शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

काशी का निरालापन

 बनारस -काशी

यदि आप आज भी बनारस की खूबियों से अपरचित है तो आइये आज आपका परिचय उससे करा दूँ | मुमकिन है आपने इस दृश्यों को देखा हो पर इस गरज से न देखा हो की यह सब भी बनारस की खूबियों में है | सुबहे-बनारस कि काफी दाद दी जाती है ,इसलिए जब कभी आप बनारस तशरीफ ले आवे तो इसका ध्यान रहे की सुबह हो; शाम या रात नही |
स्टेशन से बाहर आते ही आपको दर्जनों जलपान -गृह दिखाई देंगे |    इन दुकानों में बनी सामग्री की सोधी
 महक से आपका दिल -दिमाग तर हो जाएगा |   यहा से आप शहर की ओर ठीक नाक की सीध में चले |  दाहिने -बाए देखने की जरूरत नही है |
स्टेशन से एक फर्लांग आगे काशी विद्यापीठ है |   यह वह संस्था है जहा के छात्र या तो नेता बनते है अथवा शासक | काशी विद्यापीठ अथवा नेता जन्मदाता पीठ  |इसी के पीछे काशी का प्रसिद्ध कब्रगाह फातमान है जहा इतिहास के प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध व्यक्ति चिर -निद्रा में सोये हुए है |  पास ही भारत में अपने ढंग का अकेला मंदिर 'भारतमाता का मन्दिर 'है |इसके निर्माता है स्व. दानवीर बाबू शिवप्रसाद गुप्त |  मंदिर के बगल में भगवानदास स्वाध्यायपीठ है | पुस्कालय के ठीक सामने च्न्दुवा   की प्रसिद्ध सट्टी है |  कुछ दूर आगे शरणार्थी बस्ती ,बर्मियोका एक बौद्ध  मंदिर तथा बनारस में खेल -कूद के लिए बनाया गया स्टेडियम है |
कुछ दूर आगे ईसाइयो  का गिरजाघर है |   प्राचीन काल में यहा डाकू रहते थे जो राह चलते व्यक्तियों को कत्ल करके कुए में छोड़ देते थे |  काशी का प्रसिद्ध 'मौत का कुआ 'यही था | यही से दो रास्ते पूर्व और पश्चिम दिशा की ओर गये है |   पश्चिम वाला रास्ता वार -बनिता की नगरी की ओर तथा पूर्व वाला शहर की ओर गया है | पूर्व वाले रास्ते में बनारस का प्रसिद्ध 'आशिक -माशूक की कब्रगाह ' है |  बनारसी प्रेमियों को यही से प्रेरणा और स्फूर्ति प्राप्त होती है |यह वज ऐतिहासिक  स्थान है ,जिसके दर्शन के बिना परें 'अनकनफर्म्ड 'रहता है |इस स्थान पर कैथ के अनेक वृक्ष है |किवदन्ती है ,प्रत्येक वृक्ष से दो कैथ प्रतिपदा के दिन नियमित नीचे गिरते है |
थोड़ी दूर पर औरंगजेब के शासन काल में निर्मित सराय ,पान दरीबा है | औरंगाबाद दर्शनीय मुहल्ला है |   कहा जाता है -'काशी बसकर क्या किया ,जब घर औरंगाबाद |'
मुहल्ला सिगरा के आगे भारत -विख्यात महाप्योध्याय पंडित गोपी नाथ कविराज का  मकान है | ठीक इसके पीछे का स्थान 'छोटी गैबी ' कहलाता है ,जहा गुरुलोग रात बारह बजे तक नहाते -निपटते है | पास ही रथयात्रा की प्रसिद्ध चौमुहानी है | यहा वर्ष में तीन दिन जन - समारोह होता है |  काशी की लोक कला के दर्शन सोरहिया  तथा रथयात्रा  के मेले में ही होते  है | लक्सा की अधिकाश रामलीला यही होती है |
पास ही विश्व विख्यात थिसोसोफिक्ल सोसायटी है   |यहा बनारस के बालक और बालिकाए शिक्षा प्राप्त करते है |  सोसायटी के दक्षिण भाग में वैधनाथ और बटुकभैरव का मंदिर है |  इसी मंदिर के समीप सेन्ट्रल हिन्दू -कालेज ,बड़ी गैवि आदि प्रसिद्ध स्थान है |
कालेज से कुछ दूर आगे खोजवा बाज़ार है ,जो नबाबो के खोजाओ के रहने के कारण मुहल्ला बन गया | आजकल अनाज की मंडी है | पास ही शहर को आलोकित तथा जलदान करने वाला 'बिजली घर 'और पानीकल ' है | थोड़ा ही आगे बढने पर अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त  अथितिशाला दिखाई देगी |  यहा संसार के ख्यातिप्राप्त राजनीतिज्ञ लोग आकर मेहमान नवाजी करते है |बनारस वालो  को अपनी इस कोठी पर नाज़ है जो संसार के महान पुरुषो को अपने यहा ठहराकर भारतीय संस्कृति का परिचय देती है |  यह भवन है -  महाराजकुमार विजयानगरंम यानी 'ईजा--- नगर 'की कोठी |
यहा से कुछ दूर पर दुर्गाकुण्ड है ,जहा राम की सेनाये ही नही बल्कि पास ही सेनापति महोदय का भी भवन है | दुर्गाकुण्ड का मंदिर रानी भवानी और वानर -  सेनापति संकटमोचन का मंदिर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित  हुए है | संकटमोचन के मंदिर में नित्य सुन्दरकाण्ड और हनुमानचालीसा के पाठ करने वाले भक्तो की भीड़ लगी रहती है |खासकर इम्तहान के समय छात्रो की भीड़ बढ़ जाती है |  यूनिवर्सिटी के छात्रो  का विश्वास है 'संकटमोचन बाबा '  बिना पढ़े -लिखे ही परीक्षा की वैतरणी पार करा जाते है    |छात्र -छात्राए परस्पर प्रेम के स्थायित्व की शपथ भी यही लेते है | यहा दलवेसन बहुत गुणकारी ,प्रभावशाली होता है |
यह है लंका; रावण वाली नही - ----  काशी की अपनी निजी |  आगे भारत प्रसिद्ध शिक्षा -    संस्था विश्वविद्यालय है |   पास ही नगवा घाट है -   -  जहा बाबू शिवप्रसाद गुप्त की कोठी है |  यही एक बार स्वामी करपात्री जी ने यज्ञ करवाया था |
यह है ,पुष्कर तीर्थ |  इसके आगे अस्सी और कुरुक्षेत्र तालाब है |   सूर्य ग्रहण के दिन तालाब में धर्मपरायण व्यक्ति स्नान के नाम पर कीच स्नान करते है |   आगे भदैनी है और बगल में तुलसी घाट ,जहा तुलसीदास की खडाऊ और उनके द्वारा स्थापित हनुमान जी का मंदिर दर्शनीय है |  बनारस का यह मुहल्ला साहित्यकारो का भी एक गढ़ है |   सोलहवी शताब्दी में यह स्थान काशी का बाहरी अंचल माना जाता था |
यह है हरिश्चन्द्र घाट |  कुछ लोग इसे काशी का प्राचीन श्मशान मानते है ,पर यह बात गलत है |  पहले यहा ड़ोमो  की बस्ती थी | डोम लोग महाश्मशान में अपने परिवार की लाश नही जला पाते थे | यह लोग अपने को राजा हरिश्चन्द्र के वंशज मानते थे इसीलिए यह प्रचारित होता रहा की यही काशी का प्राचीन श्मशान है जहा राजा हरिश्चन्द्र श्मशान के रक्षक बने रहे |
हरिश्चन्द्र घाट के आगे काशी की सबसे खड़ी सीढ़ी वाला घाट केदारघाट है |  यहा का घंटा सभी मंदिर के घंटो से तेज आवाज में गूजता है | यहा से कुछ दूर पर तिलभांडेश्वर महादेव का मंदिर है | कहा जाता है की ये महादेव जी साल में तिल बराबर वजन में बढ़ते है | पता नही ,इसके पूर्व इन्हें कभी तौला गया था या नही ,वरना ये कितने प्राचीन है ,इसका पता पुरातत्व वाले बता देते |
यह है मदनपुरा |   संभवत: प्राचीनकाल में यही मदन का दहन  हुआ था | बनारसी साडियों  के विश्वविख्यात कलाकार इसी मुहल्ले में रहते है |
अब हम गोदौलिया आ गये |  प्राचीन काल में यहा गोदावरी नदी बहती थी |  गोदावरी तीर्थ स्थान के उपर आजकल मारवाड़ी अस्पताल स्थापित है | यही से एक रास्ता दशाश्वमेध घाट की ओर गया है |   आगे बड़ा बाज़ार है ,बड़े -बड़े होटल और शर्बत की दुकाने है | यहा काशी की ठढई सादी  और विजया सहित मिलती है | शाम के समय अधिकाश बुद्धिजीवी का अड्डा यहा जमता है ,जहा साहित्य -चर्चा  से लेकर परचर्चा   तक होती है | यही से उपन्यास लिखने के फार्मूले ,कहानी लिखने के प्लाट ,कविता लिखने की प्रेरणा और आलोचना लिखने का मसाला मिलता है | न जाने कितने लोगो का यहा मुड बनता और बिगड़ता है | साहित्य में इन होटलों की देन महत्त्वपूर्ण है |
यह रहा गिरजाघर ,जहा ईसाई   धर्म का प्रचार खुलेआम होता है | सुनने वालो से अधिक भाषण देने वाले दिखाई देते है | पास ही बनारस की सबसे बड़ी 'सोमरस की मंडी  ' यानी ताड़ीखाना है | कुछ दूर आगे 'नयी सडक 'मुहल्ला है | बनारस में अब तक जितने दंगे हुए है सभी का सूत्रपात इसी मुहल्ले से हुआ है | बगल में शेख सलीम  का फाटक है जिसके बारे में इतिहासकार और पुरातत्वविदों में मतभेद है |  एक का कहना है की अकबर -  --- पुत्र सलीम जब काशी आया था तब उसने इसे बनवाया था |  दूसरे का कहना है की शेख सलीम चिश्ती के नाम पर अकबर ने यहा फाटक बनवाया था   |बात चाहे जो हो यह स्थान है ऐतिहासिक  ; इसे सभी मानते है | यहा भामाशाह का सुरमा मिलता है |  पांच पैसे में सारे जीवन का रहस्य बताया जाता है |
यहा अधिकतर काबुल के सेठ रहते है जो बिना जमानत लिए .रहन  रखे ,सिर्फ शक्ल  देखकर एक आने सूद पर मुक्त हस्त कर्ज़ देकर जनता जनार्दन की सेवा करते है | पास ही एक बड़ा मैदान है जिसे 'विक्टोरिया पार्क 'अथवा 'बेनिया बाग़ ' कह्ते है  |  नाम तो इसका बाग़ है पर इसके एक भाग में अस्पताल,दूसरे में चेतसिंह की मूर्ति और बचा -खुचा भाग नेताओं के प्रवचन तथा नुमाइश के लिए रिजर्व रखा गया है |  |बेनिया बाग़ के आगे चेतगंज है | कहा जाता है की यह मुहल्ला राजा चेतसिंह के नाम पर बसाया गया है | वारेन हेस्टिंग तथा चेत सिंह के सैनिको में यही युद्ध हुआ था | इस मुहल्ले की नक्कटैया की ख्याति सम्पूर्ण भारत में है  |कुछ दूर आगे लालकोठी में नगरपालिका और हथुआ कोठी में भूतपूर्व अन्नदाता  वर्तमान सीमेंट -लोहादाता रहते है | यह है लहुरावीर की चौमुआनी | किसी जमाने में यहा भूत रहते थे ,अब आदम की औलाद रहने लगी है |  इन स्थानों का काशी में अपना निजी महत्त्व है | काशी में प्रत्येक वीर के नाम पर एक -एक मुहल्ला बस गया है | जैसे डयोढ़ीयावीर ,भोजुवीर ,और लहुरावीर आदि |
इस चौमुआनी के उत्तर वाली सडक कचहरी ,पश्चिम वाली स्टेशन ,दक्षिण वाली गिरजाघर और पूरब वाली राजघाट की ओर गया है | राजघाट की ओर जाने वाली सडक की ओर आगे बढने पर घोड़ा अस्पताल (पशु अस्पताल ) कबीर मठ  और शिवप्रसाद गुप्त औषधालय भी दिखाई देंगे | अस्पताल के सामने बनारस का सबसे बड़ा किराना बाज़ार है | जहा जाते ही छीक  की बीमारी  शुरू हो जाती है |  अस्पताल के बगल में राधा स्वामी का मंदिर है जहा वारेन हेस्टिंग आकर टिका था |  पास ही 'आज ' अखबार का दफ्तर ,लोहे -लकड़ी की मंडी  लोहटिया  और नखास है | नखास के पास बड़े गणेश जी का मंदिर है | यहा गणेश चौथ के दिन मेला लगता है | इस मुहल्ले के पास ही हरिश्चन्द्र कालेज और दाराशुकोह के नाम पर बसा हुआ मुहल्ला दारानगर है |
यह है , मैदागिन |  काशी के प्रमुख चौमुहानी में अन्यतम | प्राचीन काल में इस स्थान को मन्दाकिनी तीर्थ कहा जाता था | अब उसकी जगह कम्पनी बाग़ और टाउनहाल बन गया है |इस टाउनहाल में पहले अँधेरी कचहरी थी | अब यहा कचहरी है ,पर वह अपना प्रभाव छोड़ गयी है  |  फलस्वरूप टाउनहाल बक्चो का मुरब्बा बन गया है | जिस प्रकार आजतक लंगड़ी भिन्न  का रहस्य (छोटे ,मंझले और बड़े कोष्ठ का रहस्य ) नही समझ सका ,ठीक उसी प्रकार टाउनहाल क्या है समझ नही सका | मुमकिन है आप भी न समझ सके | इस स्थान से कुछ आगे भारत प्रसिद्ध संस्था 'काशी नागरी प्रचारणी सभा 'है |  बाबा विश्वनाथ के कोतवाल का भवन और कोतवाली थाना का घनिष्ठ सम्बन्ध यही है | बनारस की सबसे बड़ी अनाज की मंडी  विश्वेश्वरगंज भी यही है |
इस मुहल्ले के बारे में कुछ लोगो का मत है की प्राचीन काल में काशी का प्रमुख बाज़ार था |   यही पर विश्वनाथ जी का मंदिर था जिसे मुसलमानों ने तोड़ दिया | सम्भवत:इसीलिए इस मुहल्ले का नाम विश्वेश्वरगंज है | प्राचीन ग्रंथो के अध्ययन से मालूम होता है की तुगलक काल के पूर्व शिवलिंग का नाम देवदेव स्वामी और अविमुक्तेश्वर था |  विश्वनाथ नाम बारहवी शताब्दी के बाद प्रचलित हुआ है  |पास ही भीतरी महाल में गोपाल जी का मंदिर और बिंदुमाधव का धरोहरा है | यही एक मकान में छिपकर गोस्वामी तुलसीदास वाल्मीकि रामायण को मौलिक रूप दे रहे थे |  विश्वेश्वरगंज से एक सडक अलईपूर मुहल्ले की ओर गयी है | यहा एक मुहल्ला आदमपुरा है ,पता नही बाबा आदम से इसका कोई सम्बन्ध है या नही | कुछ दूर आगे मछोदरी पार्क है जहा राजा बलदेवदास द्वारा निर्मित अस्पताल और घंटाघर है | राजा साहब दान देने में जितना सक्रिय रहे ,उतना ही सक्रिय घंटा टगवाने   में रहे | बनारस में उन्होंने कई जगह घंटा टगवाया है | घंटा टगवाने का क्या महत्व है ,इसका कोई उल्लेख्य काशी खंड में नही है पर सुना गया है की आपने लन्दन में भी घंटाघर बनवाया है | ज्ञातव्य रहे की बनारस में घड़ीघर  को जहा घंटे की आवाज़ से समय की सुचना मिलती है ,घंटाघर कहते है | मछोदरी बाग़ प्राचीन में मत्स्योदरी तीर्थ कहलाता था | आगे राजघाट है | यह स्थान शहर का अंतिम भाग है | इस भूभाग का बनारस के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है |
प्राचीनकाल में यह अनेक राजाओं की आवास भूमि रही | वे सब गंगा की गोद में चले गये | अब यहा केवल खंडहर रह गये है जिसे सरकार खुदवाकर कुछ पुरातत्वविदों की कचूमर निकालना चाहती है | इससे कुछ लोगो का चंडूखाने की दून  हाकने का मौक़ा मिलेगा |  अब हमें पुन:शहर की ओर मुड़ना है और शहर का प्रमुख भाग देखना है | इसीलिए अब पुन:हम मैदागिन के पास आते और यही से दक्षिण की ओर बढ़ते है | मैदागिन से कुछ दूर आगे बढने पर कर्णघंटा नामक स्थान है | कहा जाता है ,यहा का मंदिर गांगेय के पुत्र यशकर्ण ने बनवाया था | इतिहासकारों की बहुत -सी अटकले पच्चुवालीबाते इसलिए स्वीकार करनी पड़ती है की यह सब घटनाए जब हुई तब हम बनारस में नही थे | यहा से कुछ दूर आगे बाबा विश्वनाथ के थर्ड डिप्टी सुपरिटेंड आफ पुलिस आसभैरव रहते है  |काशी के प्रमुख उद्योग धंधो की सामग्री इस इलाके में मिलती है | मसलन लकड़ी के विभिन्न सामान ,पीतल के बर्तन ,जरी और सोने -चाँदी के जेवरात इत्यादि | इसी क्षेत्र में एक जगह कन्नौज ,जौनपुर ---  गाजीपुर का  इलाका बस गया है | दूसरी ओर बनारस का प्रमुख -व्यवसाय बनारसी सादियो का रोजगार होता है |  पुस्तक व्यवसायी ,समाचार -पत्र विक्रेता मंग्लामुखियो का हाट और फल्वालो की दुकाने इसी क्षेत्र में है |
कविराज कालिपद दे का आश्चर्य मलहम जो 101 बीमारियों में फायदा पहुचाता है -- आवाज लगाते हुए बगल में टीन का डब्बा लिए बंगाली बाबू टहलते है | आँखों में चश्मा पहने और हाथ में सिर्फ एक चश्मा लिए -- '' एक चश्मा '' की आवाज देते हुए बड़े मिया कुछ लोगो की आँखे पढ़ते नजर आते है |
जल -- जीरे का पानी , आम का पन्ना बेचने वालो की गाडी , गडेरी मेरी अव्वल पैसा लेना डब्बल , दिया सलइया पैसे में , सुइया चार मुनाफे में आदि सामान बिकता है ||
कुछ दुकानदार यहाँ पर हर माल 5 रूपये में बेचते है कयुनकि कम्पनी का माल वे लुटा रहे है | अब आपको गरज हो तो खरीदिये | गंजी भी पांच रूपये में पेन भी पांच रूपये में मिलती है |
एक ओर से एक बंद कनस्तर लोए '' गरेम' है जी '' की आवाज आती है जब तक आप उनसे सामान न खरीदे तब तक आप यह नही समझ पाइयेगा की क्या गरम है --वातावरण , मौसम , वे स्वंय या बंद कनस्तर का सामान | आज से तीन वर्ष पूर्व सडक पर '' केसरिया तर हव राजा '' की आवाज लगाता हुआ एक आदमी झूमता हुआ नजर आत़ा था | उसकी गैरमौजूदगी आज के बच्चो को खलती है | नरम --गरम , नरम- गरम  की आवाज लगाता हुआ एक आदमी बड़ी तेजी से लाल साइनबोर्ड पहने आपकी बगल से गुजर जाएगा |
यह है परमानेंट हरे -- राम हरे -- राम की फैक्ट्री जहा लाउडिसपीकर से शाम के समय भक्ति प्रदर्शन होता है | सामने बीवी का रोजा की मस्जिद के बारे में कहा जाता है की पहले यहाँ विश्वनाथ मन्दिर था जिसे कुतुबद्दीन ऐबक ने तोड़ा था | नीचे ज्ञानवापी की प्रसिद्ध मस्जिद है जिसका औरंगजेब ने निर्माण कराया था |
यह है सत्यनारायण मन्दिर जहा श्रावण में भगवान झूला झूलते है | उनका श्रृंगार देखने के काबिल होता है | आगे बॉसफाटक  है | बनारस के मुहल्लों का नाम देखकर अनुमान किया जाता है की प्राचीन काल में यह नगर अरब देशो की भांति बंद नगरी थी जिसके चारो तरफ फाटक थे |  मसलन हाथी फाटक , बॉस फाटक , शेख सलीमका फाटक , रंगिलादास का फाटक और सुखलाल साहू आदि का फाटक  अब हम गोदौलिया पर आ गये | इस प्रकार सारा शहर घर बैठे देख लिया | क्या जरूरत की आप बनारस आये और दो नए प्रवेश कर दे | हां यदि गंगा -- स्नान , विश्वनाथ -- दर्शन अथवा शहर देखने के काफी शौक है तो हमे एतराज नही | अगर और निरालापन देखना हो तो यहाँ के धनुषाकार घाट , धरोहर का एक खम्भा , यहाँ की गलिया और यहाँ के मेले देखे | बस , सारा बनारस आपकी नजरो से गुजर जाएगा | 
-सुनील दत्ता
आभार विश्वनाथ मुखर्जी की पुस्तक '' बना रहे बनारस से ''

5 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बना बनारस रहेगा, विश्वनाथ का धाम ।

सुबह बनारस की भली, भली अवध की शाम ।

भली अवध की शाम , दफ़न आशिक माशूका ।

मौत कुआँ मशहूर, कभी न डाकू चूका ।

शिक्षा नगरी श्रेष्ठ, मुहल्ला खोजा खाली ।

दिल्ली करें प्रवास, वहीँ मन रही दिवाली ।।

Pallavi saxena ने कहा…

वाह!!!बनारस के विषय में आपके इस लेख के माध्यम से बहुत कुछ जाने को मिला आभार....

Bharat Bhushan ने कहा…

बढ़िया.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सस्ती और बहुत अच्छी किताब है। मैने भी चाहा था कि इस किताब से कुछ पोस्ट करूँ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सस्ती और बहुत अच्छी किताब है। मैने भी चाहा था कि इस किताब से कुछ पोस्ट करूँ।

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