सोमवार, 30 जुलाई 2012

इसलिए मांगनी चाहिए मोदी को माफी

नरेन्द्र मोदी से शायद ही कोई यह अपेक्षा करेगा कि वे किसी से क्षमा मांगेगे। क्षमा मांगने का नैतिक साहस और शक्ति उनमें होती है जो उदार होते हैं, जिनका दिल बड़ा होता है. और दुनिया जानती है कि नरेन्द्र मोदी का दिल बड़ा नहीं है।

दुनिया के इतिहास में अनेक महान और प्रतिष्ठित लोगों ने क्षमा मांगी है या उनको माफ किया है जिन्होंने उन पर तरह-तरह की ज्यादतियां की थीं। दक्षिण अफ्रीका में गोरों का शासन समाप्त हुआ और नेल्सन मंडेला, आजाद दक्षिण अफ्रीका के प्रथम राष्ट्रपति बने। एक भव्य समारोह में उन्होंने शपथ ली। समारोह में विभिन्न देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजे-महाराजे आदि शामिल हुये। समारोह के अंत में नेल्सन मंडेला ने घोषणा की कि मैं आपका परिचय दो विशिष्ट अतिथियों से कराना चाहता हूँ। सभी विशिष्ट अतिथियों ने सोचा कि ऐसे कौन से विशिष्ट अतिथि हैं जो हमसे भी ज्यादा विशिष्ट हैं और जिनका परिचय मंडेला कराना चाहते हैं। मंडेला की घोषणा के बाद दो गोरे व्यक्ति मंच आये। दोनों को मंडेला ने अपने दोनों ओर खड़ा किया। उन्होंने कहा कि मैं जब जेल मे था उस समय इन दोनों ने मुझ पर तरह-तरह के जुल्म किए। परन्तु आज मैं इन्हें क्षमा कर रहा हूँ और इनके माध्यम से मैं दक्षिण अफ्रीका के उन सभी गोरों को माफ कर रहा हूँ जिन्होनें यहां के मूल निवासियों पर वर्षों तक अत्याचार किये थे। इस तरह का क्षमादान नेल्सन मंडेला जैसा महान हृदय व्यक्ति ही कर सकता है। क्षुद्र हृदय नरेन्द्र मोदी के पास इतना बड़ा दिल नहीं है।

कुछ वर्षों पहले, ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भारत आईं थीं। अपनी भारत यात्रा के दौरान वे अमृतसर भी गयीं थीं। अमृतसर प्रवास के दौरान उन्होनें जलियांवाला बाग गोलीकांड के लिये क्षमा मांगी। एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में एकत्रित हजारों लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं थीं जिससे सैकड़ो लोग मारे गये थे। जनरल डायर की करतूत की निंदा भारत में तो की ही गई थी ब्रिटेन में भी की गई थी। इसलिए महारानी एलिजाबेथ ने अपने भारत प्रवास के दौरान जलियांवाला बाग में हुई हत्याओं के लिये माफी मांगी। सन् 1984 में सिक्खों के कत्लेआम के लिये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित अनेक कांग्रेस नेताओं ने माफी मांगी।

हेम बरूआ एक प्रखर समाजवादी नेता थे। लोकसभा में चीनी आक्रमण की निन्दा करते हुये उन्होने नेहरू को गधा और देशद्रोही कह दिया। थोड़े समय बाद नेहरू जी की मृत्यु हो गई। हेम बरूआ भी उनकी अंत्येष्टि में शामिल हुये। हेम बरूआ ने तीन बार नेहरू जी के पैर छुए। उन्होंने ऐसा क्यों किया, इसका स्पष्टीकरण देते हुये उन्होने धर्मयुगसाप्ताहिक में एक लेख लिखा था। उन्होने लेख में कहा कि मैंने एक बार नेहरू जी के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाते पैर छुए, दूसरी बार मैंने एक महान प्रधानमंत्री का नमन किया और तीसरी बार मैंने नेहरू जी से क्षमा मांगी-उन्हें गधा कहने के लिए। हेम बरूआ एक महान नेता थे। इसलिये उनका दिल भी महान था।

पर मोदी तो किसी से भी माफी मांगने को तैयार नहीं हैं। जब भी कोई दंगा होता है या आगजनी में लोग मारे जाते हैं, बाढ़ और भूकम्प में अपना सब कुछ खो देते हैं तो प्रधानमंत्री और मंत्रीगण पीड़ितों की खबर लेने जाते हैं। वे प्रायः इस बात के लिये खेद व्यक्त करते हैं कि उन्हें पीड़ित व्यक्तियों की जितनी सहायता करनी चाहिए थी वे. नही कर पाये। वे मृत व्यक्तियों के परिवारवालों से मिलते हैं। वे दुःखी लोगों का दुःख बांटने का प्रयास करते हैं। जबकि उस प्राकृतिक विभीषिका के लिए वे स्वयं किसी भी तरह से दोषी नहीं होते।

इसके विपरीत, नरेन्द्र मोदी एक भी दंगा पीड़ित के पास नही गये। उनका हाल चाल पूछने का प्रयास तक नहीं किया। क्या उनका यह कर्तव्य नहीं था कि वे पूर्व सांसद एहसान जाफरी, जिनकी बड़ी क्रूरता से हत्या की गई थी, की पत्नी से मिलकर शोक व्यक्त करते, और क्षमा मांगते कि पुलिस सही समय पर उनकी रक्षा के लिए नहीं आ सकी? क्या नरेन्द्र मोदी का यह फर्ज नहीं था कि वे उन पुलिसकर्मियों को दंडित करते जो जाफरी को आश्वासन तो देते रहे परंतु उनकी सहायता के लिये नहीं पहुंचे? क्या उन्हें उन हजारों लोगों से मिलकर माफी नहीं मांगनी थी जो राहत शिविरों में नारकीय जीवन बिता रहे थे। शिविर में रह रहे पीड़ितो से मिलना तो दूर की बात है, उलटे नरेन्द्र मोदी ने इन पीड़ितों के बारे में अत्यधिक घटिया टिप्पणी की। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ये शिविर बच्चे पैदा करने के कारखाने बन गए हैं। क्या इस तरह की घटिया बात करने वाले व्यक्ति से क्षमा मांगने की अपेक्षा की जानी चाहिए?

कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि गोधरा में जो कुछ हुआ था वह मोदी द्वारा रचे गये षड़यंत्र का हिस्सा था। क्या मोदी को इस बात का पता नही था कि गोधरा स्टेशन पर लगभग प्रतिदिन अयोध्या से वापिस आने वाले कारसेवकों और स्थानीय मुसलमानों के बीच टकराव की घटनाएं हो रहीं थीं? इन घटनाओ के मद्देनजर क्या गोधरा में व विशेषकर रेलवे स्टेशन पर पुलिस की तैनाती बढ़ाई नहीं जानी थी? जिस दिन, जैसा कि आरोपित है, मुसलमान एस-6 कोच में आग लगा रहे थे तब पुलिस ने उन्हें रोका नहीं? क्या पुलिस को ऐसे तत्वो पर गोली नहीं चलानी थी? परन्तु ऐसा नहीं हुआ और अनेक
कारसेवक मारे गये। उसके बाद मोदी ने लाशों पर राजनीति की। सभी लाशों को अहमदाबाद ले जाया गया और क्षत-विक्षत शरीरों का सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया। हिन्दू धर्म की परम्परा के अनुसार मृत व्यक्ति की अंतिम क्रिया जल्दी से जल्दी की जानी चाहिये। ऐसा न करना, मृत व्यक्ति का अपमान माना जाता है। क्या लाशों पर राजनीति करना उचित था? कम से कम नरेन्द्र मोदी को उन परिवारों के पास जाकर क्षमा मांगनी थी जिन्होंने अपने प्रियजनों को गोधरा के अग्निकांड में खोया था।

गुजरात दंगे के दौरान अनेक लोगों के घर जला दिये गये थे। जिनके घर जले वे अपने घरो को छोड़कर चले गये। उनमें से कई आज तक वापस नहीं आये हैं। क्या उन्हें वापस लाने का प्रयास मोदी को नही करना था? कश्मीर में अनेक पंडित परिवार घर-बार छोड़कर चले गये हैं। उन्हें वापस लाने का प्रयास कश्मीर की जनता और सरकार कर रही है। अभी हाल में अनेक पंडित एक धार्मिक समारोह में शामिल हुये। इस समारोह मे आने वाले पंडितों का भव्य स्वागत स्थानीय मुसलमानों ने किया। ऐसा कुछ गुजरात की सरकार और वहां के हिन्दू क्यों नही कर रहे हैं? क्यों वे उन मुसलमानों से फिर से अपने शहर और गांव में बसने की अपील नहीं कर सकते जो दंगों के बाद भाग गए थे? क्या इस तरह के हजारों लोगों से क्षमा मांगने की आवश्यकता नहीं है जो आतंकित होकर अपने गांवो और घरों को छोड़कर चले गये? क्या मोदी को यह स्वीकार करने मे हिचक है कि उनकी पुलिस और प्रशासन की लापरवाही और दंगाईयों से मिलीभगत के चलते इन लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा।

मोदी जी, आपने एक नहीं सैकड़ों गलतियां की हैं जिनके लिये आपको क्षमा मांगना चाहिये। लेकिन आप तो बेशर्मी से कहते हैं कि मैं माफी क्यों मांगूं
- एल. एस. हरदेनिया

2 टिप्‍पणियां:

Ayaz ahmad ने कहा…

नरेन्द्र मोदी बचपन से ही एक विशेष विचारधारा को लेकर बड़े हुए हैं जो कि मुसलमानों के समूल नाश को राष्ट्र के लिए अनिवार्य मानती है। उन लोगों के बल पर ही मोदी को एकाएक सीएम बना दिया गया और उन्होंने वही किया जो उनके गुरूओं ने सोचा था और जिसका प्रशिक्षण उन्होंने लिया था।
उनसे कोई शिकायत नहीं है। इतिहास को ग़लत नज़र से पढ़ा जाए तो यही सब होता है।
मुसलमानों को चाहिए था कि वे इतिहास की ग़लतियों से सबक़ हासिल करते और ख़ुद को मज़बूत बनाते। जब वे ख़ुद को कमज़ोर बनाते गए तो उन्हें किसी ने अपना निवाला बना लिया तो इसमें अजब कुछ भी नहीं है।
दुनिया का दस्तूर यही है।

बेनामी ने कहा…

लो भाई हरदेनिया साहब सुन लो ,,,नेल्शन मंडेला की तरह एक बार मोदी को शासक बन जाने दो फिर आप जैसे विरोधियों को वो भी माफ कर देंगे , चिंता ना करो ,,,,मोदी राज़ आ जाए फिर जलियांवाला बाग जैसी घटना के लिए बोडो हिन्दु आदिवासियों से माफी मांग लेंगे कि भाई हम अपने धर्मनिरपे़क्ष कांग्रेस सरकार के कुकृ्त्य के लिए आप देशभक्त आदिवासियों से माफी मांगते है , क्योकि कांग्रेसियो के कारण ही आसाम दुसरा कश्मिर बनने जा रहा है ,,,,और तीसरी बात हेम बरुआ की तरह तीन बार मोदी जी भी देश से माफी मांग लेंगे कि मेरी गलती है मै देश का प्रधानमंत्री बनने लायक 10 -20 साल पहले क्यो नही हुआ कम से कम देश को लुटने से तो बचा सकता ,,,,चौथी बात मोदी जी भी माफी मांगेंगे उन कश्मिरी पंडितो से ,कि क्षमा करो हमे हम उस समय कुछ ना कर पाए जब तुम लोगों को तुम्हारे ही घरो से निकाल तुम्हारे ही देश मे शर्णार्थी बना दिया गया ,,,,,,,,तो हरदिनिया जी मोदी जी माफी मांगेंगे , जरुर मागेंगे ,, थोडा लाल झंडे मे और गहरा हरा रंग लगाओ ,,मोदी जी माफी मांगेगे

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