बुधवार, 26 दिसंबर 2012

फैजाबाद में सरकारी दंगा -2

फैजाबाद में यह परम्परा रही है कि श्रद्धालु महिलाएँ चैक स्थित मस्जिद की सीढि़यों तथा ऊपर के हिस्से में जाकर हर साल जुलूस का स्वागत फूल बरसा कर किया करती थीं परन्तु इस साल पहली बार ऐसा नहीं हुआ। यह अपने आप में संदेह पैदा करने वाली बात थी। 24 अक्तूबर को मूर्ति विसर्जन के जुलूस से पहले ही मस्जिद के गेट के सामने दस पन्द्रह वाहन पार्क कर दिए गए। आपत्ति करने पर उनमें सवार व्यक्ति झगड़े पर उतारू हो गए। जब इसकी शिकायत मौके पर मौजूद पुलिस वालों से की गई तो उन लोगों ने शिकायतकर्ता को ही अपनी जान बचा कर निकल जाने की सलाह दे डाली। बाद मंे कई अन्य जगहों से ऐसी सूचनाएँ प्राप्त हुईं कि जब जुलूस में शामिल शरारती तत्वों की संदिग्ध हरकतों की जानकारी पुलिस वालों को दी गई तो उन लोगों ने इसी तरह के सुझाव देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। इन घटनाओं से यह अंदाजा कर पाना कठिन नहीं है कि जो कुछ आगे घटित होने वाला था उसकी यदि उन्हें पक्की जानकारी नहीं तो कम से कम आभास अवश्य था। परन्तु जब जुलूस में धार्मिक नारों के साथ-साथ ‘यूपी भी गुजरात बनेगा फैजाबाद शुरुआत करेगा‘ जैसे साम्प्रदायिक नारे भी लगने लगे थे तो पुलिस प्रशासन को तुरन्त सजग हो जाना चाहिए था। परन्तु कोई अतिरिक्त सावधानी नही बरती गई। भदरसा में दंगा फूटने से पहले ही स्थानीय थाने के एस0ओ0 धरमपाल यादव ने वहाँ के चार मुस्लिम कोटेदारों से यह कहकर केरोसिन तेल मँगवाया कि बाहर से फोर्स आई हुई है और एस.डी.एम. साहब का आदेश है कि तेल पहुँचा दें। इस जबानी निर्देश पर कोटेदारों ने तेल पहुँचा दिए। अगले दिन उसी एस.ओ. ने कोटेदारों से केरोसिन तेल कैम्प से थाने पहुँचाने को कहा। चूँकि अब तक दंगा हो चुका था इसलिए उनमें से तीन ने जाने से इंकार कर दिया। चैथा कोटेदार जाहिद जब तेल पहुँचाने के लिए वहाँ गया तो उसे दंगा करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद समाचार पत्रों में विनय कटियार के हवाले से यह खबर प्रकाशित हुई कि भदरसा के मुस्लिम कोटेदारों ने आगजनी को अंजाम देने के लिए मुसलमानों में 5-5 लीटर केरोसिन तेल बाँटे थे। इसी तरह की कई अन्य घटनाओं को झाड़ कर देखा जाए तो आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि दंगों की योजना पहले से तैयार थी और पुलिस प्रशासन में ऐसे लोग मौजूद थे जिनको बाद में घटित होने वाली घटनाओं की पहले से ही जानकारी थी।
    फैजाबाद शहर के चैक क्षेत्र में सबसे पहले दंगा शुरू हुआ। दंगा शाम के लगभग साढ़े चार बजे से रात ग्यारह बजे तक चलता रहा। वैसे व्यावहारिक रूप से इसे दंगा कहा ही नहीं जा सकता। यह तो किसी विजयी सेना के विध्वंस अभियान जैसा था। बलबाइयों की भीड़ द्वारा चुनचुन कर मुसलमानों की दुकानें पहले लूटी गईं फिर उनमें आग लगा दी गई। पुलिस ने कभी भी दंगाइयों को रोकने का प्रयास नहीं किया। हकीकत तो यह है कि दंगाई इतने निश्चिंत थे कि लूटे हुए सामान को ठेले पर लाद कर सुरक्षित स्थान तक ले गए। दंगा भड़कने के बाद तो सामान्य जन ने अपने अपने घरों की राह ली परन्तु कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर दंगाइयों द्वारा लगाई गई आग को बुझाने का प्रयास किया। हालाँकि उनके पास न तो कोई यन्त्र था और न ही पानी उपलब्ध और न तो वह अपने प्रयास में सफल ही हो सके। किन्तु उन विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होनंे मानवता को शर्मसार होने से बचाने के लिए जो कुछ किया हम उस पर गर्व कर सकते हैं। उन्हीं में से दो मित्र आशीष और दीपक भी थे। लेकिन जब पुलिस वालों की नजर इन दोनों पर पड़ी तो उनकी निष्क्रियता सक्रियता में बदल गई। इन दोनों को वहाँ से खदेड़ दिया गया जबकि दंगाई अपना काम निर्बाध रूप से अंजाम देते रहे। दंगों की यह आग फैजाबाद के अन्य कस्बों और गाँवों तक भी पहुँच गई। भदरसा, भेलसर, रुदौली और शाहगंज में भी मुसलमानों के घर और दुकानों को पहचान कर पहले लूटा गया फिर आग लगा दी गई। सिर्फ भदरसा कस्बे में मुसलमानों के एक सौ तीन घर और मकान जला कर खाक कर दिए गए। इन दंगों का सबसे दुखद पहलू यह था कि फैजाबाद शहर और कस्बों के अतिरिक्त लगभग दो दर्जन गाँवों या छोटे चट्टी चैराहों पर मुसलमानों के मकानों और दुकानों को जलाए जाने की घटना की ओर बहुत कम लोगों का ध्यान जा पाया। उनकी बर्बादी का दृश्य दिल दहला देने वाला था। फतेहपुर, इस्लामाबाद, फुलवरिया, भरत कुंड और लालगाँव जैसी कई बस्तियों में जहाँ गरीब मुसलमान रहते हैं उनके घरों और छोटे कारोबारों को पूरी तरह तबाह कर दिया गया। कहानी वहाँ भी वैसी ही थी जैसी शहर और कस्बा क्षेत्रों की। इन गाँवों में भी पहले दंगाइयों ने घरों को लूटा फिर जो सामान नहीं ले जा पाए उन्हें इकट्ठा करके आग के हवाले कर दिया। खपरैल और फूस के छप्पर जलकर खाक हो गए। अब वहाँ घरों के नाम पर सिर्फ दीवारें बची थीं और कच्ची फर्श पर बिछा कर बैठने के लिए बोरिया भी नहीं था। चालीस पचास घरों की आबादी वाले फतेहपुर गाँव में मुसलमानों के कुल सोलह घर हैं। सब जलकर खाक हो गए बाकी किसी भी मकान को आँच तक नहीं आई। उनकी बर्बादी की गाथा न तो अखबारों में जगह पा सकी और न ही वहाँ कोई विधायक मंत्री पहुँचा। शायद यही कारण था कि भदरसा की तरह दंगाइयों और प्रशासन में उनके सहयोगियों ने एक दो मड़हों को जलाकर दो तरफा दंगा दिखाने का नाटक करने की भी आवश्यकता महसूस नहीं की। जब प्रशासन को लगा कि अब कुछ मानवाधिकार संगठनों का रुख गाँवों की तरफ भी हो रहा है तो वहाँ सफाई के लिए दबाव बना कर सुबूतों को मिटाने का प्रयास शुरू हो गया। इसी क्रम में फतेहपुर गाँव में लेखपाल राजेश सिंह ने कानूनगो और पुलिस वालों के साथ मिलकर कुछ घरों की जबरन सफाई भी करवा दी। फतेहपुर में लुटने और जलने वाले सभी घर मुसलमानों ही के थे इसलिए हमें उस समय बहुत आश्चर्य हुआ जब यह बताया गया कि गाँव से कई मुसलमान युवकों को दंगा करने के आरोप में पुलिस उठा कर ले गई है। हम इस बात पर हैरान थे कि आखिर पुलिस फतेहपुर के मुसलमानों की गिरफ्तारी को कैसे जायज ठहरा पाएगी। परन्तु जब रिहाई मंच की जाँच में यह बात सामने आई कि सरकारी जाँच में फुलवरिया के कुछ हिन्दू परिवारों के घरों को जला हुआ दिखाया गया है और उनको मुआवजे की रकम भी अदा की जा चुकी है तब अचानक फतेहपुर से गिरफ्तार किए गए युवकों की गुत्थी सुलझती हुई नजर आने लगी। अब ऐसी आपराधिक अनियमितताओं की खबरें कई जगहों से आ रही है। भदरसा में एक चैदह वर्षीय बालक को दंगा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। भदरसा से ही पिछले सात महीने में दो बार फालिज के हमले के शिकार 75 वर्ष के इफ्तेख़ार को हत्या का आरोपी बनाया गया है। ज्यादा तर गिरफ्तार मुसलमानों के स्वयं अपने ही घर और कारोबार जलकर भस्म हो चुके हैं।
-मसीहुद्दीन संजरी

2 टिप्‍पणियां:

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) ने कहा…

शानदार लेखन,
जारी रहिये,
बधाई !!

बेनामी ने कहा…

MAAN GAYE AP TO SCOTLAND YARD K BHI BAAP NIKLE. ITNI INFORMATION JAB AAP K PAAS HAI TO AAP CASE KYUN NAHI KAR DETE. WAISE BHI TERRORISTS K MASEEHA AAP HI HAIN.

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