सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

कौन रह रहा है किसकी जमीन पर

भारत में जन्मस्थान या धर्म के आधार पर समुदायों को निशाना बनाने की प्रवृत्ति में तेजी से वृद्धि हुई है।  साम्प्रदायिक और जातीय हिंसा की कई हालिया घटनाओं के पीछे यही प्रवृत्ति है। कई अधोगामी राजनैतिक विचारधाराएं हम.यहां.तुमसे.पहले.आए.थे  के आधार पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहती हैं। वे समस्याएंए जिनके मूल में संसाधनों की कमी विपन्नता और सामाजिक.राजनैतिक असमनताएं हैंए को व्यक्तियों के धर्म या मूल रहवास के क्षेत्र से जोड़ा जा रहा है। मुंबई में यह राजनीति अपने चरम पर है। शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेनाए दोनों का अत्यंत संकीर्ण क्षेत्रीय.साम्प्रदायिक एजेन्डा है। वे गिरगिट से भी ज्यादा तेजी से अपना रंग बदलती रही हैं। कभी वे धर्म की बात करती हैं तो कभी क्षेत्र की और कभी.कभी अपनी आक्रामक सड़क.छाप राजनीति के लिए वे साम्प्रदायिकता और क्षेत्रीयता के मिश्रण का उपयोग भी करती हैं।
इस संकीर्ण राजनीति के उभरते सितारे राज ठाकरे हमेशा गलत कारणों से समाचार माध्यमों में छाए रहते हैं। वे आए दिन जिसे चाहे उसे सीधी कार्यवाही की धमकी देकर डराते रहते हैं। इस संदर्भ में यह भी विचारणीय है कि आखिर राज्यतंत्र सीधी कार्यवाही में विश्वास रखने वाले इन संगठनों के खिलाफ सीधी कार्यवाही क्यों नहीं करता हाल में ;सितम्बर 2012द्ध बिहार पुलिस की ओर से महाराष्ट्र पुलिस को एक पत्र लिखकर यह कहा गया कि 11 अगस्त 2012 को मुंबई में हुई हिंसा के दौरानए अमर जवान ज्योति को क्षति पहुंचानें वाले दो आरोपियों को बिहार से गिरफ्तार करने के पहले महाराष्ट्र पुलिस को वहां के पुलिस अधिकारियों को सूचना देनी थी। राज ठाकरे ने इसके जवाब में कहा कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेनाए मुंबई में रह रहे सभी बिहारियों को घुसपैठिया घोषित कर देगी। बिहार पुलिस की आपत्ति में कुछ भी गलत नहीं था। किसी भी राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में कार्यवाही करने के पहले कुछ कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करना होता है जिन्हें महाराष्ट्र पुलिस ने पूरा नहीं किया था। परंतु राज ठाकरे इस मुद्दे पर भी राजनैतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आए।
जिस समय राज ठाकरे ये अनर्गल प्रलाप कर रहे थे लगभग उसी समय एक दिलचस्प वाकया घटा। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने राज ठाकरे के दादा और बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकर ठाकरे द्वारा लिखित एक पुस्तक से एक मजेदार तथ्य खोज निकाला। महाराष्ट्र राज्य साहित्य अणि सांस्कृतिक मंडल ने राज्य में भाजपा.शिवसेना शासनकाल में प्रबोधनकर ठाकरे के लेखन का संकलन प्रकाशित किया था।प्रबोधनकर ठाकरे समग्र वांग्मय के खण्ड 5 में ठाकरे अपने चन्द्रसेनिया कायस्थ प्रभु समुदाय की भौगोलिक जड़ों की चर्चा करते हैं। खण्ड 5 के पृष्ठ क्रमांक 45 में प्रबोधनकर ठाकरे लिखते हैं कि मगध का भ्रष्ट क्षत्रिय राजा महापद्मानंद प्रजा पर करों का अत्यधिक बोझ लादता जा रहा था जिससे परेशान होकर उनके समुदाय के कई परिवार मगध छोड़कर नेपाल कश्मीर और भोपाल चले गए।
इसी पुस्तक में बताया गया है कि जो परिवार मगध ;अब बिहार छोड़कर गए थे उनमें से लगभग 80 परिवारों ने भोपाल में शरण ली और प्रबोधनकर का परिवार भी इन्हीं में से एक था। प्रबोधनकर लिखते हैं कि भोपाल के मुस्लिम नवाब अत्यंत दयालु व सह्दय व्यक्ति थे और उन्होंने ठाकरे परिवार की बहुत मदद की। यही ठाकरे परिवार बाद में मुंबई चला गया। बाल ठाकरे के पुत्र और राज ठाकरे के चचेरे भाई उद्धव ठाकरे ने दावा किया कि प्रबोधनकर ठाकरे ने जो कुछ लिखा हैए वह उनके परिवार विशेष के बारे में नहीं बल्कि उनके समुदाय के बारे में है। परंतु उद्धव ने इस संबंध में कुछ नहीं कहा कि उनके अनुसार उनके परिवार का इतिहास क्या है। यह महत्वपूर्ण है कि प्रबोधनकर के लेखन से एक अन्य मिथक का भी खण्डन होता है। प्रबोधनकर ने शायद सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि उनके पुत्र व पौत्र संकीर्ण राजनीति के प्रमुख झंडाबरदार बन जाएंगे और उस राजनैतिक जमात में शामिल हो जाएंगे जो मध्यकाल को मात्र इसलिए इतिहास का काला अध्याय बताती है क्योंकि उस समय देश में अनेक मुसलमान राजा और नवाब शासन कर रहे थे। यह राजनैतिक जमात हिन्दू राजाओं का महिमामंडन भी करती है। वहीं प्रबोधनकर कहते हैं कि क्षत्रिय राजा के अत्याचारों से परेशान होकर हिन्दुओं को उसका राज्य छोड़ना पड़ा और मुस्लिम नवाब ने ठाकरे परिवार की मदद की।
शासकों को उनके धर्म के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करनाए इतिहास के साम्प्रदायिक संस्करण के आधारभूत ढांचे का हिस्सा है। पाकिस्तान और भारत.दोनों में ही अब भी आम लोग यह मानते हैं कि शासकों के निर्णय व उनके कार्यकलापए उनके धर्म से निर्धारित होते थे। इस संदर्भ में ठाकरे सीनियर से हम सब सबक सीख सकते हैं।
वर्तमान समय में नागरिकता के मुद्दे पर हमारा क्या रूख होना चाहिए क्या हम सबको एक.दूसरे के राज्यों में जाने और वहां रहने का अधिकार है  सैद्धांतिक और कानूनी दृष्टिकोण से शायद ही कोई यह कह सकता है कि एक राज्य या क्षेत्र के निवासी किसी दूसरे राज्य या क्षेत्र में जाकर नहीं रह सकते। परंतु मुंबई में शिवसेना और एमएनएस ने इस मुद्दे पर बवाल खड़ा कर दिया है। उनकी संकीर्णता केवल क्षेत्र तक सीमित नहीं है। वे धर्म के मामले में भी उतने ही संकीर्ण हैं। दोनों ही मामलों में वे जो कुछ कहते हैं उसमें सच्चाई का एक अंश भी नहीं है। महानगरों और अन्य शहरों में प्रवासियों के आने का सिलसिला सैकड़ों सालों से चल रहा है। अधिकांश प्रवासी अपने पेट की आग को बुझाने के लिए नगरों में आते हैं। स्वतंत्रता के पहले तक सबसे बड़ी संख्या में प्रवासी कोलकाता आया करते थे। स्वतंत्रता के बादए मुंबई में प्रवासियों के आने का सिलसिला तेजी से बढ़ा। सन् 1960 से लेकर सन् 1980 तक मुंबई में अनेक उद्योगों की स्थापना हुई और इनमें रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ। परंतु मुंबई में आने वाले अधिकांश प्रवासी महाराष्ट्र से बाहर के नहीं थे। वे मुख्यतः राज्य के ही कोंकण इलाके से आए थे। इस समय दिल्ली प्रवासियों की पहली पसंद है। इसके बाद पंजाब और तीसरे स्थान पर मुंबई आता है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइसिंस द्वारा कराए गए एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसारए मुंबई आने वाले प्रवासियों में से 70 प्रतिशत महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों से आते हैं। इनमें से मात्र 15 प्रतिशत रोजगार पाने के लिए यहां आते हैं। अन्य सभी या तो शिक्षा हासिल करने या विवाह होने पर मुंबई आते हैं।
ठाकरे परिवार  जो कि मूलतः बिहार का हैए इस समय बिहारियों को ही अपना निशाना बना रहा है। ठाकरे परिवार के निशाने पर अलग.अलग समय पर कई अलग.अलग समुदाय रहे हैं। शिवसेना को मुंबई के उद्योगपतियों ने तत्कालीन शासक दल कांग्रेस की सहायता से खड़ा किया था और इसका उद्देश्य था मुंबई में मिल मजदूरों की यूनियनों को तोड़ना। शिवसेना ने सबसे पहले दक्षिण भारतीयों पर हल्ला बोला। उस समय उसका नारा था उठाओ लुंगी बजाओ पुंगी। फिर कुछ समय के लिए गुजराती उनके निशाने पर आ गए। इस बीच शिवसेना ने आरएसएस की हिन्दुत्ववादी विचारधारा से भी अपना नाता जोड़ लिया और सन् 1992.-93 के मुंबई दंगों में जबरदस्त हिंसा की। उस समय शिवसेना का नारा था मुसलमान के दो ही स्थान पाकिस्तान या कब्रिस्तान। शिवसेना ने मुसलमानों का किस तरह दानवीकरण किया इसका विस्तृत विवरण श्रीकृष्ण जांच आयोग की रपट में उपलब्ध है।
पिछले कुछ समय से उत्तर भारतीय  क्षेत्रवाद की राजनीति के मुख्य शिकार बन रहे हैं। शिवसेना.एमएनएस की राजनीति हमारे संविधान के खिलाफ है। इन आक्रामक नेताओं को तथ्यों पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर मुंबई में आने वाले 70 फीसदी प्रवासी मराठी मानूस हैं तो फिर इस समस्या का हल क्या है दरअसल समस्या बिहारियों या नेपालियों के रोजगार की तलाश में मुंबई आना नहीं है। समस्या यह है कि असंतुलित विकास के चलते देश के कुछ हिस्से बहुत पीछे छूट गए हैं और कुछ अन्य हिस्सों पर बढ़ती आबादी का अकल्पनीय दबाव है। धर्म और क्षेत्रीयता की राजनीति के मुख्य शिकार गरीब लोग बन रहे हैं।
धर्म राष्ट्र.राज्य और क्षेत्र जैसी अवधारणाओं से मानवता के विकास में मदद मिलनी चाहिए। स्पेंसर वेल्स ने यह साबित किया है कि पूरी मानव जाति की अनुवांशिक जड़ें अफ्रीका में हैं। राजशाही के अत्याचारों से मुक्ति के लिए राष्ट्र.राज्य अस्तित्व में आए। राष्ट्र.राज्यों की मानव समाज के लिए उपयोगिता मात्र यह है कि उनके कारण समाज का प्रजातंत्रिकरण हुआ और सामंती मूल्य समाप्त हुए। राष्ट्र.राज्यों को अलग.अलग क्षेत्रों में इसलिए विभाजित किया जाता है ताकि विकास आसानी से हो सके। इसके अलावा उनकी कोई उपयोगिता नहीं है। ठाकरे और उनके जैसे अन्य लोगों को इस बात से सबक सीखना चाहिए कि ठाकरे परिवार जिन लोगों के पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ है उनके ही क्षेत्र में ठाकरे परिवार के पूर्वज रहा करते थे। हम सबको स्पेंसर वेल्स की मानव जाति के प्रवास संबंधी सिद्धांतों और टैगोर के विष्ववाद से भी  शिक्षा लेनी चाहिए।

-राम पुनियानी

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

AAPKA LEKH ACCHA HAI. LEKIN DIGVIJAY SINGH JIS KAAL KI BAAT KAR RAHE HAIN WO 450 YRS PAHLE KA ITIHAAS HAI. WAISE ASSAM ME BANGLADESHI GHUSPAITHIYON K TAANDAV AUR US K BAAD MUMBAI ME HINSA KI KOSHISH KYA EK GAMBHIR APRAADH NAHI HAI. KRIPYA BATAAYEN MUMBAI ME SHANTIPURWAK VIRODH BOL K HINSA FAILAANE KI KOSHISH KYA HINDUOVON NE KI.

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