करने लगता है। जिस तरह से हमारे लिए सुरजीत या सरबजीत नायक हैं। उसी तरह अजमल कसाब जैसे लोग हमारे देश के लिये खलनायक हैं, आतंकी हैं, किन्तु पाकिस्तानी मीडिया कट्टरपंथी जनता के लिये वह नायक है। राष्ट्रों की अपनी मजबूरियां हैं कूटनीति है, राजनीति है। एक दूसरे की जासूसी, एक दूसरे के खिलाफ हत्याएं। आतंक फ़ैलाने का कार्य जारी रहेगा। कसाब हो या सुरजीत बिरयानी खाते रहेंगे ।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
यह बात सुरजीत सिंह के पाकिस्तान की लखपत कोट जेल से रिहाई के बाद सही साबित होती है। सुरजीत सिंह ने अपने बयान में कहा है कि वह रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रा) का एजेंट था और भारतीय सेना के लिये जासूसी करने गया था, इसके लिये उसे सम्मान दिया जाना चाहिए। यह बात सही भी हो सकती है और पूर्णतया गलत भी। होता यह है कि किसी देश के जासूस के पकडे जाने के बाद हर देश अपने जासूस को पहचानने से इनकार कर देता है और रिहाई जिस देश से होती है वह देश भी ऐसी बातें कहला सकता है। जासूस डबल एजेंट भी हो जाते हैं सुरजीत सिंह को फांसी की सजा हुयी थी। जिसको माफ़ करके आजीवन कारावास में काफी पहले बदला जा चुका था और अब चिश्ती की रिहाई के बदले में मृत्युदंड प्राप्त पाकिस्तान में निर्रुध सरबजीत की रिहाई होनी थी। सरबजीत का मामला जैसे उठता है पाकिस्तानी मीडिया, आई.एस.आई तथा पाकिस्तानी जनता चीख पुकार लगाना शुरू कर देती है। पाकिस्तानी मीडिया ने सुरजीत सिंह को छोड़ते समय सरबजीत सिंह को आतंकवादी कहलाया है। यह राजनीति का घालमेल है। जैसे हमारे देश में मुंबई आतंकी घटना में मृत्युदंड प्राप्त पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब का मामला आता है मीडिया आर.एस.एस हिन्दुत्ववादी शक्तियां हाय-तौबा करने लगती हैं और एक बड़ा तबका कसाब को बिरयानी खिलाने को लेकर प्रलाप करने लगता है। जिस तरह से हमारे लिए सुरजीत या सरबजीत नायक हैं। उसी तरह अजमल कसाब जैसे लोग हमारे देश के लिये खलनायक हैं, आतंकी हैं, किन्तु पाकिस्तानी मीडिया कट्टरपंथी जनता के लिये वह नायक है। राष्ट्रों की अपनी मजबूरियां हैं कूटनीति है, राजनीति है। एक दूसरे की जासूसी, एक दूसरे के खिलाफ हत्याएं। आतंक फ़ैलाने का कार्य जारी रहेगा। कसाब हो या सुरजीत बिरयानी खाते रहेंगे ।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
बिरयानी खाने वालों का कुछ नहीं हो सकता
ऐसा भी होता है....
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